जैविक नियंत्रण के लिये उपयोगी निमकैलस


निमकैलस की अधिकांश जातियाँ सर्वाहारी हैं। यह शैवालों, छोटे कीटों एवं कीटों के लार्वा को अपना भोजन बनाती हैं जिससे कीट नियंत्रण में मदद मिलती है। जिन तालाबों में यह पाई जाती है वहाँ पर मच्छर कम पनपते हैं क्योंकि मच्छरों एवं अन्य कीटों के लार्वा इसका प्रिय भोजन है। प्रत्येक वर्ष विश्व में लाखों लोग एक ऐसी बीमारी के शिकार बनकर मौत के आवेश में समा जाते हैं जिसकी वजह एक छोटा-सा मच्छर होता है। एक छोटे से मच्छर की वजह से प्रत्येक वर्ष लगभग 2,05,000 मौतें होती हैं। इतनी बड़ी संख्या में होने वाली मौतों के पीछे अक्सर वजह तो मच्छर होते हैं लेकिन उनके पनपने के पीछे हमारा ही हाथ होता है। मनुष्य द्वारा अपनी असीमित आवश्यकताओं के लिये पानी का सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है लेकिन पानी का यह इस्तेमाल नियोजित तरीके से नहीं किया जाता जिसके कारण इन स्थानों पर मच्छरों को अंडे देने के लिये पर्याप्त स्थान उपलब्ध हो जाता है जिसके कारण मच्छरों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

पर्वतीय क्षेत्रों में पहले मच्छरों की संख्या न के बराबर होती थी लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में भी मच्छरों की संख्या में बहुत अधिक बढ़ोत्तरी हुई है। इसका प्रमुख कारण यहाँ पर स्थानीय लोगों द्वारा शौचालायों के साथ-साथ टंकियों का निर्माण भी है। यहाँ पर वर्षाजल संग्रहण के लिये भी अलग-अलग विधियों का प्रयोग किया जा रहा है, लेकिन इस पानी का सुनियोजित इस्तेमाल न होने के कारण यहाँ पर भी मच्छरों को पनपने के लिये पर्याप्त जगह उपलब्ध हो जाती है। जिसके कारण यहाँ पर मच्छरों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है लेकिन अभी यहाँ पर मलेरिया के रोगियों की संख्या कम है और यह संख्या धीरे-धीरे बढ़ सकती है।

निमकैलस स्पीसीज


निमकैलस स्पीसीज पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली एक छोटी मछली है। यह बाल्टोराइडी कुल का सदस्य है। इसकी लगभग 20 जातियों की पहचान हो चुकी है। लेकिन यहाँ पर इसकी प्रमुख जातियाँ निमकैलस रूपीकोला, नि. मोनटैनस, नि. बिएवानी, नि. देवदेवी, नि. फेसिएटस, नि. हिमचैलेन्सिस आदि पाई जाती हैं। इसको यहाँ पर स्थानीय भाषा में गडियाल या गडेला, अंग्रेजी में Olivaceous Loach के नाम से जाना जाता है। इन सभी जातियों का आकार 3 सेमी से 4 सेमी के लगभग होता है। यह मछली छोटी नदियों, तालाबों, पानी के स्रोतों के पास अधिकतर पाई जाती है। यहाँ कम पानी में भी आसानी से रहती है। छोटे आकार के कारण इसका प्रयोग भोजन के रूप में नहीं किया जाता है। लेकिन आज यह मछली संकटग्रस्त हो चुकी हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में छोटी नदियाँ गर्मी के दिनों में अक्सर सूख जाती हैं तथा कई छोटी नदियाँ सूख चुकी हैं जिसके कारण ये बड़ी संख्या में मर जाती हैं। इसकी अधिकतर प्रजातियाँ संकटग्रस्त हैं।

लार्वा नियंत्रण हेतु निमकैलस स्पीसीज का प्रयोग


पानी की मात्रा कम होने के कारण यहाँ पर अधिकतर लोगों द्वारा प्लास्टिक या पक्की सीमेंट की टंकियों का प्रयोग किया जाता है जिनमें गर्मी तथा बरसात के दिनों में पानी को इकट्ठा किया जाता है। लेकिन इसको ढकने के लिये पर्याप्त सुविधा नहीं होती। जलवायु परिवर्तन होने के कारण तथा सर्दियों का समय कम होने के कारण यहाँ पर मच्छरों तथा अन्य कीटों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है। यहाँ पर बरसात के दिनों में मच्छर अधिक पाये जाते हैं तथा पानी उपलब्ध होते ही मच्छर तुरन्त अपने अण्डे इसमें देते हैं क्योंकि मच्छर बिना पानी के अण्डे नहीं देता। निमकैलस मछली को आसानी से पकड़ा जा सकता है तथा इसको आसानी से ले जाया जा सकता है। यदि हम इसको मच्छरों की लार्वा वाली टंकी में छोड़ दें तो यह लार्वा को बहुत तेजी से खा जाती हैं।

इसको हम टंकियों में पाल सकते हैं तथा इसका प्रयोग अलग-अलग जगह भी किया जा सकता है। लेकिन इन टंकियों का पानी एक दो दिन में बदलना आवश्यक होता है क्योंकि यह पुराने पानी में मर जाती हैं। सीमेन्ट की टंकियों में इसको आसानी से पाल सकते हैं क्योंकि इसका पानी जल्दी गर्म नहीं होता तथा इसमें कुछ पत्थर भी रखे जाते हैं यह मछली अधिकतर पत्थरों के नीचे पाई जाती हैं। पानी को गर्म होने से बचाने के लिये टंकी को दिन के समय ढककर रखना पड़ता है। इसको आवश्यकता के अनुसार कुछ समय के लिये अन्य टंकियों में भी स्थानान्तरित किया जा सकता है। यह कुछ समय में ही मच्छरों के लार्वा को खा लेती हैं। मच्छरों को जैविक नियंत्रण द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है क्योंकि रासायनिक नियंत्रण का पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है साथ ही साथ लुप्त होती गडियाल मछली का संरक्षण भी किया जा सकता है। गडियाल को हम अपने घर में एक्वैरियम में भी रख सकते हैं तथा अपने घर की सुन्दरता को बढ़ा सकते हैं।

सम्पूर्क सूत्र:


श्री सुरजीत सिंह रावत
प्रवक्ता जीव विज्ञान राजकीय इण्टर कॉलेज वेदीखाल पौड़ी गढ़वाल 246 177 (उत्तराखण्ड) (मो. : 8057352447 ईमेल : jeetsir1234@gmail.com)

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