हृदय का सौंदर्य

नदी की विस्तृत वेला शांत
अरुण मंडल का स्वर्ण-विलास;
निशा का नीरव चंद्र-विनोद,
कुसुम का हँसते हुए विकास।

एक से एक मनोहर दृश्य,
प्रकृति की क्रिड़ा के सब छंद;
सृष्टि में सब कुछ है अभिराम,
सभी में है उन्नति या ह्रास।

बना लो अपना हृदय प्रशांत,
तनिक तब देखो वह सौंदर्य;
चंद्रिका से उज्जवल आलोक,
मल्लिका-सा शोभन मृदुहास।

अरुण हो सकल विश्व अनुराग,
करुण हो निर्दय मानव चित्त;
उठे मधु लहरी मानस में,
कूल पर मलयज का हो वास।

‘झरना’ में संकलित

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