माण्डव में आप जैसे-जैसे इमारतों को देखते जाएँगे- जल प्रबन्धन के नए-नए तरीके आपको दिखते जाएँगे..! यहाँ का शाही महलों वाला इलाका भी सदियों पुराने दिलचस्प जल प्रबन्धन से भरा पड़ा है।
जब हम जहाज महल में प्रवेश करते हैं तो इसका नाम सार्थक होता नजर आता है। इसके एक ओर मुंज तालाब है तो दूसरी ओर कपूर तालाब। मुंज तालाब का नाम धार के परमार शासकों में राजा मुंज के नाम पर है। वे तालाब बहुत रुचि के साथ बनाया करते थे। इस नाम से धार व उज्जैन में भी तालाब है। कपूर तालाब के बारे में किंवदन्ती है कि सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी की रानियों के स्नान के लिये यह तालाब काम में आता था। सुल्तान इसमें कपूर व अन्य जड़ी-बूटियाँ डलवाता था- ताकि इन रानियों के बाल सफेद नहीं होने पाए।
दोनों तालाबों के बीच में महल- जहाज जैसा लगता है। यहाँ का सम्पूर्ण जल प्रबन्धन भी अद्भुत है। जहाज महल में सूरजकुण्ड स्थित है। जहाज महल की छत का पानी सूरजकुण्ड में जाता था। इसके पूर्व फिल्ट्रेशन भी होता था। कपूर तालाब में वर्षाजल का पानी एकत्रित होता था। सूरजकुण्ड- कपूर तालाब व मुंज तालाब के बीच में है- सो यह स्टोरेज टैंक का भी काम करता। जब कपूर तालाब में पानी की जरूरत होती तो नाली प्रणालियों के माध्यम से पानी सूरजकुण्ड से कपूर तालाब में पहुँच जाता। इसी तरह तवेली महल का पानी भी नालियों के माध्यम से कपूर तालाब में चला जाता।
यह तालाब काफी सुन्दर है। आर्चेस बने हुए हैं। बीच में प्लेटफार्म भी है। सूरजकुण्ड मुंज तालाब के साथ भी इसी तरह जुड़ा है। शाही महलों का भीतरी जल प्रबन्ध भी कम दिलचस्प नहीं रहा है। यहाँ तालाबों से पानी रहट द्वारा एक खास ऊँचाई पर बने हौज में पहुँचाया जाता था। यहाँ से फोर्स के साथ पानी नीचे से ऊपर व आगे जाता था। पूरे पैलेस में भीतर-ही-भीतर ठंडे व गरम पानी की रनिंग व्यवस्था थी। गरम पत्थरों के ऊपर से पानी को बहाया जाता था। यह पानी हमाम व स्वीमिंग पूल तक इस्तेमाल होता था। ...और तो और उस जमाने में स्टीम बाथ और सन बाथ की व्यवस्था भी कर रखी थी।
हिंडोला महल के पास चम्पा बावड़ी बनी है। इसका आकार चम्पा के फूल की तरह है। इसमें भी छत का पानी फिल्टर के बाद संग्रहित किया जाता था। यह तीन मंजिला और उस जमाने से वातानुकूलित बरामदे वाली है। इस तरह की विशेषता महिदपुर की ताला-कुंची बावड़ी, इन्दौर की लालबाग वाली चम्पा बावड़ी, नरसिंहगढ़ की उमेदी बावड़ी और ब्यावरा की मंडी-बावड़ी सहित अन्य बावड़ियों में भी पाई जाती रही है। लेकिन, चम्पा बावड़ी की यह विशेषता है कि इसके भीतर से गुप्त रास्ते बने हुए हैं।
बाहरी आक्रमण के समय रानियाँ- इसमें छलांग लगाकर गुप्त रास्तों से निकल जाया करती थीं। मुंज तालाब में जल महल भी बना हुआ है। पानी से घिरा हुआ। किंवदन्ती है कि रानियों की प्रसूति यहाँ हुआ करती थी। यहाँ भी छत का पानी संग्रहित होता था। यहीं बने हिंडोला महल में भी छत के पानी को बावड़ी में उतार दिया जाता था।
यहाँ से थोड़ी दूर गदाशाह महल के पास दो बावड़ियाँ और हैं- उजाली और अन्धेरी बावड़ी। उजाली- 90 फीट गहरी है। यहाँ भी चमकिले पत्थर लगे हैं। यह भी तीन मंजिला है। गदाशाह महल (तत्कालीन समय में बाजार कॉम्प्लेक्स) की छत का पानी फिल्टर के बाद इस बावड़ी में उतारा जाता था। नीचे से भी आव थी। इस पानी का सभी उपयोग करते थे। इसी के पास बनी है- अन्धेरी बावड़ी। बाहर से तो यह किसी महल का आभास देती है। यह पूरी तरह ढँकी हुई है।
गदाशाह के साथी व्यापारी यहाँ गर्मी के दिनों में ठंडी का आनन्द लेने के लिये बावड़ी में उतरा करते थे। इसमें भी तत्कालीन कॉम्प्लेक्स के एक हिस्से का छत वाला पानी संग्रहित किया जाता था। इस बावड़ी को सुरक्षा की दृष्टि से ढँका गया था- ताकि बाहरी आक्रमण के समय इसमें कोई विषाक्त पदार्थ न मिला दे।
...यहाँ एक बात और बता दें- धार से माण्डव के बीच- 35 चौकियाँ बनी हुई थीं। वहाँ भी तालाब और बावड़ी की व्यवस्था कमोबेश इसी तर्ज पर की गई थी- ताकि यहाँ के सैनिकों को भी पानी के लिये कहीं भटकना न पड़े ...!
...माण्डव का - जितना लम्बा व समृद्ध इतिहास है, उतनी ही किंवदन्तियाँ भी हैं। लेकिन, पानी से यहाँ के समाज का प्रेम प्राय: रियासत के हर काल में रहा है...! और जब समाज का पानी से प्रेम खत्म हुआ तो ... माण्डव ... खण्डहरों का शहर बन गया। कभी आबाद और बरसात के मौसम को छोड़कर यह अब वीरान रहने लगा...!
...पानी के अनुरागी समाज के लिये तो सम्भवत: माण्डव ...पानी और समाज की प्रेम कहानी के रूप में भी जाना जाएगा...!!
(लेखक पत्रकार व प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन के अध्येता हैं)
मध्य प्रदेश में जल संरक्षण की परम्परा (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) |
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