रोजाना यूँ ही बहा दिया जाता है 26 हजार मिलियन लीटर पानी
तरक्की के पैमाने पर अव्वल आने की दौड़ में चाहे जितने जतन हो रहे हों लेकिन सच तो यह है कि देश में आधे सीवेज के उपचार की व्यवस्था भी नहीं है। दिल्ली से लेकर भोपाल, इंदौर, जबलपुर जैसे शहर भी सीवेज ट्रीटमेंट के मामले में फिसड्डी हैं। इन शहरों के गंदे पानी को नदियों में बहा दिया जाता है। और यही नदियाँ गंगा को भी मैला कर रही हैं।
मेट्रो और मॉल की चमचमाती दुनिया के पीछे के गंदले सच का खुलासा केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल की रिपोर्ट में हुआ है। जलप्रदाय, सीवेज उत्सर्जन, उसके उपचार और निपटारे पर अध्ययन की श्रृंखला में या मंडल की चौथी रिपोर्ट है। यह रिपोर्ट कहती है कि द्वितीय श्रेणी के शहरों की तो ठीक मेट्रो और प्रथम श्रेणी के शहरों तक में गंदे पानी के उपचार और पुनः उपयोग के कोई इंतजाम नहीं हैं। गौरतलब है कि भारत में प्रतिदिन 38 हजार मिलियन लीटर (एमएलडी) सीवेज निकलता है लेकिन उपचार क्षमता केवल 12 हजार मिलियम लीटर की है। इतना ही नहीं जहाँ सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स हैं उन शहरों में सीवेज का उपचार नहीं हो पा रहा है क्योंकि प्लांट्स उपयुक्त तरीके से काम नहीं कर रहे हैं। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने जाँच की तो 9 प्रतिशत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट पर्यावरण नियमों पर खरे नहीं उतरे।
बड़े शहर पीछे
10 लाख से ज्यादा आबादी वाले 35 मेट्रो शहरों में प्रतिदिन 5 हजार 644 मिलियन लीटर सीवेज निकलता है। यहाँ उपचार सुविधा केवल 8 हजार 40 मिलियन लीटर की ही है। म.प्र. में इंदौर में 204 एमएलडी सीवेज में से मात्र 78 एमएलडी के उपचार की व्यवस्था है। भोपाल सबसे ज्यादा 334.75 एमएलडी सीवेज उत्सर्जित करता है और यहाँ केवल 6 फीसदी (22 एमएलडी) सीवेज के उपचार की क्षमता है। जबलपुर में प्रतिदिन 143.34 एमएलडी सीवेज निकलता है लेकिन यहाँ इसके उपचार की व्यवस्था नहीं है। मेट्रो सिटी में दिल्ली के पास सर्वाधिक उपचार क्षमता है। यहाँ प्रतिदिन 3 हजार 800 मिलियन लीटर सीवेज में से 61 प्रतिशत यानि 2 हजार 330 एमएलडी के उपचार के इंतजाम हैं। मुबंई में 2 हजार 671 एमएलडी सीवेज में से 2 हजार 130 एमएलडी का उपचार कर लिया जाता है। जबकि हैदराबाद, बड़ोदरा, लुधियाना, चेन्नई के पास सौ फीसदी सीवेज के उपचार की क्षमता है।
छोटे शहरों के भी हाल बेहाल
एक लाख से ज्यादा आबादी वाले देश के 498 शहरों में 35 हजार 558.12 एमएलडी सीवेज का उत्सर्जन होता है। यह कुल सीवेज उत्सर्जन का 93 प्रतिशत है लेकिन इन शहरों में केवल 32 प्रतिशत सीवेज के उपचार की क्षमता है। म.प्र. में प्रथम श्रेणी के शहर में 1 हजार 248.72 एमएलडी सीवेज का उत्सर्जन होता है लेकिन उपचार केवल 186.1 एमएलडी का ही हो पाता है।
शहर मैली कर रहे गंगा
गंगा को साफ करने के लिए भले ही बरसों से अभियान चलाया जा रहा हो लेकिन सहायक नदियाँ लगातार उसे मैला कर रही हैं बेसिन के समीप बसे शहर 2 हजार 637.7 एमएलडी सीवेज का उत्सर्जन कर रहे हैं लेकिन इनके पास केवल 44 प्रतिशत सीवेज की ही उपचार क्षमता है। गंगा की सहायक नदियों खान, चंबल, बेतवा, सिंध, सोन, शिप्रा, कोसी आदि में प्रतिदिन 135 शहरों का 4 हजार 171.26 मिलियन लीटर सीवेज मिल रहा है।
नदियों में मिल रहा शहरों का सीवेज
शहर | सीवेज एमएलडी | नदी |
सागर | 26.7 | धसान |
नीमच | 12.4 | चंबल |
मंदसौर | 15.8 | चंबल |
भिंड | 17.7 | चंबल |
विदिशा | 14.4 | बेतवा |
गुना | 15.8 | सिंध |
शिवपुरी | 17.0 | सिंध |
ग्वालियर | 114.1 | वैशाली |
उज्जैन | 49.4 | शिप्रा |
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