जानलेवा कैसे हो गई देवास की आबोहवा

Manish Vaidya
Manish Vaidya

हवा में कार्बन मोनोऑक्साइड हृदय और तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड शरीर को संक्रमण से लड़ने में कमजोर बनाता है। साथ ही आँख, नाक, गला और फेफड़ों में संक्रमण कर सकता है। इसी तरह सल्फर डाइऑक्साइड फेफड़ों के लिये घातक है। पर्टिकुलर पॉल्यूशन मैटर हमारे श्वसन तंत्र और रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता पर बुरा असर डालते हैं। इनसे कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। ये लीवर और गुर्दे को नुकसान पहुँचाने के साथ ही बच्चों के मस्तिष्क पर भी बुरा असर डालते हैं। ख्यात शास्त्रीय गायक कुमार गंधर्व को जब सुदूर कर्नाटक में राजयक्ष्मा (ट्यूबरक्लोसिस) की बीमारी ने जकड़ा तो डॉक्टरों की सलाह पर उनके परिजन उन्हें टीबी सेनेटोरियम की तरह शुद्ध आबोहवा के लिये (तब हिल स्टेशन के रूप में शुद्ध आबोहवा के लिये मशहूर देवास शहर) लेकर आये थे। यहाँ माता पहाड़ी के पास रहते हुए साफ-सुथरी आबोहवा में कुछ ही महीनों में उनकी टीबी की बीमारी ठीक हो गई थी। इतना ही नहीं उन्होंने टीबी को हराकर ऐसा खनकदार गाया कि उनकी आवाज शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में अमर हो गई।

यहाँ की आबोहवा उन्हें इतनी पसन्द आई कि अपने जीवन के आखिरी पलों तक फिर वे देवास के ही होकर रह गए। बाद में यहाँ से लौटकर कभी अपने देश कर्नाटक नहीं गए। बुजुर्ग बताते हैं कि आसपास जंगल तथा देवास में पर्याप्त हरियाली और पानी होने से यहाँ की छटा बहुत सुन्दर थी। उन दिनों शहर के आसपास करीब दर्जन भर मनोरम तालाब थे, जहाँ साफ पानी की लहरें उठती-गिरती रहती थीं। तब के दिनों में शहर से लगी माता टेकरी भी हरियाली से आच्छादित रहा करती थी लेकिन आज के देवास की बात बदल चुकी है।

हालात इतने बुरे हैं कि जिस आबोहवा पर कभी देवास इठलाता था उसी शहर की आबोहवा अब पूरे मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा प्रदूषित है। जी हाँ, ताजा सर्वे में मध्य प्रदेश के पाँच सबसे प्रदूषित शहरों में देवास का नाम भी है। बीते पाँच सालों में यहाँ की हवा में प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ गया है कि उसे सबसे बड़े प्रदूषित शहरों भोपाल, इन्दौर, उज्जैन, सागर के साथ शामिल किया गया है, जहाँ हवा में धूल और कार्बन के जहरीले कणों सहित हानिकारक गैसों की तादाद खतरनाक स्तर तक पहुँच गई है।

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के ताजा आँकड़े बताते हैं कि यहाँ वायु प्रदूषण में पॉल्यूशन पार्टिकल यानी पीएम की दर सन 2011 के 84 से बढ़कर अब 2015 के अन्त तक 90 माइक्रो ग्राम तक पहुँच गई है। अनुमान है कि दीपावली पर वायु प्रदूषण में पीएम की दर 100 तक पहुँच सकती है। इसका मुख्य कारण वाहनों से निकलता हुआ धुआँ तथा सड़कों से उड़ती धूल बताया जाता है। हालात पर काबू पाने के लिये अब केन्द्रीय प्रदूषण मण्डल ने यहाँ गाइडलाइन जारी की है।

तरक्की की रफ्तार अक्सर सड़कों पर दौड़ते वाहनों से आँकी जाती है लेकिन अब यही तरक्की हमारे लिये जानलेवा बनती जा रही है। सड़कों पर दौड़ते वाहनों से हर पल उगलता काला धुआँ हवा में घुल कर हमारी जिन्दगी में घुलता जा रहा है। यह अब कई जिन्दगियों को निगलने लगा है। वाहनों से निकलने वाला प्रदूषण धीमा जहर है, यह हवा या पानी के माध्यम से मनुष्य के शरीर में प्रवेश करता है और उसे बीमार बना देता है।

यह केवल मनुष्य ही नहीं बल्कि जीव-जन्तुओं, पशु-पक्षियोंस पेड़-पौधों और वनस्पतियों को भी नुकसान पहुँचा कर उन्हें नष्ट कर देता है। दरअसल हमारे यहाँ जागरुकता के अभाव और कार्यवाही नहीं होने से वर्षों तक खटारा वाहन सड़कों पर दौड़ते रहते हैं। इनका धुआँ मानव स्वास्थ्य के लिये गम्भीर खतरा बन गया है।

एक जानकारी के मुताबिक देवास शहर में करीब 40,000 से ज्यादा वहाँ है इनमें से कई ऐसे हैं जो अपनी उम्र पूरी कर चुके हैं लेकिन अब भी धड़ल्ले से सड़कों पर दौड़ रहे हैं। इन वाहनों का धुआँ प्रदूषण फैला रहा है लेकिन वाहनों की प्रदूषण की जाँच करने के लिये केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मण्डल की गाइडलाइन के मुताबिक शहर में मात्र चार प्रदूषण केन्द्र ही हैं।

देवास जिला कलेक्टर आशुतोष अवस्थी ने बताया कि पर्यावरण की दृष्टि से यह देवास के लिये जागने का समय है। उन्होंने सभी विभागों के समन्वित प्रयासों से प्रदूषण को कम करने की कोशिशों को भी अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है।

उधर पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक शहर में प्रदूषण बढ़ने की मुख्य वजह सड़क से उड़ने वाली धूल-मिट्टी, सड़कों के कच्चे कॉलर, वाहनों से निकलने वाला धुआँ, शहर में फैला हुआ कचरा, कचरे का अनियोजित निपटान, कचरे के जलने से उठने वाला धुआँ, अव्यवस्थित ट्रैफिक और उद्योगों से निकलने वाला धुआँ शामिल है शहर के तीन चौराहों पर वायु प्रदूषण मापने के उपकरण लगाकर हवा में धूल के कणों की उपस्थिति को मापा गया। इसमें पता लगा है कि यहाँ की हवा में सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड सहित पॉल्यूशन पार्टिकल की मात्रा सर्वाधिक पाई गई है। यह मात्रा और अधिक बढ़ने पर जानलेवा साबित हो सकती है।

वर्ष 2011 में पॉल्यूशन पार्टिकल मैटर की मात्रा का मानक 84 था जो 5 सालों में बढ़कर सन 2015 के अन्त में 90 हो गया है। विशेषज्ञ बताते हैं कि पॉल्यूशन पार्टिकल मैटर का मानक सामान्य अवस्था में 60 या उससे कम होना चाहिए। इससे अधिक होने पर यह हवा को बुरी तरह प्रदूषित करता है। पीएम 10 में माइक्रोमीटर आकार के छोटे-छोटे कार्बनिक कण होते हैं। ये कोयले, तेल, लकड़ी या ईंधन के जलाने से होते हैं। ये कण वाहनों के धुएँ या उद्योगों से निकलने वाले धुएँ के साथ धीरे-धीरे हवा में मिल जाते हैं और फिर वायुमण्डल को प्रदूषित करते हैं।

जिला अस्पताल में पदस्थ डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव बताते हैं कि शहर के हर चौथे बच्चे के अस्थमैटिक होने की सम्भावना है। जितने बच्चे अस्पताल में आते हैं उनमें से हर चौथा साँस की बीमारी से पीड़ित है। चिन्ता की बात यह है कि इनमें से ज्यादातर 11 साल से कम उम्र के बच्चे हैं। इसका प्रमुख कारण हवा में पीएम 10 और अन्य घातक कणों का होना है। आकार में बहुत छोटे कण होने से हम इन्हें अपनी आँख से नहीं देख पाते। ये साँस के जरिए मरीजों के फेफड़ों तक जा पहुँचते हैं और लगातार वहाँ जमा होकर उन्हें संक्रमित करते हैं। बीते 3 सालों में साँस की बीमारी के मरीजों की तादाद में इजाफा हुआ है।

विशेषज्ञों के मुताबिक हवा में कार्बन मोनोऑक्साइड हृदय और तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड शरीर को संक्रमण से लड़ने में कमजोर बनाता है। साथ ही आँख, नाक, गला और फेफड़ों में संक्रमण कर सकता है। इसी तरह सल्फर डाइऑक्साइड फेफड़ों के लिये घातक है। पर्टिकुलर पॉल्यूशन मैटर हमारे श्वसन तंत्र और रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता पर बुरा असर डालते हैं। इनसे कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। ये लीवर और गुर्दे को नुकसान पहुँचाने के साथ ही बच्चों के मस्तिष्क पर भी बुरा असर डालते हैं। खटारा वाहनों के धुएँ से निकलने वाला बेंजीन ब्लड कैंसर की सम्भावना को कई गुना बढ़ा देता है।

दरअसल पॉल्यूशन पार्टिकल मैटर की गणना के लिये बनाए गए उपकरण में दो बार टिश्यू पेपर लगाए जाते हैं। लगाने से पहले और लगाने के बाद उनका वजन लिया जाता है। वजन का अन्तर माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर में होता है। इसी के जरिए प्रदूषण का पैमाना तय किया जाता है। उदाहरण के लिये इस पेपर का वजन सौ माइक्रोग्राम या उससे ज्यादा हुआ तो इलाका प्रदूषित माना जाता है।

रिहायशी इलाकों में हवा में कार्बन की मात्रा 70 से 80 तथा औद्योगिक क्षेत्र में 90 माइक्रोग्राम घनमीटर आ रही है।

शहर में कार्बन बढ़ने से ऑक्सीजन की कमी भी हो रही है। इसका सबसे बड़ा खामियाजा दोपहिया वाहन चालकों को भुगतना पड़ रहा है। यदि मास्क या हेलमेट नहीं पहना हुआ है तो उन्हें धूल फाँकनी पड़ती है। यहाँ कच्ची और धूल भरी सड़के हैं तो कई जगह पक्की सड़कें भी टूट-फूट चुकी हैं। सड़कों में फुटपाथ की जगह कच्चे कालर हैं जिनसे धूल उड़ती रहती है। क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी हेमंत शर्मा कहते हैं कि यह खतरे की घंटी है। गनीमत है कि अभी प्रदूषण की मात्रा सौ माइक्रोग्राम से कम है। यदि इसकी मात्रा बढ़ती है तो यह और भी मुश्किल हो जाएगा।

शहर में करीब साढ़े तीन सौ से ज्यादा छोटी-बड़ी फैक्टरियाँ हैं। इन कम्पनियों में ज्यादातर कोयला जलाने वाले बायलर लगे हुए हैं, जो केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के मानक के अनुरूप बायलर नहीं है। इनसे निकलने वाला धुआँ जहरीला होता है। गैस बायलर लगाने के लिये अब तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है। कोयला वाले बायलर से सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी गैसें निकलती हैं। ये पर्यावरण के लिये घातक हैं।

शहर के विकास नगर चौराहे, पैरी चौराहे, इन्दिरा गाँधी चौराहे, उज्जैन चौराहे पर सर्वाधिक वायु प्रदूषण 100, गजरा गियर्स चौराहे पर 95, जवाहर चौक तथा भोपाल चौराहे पर 90 माइक्रोग्राम मापा गया है।

प्रदूषण के खतरे से बचने के लिये सरकारी स्तर पर सम्बन्धित विभागों की कार्य योजना बनाई जा रही है। इनमें शहर से होकर गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग आगरा मुम्बई मार्ग की कालर पक्की कर चौड़ीकरण, नगर निगम को कचरा निपटान और हरियाली बढ़ाने पर जोर देने, लोक निर्माण विभाग को अन्य सड़कों के सुधार, जिला उद्योग केन्द्र को औद्योगिक क्षेत्र के समुचित विकास और प्रदूषण को कम करने, स्थानीय प्रदूषण मण्डल को उद्योगों में कोयले या गत्ते की जगह गैस का उपयोग करने पर जोर देने, यातायात विभाग को ट्रैफिक प्लान सुव्यवस्थित करने, आरटीओ विभाग को वाहनों की चेकिंग कर खटारा वाहनों पर कार्यवाही करने तथा कृषि विभाग को किसानों को खेतों में आग लगाने से रोके जाने सम्बन्धी निर्देश दिये गए हैं।

देखना होगा कि इन समन्वित कोशिशों का कितना असर होता है और यहाँ की आबोहवा सुधरती है या और भी बिगड़ती रहेगी। फिलहाल तो यह बीते तीस सालों में हमारे अनियोजित विकास के पैमानों की अवांछित और अनिवार्य परिणिति है, जिसने एक शहर ने अपनी बेहतरीन आबोहवा को खो दिया है।

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