जहरीली हो गई है शहरों की हवा

वन विभाग द्वारा वर्ष 2011-12 में 41 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में 266.50 लाख पेड़ लगाए जाने का लक्ष्य तय किया गया है। इसमें अक्टूबर तक 74835.49 हेक्टेयर क्षेत्र में 559.47 लाख पेड़ लगा दिए गए हैं। अन्य विभागों को 14600 हेक्टेयर का लक्ष्य दिया गया है जिसमें 94.90 लाख पेड़ लगाए जाने हैं। अक्टूबर तक 13186.78 हेक्टेयर क्षेत्र में 116.61 लाख पेड़ लगाने का लक्ष्य हासिल किया जा चुका है पर इनमें से कितने पेड़ जीवित हैं इनका कोई आंकड़ा किसी महकमे के पास नहीं है।

उत्तर प्रदेश की राजधानी की हवा में सांस लेने के लिए अगर अन्य जिलों के लोग बेताब हो रहे हैं तो अपनी इस बेताबी को दबाने की कोशिश करें क्योंकि लखनऊ की हवा अन्य जिलों के मुकाबले ज्यादा जहरीली है। कारण यहां की बढ़ती जनसंख्या और सड़कों पर वाहनों की बढ़ती भीड़ है। यहां की हवा में कई प्रकार के रासायनिक कण मानक से अधिक हैं जो सांस के साथ हमारे शरीर में जाकर कई बीमारियों को जन्म देते हैं। यह बात इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च (आईआईटीआर) द्वारा की गई जांच से सामने आई है। इन्होंने एक माह के भीतर शहर के स्थानीय, व्यावसायिक और औद्योगिक जगहों का परीक्षण किया। परीक्षण के नतीजे बताते हैं कि प्रदूषित हवा से श्वसन संबंधी, हृदय संबंधी, प्रतिरक्षा क्षमता, हेमेटोलॉजिकल, न्यूरोलॉजिकल, प्रजनन संबंधी बीमारियां बढ़ रही हैं। भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान के डॉ. श्यामलचंद्र बर्मन ने बताया कि वर्ष में दो बार मानसून से पहले और मानसून के बाद आईआईटीआर द्वारा सर्वे किया जाता है।

अक्टूबर से चार नवंबर तक मानसून के बाद का सर्वे किया गया। डॉ.बर्मन ने बताया कि राजधानी के 10 इलाकों की वायु में जांच के दौरान सल्फरडाईऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और ट्रेस धातु निकल और ध्वनि प्रदूषण भी काफी पाया गया है। जिन इलाकों में जांच के दौरान वायु में मिले रासायनिक कणों का मामला 2.5 पीएम की रेंज में आता है तो वह शरीर के बहुत अंदर तक जाकर नुकसान पहुंचाता है। शहर में 2.5 पीएम में आने वाले इलाके इंदिरा नगर और चारबाग हैं। राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणवत्ता मानक के अनुसार औद्योगिक, आवासीय, ग्रामीण और अन्य इलाकों में रेंज 100 माइक्रोग्राम प्रतिवर्ग घनमीटर होनी चाहिए। लेकिन आवासीय इलाकों में शामिल इंदिरा नगर में यह रेंज 173.1 और कमर्शियल इलाके चारबाग में यह रेंज 227.4 माइक्रोग्राम प्रतिवर्ग घनमीटर है जिससे यह इलाके खतरनाक कहे जा सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ) के अनुसार उक्त तीनों प्रकार के इलाकों -आवासीय, व्यावसायिक और औद्योगिक में पीएम 2.5 की अधिकतम रेंज 25 होनी चाहिए लेकिन यह राजधानी में 60 की रेंज तक पहुंच गया है जिसमें सल्फरडाई आक्साइड की मात्रा 20 और नाइट्रोजन आक्साइड की मात्रा 40 होनी चाहिए लेकिन दोनों की मात्रा यहां की वायु में 80 है।

सूबे का कोई ऐसा इलाका नहीं हैं, जहां की हवा शुद्घ हो। कानपुर, आगरा, गोरखपुर, मेरठ, इलाहाबाद जिलों की भी हवा खासी प्रदूषित है। इसकी वजह इन जिलों के आसपास विकसित किए गए औद्योगिक क्षेत्र और उनमें प्रदूषण मानकों का अनुपालन न किया जाना है। जहां तक पानी के प्रदूषण की बात है तो गंगा के किनारे बसे शहरों के पानी में आर्सेनिक की मात्रा इतनी अधिक है कि हृदय, यकृत और त्वचा संबंधी तमाम बीमारियों के साथ-साथ इस इलाके के बच्चे विकलांगता का शिकार हो रहे हैं। प्रदूषण की लगातार बढ़ रही स्थिति के लिए हम खुद ही जिम्मेदार हैं क्योंकि एक ओर जहां नदियों को प्रदूषित कर रहे हैं वहीं विकास के नाम पर पेड़ लगाने की जगह उन्हें सिर्फ काटने का काम कर रहे हैं। यहीं वजह है कि उत्तर प्रदेश में वन निर्धारित मानक से बहुत कम हैं। अच्छे पर्यावरण के लिए राज्य वन नीति 1998 तथा राष्ट्रीय वन नीति 1988 के तहत एक तिहाई भू-भाग पेड़ों से आच्छादित होना चाहिए ताकि हरियाली बनी रहे।

राज्य में सत्रह हजार वर्ग किलोमीटर अभिलिखित वनक्षेत्र है जबकि वन आवरण केवल 14327 वर्ग किलोमीटर है। दावा यह किया जाता है कि इसके अलावा 7381 वर्ग किलोमीटर ऐसा क्षेत्र है जहां पेड़ लगे हुए हैं। वित्तीय वर्ष 2009-10 में वन विभाग ने 80336.94 हेक्टेयर क्षेत्र में 812.1 लाख पेड़ लगाए थे जबकि अन्य विभागों ने 15483.55 हेक्टेयर क्षेत्र में पेड़ लगाए थे। वित्तीय वर्ष 2010-11 में वन विभाग ने 67386.68 हेक्टेयर क्षेत्र में 646.65 लाख पेड़ लगाए। अन्य विभागों द्वारा 15493.1 हेक्टेयर क्षेत्र में 132 लाख 49 हजार पेड़ लगाए गए। वन विभाग द्वारा वर्ष 2011-12 में 41 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में 266.50 लाख पेड़ लगाए जाने का लक्ष्य तय किया गया है। इसमें अक्टूबर तक 74835.49 हेक्टेयर क्षेत्र में 559.47 लाख पेड़ लगा दिए गए हैं। अन्य विभागों को 14600 हेक्टेयर का लक्ष्य दिया गया है जिसमें 94.90 लाख पेड़ लगाए जाने हैं। अक्टूबर तक 13186.78 हेक्टेयर क्षेत्र में 116.61 लाख पेड़ लगाने का लक्ष्य हासिल किया जा चुका है पर इनमें से कितने पेड़ जीवित हैं इनका कोई आंकड़ा किसी महकमे के पास नहीं है।

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