यह आदेश प्रशासन के झूठ का सच प्रमाणित करता है और स्वामी सानंद उर्फ जीडी के संकल्प की जय। इस बीच उत्तराखंड आपदा के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी करते हुए अगले आदेश तक नई जलविद्युत परियोजनाओं की मंजूरी पर रोक लगा दी है। आपदा का मानव दोष तय करने हेतु वैज्ञानिक अध्ययन व उसके लिए कमेटी गठन का आदेश भी जारी कर दिया है। लेकिन जीडी की मांग अभी भी वहीं है। इसलिए उनका अनशन अभी भी जारी है। एक बार फिर संकल्प व सरोकार सम्मानित हुए और दुराचार को मुंह को खानी पड़ी। एक बार फिर प्रशासन छोटा और निजी संकल्प बड़ा सिद्ध हुआ है। उल्लेखनीय है कि देश की सबसे बड़ी अदालत ने प्रो. जी.डी. अग्रवाल उर्फ स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद की बिना जमानत रिहाई के आदेश दे दिया है। जीडी अब जेल से मुक्त हैं। अनशन जारी है। इस समाचार के मिलते ही नदी प्रेमियों में खुशी का माहौल है। ऐसे कई संदेश मुझे भी मिले हैं।
आप जानते हैं कि जी डी गत 13 जून से मातृसदन, हरिद्वार की कठिन तपस्थली में अनशन पर हैं। हरिद्वार प्रशासन ने अनशन की अवमानना देते हुए इसे आत्महत्या का प्रयास करार दिया था। हरिद्वार के कनखल पुलिस थाने में धारा 309 के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई थी। इसके बाद उन्हें इलाज के नाम पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली ले जाया गया था। वहां से लौटने पर जीडी को 14 अगस्त तक हरिद्वार की रोशनाबाद जेल की अंधेरी कोठरी में पटक दिया गया।
यह कानून के दुरुपयोग और असहमति जताने के अहिंसात्मक तरीकों पर प्रहार जैसा कदम था। भारतीय लोकतंत्र में लोक के साथ ऐसे व्यवहार को अलोकतांत्रिक ठहराते हुए मैं एक छोटा सा लेख ही लिख सका था। उसे राष्ट्रीय सहारा, हिंदी वाटर पोर्टल, इंदुसबैकन्सपोर्टल व मातृसदन की वेबसाइट आदि ने प्रमुखता से स्थान देकर आगे बढ़ाकर संवेदनाओं को टटोलने की कोशिश भी की थी। प्रतिक्रिया में बुंदेलखंड के भगवान सिंह परमार की पहल पर बुंदेली समाज ने प्रशासन के कृत्य की निंदा करते हुए सरकार को ज्ञापन प्रेषित किया। जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने इसे अलोकतांत्रिक कदम बताते हुए एक बयान दिया। गांधी शांति प्रतिष्ठान के श्री रमेश शर्मा ने इसे असहमति जताने के अहिंसक तरीकों पर प्रहार बताते हुए निंदा की। भारतीय विदेश सेवा की एक पूर्व प्रमुख अधिकारी बहन श्रीमती मधु भादुड़ी, बुंदेलखंड के नामी-गिरामी विद्वान पर्यावरणविद डा. भारतेन्दु प्रकाश, यमुना जिए अभियान के प्रख्यात संयोजक श्री मनोज मिश्र, पत्रकार श्री रविशंकर, मौलिक भारत के संयोजक श्री अनुज अग्रवाल, कर्नाटक के श्रीनिवास गुतल और उड़ीसा के श्रीमान सरंजन मिश्र ने गंभीर चिंता जताई। इससे कुछ आत्माएं हिली ज़रूर, लेकिन बात बहुत बनी नहीं।
इस बीच जीडी द्वारा जमानत लेने मे असमर्थता व्यक्त करने पर न्यायिक हिरासत की अवधि 14 दिन बढ़ाकर 26 अगस्त तक कर दी गई थी। मातृसदन, हरिद्वार के स्वामी दयानंद की अपील पर जीडी को जेल मे ही अलग रखे जाने की व्यवस्था करने का एक आदेश स्थानीय कोर्ट द्वारा दिया गया था। लेकिन असल काम किया मातृसदन की ही पहल पर दायर स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद की सिविल याचिका संख्या 200 (वर्ष 2013) ने। यह याचिका सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री टी. एस. ठाकुर और न्यायमूर्ति श्री विक्रमजीत सेन की पीठ में पेश की गई। निस्संदेह याचिका पक्ष के वरिष्ठ वकील सर्वश्री के टी एस तुलसी, ख्याति नाम पर्यावरण वकील एम सी मेहता तथा कुबेर बुद्ध व डा कैलाश चंद की भूमिका इसमें महत्वपूर्ण रही ही।
याचिका में गंगा स्वच्छता तथा गंगोत्री से उत्तरकाशी तक पारिस्थितिक दृष्टि से संवेदनशील घोषित क्षेत्र के संरक्षण की अपील की गई थी। इस अपील में यह भी कहा गया था कि चूंकि स्वामी सानंद एक सन्यासी हैं और उनके पास ऐसे कोई संसाधन नहीं है कि वह मजिस्ट्रेट के आदेश की पालना करते हुए रुपए 15 हजार की जमानत ले सके। याचिका पक्ष ने यह भी स्पष्ट किया था कि अनशन का मकसद सिर्फ सरकार का ध्यान प्रदूषण और गंगा के लुप्त होने की संभावना की ओर आकर्षित करना है। स्वामी सानंद का आत्महत्या को इरादा नहीं है।
ग़ौरतलब है कि माननीय पीठ ने याचिकाकर्ता की 81 वर्ष की उम्र और उनके गंगा के लिए उनके सरोकार को सम्मान देते हुए आदेश दिया है-’’ याचिकाकर्ता को बिना जमानत सिर्फ उनके द्वारा ‘आत्महत्या का कोई इरादा नहीं’ संबंधी वचन के आधार पर रिहा किया जाये।’’
यह आदेश प्रशासन के झूठ का सच प्रमाणित करता है और स्वामी सानंद उर्फ जीडी के संकल्प की जय। इस बीच उत्तराखंड आपदा के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी करते हुए अगले आदेश तक नई जलविद्युत परियोजनाओं की मंजूरी पर रोक लगा दी है। आपदा का मानव दोष तय करने हेतु वैज्ञानिक अध्ययन व उसके लिए कमेटी गठन का आदेश भी जारी कर दिया है। लेकिन जीडी की मांग अभी भी वहीं है। इसलिए उनका अनशन अभी भी जारी है।
मुझे यह लिखते कोई संकोच नहीं कि जीडी पर दर्ज मामले के संदर्भ में खुद को नदी संरक्षण और लोकतंत्र का झंडा बरदार बताने वाले हमारे समाज ने अपना उत्तरदायित्व निभाने में पूरी कोताई बरती है। एक-आध को छोड़कर मीडिया ने भी इसे कोई मुद्दा नहीं समझा। अंततः अदालत ने ही राहत दी। अब आगे चुनौती है, जीडी के संकल्प को अंजाम तक पहुंचाने की। रास्ते और भी हो सकते हैं। आइए! सोचें और जुटे; जीडी के संकल्प के लिए न सही, अपने राष्ट्र की देव नदी, राष्ट्रीय नदी, अस्मिता, आस्था और आजीविका के लिए सही।
उच्चतम न्यायालय की आदेश रिपोर्ट पढ़ने के लिए अटैचमेंट देखें
संदर्भ
आप जानते हैं कि जी डी गत 13 जून से मातृसदन, हरिद्वार की कठिन तपस्थली में अनशन पर हैं। हरिद्वार प्रशासन ने अनशन की अवमानना देते हुए इसे आत्महत्या का प्रयास करार दिया था। हरिद्वार के कनखल पुलिस थाने में धारा 309 के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई थी। इसके बाद उन्हें इलाज के नाम पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली ले जाया गया था। वहां से लौटने पर जीडी को 14 अगस्त तक हरिद्वार की रोशनाबाद जेल की अंधेरी कोठरी में पटक दिया गया।
सामाजिक संवेदना
यह कानून के दुरुपयोग और असहमति जताने के अहिंसात्मक तरीकों पर प्रहार जैसा कदम था। भारतीय लोकतंत्र में लोक के साथ ऐसे व्यवहार को अलोकतांत्रिक ठहराते हुए मैं एक छोटा सा लेख ही लिख सका था। उसे राष्ट्रीय सहारा, हिंदी वाटर पोर्टल, इंदुसबैकन्सपोर्टल व मातृसदन की वेबसाइट आदि ने प्रमुखता से स्थान देकर आगे बढ़ाकर संवेदनाओं को टटोलने की कोशिश भी की थी। प्रतिक्रिया में बुंदेलखंड के भगवान सिंह परमार की पहल पर बुंदेली समाज ने प्रशासन के कृत्य की निंदा करते हुए सरकार को ज्ञापन प्रेषित किया। जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने इसे अलोकतांत्रिक कदम बताते हुए एक बयान दिया। गांधी शांति प्रतिष्ठान के श्री रमेश शर्मा ने इसे असहमति जताने के अहिंसक तरीकों पर प्रहार बताते हुए निंदा की। भारतीय विदेश सेवा की एक पूर्व प्रमुख अधिकारी बहन श्रीमती मधु भादुड़ी, बुंदेलखंड के नामी-गिरामी विद्वान पर्यावरणविद डा. भारतेन्दु प्रकाश, यमुना जिए अभियान के प्रख्यात संयोजक श्री मनोज मिश्र, पत्रकार श्री रविशंकर, मौलिक भारत के संयोजक श्री अनुज अग्रवाल, कर्नाटक के श्रीनिवास गुतल और उड़ीसा के श्रीमान सरंजन मिश्र ने गंभीर चिंता जताई। इससे कुछ आत्माएं हिली ज़रूर, लेकिन बात बहुत बनी नहीं।
मातृसदन की पहल
इस बीच जीडी द्वारा जमानत लेने मे असमर्थता व्यक्त करने पर न्यायिक हिरासत की अवधि 14 दिन बढ़ाकर 26 अगस्त तक कर दी गई थी। मातृसदन, हरिद्वार के स्वामी दयानंद की अपील पर जीडी को जेल मे ही अलग रखे जाने की व्यवस्था करने का एक आदेश स्थानीय कोर्ट द्वारा दिया गया था। लेकिन असल काम किया मातृसदन की ही पहल पर दायर स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद की सिविल याचिका संख्या 200 (वर्ष 2013) ने। यह याचिका सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति श्री टी. एस. ठाकुर और न्यायमूर्ति श्री विक्रमजीत सेन की पीठ में पेश की गई। निस्संदेह याचिका पक्ष के वरिष्ठ वकील सर्वश्री के टी एस तुलसी, ख्याति नाम पर्यावरण वकील एम सी मेहता तथा कुबेर बुद्ध व डा कैलाश चंद की भूमिका इसमें महत्वपूर्ण रही ही।
याचिका
याचिका में गंगा स्वच्छता तथा गंगोत्री से उत्तरकाशी तक पारिस्थितिक दृष्टि से संवेदनशील घोषित क्षेत्र के संरक्षण की अपील की गई थी। इस अपील में यह भी कहा गया था कि चूंकि स्वामी सानंद एक सन्यासी हैं और उनके पास ऐसे कोई संसाधन नहीं है कि वह मजिस्ट्रेट के आदेश की पालना करते हुए रुपए 15 हजार की जमानत ले सके। याचिका पक्ष ने यह भी स्पष्ट किया था कि अनशन का मकसद सिर्फ सरकार का ध्यान प्रदूषण और गंगा के लुप्त होने की संभावना की ओर आकर्षित करना है। स्वामी सानंद का आत्महत्या को इरादा नहीं है।
आदेश
ग़ौरतलब है कि माननीय पीठ ने याचिकाकर्ता की 81 वर्ष की उम्र और उनके गंगा के लिए उनके सरोकार को सम्मान देते हुए आदेश दिया है-’’ याचिकाकर्ता को बिना जमानत सिर्फ उनके द्वारा ‘आत्महत्या का कोई इरादा नहीं’ संबंधी वचन के आधार पर रिहा किया जाये।’’
यह आदेश प्रशासन के झूठ का सच प्रमाणित करता है और स्वामी सानंद उर्फ जीडी के संकल्प की जय। इस बीच उत्तराखंड आपदा के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी करते हुए अगले आदेश तक नई जलविद्युत परियोजनाओं की मंजूरी पर रोक लगा दी है। आपदा का मानव दोष तय करने हेतु वैज्ञानिक अध्ययन व उसके लिए कमेटी गठन का आदेश भी जारी कर दिया है। लेकिन जीडी की मांग अभी भी वहीं है। इसलिए उनका अनशन अभी भी जारी है।
भावी चुनौती
मुझे यह लिखते कोई संकोच नहीं कि जीडी पर दर्ज मामले के संदर्भ में खुद को नदी संरक्षण और लोकतंत्र का झंडा बरदार बताने वाले हमारे समाज ने अपना उत्तरदायित्व निभाने में पूरी कोताई बरती है। एक-आध को छोड़कर मीडिया ने भी इसे कोई मुद्दा नहीं समझा। अंततः अदालत ने ही राहत दी। अब आगे चुनौती है, जीडी के संकल्प को अंजाम तक पहुंचाने की। रास्ते और भी हो सकते हैं। आइए! सोचें और जुटे; जीडी के संकल्प के लिए न सही, अपने राष्ट्र की देव नदी, राष्ट्रीय नदी, अस्मिता, आस्था और आजीविका के लिए सही।
उच्चतम न्यायालय की आदेश रिपोर्ट पढ़ने के लिए अटैचमेंट देखें
Supreme Court Order Regarding Swami Sanand Ji by Hindi Water Portal
Path Alias
/articles/jaidai-sankalapa-samamaanaita-para-caunaautai-abhai-baakai-haai
Post By: admin