जैव विविधता

जाने-माने संरक्षण जीवविज्ञानी थॉमस यूजीन लवजॉय ने 1980 में ‘बायोलोजिकल’ और ‘डायवर्सिटी’ शब्दों को मिलाकर ‘बायोलॉजिकल डायवर्सिटी’ या जैविक विविधता शब्द प्रस्तुत किया। चूंकि ये शब्द दैनिक उपयोग के लिहाज से थोड़ा बड़ा महसूस होता था, इसलिए 1985 में डब्ल्यू.जी.रोसेन ने ‘बायोडायवर्सिटी’ या जैव विविधता शब्द की खोज की। मूल शब्द के इस लघु संस्करण ने तुरंत ही वैश्विक स्वीकार्यता प्राप्त कर ली। शायद ही कोई दिन जाता हो जब हम इस शब्द के सम्पर्क में नहीं आते हैं। समाचार पत्रों और शोध पत्रों में उद्धृत यह शब्द आसानी से समक्ष आ जाता है।

जैव विविधता के मायने इतने अधिक प्रयुक्त शब्द के लिए कोई एक आदर्श परिभाषा का न होना वाकई आश्चर्यजनक है। परन्तु शब्द के अर्थ से ही इसके मायने समझ में आ जाते हैं। आखिरकार सभी जानते हैं कि ‘जैविक’ का अर्थ एक जीव जगत है और ‘विविधता’ का शाब्दिक अर्थ है प्रकार। बायोडायवर्सिटी के पहले हिस्से ‘बायो’ का अर्थ निकालने में भी कोई दुविधा नहीं है, यह शब्द जीवन या सजीव को इंगित करता है।

इस हिसाब से जैविक विविधता अथवा जैव विविधता का सीधा अर्थ है, ”जीवित संसार की विविधताएं“। कम से कम मोटे तौर पर तो इसका यही अर्थ समझा जा सकता है, परन्तु ‘विविधता’ शब्द की व्याख्या कई तरह से की जा सकती है। इससे जीवन के विविध पहलुओं का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों की चर्चा में सूक्ष्मभेद उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए ‘विविधता’ के अन्तर्गत न सिर्फ एक प्रजाति के अन्दर पाए जाने वाली विविधताएं अपितु विभिन्न प्रजातियों के मध्य अन्तर और पारिस्थितिकीय तंत्रों के मध्य तुलनात्मक विविधता भी शामिल की जाती है।

एक साधारण व्यक्ति जब शब्द जैव विविधता का प्रयोग करता है तो उसका जो तात्पर्य होता है वह दरअसल ‘प्रजातीय जैव विविधता’ है। एक प्रजाति का अर्थ है ऐसे प्राणियों का समूह जो ऐसी संतति पैदा करने की क्षमता रखते हों जो खुद जननक्षमता रखती हो। एक सामान्य आदमी के लिए इस शब्द के अन्तर्गत कबूतर से लेकर हाथी और अनार से लेकर शलगम तक की समस्त प्रजातियां सम्मिलित हैं।

परन्तु जैव विविधता जीवों की असामान्य विविधताओं तक ही सीमित नहीं रहती है। इसके अन्तर्गत जीवित पदार्थों के सम्पूर्ण संग्रह का कुल योग और जिस पर्यावरण में वे रहते हैं, अर्थात् पारिस्थितिकी तंत्र, भी सम्मिलित है। इसमें जीवों के अन्दर और उनके मध्य की विविधताओं को भी दृष्टिगत रखा जाता है। इसमें एक दूसरे के ऊपर प्रभाव डालने वाले समुदाय भी सम्मिलित हैं। इस दृष्टि से अगर देखा जाए तो जैव विविधता विभिन्न पारिस्थितिकीय तंत्रों में उपस्थित जीवों के बीच तुलनात्मक विविधता का आकलन है।

यह एक महत्वपूर्ण संकल्पना है क्योंकि सभी जीव और उनका पर्यावरण एक दूसरे पर अत्यंत नजदीकी से प्रभाव डालते हैं। इस पर्यावरण में कोई भी बदलाव या तो जीव के विलुप्त होने का कारण बनता है या फिर उनकी संख्या में विस्फोटक बढ़ोत्तरी का। कोई भी प्रजाति अपने पर्यावरण के प्रभाव से अनछुई नहीं रह सकती है। इसी प्रकार किसी प्राणी या वनस्पति की संख्या में कमी या वृद्धि इनके पर्यावरण में परिवर्तनीय प्रभाव डालता है। इससे अन्य प्रजातियों के जीवन पर भी प्रभाव पड़ता है।

वृहद रूप से देखा जाए तो वनस्पतियों, प्राणियों और सूक्ष्मजीवों को अति विविधताओं के आधार पर समझा जा सकता है; जीन से प्रजाति तक और उनके पारिस्थितिकी तंत्र के साथ। इसलिए जैव विविधता की सबसे स्पष्ट परिभाषा होगी, ”जैविक संगठन के सभी स्तरों पर पाई जाने वाली विविधताएं ही जैव विविधता है। “ इस दृष्टिकोण को समझने वालों के लिए स्वीकार्य परिभाषा, ”किसी क्षेत्रा के जीनों, प्रजातियों और पारिस्थितिकी तंत्रों की सम्पूर्णता“ होगी।

भारतीय जैव विविधता को दर्शाता चार्टभारतीय जैव विविधता को दर्शाता चार्टफिर भी, जैसा कि किसी भी धारणा को दर्शाने वाले शब्दों के साथ होता है, यह शब्द स्वयं में एक गहन आकलन की योग्यता रखता है।

इसलिए आमतौर से ‘प्रजाति विविधता’ के लिए प्रयुक्त प्रसंग जो किसी प्रजाति की मौजूद विविधताओं का आकलन है, के स्थान पर हम ‘अन्तर्जातीय विविधता’ का प्रयोग कर सकते हैं जो विभिन्न जातियों के मध्य विविधताओं को दर्शाता है। यह आबादी या जीवसंख्या के बीच जननिक भेदों के साथ ही एक ही प्रजाति के सदस्यों के मध्य विविधताओं को भी दर्शाता है।

हम ‘पारिस्थितिकी विविधता’ की भी चर्चा कर सकते हैं जो संगठन के उच्चतर स्तर, पारिस्थितिकी तंत्र की विविधता है।

अदृश्य जैव विविधता


यह तथ्य आमतौर पर हमारी निगाह में आने से चूक जाता है कि पृथ्वी की अधिकांश जैव विविधता सूक्ष्मजीवी है। समसामयिक जैव विविधता विज्ञान की आलोचना इस बात के लिए होती है कि यह ‘दृष्टिगोचर विश्व पर ही दृढ़ता से टिका है’। ‘दृष्टिगोचर’ शब्द से यहां तात्पर्य नंगी आंखों से दिखने वाली वस्तु से है। यह तथ्य अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि सूक्ष्मजीव जीवन बहुकोशिकीय जीवन से कहीं अधिक विविधता रखता है। परन्तु जब हम जैव विविधता की बात करते हैं तो हम शायद ही सूक्ष्मजीवों को दृष्टिगत रखते हैं। यह अत्यावश्यक है कि हम हमारे चारों ओर मौजूद अदृश्य जैव विविधता की ओर अधिक ध्यान दें। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ये अदृश्य सूक्ष्मजीव ही ऐसे कई पारिस्थितिकी चक्रों में भूमिका अदा करते हैं जो जीवन की गाड़ी को चलाने में महत्वपूर्ण हैं।

क्या हो आदर्श परिभाषा?


यह स्पष्ट है कि लोग जब जैव विविधता की बातें करते हैं तो भ्रांति पैदा होने की स्थिति रहती है। हम जानते हैं कि असंदिग्धता ही अच्छे विज्ञान का प्रमाण है। इसलिए 1992 में रियो डी जेनेरियो में आयोजित संयुक्त राष्ट्र पृथ्वी सम्मेलन में जैव विविधता की मानक परिभाषा को अपनाने का निर्णय लिया गया। अन्ततः जैव विविधता को निम्नानुसार परिभाषित किया गयाः ”समस्त स्रोतों, यथा अन्तर्क्षेत्रीय, स्थलीय, समुद्री एवं अन्य जलीय पारिस्थितिकी तंत्रों के जीवों के मध्य अन्तर और साथ ही उन सभी पारिस्थितिकी समूह, जिनके ये भाग हैं, में पाई जाने वाली विविधताएं; इसमें एक प्रजाति के अन्दर पाई जाने वाली विविधताएं, विभिन्न जातियों के मध्य विविधताएं एवं पारिस्थितिकी तंत्रों की विविधताएं सम्मिलित हैं।“

संयुक्त राष्ट्र जैविक विविधता सभा द्वारा इस परिभाषा को अपना लिया गया। दुनिया के कुछ देशों, जिनमें एन्डोरा, ब्रुनेई, दार-अस-सलाम, होली सी, ईराक, सोमालिया, तिमोर-लेस्ते और संयुक्त राज्य अमेरिका को छोड़कर शेष विश्व ने इसे स्वीकार कर लिया। एक प्रकार से यही उस एकमात्रा, कानूनी रूप से स्वीकृत जैव विविधता की सबसे नजदीकी परिभाषा है जिसे वैश्विक स्वीकार्यता प्राप्त है।

जैव विविधता को हम चाहे जैसे भी परिभाषित करें, इस तथ्य को नकारा नहीं जा सकता कि यह अरबों वर्षों के विकास का परिणाम है जिसे प्राकृतिक गतिविधियों द्वारा आकार प्रदान किया गया है और वर्तमान समय में अधिकतर, यह मानवीय कारगुजारियों से प्रभावित हो रहा है, इससे एक जैव-जाल का निर्माण होता है। जिसके हम एक अटूट हिस्से हैं और जिस पर हम जीने के लिए निर्भर करते हैं।

रोचक बात यह है कि मान्यता प्राप्त मानक परिभाषा उपलब्ध होने के बावजूद भी जीवविज्ञान के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक जैव विविधता के विभिन्न पहलुओं पर अपना ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं।

नागफनी की विविधतानागफनी की विविधता

जीवविज्ञानी के लिए जैव विविधता


जीवविज्ञानियों के नजरिए से जैव विविधता जीवों एवं प्रजातियों तथा उनके मध्य प्रभावों का सम्पूर्ण वर्णक्रम है। वे इस बात का अध्ययन करते हैं कि पृथ्वी पर जीवों की उत्पत्ति कैसे हुई, किस प्रकार वे विभिन्न प्रकार विलुप्त हुए। बहुत सी प्रजातियां सामाजिक प्रवृत्ति की होती हैं जो अपनी प्रजाति के अन्य सदस्यों एवं अन्य प्रजातियों से पारस्परिक क्रिया कर अपने जीवित रहने की दर को अधिकतम रखती हैं। ऐसी प्रजातियां जीवविज्ञानियों के लिए विशेष आकर्षण होती हैं।

परिस्थितिविज्ञानी के लिए जैव विविधता


परिस्थितिविज्ञानी जैव विविधता का अध्ययन न सिर्फ प्रजातियों के संदर्भ में करते हैं अपितु प्रजाति के निकटतम वातावरण और उस वृहद परिक्षेत्र, जिसमें वह निवास करते हैं, के संदर्भ में भी करते हैं। प्रत्येक पारिस्थितिकी तंत्र में जीव एक सम्रगता का हिस्सा होते हैं जो न सिर्फ अन्य जीवों बल्कि उनके चारों ओर मौजूद वायु, जल और मिट्टी से भी परस्पर प्रभावित होते हैं। यही वह पहलू है जिस पर ज्यादातर पारिस्थितिकीय अध्ययन केंद्रित होते हैं।

आनुवंशिकी विज्ञानी के लिए जैव विविधता


आनुवंशिकी विज्ञानियों का मानना है कि वास्तविक जैव विविधता जीनिक विविधता पर ही निर्भर करती है। उनके लिए जैव विविधता जीनों की विविधता से ही सम्बद्ध है। वे म्यूटेशन यानी उत्परिवर्तन, जीन-विनिमय एवं डीएनए के स्तर पर होने वाली परिवर्तनात्मक सक्रियता, जिससे विकासवाद को बढ़ावा मिलता है, जैसी क्रियाओं का अध्ययन करते हैं। हालांकि, अत्यन्त विस्तृत जीनोम मैपिंग एवं आनुवंशिकता, जिसके अध्ययन में बहुत समय लगता है, के बिना जीनिक जैव विविधता को मापना आसान नहीं है।

बहरहाल, कार्यशैली में दिखाई देने वाले अन्तरों के बावजूद सभी वैज्ञानिक जैव विविधता की महत्ता एवं जहां तक संभव हो, इसे परिरक्षित रखने की आवश्यकता पर एकमत हैं।

और ऐसा कर पाने के लिए हमें जानना होगा कि करना क्या है?

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