हरनंदी में प्रदूषण रोकने में असमर्थ अफसरों पर केस दर्ज हो 

हरनंदी में प्रदूषण रोकने में असमर्थ अफसरों पर केस दर्ज हो 
हरनंदी में प्रदूषण रोकने में असमर्थ अफसरों पर केस दर्ज हो 

हरनंदी में प्रदूषण को रोकने में नाकाम जिम्मेदार अधिकारी अब सीधे कानूनी कार्रवाई की जद में आएंगे। राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) को इसके निर्देश दिए हैं।एनजीटी ने आदेश में कहा कि हरनंदी के प्रवाह क्षेत्र में आने वाले सात जिलों के स्थानीय निकायों अभिष्ट कुसुम गुप्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने यूपीपीसीबी के सचिव को दिए निर्देश के प्रभारी अधिकारी और प्रदूषण फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों के स्वामियों पर जल अधिनियम, 1974 के तहत आपराधिक मामला दर्ज हो। यूपीपीसीबी के सचिव को कार्रवाई कर अगले दो माह में रिपोर्ट देने के निर्देश दिए हैं। यह हरनंदी में प्रदूषण रोकने को लेकर अब तक का सबसे सख्त कदम माना जा रहा है।

हरनंदी सहारनपुर से निकलकर मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद व गौतमबुद्ध नगर होते हुए यमुना में मिलती है। एनजीटी ने नदी में लगातार जारी प्रदूषण के लिए स्थानीय निकायों को जिम्मेदार मानते हुए साफ किया है कि निकायों द्वारा तैयार की गई कार्ययोजना महज कागजों तक सीमित है।अधिकारी अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहे हैं। सात जिलों में 453 उद्योगों पर कार्रवाई में मात्र 1.83 करोड़ रुपये जुर्माना लगाया गया,लेकिन वसूली में सख्ती नहीं बरती गई। एनजीटी ने स्थानीय निकायों के प्रभारी अधिकारियों पर जल प्रदूषण अधिनियम,1974 के तहत कार्रवाई करने को कहा है। अधिनियम के तहत नदी, नाले और कुएं को प्रदूषित नहीं किया जा सकता है।हरनंदी में प्रदूषण पर अधिकारी अपने वैधानिक और संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहे हैं। अधिकारियों की तरफ से सख्त कार्रवाई से लेकर जुर्माना राशि वसूलने में लापरवाही बरती गई है। यूपीपीसीबी की तरफ से एनटीजी को दी गई रिपोर्ट के अनुसार 310 सकल उद्योग हरनंदी को प्रभावित कर रहे हैं।

सीवेज लोड के अनुसार सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) भी पर्याप्त नहीं हैं। सात जिलों में 453 उद्योगों पर कार्रवाई में मात्र 1.83 करोड़ रुपये जुर्माना लगाया गया, लेकिन वसूली में सख्ती नहीं बरती गई। एनजीटी ने स्थानीय निकायों के प्रभारी अधिकारियों पर जल प्रदूषण अधिनियम, 1974 के तहत कार्रवाई करने को कहा है। अधिनियम के तहत नदी, नाले और कुएं को प्रदूषित नहीं किया जा सकता है। ऐसा करने पर डेढ़ से लेकर छह वर्ष तक की सजा और जुर्माना की सजा का प्रविधान है। यमुना में मिलने वाली हरनंदी लंबे समय से भयावह प्रदूषण से ग्रसित है। इसका मुख्य कारण औद्योगिक इकाइयों से गिरने वाला दूषित जल है। तमाम आदेशों के बावजूद नदी की सेहत में सुधार नहीं हो रहा है।

स्रोत -अमर उजाला 

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Post By: Shivendra
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