वर्तमान में फास्फोरस और पोटेशियम की आसमान को छूने वाली लागते कृषि को अस्थिर बना रही हैं। इसी संबंध में हाल ही में कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, बंगलुरु में मानव मूत्र के उपयोग पर एक पीएच.डी. हुई है। यह ईकोलॉजिकल सेनिटेशन पर भारत की पहली पीएचडी है। इसका संबंध खाद शौचालय के आंदोलन से है जो मानव अपशिष्ट से निपटने का ईको-फ्रैंडली समाधान प्रदान करता है।
श्रीदेवी जी. ने यह शोध प्रबंधन- जीकेवीके., कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर से मृदा विज्ञान विभाग के प्रो. श्रीनिवासमूर्ति के दिशानिर्देशन में किया, इस शोध प्रबंध के लिए वित्तीय सहायता अर्घ्यम् द्वारा उपलब्ध कराई गई। इस शोध के तहत मक्का, केला और मूली में मानव मूत्र का प्रयोग किया गया और अन्य पौधों पर अतनी ही मात्रा में रासायनिक फर्टीलाइजर का प्रयोग किया गया तत्पश्चात दोनों में तुलना करके यह पाया गया कि रासायनिक खाद की बजाय मानवीय अपशिष्ट से ज्यादा अच्छी फसल हुई।
किसान के लिए इसकी लागत रासायनिक फर्टीलाइजर की अपेक्षा कम पाई गई। मिट्टी की गुणवत्ता पर मूत्र में सोडियम की अधिकता की संभावना से निपटने के लिए जिप्सम का प्रयोग किया गया।Tags-Ecosan, Ecological Sanitation, Fertilizer
श्रीदेवी जी. ने यह शोध प्रबंधन- जीकेवीके., कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर से मृदा विज्ञान विभाग के प्रो. श्रीनिवासमूर्ति के दिशानिर्देशन में किया, इस शोध प्रबंध के लिए वित्तीय सहायता अर्घ्यम् द्वारा उपलब्ध कराई गई। इस शोध के तहत मक्का, केला और मूली में मानव मूत्र का प्रयोग किया गया और अन्य पौधों पर अतनी ही मात्रा में रासायनिक फर्टीलाइजर का प्रयोग किया गया तत्पश्चात दोनों में तुलना करके यह पाया गया कि रासायनिक खाद की बजाय मानवीय अपशिष्ट से ज्यादा अच्छी फसल हुई।
किसान के लिए इसकी लागत रासायनिक फर्टीलाइजर की अपेक्षा कम पाई गई। मिट्टी की गुणवत्ता पर मूत्र में सोडियम की अधिकता की संभावना से निपटने के लिए जिप्सम का प्रयोग किया गया।Tags-Ecosan, Ecological Sanitation, Fertilizer
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