आज के परिवेश में जैव-विविधता संरक्षण की बात सर्वत्र की जा रही है। जैव-विविधता से अभिप्राय स्थल विशेष या पारिस्थितिकीय जटिलताओं, जीव-जंतुओं, वनस्पतियों की विभिन्न प्रजातियों और परिप्रणाली की विभिन्नता से है।
हमारे परिवेश में तालाब, नदी, जंगल, पहाड़ इत्यादि मौजूद हैं। इस प्रकार के परिवेशों में रहने वाले जीव-जंतु, पेड़-पौधे, झाड़ियाँ और सूक्ष्म रचनाएँ, विभिन्न उत्पत्ति तत्व और जैव उत्पाद भी शामिल हैं।
पर्यावरणीय दृष्टिकोण को अपनाते हुए सन 1985 में सर्वश्री वाल्टर जी. रोजेन ने पादपों, जीव-जंतुओं एवं सूक्ष्मजीवों के विभिन्न प्रकारों में विविधता को प्रदर्शित करने के लिये ‘जैव-विविधता’ शब्द का प्रयोग किया था। आईयूसीएन तथा यूएनईपी (UNEP) ने सन 1992 में जैव-विविधता को इस प्रकार से परिभाषित किया है- ‘‘किसी क्षेत्र में प्राप्त जीवों, प्रजातियों तथा पारिस्थितिकी तंत्रों की संयुक्त संख्या को जैव-विविधता कहते हैं।’’ अर्थात, किसी क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवित जीवों की भिन्नता तथा विविधता के कुल योग को जैव-विविधता की संज्ञा दी जाती है।
मसलन भारत की भौगोलिक संरचना के अनुसार जैव-विविधता को आसानी से देखा जा सकता है। जैसे कि उत्तर में हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियाँ और हिमनद तथा दक्षिण में नीलगिरि की पहाड़ियाँ और पठार, जबकि पश्चिम में राजस्थान के रेगिस्तान एवं पूर्व के सदाबहार वन।
भारतीय उपमहाद्वीप में राज्य सरकार ही नहीं बल्कि भारत की सर्वोच्च न्यायालय भी जैव विविधता के संरक्षण के बारे में चिंतित है। गुजरात राज्य में ‘‘सौराष्ट्र गिर राष्ट्रिय उद्यान’’ स्थित है, जो मुख्यत: एशियाई शेरों के संरक्षण के लिये प्रसिद्ध है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में पिछले दो वर्षों में 92 एशियाई शेरों की मृत्यु हो गई, जिनमें से 83 की मृत्यु प्राकृतिक बतलाई गयी और अवैध शिकार का कोई मामला सामने नहीं लाया गया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2011 और 2012 में प्रत्येक वर्ष 46 शेरों की मृत्यु हुई। पिछले दो वर्षों में मृत कुल 92 शेरों में से 43 शावक, 29 मादा शेर एवं 20 नर शेर सम्मिलित थे।
अभी हाल ही में इस बात से चिंतित होकर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक अहम फैसला लिया है, जिसमें गुजरात सरकार को यह निर्देश दिया कि कुछ एशियाई शेरों को मध्य प्रदेश के ‘‘कूनो - पालपुर वन्यजीव अभ्यारण्य’’ में स्थानान्तरित कर दिया जाए।
भौगोलिक पारिस्थितिकी क्षेत्रों में जीव-जंतुओं की संख्या | |
जीव-जंतु | संख्या |
पेड़-पौधे | 48,000 |
स्तनपायी | 340 |
पक्षी | 1200 |
सरीसृप | 400 |
उभयचर | 140 |
मछलियाँ | 1400 |
मोलस्क | 1000 |
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार | |
पौधे | संख्या |
पुष्पीय पौधे | 17,500 |
समुद्री वनस्पतियाँ | 5,000 |
कवक | 20,000 |
लाइकेन | 16,000 |
ब्रायोफाइट | 27,000 |
टेरिडोफाइट | 600 |
आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण पुष्पीय पौधों की संख्या | |
आर्थिक महत्त्व | संख्या |
औषधीय महत्त्व की | 8,000 प्रजातियाँ |
खाद्य योग्य | 3,000 प्रजातियाँ |
रेशे देने वाली | 500 प्रजातियाँ |
गोंद व लाख देने वाली | 300 प्रजातियाँ |
चारा देने वाली | 400 प्रजातियाँ |
मानवीय आस्थाओं से जुड़ी | 700 प्रजातियाँ |
भारतीय क्षेत्र में जैव-विविधता
भारत में जैव-विविधता वृहद हिमालय, रेगिस्तान, प्रायद्वीप क्षेत्र एवं पठारी भाग, गंगा का मैदानी भाग, समुद्र तटीय क्षेत्र एवं द्वीप समूह इत्यादि क्षेत्रों में अधिसंख्य वन्य जीव एवं वनस्पतियों के रूप में पारिस्थितिकी तंत्र शामिल हैं।
भारत के भू-आकृतिक विन्यास एवं जलवायुविक विषमता के कारण विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक आवासों का निर्माण हुआ है। इस प्रायद्वीप का उत्तरी भाग हिमालय, मध्यवर्ती भाग वृहद मैदानी, पश्चिमी छोर पर मरुस्थल एवं पूर्वी भाग दलदलीय जबकि दक्षिणवर्ती भाग पठारी है। इसके अतिरिक्त भारत के तीनों ओर समुद्र तटीय मैदान हैं। इससे स्पष्ट है कि भारत की भू-संरचना अद्भुत है।
जैव विविधता के प्रकार
जैव-विविधता के तीन प्रमुख प्रकार हैं :
1. अनुवांशिक जैव-विविधता : इस विविधता से अभिप्राय है कि एक ही प्रजाति में पायी जाने वाली एक ही जाति के मध्य विभिन्नता। जैसे यूरोप में गोरे लोग जबकि एशिया में पीत-वर्ण के लोग।
2. प्रजातीय जैव-विविधता : प्रजातियों के मध्य पायी जाने वाली विविधता को प्रजातीय जैव-विविधता की संज्ञा देते हैं। जैसे चारों ओर वृक्षों, पौधों, झाड़ियों और विविध प्रकार के जीव जंतुओं का पाया जाना।
3. पारिस्थितिकी जैव-विविधता : विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न प्रकार के जीवों की उपलब्धता ही पारिस्थितिकी जैव-विविधता कहलाती है। जैसे राजस्थान में ऊँट की अधिकता।
जैव-विविधता का महत्त्व बहु आयामी है। पर्यावरणीय संतुलन में सहायक होने के कारण ये विभिन्न आर्थिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक लाभ के स्रोत भी हैं। अनेक जीव-जंतु पर्यावरण प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये प्रदूषकों का भक्षण करते हैं। कुछ जीव जंतु पालतू भी बनाए गए हैं। जिनका उपयोग अनेक कार्यों में किया जाता है। यही कारण है कि ये आदिकाल से अब तक मानव समाज के लिये उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण हैं।
मनुष्य ने अपनी आवश्यकतओं की पूर्ति के लिये प्रकृति का दोहन किया है जैसे- आवास, र्इंधन के लिये वृक्षों का काटा जाना, खाद्यान्न के रूप में विभिन्न फसलों को तैयार किया जाना, जानवरों से दूध, मांस, मछली, अंडा, रेशों इत्यादि का उत्पादन जीविकोपार्जन के लिये किया जा रहा है। इसके साथ ही फलदार वृक्षों से फलों का और इमारती लकड़ी का उत्पादन बढ़ गया है। विभिन्न प्रकार के जैव उत्पाद जैसे- रेशम, शहद इत्यादि एवं पशुपालन में गाय व भैंस से दूध, पनीर तथा भेड़ व बकरी से दूध, मांस व ऊन इत्यादि का प्रयोग किया जा रहा है।
जैव विविधता का सामाजिक एवं नीतिगत महत्त्व भी है। प्राचीन भारत के सुप्रसिद्ध लेखक श्री विष्णु शर्मा ने वन्य जीवों पर आधारित नीतिपरक कहानियों का संग्रह अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘पंचतंत्र’ में किया है जिसके माध्यम से जीवनोपयोगी शिक्षा को अत्यंत सरल एवं रोचक ढंग से चित्रित किया है जिससे समाज सुदृढ़ व स्वच्छ बना रहे।
जैव विविधता का पारिस्थितिकी संतुलन में भी विशेष भूमिका है। समस्त जीव एक निश्चित संख्या में बहुत बड़ी खाद्य शृंखला के रूप में जीवन यापन करते हैं। यदि एक कड़ी भी टूट जाय तो प्रकृति का संतुलन असंतुलित हो जायेगा। वन्य-जीव पारिस्थितिकीय संतुलन बनाने के साथ ही प्रदूषण नियंत्रित कर मानव को जीवनदान भी देते हैं।
आइयूसीएन रेड सूची :
लाल सूची (Red List) विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रहे प्रजातियों की एक सूची है। विश्व संरक्षण संघ (पूर्व में प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिये अन्तरराष्ट्रीय संघ, IUCN) के अनुसार, प्रजातियों की नौ लाल सूची की श्रेणियाँ बनाई गयी जो निम्न प्रकार से हैं :
1. विलुप्त 2. जंगल में विलुप्त 3. गंभीर खतरे में 4. खतरे में 5. भेद्य 6. खतरे के पास 7. कम संबंधित 8. कम आंकड़ा 9. अमूल्यांकित
विलुप्तप्राय वनस्पतियों एवं प्राणियों की वर्तमान स्थिति
विलुप्तप्राय वनस्पतियों एवं प्राणियों की कुल संख्या 11,046 है। लाल सूची के अनुसार 44 पौधे गंभीर खतरे में, 113 पौधे खतरे में, 87 पौधे भेद्य तथा 18 प्राणी गंभीर खतरे में और 54 प्राणी खतरे में, 143 प्राणी भेद्य हैं।
इनके कुछ उदाहरण हैं :
क्र.सं. | श्रेणी | पौधे | प्राणी |
1. | गंभीर खतरे में | बैरबैरसि निलगिरिएन्सीस | सस ऐल्वीनस (पिग्मी हॉग) |
2. | खतरे में | बेंटींकिया निकोबारीका | ऐलरस फलसेंस (लाल पाण्डा) |
3. | भेद्य | क्यूप्रेसस कैसमीरियाना | ऐण्टीलोप कर्वीकेप्रा (काला बक) |
जैव-विविधता के संरक्षण का प्रयास
संवैधानिक संरक्षण
भारतीय संविधान में पारंपरिक जैव-ज्ञान को अनुच्छेद-36 (4) तथा 11 में बौद्धिक संपदा घोषित किया गया है। जैव-विविधता से संबंधित अधिनियम के अनुच्छेद-18 (4) में इस मद से प्राप्त आय की केंद्र सरकार तथा संरक्षण में संलग्न व्यक्ति या संस्था में समान रूप से बँटवारे की व्यवस्था की गई है। अनुच्छेद 6 में जैव-विविधता क्षेत्र में शोध या उपयोग के बावजूद विदेशियों के लिये अनिवार्य अनुभूति एवं अनुच्छेद 21 में जैव-विविधता कोष बनाने का प्रावधान रखा गया है। अनुच्छेद 21 के एक उपनियम में कोष के धन का उपयोग जड़ी बूटियों से संबंधित डिजिटल पुस्तकालय बनाने में किया जा सकता है।
जैव विविधता के संरक्षण हेतु दो मूल रणनितियाँ बनाई गयी है जो इस प्रकार है :
1. स्वस्थाने संरक्षण : स्वस्थाने संरक्षण के अनुसार राष्ट्रीय पार्कों एवं अभ्यारण्यों व अन्य संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना करके जीवों को प्राकृतिक आवास के साथ ही साथ खाद्य जल एवं वनस्पति का संरक्षण विधिवत किया जाता है।
(i) संरक्षित क्षेत्र : ये विशेष संरक्षण और जैव विविधता के रख-रखाव के लिये समर्पित भूमि या समुद्र और प्राकृतिक और संबद्ध सांस्कृतिक संसाधनों के क्षेत्र हैं। इनका प्रबंधन कानूनी या अन्य प्रभावी साधनों के माध्यम से किया जाता है। पूरे विश्व में लगभग 37,000 संरक्षित क्षेत्र हैं। भारत में 581 संरक्षित क्षेत्र हैं जिनमें से 89 राष्ट्रीय उद्यान एवं 492 वन्यजीव क्षेत्र हैं।
विश्व का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका में स्थित है जो येलोस्टोन राष्ट्रीय उद्यान के नाम से जाना जाता है। भारत में सर्वप्रथम स्थापित राष्ट्रीय उद्यान ‘जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान’ है जो उत्तराखंड में है। यहाँ पर पौधों की 488 विभिन्न प्रजातियाँ एवं विविध किस्म के प्राणी पाये जाते हैं।
(ii) बायोस्फीयर रीजर्व : बायोस्फीयर रीजर्व विशेष श्रेणी के भूमि या तटीय वातावरण के संरक्षित क्षेत्र हैं जहाँ लोगों को इस प्रणाली का एक अभिन्न अंग माना जाता है। भारत में कुल 18 बायोस्फीयर रीजर्व स्थित हैं तथा विश्व में इनकी कुल संख्या लगभग 610 है।
(2) कृत्रिम आवासीय संरक्षण : इस प्रकार के संरक्षण में आनुवांशिकी इंजीनियरिंग की सहायता से विलुप्तप्राय प्राणी या वनस्पति को बचाने के लिये प्राकृतिक आवास के समान ही कृत्रिम आवास बनाकर संरक्षित किया जाता है अर्थात जीव या पेड़-पौधों की जातियों को उनके बाह्य क्षेत्र से हटाकर अन्यत्र संरक्षित किया जाता है। कृत्रिम आवासीय संरक्षण रणनीतियों में वानस्पतिक उद्यान, चिड़ियाघर और जीन, पराग, बीज, अंकुर व जीन बैंक सम्मिलित हैं।
इनके साथ ही इन विट्रो संरक्षण, क्रायोप्रिजर्वेशन तकनीक के द्वारा तरल नाइट्रोजन (-1960C) में किया जाता है।
जैव विविधता विलुप्ति के मुख्य कारण हैं :
1. जीवों का अवैध शिकार।
2. जंगलों का घटना।
3. प्राकृतिक आपदाएं।
4. लिंगानुपात में कमी।
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