इससे क्या

हूँ तो पत्थर ही
नहीं पर वह
तराशा जिसे नदी ने कुछ दिन
और फिर तट पर फेंक दिया।

उसी के पाट में तो हूँ
अभी तक-
इससे क्या यदि
तन्वंगी इस नदी का जल
आज मुझ तक नहीं भी पहुँचे?

जुलाई, 1992

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