झील-झरनों का जिक्र ही मन में ठंडक भर देता है। अगर आपने झील-झरनों के सानिध्य में कुछ पल बिताए हैं तो आनन्द के चरम को महसूस भी किया होगा। करीब 5 साल पहले मैंने भी ऐसे ही चरम को महसूस किया। मन काफी समृद्ध महसूस करता था कि झाँसी से सिर्फ 20 किलोमीटर दूर बरुआसागर कस्बे में एक झील (इसे स्वर्गाश्रम झरना भी कहते हैं) है, जहाँ प्राकृतिक सौन्दर्य, मनोहारी दृश्य का लुत्फ उठा सकते थे। मन होने पर कल-कल बहते झरने में नहा भी सकते थे। 10 से 15 फीट तक इसमें पानी रहता था।
दरअसल, आज जिस मैदान के बीचों-बीच मैं खड़ा हूँ, ये वही झील है, जो बुन्देलखण्ड के सबसे समृद्ध शहर झाँसी के बरुआसागर में है। 237 हेक्टेयर में फैली झील के मैदान में किसान खेती कर रहे हैं। खुरपी, फावड़े से फसल ठीक कर रहे हैं। एक युवक इसमें बने आशियाने में सो रहा है तो कोई इसमें बनाए गए कुओं से गन्दा पानी भर रहा है।
कभी 10 से 15 फीट गहरी रही झील के बीच कोई उन दिनों होता तो तैरना या डूबना पड़ जाता। इतना पानी देख कई बार मन सिहर जाता था, लेकिन आज मुझ सहित किसी को भी इस झील से डर नहीं लग रहा। बुन्देलखण्ड के सूखे ने इस डर को छीन लिया है। दरअसल, इस मैदान के सीने पर जहाँ लोग खाने-पीने के इन्तजाम के लिये खेती कर रहे हैं, यहाँ एक झील दफन है। इस झील को सिर्फ बुन्देलखण्ड के सूखे ने ही नहीं मारा है। उसे हमने भी मारा है।
मानव सभ्यता के विकास की एक बड़ी भूल यह है कि उसने खुद को विस्तृत करने की सीमाएँ ही भुला दी। जंगल से पेड़ काट लिये। नदियों-तालाबों-पोखरों-प्राचीन कुओं को भुला दिया या फिर विकासवादी अतिक्रमण फैला कर उसे संकुचित कर दिया। सूखे के बीच यह सूखी मृत झील इसी विकासवादी-स्वार्थवादी अतिक्रमण का एकदम ताजा शिकार है।
झाँसी के बरुआसागर का स्वर्गाश्रम झरना/झील इसका बड़ा उदाहरण है। बरुआसागर का यह झरना झाँसी ही नहीं बल्कि बुन्देलखण्ड के मनोहारी पर्यटन स्थलों में से एक रहा है। यह झील 115 साल पहले भी सूखी थी लेकिन जिस तरह से आज झील दम तोड़ चुकी है वैसी स्थिति नहीं थी। इसे 1705 में बरुआसागर से राजा उद्देत सिंह ने बनवाया था। तब से अब तक यह पहला मौका है जब झील पूरी तरह से सूख गई है। इस झील में आसपास के गाँवों के भूमिहीन लोग खेती करते हैं। इसमें 60 से 70 लोग तरबूज, खरबूज व अन्य सब्जियाँ उगा रहे हैं।
झील पर सूखे के असर का अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यहाँ किसानों ने पानी निकालने के लिये 20 से अधिक कुएँ खोद लिये। इनमें से 10 ने तो बोरिंग कर ली। नमी होने के कारण अभी यहाँ पानी आसानी से निकल रहा है। इस पानी का इस्तेमाल किसान खेती में सिंचाई के लिये कर रहे हैं। भूजल विभाग के अधिकारी रहे मनोज श्रीवास्तव कहते हैं कि झील के सीने को खोद मशीनों से निकाला जा रहा है पानी, खेतों को तो सींच देगा, लेकिन झील को पूरी तरह से बर्बाद कर सकता है। इसकी नमी पूरी तरह से खत्म हो जाएगी। इलाके का जलस्तर भी गिर जाएगा।
किसान मुकुन्दी सहित कई किसानों ने यहाँ आशियाने बना लिये हैं। मुकुन्दी बताते हैं कि झील में बनाए गए कुओं में पानी आता है। यही पानी उन्हें यहाँ आने को मजबूर करता है। और जगहें तो बिलकुल सूख चुकी हैं। अदील ने बताया कि झील में करीब 70 लोग खेती कर रहे हैं। वह बताते हैं कि उनके पुरखों ने भी इस झील को सूखते हुए नहीं देखा।
स्थानीय पत्रकार पवन जैन बताते हैं कि झील से बने झरने में लोग नहाने आते थे। लोग बोटिंग भी करते थे। एक बार में यहाँ 500 से हजार लोग दिखते थे, लेकिन अब यहाँ सन्नाटा रहता है। इससे आसपास लगने वाली दुकानें भी बन्द हो गई। इससे कईयों का रोजगार भी छिन गया।
बुन्देलखण्ड में सूखे के कारण किसानों की आत्महत्याओं का दौर जारी है। सूखे ने बुन्देलखण्ड के लोगों को ही हलकान नहीं किया है, बल्कि यहाँ की सुन्दरता भी बिगाड़ दी है। जिन पर्यटन स्थलों के मनोहारी दृश्य देखने के लिये लोग उमड़ते थे। वहाँ वीरानगी छाई हुई है। सूखे के कारण कई पर्यटन स्थल, जो पानी के कारण ही आकर्षण का केन्द्र होते थे, वहाँ अब धूल उड़ रही है।
बेकार हो गए चन्देलकालीन तालाब
बुन्देलखण्ड में चन्देलों का लम्बे समय तक शासन रहा। चन्देल पानी के प्रति संवेदनशील थे। उन्होंने पानी के संरक्षण के लिये काफी काम किया। बुन्देलखण्ड में करीब 4 हजार से अधिक तालाब चन्देलों के बनाए थे। बुन्देलखण्ड के चन्देलकालीन तालाब नहीं सहेजे गए। और भी पुराने तालाब थे, जो सूखे पड़े हैं या फिर नष्ट हो चुके हैं। अब उत्तर प्रदेश सरकार अब यहाँ नए 2 हजार तालाब बनाने जा रही है।
इसमें 181.65 करोड़ रुपए खर्च किये जाएँगे। बुन्देलखण्ड के अधिकतर बुद्धिजीवी इन नए तालाबों की सफलता के प्रति बिलकुल भी आश्वस्त नहीं हैं। किसान नेता शिवनारायण सिंह परिहार कहते हैं कि कुछ समय पहले खेत तालाब योजना आई थी। करोड़ों रुपए योजना के तहत खर्च होने के बाद नतीजे सिफर रहे। इस बार भी कुछ ऐसा ही होगा। जब जमीन में नीचे पानी ही नहीं तो तालाब का क्या होगा। हमने अब तक जमीन से पानी लिया ही है। बरुआसागर झील सूख गई, इसके बाद भी उसे निचोड़ा जा रहा है। ऐसी स्थिति नए तालाब कितना कारगर होंगे, यह समझा जा सकता है।
Tags
Water crisis in Bundelkhand in hindi, drought in bundelkhand region in hindi, bundelkhand drought 2016 in hindi, impact of drought in bundelkhand in hindi, Drying water resources in the Bundelkhand in hindi, drought in bundelkhand region in hindi, bundelkhand drought 2016 in hindi, bundelkhand drought impact assessment survey 2016 in hindi, bundelkhand region districts in hindi, bundelkhand drought retrospective analysis and way ahead in hindi, problems of bundelkhand region in hindi, bundelkhand agriculture in hindi, bundelkhand package in hindi, Bundelkhand farming in lakes in hindi, lakes farming in bundelkhand in hindi, Khet talab yojna started in bundelkhand in hindi, bundelkhand talab in hindi, chandel talab in bundelkhand in hindi, lake in bundelkhand in hindi, A lake buried in the ground, we have to hit him.
Path Alias
/articles/isa-maaidaana-maen-eka-jhaila-daphana-haai-usae-hamanae-maaraa-haai
Post By: RuralWater