हिमालय बचाओ आन्दोलन-घोषणापत्र

हिमालय बचाओ आन्दोलन-घोषणापत्र
हिमालय बचाओ आन्दोलन-घोषणापत्र

आक्रमण विकास नीति ने हिमालय में 'प्रकृति एवं मानव' दोनों के लिए जिन्दा रहने का संकट पैदा कर दिया है। इससे केवल इस क्षेत्र में रहने वाले ही त्रस्त नहीं हैं, बल्कि इससे भी दस गुने लोगों पर हिमालय की तबाही का विनाशकारी प्रभाव, बाढ़, भूक्षरण और सूखे के रूप में पड़ रहा है।

यह महान् पर्वत कई देशों की सीमाओं को छूता है और एक बड़े भू-भाग की जलवायु का नियमन करता है। भौतिक समृद्धि के स्रोत के अलावा यह सांस्कृतिक प्रेरणा एवं भावात्मक एकता का प्रतीक है। सम्पूर्ण मानव जाति के लिए हिमालय आध्यात्मिक प्रेरणा और शान्ति का स्त्रोत रहा है। आज यह परिस्थितिकीय, संकट, मानवीय क्लेश और इनके फलस्वरूप असन्तोष और अशांति का केन्द्र बन गया है। यह जागतिक चिन्ता का विषय है।

भोगवादी सभ्यता की बुनियाद पर आधारित नीतियों ने गम्भीर रूप से घायल हिमालय के घावों को भरने के बजाय उसकी जल, जंगल और खनिज सम्पदाओं का शोषण करने की गति को तीव्र कर दिया है। इसका प्रतीक भागीरथी पर बनने वाला भीमकाय टिहरी बांध है। इस बांध का पिछले 20 वर्षों से सतत् विरोध हो रहा है। यह परिस्थितिकीय तबाही लाने वाला है। इसलिए आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और परिस्थितिकीय मूल्यों की रक्षा के लिए इसे तत्काल बन्द करने का हम हर सम्भव प्रयास करेंगे।

हिमालय में हर प्रकार की कई प्रस्तावित बाँध परियोजनाएं हमारी चिन्ता का विषय हैं। इनमें से कुछ पर तो अनुसन्धान चल रहा है। ऐसी सभी योजनाओं का उद्देश्य यहाँ के परिवेश को बिगाड़ कर लोगों को उजाड़ कर, बड़े उद्योगों, नगरों और सम्पन्न क्षेत्रों को बिजली, पानी (वह भी क्षणिक लाभ के लिए) पहुँचाना है। इस गरीब क्षेत्र से जल जैसे जिन्दा रहने के अनिवार्य साधनों का निर्यात क्षेत्रीय असन्तुलन को बढ़ाने वाला एवं अन्यायपूर्ण कदम है। यह एक कानूनी डकैती है जिसे रोकना हर नागरिक का पहला कर्तव्य है।

विकास के नाम पर चलने वाली घातक प्रवृत्तियों-वनों का व्यापारिक शोषण, खनन और धरती को डुबाने व लोगों को उजाड़ने वाले बांधों, धरती को कम्पायमान करने वाले भयंकर यान्त्रिक विस्फोटों, विलासपूर्ण पर्यटन के लिए पंचतारा होटलों, शराब और लाटरी वाली संस्कृति और बहुमंजिली इमारतों के निर्माण जैसी घातक प्रवृत्तियों के कारण हिमालयवासियों के सामने जिन्दा रहने का संकट पैदा हो गया है। हम हिमालयवासियों, हिमालय प्रेमियों और मानव-जीवन की गरिमा पर विश्वास रखने वालों का-अपने जिन्दा रहने के अधिकार की रक्षा के लिए, इनका डटकर विरोध करने के लिए आह्वान करते हैं। उत्तरकाशी का भूकम्प हिमालय के साथ छेड़छाड़ करने के लिए एक चेतावनी थी जिसे अनसुना कर दिया गया है।

मरणासन्न हिमालय की रक्षा के लिए नयी और दीर्घकालीन नीति की आवश्यकता है। इसके घावों को भरने तथा यहाँ के निवासियों के विकास के लिए तत्काल निम्नलिखित कदम उठाये जायें:-

हर नदी-नाले पर उपजाऊ भूमि, जंगल तथा बस्तियों को डुबाये बिना जल-विद्युत का उत्पादन-जिससे पानी को ऊँचाई के स्थान पर पहुंचाने एवं यातायात को सुगम बनाने के लिए रज्जुमार्गों के लिए बिजली, स्थानीय तौर पर और केन्द्रीय ग्रिड पर निर्भर रहे बिना उपलब्ध हो सके। बड़ी परियोजना से पैदा होने वाली बिजली का 20 प्रतिशत जलागम स्तर ग्राम सभाओं, ब्लॉक व (जो उत्पादन प्रक्रियामें लगे पांच-तत्वों-भूमि, श्रम, पूंजी, व्यवस्था एवं जोखिम में बराबर वितरण के बराबर है) जिला परिषद् को अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए मुफ्त मिले। इस दिशा में मनेरी-भाली, डाकपत्थर, इछाड़ी आदि परियोजनाओं से यह लाभांश पाने का जनपदों को हक है।

सभी प्रकार की अब तक असिंचित ढालदार भूमि का, चाहे वह संरक्षित वन हो या सामूहिक अथवा निजी वन हो, भूमि उपयोग सर्वेक्षण कर पानी की व्यवस्था की जाये जिससे फल, चारा व रेशा प्रजाति के पौधों के रोपण की बृहद योजना बने। वृक्षों के पैदावार देने तक लोगों को इनको लगाने व देखभाल के लिए रोजगार दिया जाये। ये सारे वृक्ष लोगों की निजी सम्पत्ति होंगे और अनन्त काल तक उन्हें रोजगार देकर अर्थव्यवस्था को समृद्ध बनायेंगे। मैदानी क्षेत्रों के लिए पहाड़ों से निरन्तर उपजाऊ मिट्टी मिलेगी। नदियों का बहाव स्थिर होगा और जल समस्या हल होगी।तीर्थ-यात्रियों, प्रकृति-दर्शन एवं शांति की खोज में आने वाले लोगों की सुविधा के लिए पहाड़ी शैली में छोटे-छोटे आवास-गृह बनाने के लिए स्थानीय लोगों को उदार सहायता प्रदान की जाये। सौंदर्य-स्थलों का संरक्षण और उनकी ओर जाने वाले पैदल मार्गों का सुधार एवं रख-रखाव किया जाये।

खनन, सड़क-निर्माण तथा टिहरी बांध के मलवे से ध्वस्त ढलानों एवं भूमि का सुधार किया जाये। हम एक ऐसी हिमालय नीति की घोषणा करते हैं जिसमें हिमालय का प्रेरणादायी स्वरूप कायम रहे। इस महान् पर्वत श्रृंखला के घाव भरें, यहाँ की जनता का आर्थिक विकास हो और हिमालय की सम्पदाओं का इस प्रकार उपयोग हो, जिससे यहाँ की नाजुक परिस्थिति को क्षति न पहुँचे और भावी पीढ़ियों को उनका लाभ निरन्तर मिलता रहे। इस नीति का उद्देश्य इस प्रकार होः

  1. हिमालय क्षेत्र को वहाँ के स्थायी निवासियों, आध्यात्मिक साधकों तीर्थ-यात्रियों, शांति व प्रकृति-दर्शन के लिए आने वाले सैलानियों के रहने योग्य स्थान रखना।
  2.  क्षेत्र के आर्थिक स्रोतों के उपयोग में आत्मनिर्भरता हो। संसाधनों के अविवेकपूर्ण दोहन और निर्यात (जैसे खनन, वनों की कटाई, बाँधों का निर्माण आदि) पर रोक।
  3.  कई आर्थिक गतिविधियों, खासतौर से प्रकृति दर्शन के निमित्त पर्यटन के लिए स्थानीय स्थलाकृति को बनाये रखना ।
  4.  हिमालय-क्षेत्र में विविध प्रकार की वनस्पति और जन्तु- प्रजातियाँ हैं जिनमें कुछ दुर्लभ हो गयी हैं। उन सबकी जैविक विविधता कायम रखना।
  5.  स्थानीय संस्थाओं के विकास के लिए अधिक स्वायत्तता जो प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, उपयोग, क्षमता और सातत्य तथा संस्कृति के विकास के लिए अनिवार्य है। अतः उत्तराखण्ड राज्य की स्थापना हो। पहाड़ों की मुख्य कार्यवाही शक्ति महिलाएं हैं। पिछली आठ पंचवर्षीय योजनाओं में महिलाओं की कष्ट मुक्ति के लिए कोई भी कार्यक्रम नहीं हुए हैं, इसलिए उत्तराखण्ड आन्दोलन तथा प्रत्येक राजनैतिक पक्ष और उम्मीदवार हिमालय क्षेत्र में निम्नलिखित कार्यक्रमों का प्राथमिकता के आधार पर क्रियान्वित करने का लिखित वचन दें।

(1) प्रत्येक गाँव के निकट घास (चारा), लकड़ी (ईंधन) और पानी सुलभ कराने की व्यवस्था होगी,
(2) अनिवार्यतः शराब बन्दी होगी, और
(3) पारिवारिक जीवन की बहाली के लिए, धार ऐंच पाणी, डाल पर डाला। बिजली वणावा, खाला-खाला।

(पहाड़ों की चोटी पर पानी, ढालों पर वृक्ष और हर नाले हसे बिजली बने) को सार्थक करें।

हम इस घोषणा-पत्र को अपने-अपने चुनाव घोषणापत्रों में अपनाने के लिए राजनीतिक दलों से मांग करते हैं। इसके अलावा सार्वजनिक जीवन में विश्वसनीयता को बनाये रखने के लिए प्रधानमंत्री टिहरी बांध परियोजना की स्वतंत्र समीक्षा कराने के वचन को तत्काल पूरा करें।(13, 14, 15 मई 1992 को भागीरथी के किनारे टिहरी बांध-स्थल के निकट हुए सम्मेलन का घोषण-पत्र जिसमें हिमालय क्षेत्र और देश के कई भागों से एक सौ से अधिक सक्रिय आन्दोलनकारियों, सार्वजनिक कार्यकत्ताओं एवं बुद्धिजीवियों ने भाग लिया, पुनः 25, 26 नवम्बर, 1995 को खाड़ी, जाजल में संशोधित एवं 15, 16 फरवरी को कौसानी में उत्तराखण्ड सर्वोदय परिवार की गोष्ठी में स्वीकृत)

स्रोत :- हिमालय बचाओ आन्दोलन गंगा-हिमालय कुटी

पता :- हिमालय बचाओ आन्दोलन गंगा-हिमालय कुटी, टिहरी, पिन 249001, फोन नं. 01376-84666, एवं फैक्स 01376 84566

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Post By: Shivendra
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