इंजीनियरों का किसी की इच्छा-अनिच्छा से वास्ता नहीं होता

चानपुरा रिंग बांध का निर्माण बिहार के सिंचाई विभाग के एक्जीक्यूटिव इंजीनियर कामेश्वर झा के अधीन हुआ था। वे बाद में बिहार के जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता होकर रिटायर हुए। उनका कहना है, ‘‘...ब्रह्मचारी जी चौधरी टोला के रहने वाले थे और काफी ताकतवर आदमी थे। उनकी इच्छा हुई कि गाँव को सुरक्षित किया जाए तो वह तो होना ही था। यह इलाका उस समय हमारे कार्य क्षेत्र में नहीं आता था। हम लोग इंजीनियरिंग डिपार्टमेन्ट में काम करते हैं और हमारा राजनीति या किसी की इच्छा-अनिच्छा से वास्ता नहीं होता। अप्रूवल दे दीजिये, बजट दे दीजिये, हम काम करवा देंगे। हम से यही अपेक्षा है। उस समय टी. पी. पाण्डेय सुपरिन्टेडिंग इंजीनियर थे। मैं चाहता था कि यह काम जयनगर डिवीजन ही करे क्योंकि चानपुरा के कई घरों में मेरी रिश्तेदारियाँ थीं और मैं खुद रिंग बांध के अन्दर-बाहर के इस झमेले में नहीं पड़ना चाहता था। लेकिन पाण्डेय जी का मुझ पर दबाव था कि मेरा डिवीज़न ही वह काम करे। पहले एक एम्बैकमेन्ट कुछ दूर तक बना तो गाँव वालों ने ऐतराज किया कि उनका कुछ हिस्सा छूट गया है। अब एम्बैन्कमेन्ट का अलाइनमेन्ट बदलेगा तो जो काम हो चुका है उसका खर्च किस खाते में जायेगा? हमने कहा कि नये अलाइनमेन्ट का अप्रूवल और बजट हम को दे दीजिये, हम नया बना देंगे। ब्रह्मचारी जी के प्रभाव से अलाइनमेन्ट भी बदल गया और अप्रूवल भी मिल गया। गाँव में कुछ विरोध हुआ। जगन्नाथ मिश्र मुख्यमंत्री थे। सचिवालय में बैठक हुई जिसमें अभियंता प्रमुख नीलेन्दु सान्याल और दानापुर कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसिपल परमाकान्त चौधरी भी मौजूद थे। पश्चिम वाले टोले की तो कोई सुनता ही नहीं था। हमको हिदायत हुई कि ब्रह्मचारी जी जो कहलवाते हैं वह करते जाइये। विवाद बढ़ता गया। विरोध इतना बढ़ा कि बात राजीव गांधी तक पहुँची और उन्होंने तारिक अनवर और दो अन्य लोगों को जाँच के लिए भेजा। इसी बीच सकरी में विभाग की एक मीटिंग हुई। उस समय उमेश्वर प्रसाद वर्मा सिंचाई मंत्री थे।

इस बांध को लेकर विवाद इतना बढ़ गया था कि उन्होंने उस मीटिंग में मेरी तरफ इशारा कर के कहा कि आप ने ऐसा झंझट पैदा कर दिया है कि हम लोगों की कुर्सी छिन जायेगी। इस पर हमारे चीफ इंजीनियर एच. पी. सिन्हा का कहना था कि अगर मंत्री जी उनके एक्जीक्यूटिव इंजीनियर के बारे में यही राय रखते हैं तो इस काम को किसी दूसरे चीफ इंजीनियर के अधीन करवा दिया जाय। उन्होंने पश्चिमी कोसी नहर के मुख्य अभियंता अब्दुस समद साहब का नाम भी सुझाया था। मैंने भी मंत्री जी को कहा कि मेरी इस काम में कोई दिलचस्पी नहीं है और यह काम मैं निर्विकार भाव से कर रहा हूँ। मैं व्यक्तिगत तौर पर दरभंगा रहना पसन्द करूंगा। तब उन्होंने रुख बदला और कहा कि काम तो आप ही को करना पड़ेगा पर आप मुझे सीधे रिपोर्ट कीजिये। हो सकता है मुख्यमंत्री ने उन्हें यही हिदायत दी हो। हम लोगों ने जहाँ छोड़ दिया उसका काम वहीं पड़ा हुआ है। जो भी हो पूरे काम में किसी भी पक्ष का इंजीनियरों से कोई उलझाव नहीं हुआ था, हम लोग भी अपने काम से ही मतलब रखते थे।’’

किसी भी निर्माण कार्य के सामाजिक सरोकार से अपनी पेशेगत प्रतिबद्धताओं के कारण इंजीनियर उसी तरह निर्विकार रह सकते हैं जैसे डॉक्टर अपने मरीजों के साथ और वकील अपने मुवक्किलों के साथ किसी भावनात्मक लगाव में नहीं पड़ते। समाजकर्मियों या राजनीतिज्ञों से समाज इस तरह की अपेक्षाएं नहीं रखता और ऐसी विवादास्पद परिस्थितियों में या तो नेतृत्व का जन्म होता है या नेतृत्व के शून्य को भरने के लिए किसी व्यक्ति का उदय होता है। चानपुरा में इस शून्य को भरने के लिए स्थानीय विधायक युगेश्वर झा आगे आये।

Path Alias

/articles/injainaiyaraon-kaa-kaisai-kai-icachaa-anaicachaa-sae-vaasataa-nahain-haotaa

Post By: tridmin
×