केंचुए की खाद में सामान्य कम्पोस्ट की खाद से 40-45 प्रतिशत अधिक पोषक तत्व होते हैं। साथ में एक और विशेषता होती है कि खेत को यह खाद अधिक उपजाऊ बनाती है। व्यावहारिक प्रयोग से यह सिद्ध हो चुका है कि केंचुए की खाद के द्वारा सामान्य खाद से दुगुना उत्पादन होता है।महंगाई की समस्या का एक प्रमुख कारण कृषि उत्पादन में कमी है। जहाँ कुछ दशक पूर्व भारत में हरित क्रान्ति आई थी, देश में खाद्यान्नों का भण्डार था, यहाँ तक कि हमारे देश से दूसरे देशों को खाद्यान्नों का निर्यात होता था, वहीं अचानक यह समस्या कैसे आई? यह विचार का विषय है। विश्व में खाद्यान्नों के उत्पादन पर विचार किया जाए तो भारत की स्थिति बहुत ही चिन्तनीय है। जहाँ पड़ोसी चीन में प्रति हेक्टेयर उत्पादन 80-100 क्विण्टल है, वहीं हमारे देश में मात्र 40-50 क्विण्टल है। इस सम्बन्ध में प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डॉ. स्वामीनाथन ने कहा कि 'हमारे देश में कृषि भूमि की उपज क्षमता में 100-200 प्रतिशत वृद्धि की सम्भावना है', अर्थात हम चीन से भी अधिक उत्पादन कर सकते हैं।
उपर्युक्त सन्दर्भ में कृषि उत्पादन में परिवर्तन की आवश्यकता है अर्थात रासायनिक खेती की जगह पुनः जैविक खेती पर ध्यान देना अपेक्षित है। जैविक कृषि खेती की वह पुरानी पद्धति है जिसमें प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके जैविक खाद तैयार किया जाता है। इसमें विशेष रूप से कृषि से उत्पादित वैसे पदार्थ, जिनका उपयोग खाद्यान्नों के तौर पर नहीं होता। उन पदार्थों को प्रकृति सम्मत सरल विधि से खाद तैयार किया जाता है। इस सम्बन्ध में अनन्त काल से गाँवों में एक कहावत प्रचलित है— ‘केंचुए किसान के मित्र होते हैं’। यह अब वर्तमान में कृषि वैज्ञानिकों ने प्रमाणित कर दिया है कि केंचुए खेती की उर्वरता बढ़ाने में जो सहायता करते हैं वह सामान्य यान्त्रिक रूप से नहीं की जा सकती है। केंचुए की एक प्रजाति अफ्रीकन नाइट क्राउलर एक घण्टे में सौ बार भूमि के अन्दर चक्कर लगाती है। इस प्रक्रिया द्वारा भूमि की उर्वरा प्रचुर मात्रा में बढ़ाता है।
केंचुए से जैविक खाद का निर्माण वर्तमान सदी की देन है जिसमें इस जीव को एक उत्प्रेरक की तरह उपयोग किया जाता है। वैसे तो केंचुए की अनेक प्रजातियाँ उपलब्ध हैं किन्तु जैविक खाद निर्माण के लिए अफ्रीकन नाइट क्राउलर (यूड्रिलस यूजीनी) सर्वोत्तम है। यह काले रंग का 6-7 इंच लम्बा केंचुआ होता है जो सामान्य से छोटा व रंग में भिन्न होता है। इसका प्रजनन बहुत सरल एवं सुगम है। पहली बार में इसके अण्डे (छोटे केंचुए मय मिट्टी) का क्रय करके एक वैज्ञानिक विधि से निर्मित गड्ढे में रखकर प्रजनन कराया जाता है। सामान्यतया इस केंचुए के लिए 20-30 सें.ग्रे. तापमान उपयुक्त रहता है। किन्तु 2-4 सें.ग्रे. कम-ज्यादा तापमान पर भी यह जीवित रह सकता है। इसके प्रजनन में कच्चा गोबर, काली मिट्टी के साथ में रहती है तथा समय पर पानी का छिड़काव, विशेषकर गर्मी में, करना लाभप्रद रहता है।
पूरे उत्तर भारत में तालाबों में जलकुम्भी ने अपना पड़ाव बना लिया है अर्थात ये जंगली खरपतवार पूरे तालाब से अपने आप में फैल जाती है। जलकुम्भी पूरे देश में वैज्ञानिकों के लिए एक चिन्ता का विषय है क्योंकि दिन-पर-दिन इसका फैलाव एक कोने से दूसरी ओर बढ़ रहा है। ऐसे समय में इस खरपतवार का सदुपयोग खाद बनाने में किया जा सकता है। यहाँ एक अनुपयोगी जैविक पदार्थ को उपयोगी बनाना है। अन्त तक जो खरपतवार समस्या बना हुआ था, उसका सदुपयोग हरी खाद/जैविक खाद बनाने में अप्रत्याशित सफलता का सकारात्मक उदाहरण है।
जलकुम्भी की खरपतवार/पत्तों को उसकी प्राकृतिक अवस्था में तालाब से काटकर उसे छोटे-छोटे टुकड़े में काटकर सुखा लें। फिर आवश्यकतानुसार अर्थात 8×6×4 का खड्डा बनाकर (जिसमें धरातल पक्का अवश्य होना चाहिए) इसकी निचली तह में गोबर की खाद (गीला गोबर) की सतह बना ले फिर छोटे-छोटे जलकुम्भी की पत्तियों को खड्डें में डालें, खड्डे को ऊपर तक भर दे तथा उसके ऊपर गीली काली मिट्टी की सतह बनाएँ जिसमें गोबर भी मिला हो तो अच्छा है। इस मिश्रण में केंचुओं को पर्याप्त मात्रा (एक से डेढ़ कि.ग्रा.) डाल दें, फिर इस खड्डे को गोबर से लीप दें। इस खड्डे को 50-60 दिन इस प्रकार ही रहने दें। गर्मी के समय 2-3 बार पानी का छिड़काव करें। वर्षात में भारी वर्षा से गड्ढे को बचाए रखने के लिए उस पर छप्पर (फूस का अथवा तारपोलीन) डाल दें।
जब केंचुए खाद बना लेते हैं, अर्थात जलकुम्भी की जैविक खाद बन जाती है तो केंचुए गड्ढे की सतह पर आ जाते हैं और खाद का रंग हल्का मटमैला हो जाता है। इस खाद के मिश्रण को गड्ढे से बाहर निकाल बाहर हल्की धूप में सुखा लें। खाद को यदि वाणिज्यिक स्तर पर बनाकर विक्रय करना है तो 1-2 से.मी. की छलनी में छान और सुखा कर छोटे-बड़े थैलों में भर सकते हैं। छलनी में केंचुए इकट्ठे हो जाएँ तो उन्हें पुनः उपयोग में ला सकते हैं। यहाँ यह स्पष्ट करना है कि केंचुए की खाद चाय की पत्ती जैसी, (1 से.मी. के लगभग आकार की) आ जाए तो उसे पूर्ण रूप से सुखाकर थैलों में भरें (गीली खाद नमी के कारण सड़ सकती है)। शेष खाद को पुनः उपयोग में ला सकते हैं। यदि खाद का उपयोग अपने खेत में करना है तो सीधे खेत में डाली जा सकती है।
केंचुए की खाद में सामान्य कम्पोस्ट की खाद से 40-45 प्रतिशत अधिक पोषक तत्व होते हैं। साथ में एक और विशेषता होती है कि खेत को यह खाद अधिक उपजाऊ बनाती है। व्यावहारिक प्रयोग से यह सिद्ध हो चुका है कि केंचुए की खाद के द्वारा सामान्य खाद से दुगुना उत्पादन होता है। खाद को खेती में रबी की फसल में, खरीफ की फसल के कटने के बाद 2-3 जुताई के बाद डालें। यह खेत की निचली सतह में न केवल नमी बनाए रखती है अपितु खेत की उर्वरा बनाए रखती है।
(लेखक भारत सरकार के रेशम बोर्ड में वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं संयुक्त निदेशक रह चुके हैं)
उपर्युक्त सन्दर्भ में कृषि उत्पादन में परिवर्तन की आवश्यकता है अर्थात रासायनिक खेती की जगह पुनः जैविक खेती पर ध्यान देना अपेक्षित है। जैविक कृषि खेती की वह पुरानी पद्धति है जिसमें प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके जैविक खाद तैयार किया जाता है। इसमें विशेष रूप से कृषि से उत्पादित वैसे पदार्थ, जिनका उपयोग खाद्यान्नों के तौर पर नहीं होता। उन पदार्थों को प्रकृति सम्मत सरल विधि से खाद तैयार किया जाता है। इस सम्बन्ध में अनन्त काल से गाँवों में एक कहावत प्रचलित है— ‘केंचुए किसान के मित्र होते हैं’। यह अब वर्तमान में कृषि वैज्ञानिकों ने प्रमाणित कर दिया है कि केंचुए खेती की उर्वरता बढ़ाने में जो सहायता करते हैं वह सामान्य यान्त्रिक रूप से नहीं की जा सकती है। केंचुए की एक प्रजाति अफ्रीकन नाइट क्राउलर एक घण्टे में सौ बार भूमि के अन्दर चक्कर लगाती है। इस प्रक्रिया द्वारा भूमि की उर्वरा प्रचुर मात्रा में बढ़ाता है।
केंचुए से जैविक खाद का निर्माण वर्तमान सदी की देन है जिसमें इस जीव को एक उत्प्रेरक की तरह उपयोग किया जाता है। वैसे तो केंचुए की अनेक प्रजातियाँ उपलब्ध हैं किन्तु जैविक खाद निर्माण के लिए अफ्रीकन नाइट क्राउलर (यूड्रिलस यूजीनी) सर्वोत्तम है। यह काले रंग का 6-7 इंच लम्बा केंचुआ होता है जो सामान्य से छोटा व रंग में भिन्न होता है। इसका प्रजनन बहुत सरल एवं सुगम है। पहली बार में इसके अण्डे (छोटे केंचुए मय मिट्टी) का क्रय करके एक वैज्ञानिक विधि से निर्मित गड्ढे में रखकर प्रजनन कराया जाता है। सामान्यतया इस केंचुए के लिए 20-30 सें.ग्रे. तापमान उपयुक्त रहता है। किन्तु 2-4 सें.ग्रे. कम-ज्यादा तापमान पर भी यह जीवित रह सकता है। इसके प्रजनन में कच्चा गोबर, काली मिट्टी के साथ में रहती है तथा समय पर पानी का छिड़काव, विशेषकर गर्मी में, करना लाभप्रद रहता है।
जलकुम्भी से जैविक खाद
पूरे उत्तर भारत में तालाबों में जलकुम्भी ने अपना पड़ाव बना लिया है अर्थात ये जंगली खरपतवार पूरे तालाब से अपने आप में फैल जाती है। जलकुम्भी पूरे देश में वैज्ञानिकों के लिए एक चिन्ता का विषय है क्योंकि दिन-पर-दिन इसका फैलाव एक कोने से दूसरी ओर बढ़ रहा है। ऐसे समय में इस खरपतवार का सदुपयोग खाद बनाने में किया जा सकता है। यहाँ एक अनुपयोगी जैविक पदार्थ को उपयोगी बनाना है। अन्त तक जो खरपतवार समस्या बना हुआ था, उसका सदुपयोग हरी खाद/जैविक खाद बनाने में अप्रत्याशित सफलता का सकारात्मक उदाहरण है।
जलकुम्भी की खरपतवार/पत्तों को उसकी प्राकृतिक अवस्था में तालाब से काटकर उसे छोटे-छोटे टुकड़े में काटकर सुखा लें। फिर आवश्यकतानुसार अर्थात 8×6×4 का खड्डा बनाकर (जिसमें धरातल पक्का अवश्य होना चाहिए) इसकी निचली तह में गोबर की खाद (गीला गोबर) की सतह बना ले फिर छोटे-छोटे जलकुम्भी की पत्तियों को खड्डें में डालें, खड्डे को ऊपर तक भर दे तथा उसके ऊपर गीली काली मिट्टी की सतह बनाएँ जिसमें गोबर भी मिला हो तो अच्छा है। इस मिश्रण में केंचुओं को पर्याप्त मात्रा (एक से डेढ़ कि.ग्रा.) डाल दें, फिर इस खड्डे को गोबर से लीप दें। इस खड्डे को 50-60 दिन इस प्रकार ही रहने दें। गर्मी के समय 2-3 बार पानी का छिड़काव करें। वर्षात में भारी वर्षा से गड्ढे को बचाए रखने के लिए उस पर छप्पर (फूस का अथवा तारपोलीन) डाल दें।
जब केंचुए खाद बना लेते हैं, अर्थात जलकुम्भी की जैविक खाद बन जाती है तो केंचुए गड्ढे की सतह पर आ जाते हैं और खाद का रंग हल्का मटमैला हो जाता है। इस खाद के मिश्रण को गड्ढे से बाहर निकाल बाहर हल्की धूप में सुखा लें। खाद को यदि वाणिज्यिक स्तर पर बनाकर विक्रय करना है तो 1-2 से.मी. की छलनी में छान और सुखा कर छोटे-बड़े थैलों में भर सकते हैं। छलनी में केंचुए इकट्ठे हो जाएँ तो उन्हें पुनः उपयोग में ला सकते हैं। यहाँ यह स्पष्ट करना है कि केंचुए की खाद चाय की पत्ती जैसी, (1 से.मी. के लगभग आकार की) आ जाए तो उसे पूर्ण रूप से सुखाकर थैलों में भरें (गीली खाद नमी के कारण सड़ सकती है)। शेष खाद को पुनः उपयोग में ला सकते हैं। यदि खाद का उपयोग अपने खेत में करना है तो सीधे खेत में डाली जा सकती है।
केंचुए की खाद में सामान्य कम्पोस्ट की खाद से 40-45 प्रतिशत अधिक पोषक तत्व होते हैं। साथ में एक और विशेषता होती है कि खेत को यह खाद अधिक उपजाऊ बनाती है। व्यावहारिक प्रयोग से यह सिद्ध हो चुका है कि केंचुए की खाद के द्वारा सामान्य खाद से दुगुना उत्पादन होता है। खाद को खेती में रबी की फसल में, खरीफ की फसल के कटने के बाद 2-3 जुताई के बाद डालें। यह खेत की निचली सतह में न केवल नमी बनाए रखती है अपितु खेत की उर्वरा बनाए रखती है।
(लेखक भारत सरकार के रेशम बोर्ड में वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं संयुक्त निदेशक रह चुके हैं)
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