देश में दूसरा यूनियन कार्बाइड बनते जा रहे सोनभद्र स्थित कनोरिया केमिकल इंडस्ट्रीज को उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बंदी की नोटिस जारी कर दी है। 'इंडिया वाटर पोर्टल' ने लगातार इस मुद्दे के छापा, खबरों को संज्ञान में लेकर बोर्ड द्वारा की गयी जांच में कम्पनी को पर्यावरण कानूनों के उल्लंघन और अपशिष्टों के उचित निस्तारण न किया जाने का दोषी पाया गया है, नोटिस में कहा गया है कि अगर १५ दिन की के अन्दर प्रदूषण नियंत्रण के उचित उपाय नहीं किये गए तो उद्योग के विरुद्व बंदी की कार्यवाही की जायेगी।
गौरतलब है कि पिछले दिनों कनोरिया से निकलने वाले घातक द्रव रसायनों की चपेट में आकर सोनभद्र में हजारों पशुओं की मौत विभिन्न अंतराल पर होती रही है, जिसके बाद करायी गयी जांच में कनोरिया को घातक रसायनों के उत्सर्जन का दोषी पाया गया था। बोर्ड द्वारा की गयी इस कार्यवाही के संबंध में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी का कहना था कि कनोरिया ने बार-बार चेतावनी दिए जाने के बावजूद कारखाने में घातक रसायनों का अनुचित निस्तारण बंद नहीं किया है, विभिन्न जांचों में रिहंद बाँध और रेणुका नदी ही नहीं, आस-पास के इलाकों के भूगर्भीय जल में भी कनोरिया से निकलने वाले रसायनों की मात्रा मिली है।कनोरिया से निकलने वाले रासायनिक कचरे का सर्वाधिक असर ये हुआ है की रिहंद बाँध और जल में घुली आक्सीजन खतरनाक हद तक घट गयी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने परीक्षण में पाया है की कनोरिया से निकलने वाले कचरे की वजह से पानी में फ्लोराइड और मरकरी की मात्रा अत्यधिक हो गयी है, अकेले डोंगिया नाले में ही पारे का प्रतिशत ५०-1८० माइक्रोग्राम प्रतिलीटर है वहीं सी.ओ.डी की मात्रा २५०० मिलीग्राम प्रतिलीटर तक पायी गयी है, संयंत्र से लगभग ५० वर्ग किमी के क्षेत्रफल में कुओं, बावड़ियों का जल भी जहरीला हो गया है, अलग-अलग एजेंसियों द्वारा की गयी जांच में पानी में घातक रसायनों के साथ-साथ, जन जीवन के लिए अहितकर धातुएं भी मिली हैं। ऐसे में हमें वाटर एक्ट की धरा३३ए के तहत कार्यवाही करने को विवश होना पड़ा है। कनोरिया के अधिकारियों से इस पूरे मामले में बातचीत करने की कोशिश की गयी तो उन्होंने किसी प्रकार की टिप्पणी देने से इनकार कर दिया।
सोनभद्र के जनपदोध्वंस के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार कनोरिया केमिकल पर अंततः उत्तर प्रदेश नियंत्रण बोर्ड की गाज गिरी है, देश में कास्टिक सोडा, क्लोरीन एवं उसके सह उत्पादों को बनाने के रेनुकूट स्थित इस सबसे बड़े कारखाने के अपशिष्टों को मानवीय जीवन के लिए खतरनाक पाया गया है, काबिले गौर है कि लिन्डेन के अंतर्राष्ट्रीय तौर पर प्रतिबंधित होने के बावजूद कनोरिया द्वारा लम्बे समय तक इसका उत्पादन किया जाता रहा है, समझा जाता है कि कुछ वर्ष पूर्व कनोरिया ने लिन्डेन का उत्पादन तो बंद कर दिया, लेकिन स्टॉक में मौजूद लिन्डेन यानी गामा एच.सी.एच को आस-पास के आदिवासी गांवों और नालों में डाल दिया, सिर्फ इतना ही नहीं कनोरिया से निकलने वाला समस्त रासायनिक कचड़ा रिहंद डैम से जुड़े डोंगिया नाले में बिना किसी शुद्धिकरण के डाला जाता है जिससे रिहंद का जल तो प्रदूषित हो ही रहा है, रिहंद से जुड़ी रेणुका और पूर्वी उत्तरप्रदेश से लेकर बिहार तक फैली सोन नदी का जल भी विषाक्त हो रहा है।
शर्मनाक ये है कि नदी तट पर बसने वालों और कनोरिया केमिकल के आस-पास के इलाकों में रहने वाले आदिवासी इस जहरीले पानी से ही अपनी प्यास बुझा रहे हैं, उन्हें न तो प्रदूषण से मुक्ति मिली है न ही पेयजल की अतिरिक्त कोई व्यवस्था की गयी है।
संसद और विधान सभा में कनोरिया के द्वारा फैलाये जाने वाले प्रदूषण को लेकर बार-बार सवाल उठाये गए, यहाँ तक की केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी पिछले एक दशक के दौरान दर्जनों बार इस फैक्टरी के रासायनिक कचरे को लेकर अपनी आपत्ति दर्ज करायी, लेकिन प्रदेश सरकार की चुप्पी और केंद्र सरकार की ढुलमुल नीति की वजह से कम्पनी का बाल-बांका नहीं हुआ, स्थिति का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है की ३ वर्ष पूर्व क्लोरीन के रिसाव से आधा दर्जन लोगों की मौत को लेकर हुई जांच रिपोर्ट को भी सार्वजनिक नहीं किया गया।
कनोरिया से निकलने वाले रासायनिक कचरे का सर्वाधिक असर ये हुआ है की रिहंद बाँध और जल में घुली आक्सीजन खतरनाक हद तक घट गयी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने परीक्षण में पाया है की कनोरिया से निकलने वाले कचरे की वजह से पानी में फ्लोराइड और मरकरी की मात्रा अत्यधिक हो गयी है, अकेले डोंगिया नाले में ही पारे का प्रतिशत ५०-1८० माइक्रोग्राम प्रतिलीटर है वहीं सी.ओ.डी की मात्रा २५०० मिलीग्राम प्रतिलीटर तक पायी गयी है, संयंत्र से लगभग ५० वर्ग किमी के क्षेत्रफल में कुओं, बावड़ियों का जल भी जहरीला हो गया है, अलग-अलग एजेंसियों द्वारा की गयी जांच में पानी में घातक रसायनों के साथ-साथ, जन जीवन के लिए अहितकर धातुएं भी मिली हैं। कम्पनी की संवेदनहीनता का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि सोनभद्र में फ्लोराइड जनित अत्यधिक विकलांगता के बावजूद अब तक कम्पनी ने कोई बंदोबस्त नहीं किये, आलम ये है कि कनोरिया से लगभग ४४ किलोमीटर दूर ओबरा डैम में जांच के दौरान २.६ माइक्रोग्राम प्रति लीटर तक फ्लोराइड पाया गया है। कनोरिया के कचरे से जल, जीवन, जंगल तीनों खतरे में है , पर्यावरण कानून की विशेषज्ञ डॉ निधि सक्सेना कहती हैं ये क्या कम आश्चर्यजनक है लम्बे अरसे तक पर्यावरण कानूनों की अनदेखी किये जाने के बावजूद कनोरिया को क्लीन चिट दी जाती रही, अगर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मौजूदा कार्यवाही भी अगर गीदड़ भभकी है तो ये कहना होगा कि हम एक और भोपाल को जन्म देने जा रहे हैं।
गौरतलब है कि पिछले दिनों कनोरिया से निकलने वाले घातक द्रव रसायनों की चपेट में आकर सोनभद्र में हजारों पशुओं की मौत विभिन्न अंतराल पर होती रही है, जिसके बाद करायी गयी जांच में कनोरिया को घातक रसायनों के उत्सर्जन का दोषी पाया गया था। बोर्ड द्वारा की गयी इस कार्यवाही के संबंध में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी का कहना था कि कनोरिया ने बार-बार चेतावनी दिए जाने के बावजूद कारखाने में घातक रसायनों का अनुचित निस्तारण बंद नहीं किया है, विभिन्न जांचों में रिहंद बाँध और रेणुका नदी ही नहीं, आस-पास के इलाकों के भूगर्भीय जल में भी कनोरिया से निकलने वाले रसायनों की मात्रा मिली है।कनोरिया से निकलने वाले रासायनिक कचरे का सर्वाधिक असर ये हुआ है की रिहंद बाँध और जल में घुली आक्सीजन खतरनाक हद तक घट गयी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने परीक्षण में पाया है की कनोरिया से निकलने वाले कचरे की वजह से पानी में फ्लोराइड और मरकरी की मात्रा अत्यधिक हो गयी है, अकेले डोंगिया नाले में ही पारे का प्रतिशत ५०-1८० माइक्रोग्राम प्रतिलीटर है वहीं सी.ओ.डी की मात्रा २५०० मिलीग्राम प्रतिलीटर तक पायी गयी है, संयंत्र से लगभग ५० वर्ग किमी के क्षेत्रफल में कुओं, बावड़ियों का जल भी जहरीला हो गया है, अलग-अलग एजेंसियों द्वारा की गयी जांच में पानी में घातक रसायनों के साथ-साथ, जन जीवन के लिए अहितकर धातुएं भी मिली हैं। ऐसे में हमें वाटर एक्ट की धरा३३ए के तहत कार्यवाही करने को विवश होना पड़ा है। कनोरिया के अधिकारियों से इस पूरे मामले में बातचीत करने की कोशिश की गयी तो उन्होंने किसी प्रकार की टिप्पणी देने से इनकार कर दिया।
सोनभद्र के जनपदोध्वंस के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार कनोरिया केमिकल पर अंततः उत्तर प्रदेश नियंत्रण बोर्ड की गाज गिरी है, देश में कास्टिक सोडा, क्लोरीन एवं उसके सह उत्पादों को बनाने के रेनुकूट स्थित इस सबसे बड़े कारखाने के अपशिष्टों को मानवीय जीवन के लिए खतरनाक पाया गया है, काबिले गौर है कि लिन्डेन के अंतर्राष्ट्रीय तौर पर प्रतिबंधित होने के बावजूद कनोरिया द्वारा लम्बे समय तक इसका उत्पादन किया जाता रहा है, समझा जाता है कि कुछ वर्ष पूर्व कनोरिया ने लिन्डेन का उत्पादन तो बंद कर दिया, लेकिन स्टॉक में मौजूद लिन्डेन यानी गामा एच.सी.एच को आस-पास के आदिवासी गांवों और नालों में डाल दिया, सिर्फ इतना ही नहीं कनोरिया से निकलने वाला समस्त रासायनिक कचड़ा रिहंद डैम से जुड़े डोंगिया नाले में बिना किसी शुद्धिकरण के डाला जाता है जिससे रिहंद का जल तो प्रदूषित हो ही रहा है, रिहंद से जुड़ी रेणुका और पूर्वी उत्तरप्रदेश से लेकर बिहार तक फैली सोन नदी का जल भी विषाक्त हो रहा है।
शर्मनाक ये है कि नदी तट पर बसने वालों और कनोरिया केमिकल के आस-पास के इलाकों में रहने वाले आदिवासी इस जहरीले पानी से ही अपनी प्यास बुझा रहे हैं, उन्हें न तो प्रदूषण से मुक्ति मिली है न ही पेयजल की अतिरिक्त कोई व्यवस्था की गयी है।
संसद और विधान सभा में कनोरिया के द्वारा फैलाये जाने वाले प्रदूषण को लेकर बार-बार सवाल उठाये गए, यहाँ तक की केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी पिछले एक दशक के दौरान दर्जनों बार इस फैक्टरी के रासायनिक कचरे को लेकर अपनी आपत्ति दर्ज करायी, लेकिन प्रदेश सरकार की चुप्पी और केंद्र सरकार की ढुलमुल नीति की वजह से कम्पनी का बाल-बांका नहीं हुआ, स्थिति का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है की ३ वर्ष पूर्व क्लोरीन के रिसाव से आधा दर्जन लोगों की मौत को लेकर हुई जांच रिपोर्ट को भी सार्वजनिक नहीं किया गया।
कनोरिया से निकलने वाले रासायनिक कचरे का सर्वाधिक असर ये हुआ है की रिहंद बाँध और जल में घुली आक्सीजन खतरनाक हद तक घट गयी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने परीक्षण में पाया है की कनोरिया से निकलने वाले कचरे की वजह से पानी में फ्लोराइड और मरकरी की मात्रा अत्यधिक हो गयी है, अकेले डोंगिया नाले में ही पारे का प्रतिशत ५०-1८० माइक्रोग्राम प्रतिलीटर है वहीं सी.ओ.डी की मात्रा २५०० मिलीग्राम प्रतिलीटर तक पायी गयी है, संयंत्र से लगभग ५० वर्ग किमी के क्षेत्रफल में कुओं, बावड़ियों का जल भी जहरीला हो गया है, अलग-अलग एजेंसियों द्वारा की गयी जांच में पानी में घातक रसायनों के साथ-साथ, जन जीवन के लिए अहितकर धातुएं भी मिली हैं। कम्पनी की संवेदनहीनता का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि सोनभद्र में फ्लोराइड जनित अत्यधिक विकलांगता के बावजूद अब तक कम्पनी ने कोई बंदोबस्त नहीं किये, आलम ये है कि कनोरिया से लगभग ४४ किलोमीटर दूर ओबरा डैम में जांच के दौरान २.६ माइक्रोग्राम प्रति लीटर तक फ्लोराइड पाया गया है। कनोरिया के कचरे से जल, जीवन, जंगल तीनों खतरे में है , पर्यावरण कानून की विशेषज्ञ डॉ निधि सक्सेना कहती हैं ये क्या कम आश्चर्यजनक है लम्बे अरसे तक पर्यावरण कानूनों की अनदेखी किये जाने के बावजूद कनोरिया को क्लीन चिट दी जाती रही, अगर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मौजूदा कार्यवाही भी अगर गीदड़ भभकी है तो ये कहना होगा कि हम एक और भोपाल को जन्म देने जा रहे हैं।
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