बुढ़ाना- कांधला मार्ग पर स्थित एक सरकारी स्कूल पूर्व माध्यमिक विद्यालय राजपुर-छाजपुर जैव विविधता एवं जल प्रबंधन को लेकर बहुत ही सजग है। इस विद्यालय में कक्षा 6 से कक्षा 8 तक 306 बच्चे पढ़ते हैं। यह विद्यालय 22 बीघे ज़मीन पर बना है। जिसमें आम व अमरूद का बाग भी हैं। इस विद्यालय में 12 अध्यापक हैं जो बच्चों को पढ़ाने में बहुत रूचि रखते हैं। यह विद्यालय जनपदीय परिषदीय विद्यालयों के खेलों में भी पुरस्कार जीतकर अपनी धाक जमाता रहा है। शिक्षक इन गतिविधियों के प्रमुख संचालक हैं। वें विद्यार्थियों को ऐसे गुणों को विकसित करने में सहयोग व दिशा निर्देशन देते हैं। जिससे वे पौधों, जीव-जंतुओं के मित्र बन जाएं। विद्यार्थियों को निरीक्षण एवं कार्य से जोड़कर तथा ज्ञान, कौशल एवं मूल्यों के विकास को बढ़ावा देकर पाठ्यक्रम सहगामी गतिविधियों के द्वारा उनके लक्ष्यों को प्राप्त करते हैं। भारत में जल संचय के प्रमाण प्राचीनतम लेखों, शिलालेखों और स्थानीय रस्म-रिवाजों तथा पुरातात्विक अवशेषों में मिलते हैं। पूर्वजों ने तालाब कुएँ, पोखर और बावड़ियों का निर्माण कर पानी से बने समाज की रचना की। जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो पूर्वजों द्वारा बसाए गए गाँवों को पानी की दृष्टि से आत्मनिर्भर पाते हैं। उन्होंने बरसने वाले पानी को नदियों में जाने से पूर्व ही रोक लेने वाली पद्धतियाँ विकसित की थी। विश्व में अग्रणी ये भारतीय गांव जल संकट से कैसे ग्रस्त हो गए? कारण है गुलामी का अभिशाप, नदियों की संस्कृति से पलायन धरती की छाती छेदता विकास का बरमा, बड़े बांधों का मायाजाल व मनुष्य की आत्मकेन्द्रित सोच। लेकिन इन सब के होते हुए भी कुछ उदाहरण हम सब के लिए अनुकरणीय हो जाते हैं। ऐसे ही हमारे बीच है एक सरकारी विद्यालय।
बुढ़ाना- कांधला मार्ग पर स्थित एक सरकारी स्कूल पूर्व माध्यमिक विद्यालय राजपुर-छाजपुर जैव विविधता एवं जल प्रबंधन को लेकर बहुत ही सजग है। इस विद्यालय में कक्षा 6 से कक्षा 8 तक 306 बच्चे पढ़ते हैं। यह विद्यालय 22 बीघे ज़मीन पर बना है। जिसमें आम व अमरूद का बाग भी हैं। इस विद्यालय में 12 अध्यापक हैं जो बच्चों को पढ़ाने में बहुत रूचि रखते हैं। यह विद्यालय जनपदीय परिषदीय विद्यालयों के खेलों में भी पुरस्कार जीतकर अपनी धाक जमाता रहा है। तुलसी एवं हल्दी की क्यारियां विद्यालय की शोभा बढ़ाती हैं। जिसमें बच्चों को इनके प्रयोग एवं इनके लाभ के लिए भी बच्चों को तुलसी के पत्ते एवं कच्ची जड़ की हल्दी स्वास्थ्य लाभ के लिए दी जाती हैं। पूर्व जिलाधिकारी सुरेन्द्र सिंह द्वारा विद्यालय को आदर्श श्रेणी में रखा गया है। शैक्षिक गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए आधार योजना भी यहां पर संचालित हो रही हैं। जिसमें बच्चों की केस स्टडी के माध्यम से बच्चों पर स्कूल एवं घर पर बच्चे का ध्यान रखा जाता हैं। विद्यालय के बच्चे एवं शिक्षक इसके लिए पहले भी सम्मानित हो चुके हैं। एनपीआरसी होने के कारण अधिकांश स्कूल इससे जुड़े हुए हैं। विद्यालय जल प्रबंधन, जैव विविधता एवं कूड़ा निस्तारण पर गंभीरता से कार्य कर रहा हैं। यह कार्य बच्चों को विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से कराया जा रहा हैं।
हाल ही में हर्बल गार्डन बनाया गया। जिसमें आंवला, बहेड़ा, हारसिंगार, एलोविरा, अर्जुन, सफेद मूसली, नीम, जामुन, पत्थर बेल आदि के पेड़ लगाए गए हैं। अभी और पेड़ लगाने की योजना है। हर्बल गार्डन का उद्देश्य बच्चों में औषधीय पौधों की पहचान एवं बीमारी होने पर इसके प्रयोग के बारे में बच्चों को जागरूक किया जाता हैं। इन पेड़ों की देखरेख के लिए बच्चों का एक इको क्लब भी बनाया गया है। जिसमें बच्चे स्वयं इन पेड़ों की सुरक्षा के लिए तत्पर रहते हैं। अध्यापकों ने इन सभी बच्चों को पानी देने एवं इन पेड़ों की सुरक्षा के लिए बच्चों को गोद दे रखा हैं। जिससे बच्चों को इन पौधों से लगाव हो गया हैं। विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री ब्रजपाल सिंह राठी बच्चों का मार्गदर्शन करते रहते हैं और जरूरत पड़ने पर बच्चों को उनके प्रायोगिक महत्व के बारे में भी विस्तार से बताते हैं। उनकी नेतृत्व की क्षमता एवं अध्यापकों की मेहनत के कारण ही विद्यालय आज इस मुकाम तक पहुंच चुका हैं। पेड़-पौधों का विद्यालय में पौधारोपण, जल साक्षरता पर कार्यक्रम, सदभाव संबंधी कार्यक्रम, सांस्कृतिक कार्यक्रमों आदि के माध्यम से बच्चों को जोड़ा जा रहा हैं।
बच्चों को संस्था द्वारा अर्थियन योजना के तहत जल का आडिट किया गया जिसमें विद्यालय में पीने व भोजन बनाने में- 1760 लीटर, बागवानी के लिए- 20 घंटे प्रति सप्ताह, साफ-सफाई के लिए- 125 लीटर प्रयोग किया गया हैं। विद्यालय में भूगर्भ जल ही जल का मुख्य स्रोत है। भूगर्भ जल 120 फीट की गहराई से प्राप्त किया जाता हैं। वर्षा का वार्षिक औसत जल .2 मिमी हैं।
पेयजल की गुणवत्ता का परीक्षण भी किया गया। जिसमें पीएच 7 एवं डिसोल्व आक्सीजन 4 पीपीएम एवं जल की गंधता 4 जेटीयू, फ्लोराइड 1.5 व जल की कठोरता हैं। विद्यालय में जल के दो स्रोत हैं नल एवं ट्यूबवेल। इनमें पानी का कोई दुरुपयोग नहीं हो रहा है। नल के वेस्ट जल को बंद गड्ढे में एकत्र किया जाता हैं जिसको बाद में सब्जियों व पेड़ों में डाल दिया जाता हैं। वर्षा जल संरक्षण के लिए भी विद्यालय काम कर रहा हैं। जिसमें वर्षा जल संरक्षण के लिए भी विद्यालयी स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। पक्षियों के लिए बरामदे एवं पेड़ों पर टोकरी बांधकर पक्षियों के लिए आश्रय बनाए गए हैं जिनमे चिड़िया कबूतर रात एवं दिन के समय बैठे रहते हैं। बच्चे इन चिड़ियाओं एवं कबूतरों को दाना डालते हैं जिनसे इन पक्षियों की बच्चों से मित्रता हो गई है।
कृषि विज्ञान विषय के बच्चे भी हर्बल गार्डन में काम करते रहते हैं। विद्यालय में बच्चों के लिए वर्मी कम्पोस्ट व विद्यालय का कूड़ा निस्तारण के लिए भी पिट बनाई गई है। वर्मी कम्पोस्ट को विद्यालय के बगीचों में प्रयोग किया जाता है तथा विद्यालय का प्रतिदिन का कूड़ा गलने वाला तथा न गलने वाला अलग-अलग जगह एकत्र किया जाता है। फिर गलने वाले कूड़े को प्रतिदिन पिट में डाल दिया जाता है। बच्चे विद्यालय में इनसे सीखकर अपने गांव व अपने घर में भी इन सभी चीजों को बढ़ावा दे रहे हैं।
विद्यालय में प्रधानाचार्य श्री ब्रजपाल सिंह राठी, सुरेन्द्र शर्मा, यशपाल ठाकुर, मंगत सिंह, धीर सिंह, जीत सिंह, ममता, गरिमा व अनु अध्यापकों का विद्यालय में सहयोग रहता हैं। इन सभी के कारण आज विद्यालय जिले में उत्कृष्ट कार्य कर रहा हैं। भारत उदय एजुकेशन सोसाइटी के निदेशक संजीव कुमार ने बताया कि विद्यालय शैक्षिक गुणवत्ता एवं जैव विविधता जल प्रबंधन में अनुकरणीय कार्य कर रहा है। यह विद्यालय जिले में ही नहीं प्रदेश में अपने उत्कृष्ट कार्य के लिए जाना जाएगा।
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