नंदकिशोर आचार्य

नंदकिशोर आचार्य
इससे क्या
Posted on 15 Oct, 2013 01:40 PM
हूँ तो पत्थर ही
नहीं पर वह
तराशा जिसे नदी ने कुछ दिन
और फिर तट पर फेंक दिया।

उसी के पाट में तो हूँ
अभी तक-
इससे क्या यदि
तन्वंगी इस नदी का जल
आज मुझ तक नहीं भी पहुँचे?

जुलाई, 1992

वहां नहीं है नदी
Posted on 15 Oct, 2013 01:39 PM
वहां नहीं है नदी
लिया है बदल अपना रास्ता उसने।
घाट है सिर्फ, पुराना
सीढ़ियाँ जिसकी मिट्टी में दबी हैं
पर बजिद है वह
यही है तीर्थ उसका।
जहाँ चाहे नदी बहती रहे
वह तरा था यहीं
चाहे डुबकी-भर ही सही।

इसी जिदमें एक सूखा पाट
खोदे जा रहा है वह।

दिसंबर, 1989

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