ई-कचरे के कारण ही आज वायु प्रदूषण का स्तर पिछले 10 साल में तीन गुना बढ़ गया है। जिसके कम होने की सम्भावना फिलहाल नजर नहीं आ रही है। सरकार ई-कचरे के डिस्पोजल के मसले को जब तक गम्भीरता से नहीं लेगी और ई-कचरा कलेक्शन सेंटर नहीं खोले जाएँगे, तब तक कोई बात बनने वाली नहीं है। ई-कचरा डिस्पोजल के लिये उत्पादक कम्पनी को जवाबदेह बनाना होगा दुनिया भर की सरकारों द्वारा गठित इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से पूरी दुनिया के पर्यावरण में जो बदलाव हो रहे हैं, उससे मौसम का मिजाज तो संकट में पड़ ही जाएगा, करोड़ों लोगों के सामने रोजगार का संकट भी पैदा होगा।
औद्योगिक इकाइयों के अलावा पूरी दुनिया के इलेक्ट्रॉनिक सेक्टर से जो कचरा निकल रहा है, वह भी विश्व पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहा है। जबकि लगभग सभी देश इस कचरे के अधिक-से-अधिक हिस्से की रीसाइक्लिंग कर रहे हैं और सभी बेकार की चीजों का इस्तेमाल कर रहे हैं। बावजूद इसके करोड़ों टन ई-कचरा बाहर आ रहा है और विश्व पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि ई-कचरे की इतनी तेजी से हो रही बढ़त का कारण हमारी तेजी से बदलती जीवनशैली है। हमने अपने जीवन को अधिक-से-अधिक सुविधाजनक बनाने की कोशिश में बाजार में आ रहे नए-से-नए इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को अपनाना शुरू कर दिया है। आदमी को नई तकनीक के प्रति आग्रह और नशा दोनों बढ़ा है। नतीजा ये हो रहा है कि केवल भारत में ही इलेक्ट्रॉनिक कचरा प्रतिवर्ष दस फीसदी की दर से बढ़ रहा है।
इस कचरे से देश का पर्यावरण तो प्रभावित हो ही रहा है, इसने आदमी की सेहत को भी अपनी गिरफ्त में लेना शुरू कर दिया है। ई-कचरे के प्रदूषण से गुर्दे, यकृत और हृदय रोग से पीड़ित मरीजों की संख्या में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। इन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बनाने के दौरान बड़ी मात्रा में इलेक्ट्रॉनिक कचरा फैक्टरियों से निकलता है, जो सही और उचित डिस्पोजल व्यवस्था न होने के कारण महीनों फैक्टरियों में ही पड़ा रहता है और कर्मचारियों की सेहत को नुकसान पहुँचता है।
आज इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का बाजार परिवर्तन की तेज हवा में उड़ा जा रहा है। एक उपकरण बहुत तेजी से बासी हो जाता है और उसकी जगह कोई दूसरा उपकरण ले लेता है। पुराना उपकरण कुछ दिनों तक घर में या फैक्टरी में यों ही पड़ा रहता है, उसके बाद उसके डिस्पोजल की समस्या आ जाती है। टीवी, मोबाइल, कैमरे व उसके लेंस-बैटरीज, लैपटॉप, वॉशिंग मशीन, एयर कंडिशनर और कम्प्यूटर आदि ऐसे उपकरण हैं, जिनका ई-कचरा सबसे ज्यादा निकलता है और पर्यावरण के लिये हानिकारक है।
भारत में इस ई-कचरे को डम्प करके इसे नष्ट करने की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है। जबकि विदेशों में ई-कचरे के डिस्पोजल के लिये वैज्ञानिक व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। विदेशों में कोई ई-कचरा चाहे जहाँ नहीं फेंक सकता और न समुद्र में डाल सकता है। ऐसा करने पर कड़ी सजा का प्रावधान भी है। इसलिये वहाँ लोग खराब टीवी उस कम्पनी को दे देते हैं, जो ई-कचरे को डिस्पोज करती है। भारत में लगभग सभी शहरों में वोल्टेज प्रॉब्लम रहती है, इसीलिये अपने यहाँ इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जल्दी खराब होते हैं। ये बनवाए जाते हैं और खतरनाक होते जाते हैं।
भारत सरकार ने सन 2011 में ई-कचरे के बढ़ते खतरे के मद्देनजर ई-कचरे के मैनेजमेंट और हैंडलिंग के लिये नियम बनाए और उन्हें लागू भी किया, लेकिन नियमों के पालन में सख्ती न बरते जाने के कारण किसी ने इसे गम्भीरता से नहीं लिया। नतीजतन ई-कचरा यत्र-तत्र सर्वत्र फेंका जा रहा है। पर्यावरणविदों का कहना है कि विदेशों की तुलना में भारत अभी सामान्य कचरा प्रबन्धन के मामले में बहुत पीछे है। जबकि ई-कचरे के साथ कैसे निबटना है, उस चिन्ता को लेकर सरकार और उसकी मशीनरियों को होश तक नहीं है।
राज्यसभा के आदेश पर इस मुद्दे पर कई शोध करवाए गए। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 2005 में देश में प्रतिदिन 1.47 लाख टन ई-कचरा निकलता था, जबकि 2013 में 850 हजार टन ई-कचरा निकला। दुखद ये है कि इस ई-कचरे का आज पाँच फीसदी का ही निस्तारण हो पा रहा है।
आँकड़े बताते हैं कि भारत सरकार हर साल 60 लाख टन ई-कचरा आयात करती है। कई बार हमने जो इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद आयात किये, वे बाद में कूड़ा साबित हुए। नतीजा ये हुआ कि इस कचरे को ठिकाने लगाने में ही कम्पनियों को खासा खर्च करना पड़ा। पिछले 15 वर्षों से हमारे देश में चाइनीज इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद की माँग बढ़ गई है। अरबों रुपए के प्रोडक्ट्स आयात किये जा रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार, करोड़ों रुपए के इलेक्ट्रॉनिक खिलौने ही आयात हो रहे हैं।
डिजिटलीकरण के दौरान कई अरब रुपए के चाइनीज मेक सेट टॉप बॉक्स मँगाए गए, जो 6 महीने भी नहीं चले। चाइनीज प्रोडक्ट के बारे में ये बात प्रचलित है कि उनकी न तो आयु होती है और न गुणवत्ता ही। वन टाइम यूज के लिये बनाए गए ये प्रोडक्ट कुछ ही दिनों में खराब हो जाते हैं, उसके बाद उनका ई-कचरा देश के किसी कोने अतरे में जमा होता रहता है। इस ई-कचरे में काम की चीजें इतनी कम होती हैं कि इनकी रीसाइक्लिंग पर पैसा खर्च करने पर भी कुछ नहीं मिलता। जाहिर है कि यह ई-कचरा एक बोझ बन जाता है और पर्यावरण को सीधे-सीधे या परोक्ष में नुकसान पहुँचाता है।
गौरतलब है कि सारे-के-सारे ई-कचरे रिसाइक्लिंग सम्भव नहीं होती। कचरा निकलता ही है इसका डिस्पोजल एक मुसीबत बन जाती है। इस कचरे को न नदी या समुद्र में बहा सकते हैं और न जमीन में गाड़ सकते हैं। इसे जला भी नहीं सकते, क्योंकि इसके जलने पर जहरीली गैस निकलती है, जिससे वायु प्रदूषण होता है। इस तरह हर साल करोड़ों टन ई-कचरा जमीन पर पड़ा रहता है और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता रहता है।
इस कचरे को रिसाइक्लिंग करने वाली यूनिट के एक अधिकारी ने बताया कि हम स्थानीय स्तर पर ई-कचरा जमा करने वाले कबाड़ियों से माल खरीदते हैं और इसमें से काम की चीजों की छँटाई कराते हैं। ये काम एक्सपर्ट करते हैं। जिन्हें पता होता है कि किस कचरे में क्या काम की चीज है और कितना कचरा है। इस काम में पैसा तो खर्च होता ही है, हमें बड़ी जगह की भी जरूरत होती है। अच्छा और बुरा दोनों ही तरह के माल को हम खुले आकाश के नीचे नहीं छोड़ सकते। ई-कचरे से भी छँटाई के बाद ई-कचरा निकलता है और उसका डिस्पोजल एक मुसीबत होती है।
अगर 14 इंच के किसी टीवी के स्क्रीन ट्यूब को रिसाइकिल किया जाये तो करीब दो किलोग्राम सीसा मिलता है। इसके अलावा ई-कचरे से रिसाइक्लिंग के बाद आर्सेनिक, बेरियम, कोबाल्ट, निकेल, क्रोमियम, कैडमियम, जस्ता जैसे जहरीले पदार्थ निकलते हैं, जो अगर जमीन के भीतर या बाहर यों ही छोड़ दिये जाएँ तो पर्यावरण और जीवन को इतना नुकसान पहुँचा सकते हैं कि जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। इतने जहरीले ई-कचरे को ठिकाने लगाने की भी हमारे देश में कोई सुनिश्चित वैज्ञानिक व्यवस्था नहीं है।
ई-कचरा इधर-उधर या नदियों किनारे डम्प किया जाता है या चोरी-छिपे नदियों में फेंका जाता है। शहर के बाहर ई-कचरे को सामान्य कचरे के साथ डम्प किये जाने के कारण कोबाल्ट-60 के विकिरण के कारण दिल्ली के एक औद्योगिक क्षेत्र में कुछ लोगों की मौत हो गई थी। कूड़ा बीनकर जीविकोपार्जन करने वाले लोग ई-कचरे के खतरे से परिचित नहीं हैं। इनके लिये ई-कचरे की कीमत प्लास्टिक और टूटी चप्पल से अधिक नहीं है, जबकि खतरे कई हजार गुना ज्यादा हैं।
ई-कचरे के कारण ही आज वायु प्रदूषण का स्तर पिछले 10 साल में तीन गुना बढ़ गया है। जिसके कम होने की सम्भावना फिलहाल नजर नहीं आ रही है। यूरोप में जब यह खतरा बढ़ने लगा, तब वहाँ की सरकार ने एक कानून बनाया कि ई-कचरा हर हाल में उत्पादक कम्पनी को वापस लेना होगा और उसके एवज में ग्राहक को उचित मूल्य चुकाना होगा। सरकार ने ई-कचरे के डिस्पोजल की जिम्मेदारी उत्पादक पर डाल दी। भारत में भी इस तरह का कानून है, लेकिन इसकी जानकारी न उत्पादक के पास है, न ग्राहक के पास। जानकारी के अभाव में ये तय कर पाना मुश्किल होता है कि ई-कचरे का डिस्पोजल किसे करना है।
भारत में ई-कचरे के डिस्पोजल के सिलसिले में कोई कम्पनी किस नियम का पालन कर रही है, इसकी कोई जानकारी कम्पनी के कस्टमर केयर के पास भी नहीं होती। फिलहाल कुछ कम्पनियाँ बैटरी, मोबाइल और कम्प्यूटर आदि वापस लेने लगी हैं, लेकिन ई-कचरे के नाम पर इतनी कोशिश काफी नहीं है। ई-कचरा किसी भी दशा में कबाड़ी को नहीं बेचा जाना चाहिए। कबाड़ी न तो रिसाइक्लिंग कर सकता है और न उसे ई-कचरा मैनेजमेंट के बारे में कोई जानकारी होती है।
ई-कचरे से कबाड़ी अपने काम की चीजें चुनकर बाकी सब-कुछ फेंक देता है। जो यहाँ वहाँ ढेर में इकट्ठा होता रहता है और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है। सरकार के कचरा मैनेजमेंट से जुड़े नियमों की न उसे जानकारी होती है और न परवाह ही। सरकार ने इसके अन्तर्गत बनाए नियमों में साफ कर दिया है कि हर शहर में ई-कचरे के लिये कलेक्शन सेंटर बनाए जाएँगे, जिनके हेल्पलाइन नम्बर सार्वजनिक किये जाएँगे। कम्पनियों को स्पष्ट आदेश दिये गए हैं कि वे अपने उत्पादों में सीसा, पारा, कैडमियम, हेक्सावेलेट क्रोमियम जैसे तत्वों का इस्तेमाल नहीं करेंगे। लेकिन क्या कानून बना देने से इस देश में कोई व्यवस्था सुधर जाती है। लोग अपनी आदतें बदल देते हैं।
सरकार ई-कचरे के डिस्पोजल के मसले को जब तक गम्भीरता से नहीं लेगी और ई-कचरा कलेक्शन सेंटर नहीं खोले जाएँगे, तब तक कोई बात बनने वाली नहीं है। ई-कचरा डिस्पोजल के लिये उत्पादक कम्पनी को जवाबदेह बनाना होगा। उत्पादक कम्पनियों को बेकार हो गए उपकरणों को वापस लेना होगा और 180 दिन के भीतर उसे रिसाइकिल करना होगा।
भारत में ई-कचरा डिस्पोजल की कोई व्यवस्था अभी तक नहीं की गई है। यह खतरा अभी भी स्टोर्स या घरों के अंधेरे में कैद रहता है। ई-कचरे के बढ़ते संकट को देखते हुए झारखण्ड के जमशेदपुर स्थित राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला के धातु निष्कर्षण विभाग ने ई-कचरे में छुपे सोने को खोजने की सस्ती तकनीक खोज ली है। इसके माध्यम से एक टन ई-कचरे से 350 ग्राम सोना निकाला जा सकता है।
जानकारी है कि मोबाइल फोन पीसीबी बोर्ड के दूसरी तरफ कीबोर्ड के पास सोना लगा होता है। साइनाइड थायोयूरिया जैसे रासायनिक पदार्थ का इस्तेमाल कर यह सोना निकाला जाता है। जाहिर है, ई-कचरा सिर्फ कचरा नहीं है। सोने की खान भी है। क्यों न इससे जुड़े मसलों को गम्भीरता से लिया जाये।
TAGS |
what is e waste management, e-waste definition, effects of e-waste on environment, e waste problems, e waste introduction, e waste in india, importance of e waste, e waste ppt, What is meant by e waste?, Why e waste is a problem?, Why is electronic waste hazardous?, Where does all the electronic waste go?, How can we reduce electronic waste?, Why is it important to have e waste?, How much e waste is there in the world?, What is e -< waste?, Why do we need to recycle e waste?, What is the impact of e waste on the environment?, What exactly is e waste and why does it cause problems?, How much electronic waste is recycled?, What is an example of reducing?, How can we reduce waste?, What is meant by medical waste?, What is a household hazardous waste?, Which country produces the most e waste per year?, Can a cell phone be recycled?, Are batteries electronic waste?, What is the meaning of Computer Recycling?, How do I wipe my computer?, How do you clear a computer to sell?, What are the effects of e waste on the environment?, How does waste affect people's health?, How e waste is harmful to the environment?, What chemicals are found in e waste?, How much e waste could be recycled in the world?, What is an example of reducing?, How can we reduce waste?, What is meant by medical waste?, What is a household hazardous waste?, Which country produces the most e waste per year?, Can a cell phone be recycled?, Are batteries electronic waste?, What is the meaning of Computer Recycling?, How do I wipe my computer?, How do you clear a computer to sell?, What are the effects of e waste on the environment?, How does waste affect people's health?, How e waste is harmful to the environment?, What chemicals are found in e waste?, How much e waste could be recycled in the world?, Central Pollution Control Board, central pollution control board recruitment 2017, central pollution control board guidelines, central pollution control board address, central pollution control board chairman, state pollution control board, central pollution control board recruitment 2018, cpcb result, functions of state pollution control board, e-waste disposal, e waste disposal methods, e waste disposal methods in india, e waste disposal methods pdf, e waste introduction, e waste disposal in india, examples of e-waste, e-waste definition, effects of e-waste on environment, What is electronic waste disposal?, Why is e waste harmful to the environment?, Why is electronic waste hazardous?, How can we reduce electronic waste?, What is an example of e waste?, Why is it important to have an e waste recycling program?, What are the effects of e waste on the environment?, Why do we need to recycle e waste?, What can e waste cause?, What are the toxic chemicals in computers?, What is an example of reducing?, Why electronic waste is a problem?, e-waste effect on health, how does e-waste affect people's health, e waste effects on environment, e waste causes and effects, effects of electronic waste pollution, harmful effects of e waste on environment, how e-waste is harmful to your health ppt, how does e-waste affect people's health pdf, diseases caused by e waste, How does waste affect people's health?, What is the impact of e waste on the environment?, How much e waste is there in the world?, How does the waste affect the environment?, How does pollution affect people's lives?, What are the effects of e waste on the environment?, What is the importance of e waste management?, Why e waste is a problem?, Which country produces the most e waste per year?, What are the negative effects of littering?, How does litter affect the earth?, How much does pollution affect the environment?, Why is it bad to pollute the air?, How e waste is harmful to the environment?, What can be done to reduce e waste?, What exactly is e waste and why does it cause problems?, Why is electronic waste hazardous?, Why is it important to have an e waste recycling program?, What is e -< waste?, What are some examples of e waste?, How much e waste could be recycled in the world?, effect of technology on human health, negative effects of digitization, impact of digitalisation, impact of digitization on society in general, impact of digitization in india, impact technology mental health, impact of digitization on business, positive effects of technology on mental health, digitalization effects on human health, e waste recycling business model, e waste recycling plant cost, e waste recycling business profitable, e waste recycling business in india, how to make money from e waste, effects of electronic waste pollution, e waste causes and effects, how do e-waste companies make money, e waste business for sale, e-waste business plan ppt, e waste recycling business profitable, e waste business for sale in india, e waste recycling business plan pdf, how to start waste recycling business in india, how do e-waste companies make money, namo e waste. |
/articles/ilaekataraonaika-kacaraa-laabha-haanai-kae-pahalauu