हरियाणा में गहरा रहा गिरते भूजल स्तर का संकट

Groundwater
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पानी की भरमार वाली कुरुक्षेत्र जिले के लाडवा, शाहबाद और थानेश्वर के 1024 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले 273 गांवों के 19797 नलकूपों में से 9877 नलकूपों ने काम करना बंद कर दिया है। यानी यहां आधे से अधिक नलकूप नकारा हो गए हैं। भूमिगत जल स्तर की स्थिति करनाल में भी बेहद पतला है। यहां के घरौंडा और नीलोखेड़ी ब्लॉक के 940 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले 124 गांवों में 1291 नलकूपों ने काम करना बिल्कुल बंद कर दिया है। यह संख्या सिर्फ 124 गांवों के नलकूपों की है। हरियाणा में भूमिगत जल की स्थिति खतरे की घंटी को पार कर गई है। जल प्रबंधन विशेषज्ञों का कहना है कि यदि भूमिगत जल की निकासी इसी प्रकार जारी रही तो खेतों की प्यास बुझना तो दूर हरियाणावासी पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस जाएंगे। हरियाणा के प्रसिद्ध प्रबुद्ध जल वैज्ञानिक एसपी गुप्ता तो पानी की राशनिंग तक की बात करते हैं।

बेहद गंभीर बात यह है कि हरियाणा में पानी का संकट बढ़ा तो इससे राज्य की खेती का पूरी तरह से कबाड़ा हो जाएगा। समाजशास्त्री तो यहां तक कहते हैं कि अगर हरियाणा में पानी की कमी हुई तो लोग नहर काटनी शुरू कर देंगे और दिल्ली जैसे प्रांतों को पीने के पानी के लिए तरसना होगा।

राज्य सरकार की अपनी ही एक एजेंसी द्वारा किए गए अध्ययन में तो राज्य के अंबाला, गुड़गांव, कैथल, करनाल, कुरुक्षेत्र, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, यमुनानगर और पानी जिलों को भूमिगत जल निकासी की दृष्टि से डार्क जिले घोषित किया गया है।

राज्य के 19 जिलों में से 9504.32 मिलियन क्यूबिक पानी में से 7081.63 मिलियन क्यूबिक पानी की निकासी कर ली गई है और अब सिर्फ 2422.69 क्यूबिक पानी ही बचा है। अध्ययन के मुताबिक 74 प्रतिशत भूमिगत जल की निकासी की जा चुकी है। भूमिगत जल की दृष्टि से भिवानी, हिसार और फतेहाबाद की स्थिति भी सुखद नहीं है।

रोहतक जिले के कुछ गांवों के साथ-साथ झज्जर व सोनीपत में भी पानी का संकट लगातार गहरा रहा है। सोनीपत में पानी की निकासी इसी प्रकार जारी रही तो वहां भी पानी का घोर संकट पैदा हो जाएगा। यहां के राई, मुंडलाना और गन्नौर ब्लॉक में भूमिगत जल की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।

विशेषज्ञों के मुताबिक हरियाणा के धान उत्पादक जिलों में पानी सबसे बड़ा संकट खड़ा होने वाला है। धान उत्पादक जिलों अंबाला, करनाल, कुरुक्षेत्र, कैथल, पानीपत, सोनीपत, सिरसा, जींद और हिसार में भूमिगत जल की निकासी 85 प्रतिशत से अधिक हो चुकी है तो दिल्ली के साथ सटे गुड़गांव में पानी की कमी, बढ़ती जनसंख्या और औद्योगिकीकरण के कारण वहां भी 85 प्रतिशत से अधिक जल की निकासी की जा चुकी है।

राज्य सरकार की एजेंसी ने अपने अध्ययन को काफी गुप्त तरीके से किया है और इसे मीडिया से लगातार बचाए रखा। अध्ययन में राज्य के 11 जिलों को चुना गया। इन जिलों के 11 खंडों में 10550 वर्ग किलोमीटर में फैले 2221 गांवों के लोगों से संपर्क किया गया और वैज्ञानिक तरीकों से भूजल पर अध्ययन किया गया।

अध्ययन में जिन 11 जिलों को चुना गया। उनमें राज्य के करनाल, कुरुक्षेत्र, यमुनानगर, पानीपत और अंबाला ऐसे जिले भी थे जहां पानी की पर्याप्त भंडार है। यह अलग बात है कि वहां भी भूमिगत जल के दोहन की गति खतरे की घंटी को पार कर रही है। पानीपत, फरीदाबाद, गुड़गांव, रेवाड़ी, भिवानी और महेंद्रगढ़ में तो भूजल स्तर की स्थिति अत्यंत विस्फोटक है।

दक्षिणी हरियाणा के विषयों पर गहन अध्ययन करने वाले दैनिक भास्कर के नारनौल प्रभारी धर्मनारायण शर्मा का कहना है कि अगर महेंद्रगढ़ और रेवाड़ी जिले के कुछ गांवों में पानी की स्थिति यही रही तो आगामी कुछ वर्षों में इन दोनों जिलों में पानी को लेकर गृहयुद्ध जैसी स्थिति पैदा हो जाएगी।

महेंद्रगढ़ जिले के 1940 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फेले 19596 नलकूपों में से 7002 नलकूपों ने काम करना बंद कर दिया है। वस्तु स्थिति तो इससे भी बहुत आगे हैं। इस जिले में 10,000 से अधिक नलकूप पूरी तरह फेल हो गए हैं।

अंबाला जिले के तीन ब्लॉक बराड़ा, नारायणगढ़ और शहजादपुर के 407 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले 52 गांवों के 11729 नलकूपों में से 1009 नलकूप गिरते भूजल स्तर के चलते खत्म हो गए हैं। यहां भी यह आंकड़ा काफी आगे है।

पानी की भरमार वाली कुरुक्षेत्र जिले के लाडवा, शाहबाद और थानेश्वर के 1024 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले 273 गांवों के 19797 नलकूपों में से 9877 नलकूपों ने काम करना बंद कर दिया है। यानी यहां आधे से अधिक नलकूप नकारा हो गए हैं।

भूमिगत जल स्तर की स्थिति करनाल में भी बेहद पतला है। यहां के घरौंडा और नीलोखेड़ी ब्लॉक के 940 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले 124 गांवों में 1291 नलकूपों ने काम करना बिल्कुल बंद कर दिया है। यह संख्या सिर्फ 124 गांवों के नलकूपों की है।

भिवानी जिले में भूमिगत जल स्तर की स्थिति बेहद दर्दनाक है। यहां के 948 से अधिक नलकूप खत्म हो गए हैं। वैसे यह आंकड़े काफी आगे हैं।

433 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के 163 गांवों के इतने नलकूपों के नाकारा हो जाने से बाकी जिले की स्थिति का अवलोकन सहजता से किया जा सकता है। यानी यहां स्थिति अत्यंत खतरनाक है। यहां अमर उजाला के प्रभारी धर्मेंद्र यादव के अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है कि बाढ़ड़ा और लोहारु क्षेत्र में पानी का संकट बहुत गहराया है।

पानी की कमी वाले रेवाड़ी में बावल, जाटूसाना, खोल, नाहड़ और रेवाड़ी ब्लॉक के 1614 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले 407 गांवों के 1716 नलकूप पूरी तरह फेल हो गए हैं। यहां के ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता तरुण जैन का तो यहां तक कहना है कि जिले का कोई गांव ऐसा नहीं है जहां आए दिन कोई-न-कोई नलकूप जवाब न देता हो।

गुड़गांव जिले के फरुखनगर, गुड़गांव, पदौदी और तावड़ ब्लॉक के 1130 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 1400 में फैले 20993 नलकूपों में से 1430 नलकूपों ने दम तोड़ दिया है। पुस्तक के लेखक ने चार वर्ष तक गुड़गांव में रहते हुए यह पाया था कि यहां के मेवात जिले में भूजल स्तर की स्थिति किसानों और आम आदमियों को रुलाने वाली है।

एक तो यहां पानी का जबरदस्त संकट है ऊपर से वह भी खारा है। इस जिले के नगीना, फिरोजपुर झिरका और गुड़गांव ब्लॉक में तो पानी को लेकर कब क्या बवाल मच जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता। यहां के प्रबुद्ध पत्रकार व चिंतक फजरुद्दीन बेसर कहते हैं, 'पानी के मामले में तो पूरे मेवात का अल्लाह ही रुठ गया है।’

फरीदाबाद जिले की स्थिति भी पानी के मामले में दिल दहलाने वाली है। यहां के फरीदाबाद और बल्लभगढ़ ब्लॉक पानी के मामले में कब जवाब दे जाएं, कुछ नहीं कहा जा सकता। आश्चर्यजनक रूप से फरीदाबाद शहर के लोगों की प्यास बुझाने के लिए यमुना के किनारे नलकूप लगाए गए तो इन नलकूपों ने ग्रामीणों की खेती पर ही अत्यंत विपरीत प्रभाव डाल दिया। दैनिक जागरण में काम करने वाले प्रबुद्ध पत्रकार राजू सजवान और अमर उजाला के पत्रकार राकेश चौरसिया द्वारा मौके-बेमौके किए गए अध्ययनों से खुलासा हुआ रेनवेल नलकूप योजना से गांवों में भूजल स्तर काफी नीचे चला गया है।

यमुनानगर जिले में 8747 नलकूपों में से 753 ने जवाब दे दिया। यहां लंबे अरसे तक दैनिक भास्कर के सवांददाता के रूप में काम करने वाले रमेश सैनी ने इस संवाददाता को बताया कि पहले लोग पानी की अधिकता के चलते पोपलर की खेती करते थे, लेकिन अब पानी की बचत के तरीके ढूढ़ते हैं और कम पानी वाली फसलों की बीजाई करते हैं।

लेखक को सोनीपत में चार वर्ष तक हिन्दुस्तान के प्रभारी के रूप में काम करने का अवसर मिला। यहां पानी की स्थिति पर अत्यंत गहन अध्ययन किया। यहां यमुना के किनारों के गांवों भूजल स्तर तो गिरा ही है, साथ ही पानी की गुणवत्ता भी बहुत अधिक प्रभावित हुई है। राई, मुंडलाना, खरखौदा और गन्नौर ब्लॉक में भूजल स्तर काफी नीचे चला गया है।

हरियाणा में भूमिगत जल का स्तर तेजी से नीचे जा रहा है और यदि फसलों के विविधिकरण की प्रक्रिया नहीं अपनाई गई तो यह ऐसे ही बढ़ता जाएगा। हरियाणा में पानी की स्थिति पंजाब से बदतर है और पंजाब की तुलना में हरियाणा में नहरी पानी की उपलब्धता काफी कम है। पानी के संकट के चलते भले ही पंजाब के किसान भी अपनी आर्थिक स्थिति से जूझ रहे हों, लेकिन हरियाणा के किसानों का दर्द पानी के मामले में तुलनात्मक दृष्टि से अधिक है।राज्य में पानी की गुणवत्ता भी खतरे में पड़ गई है। ऐसे क्षेत्र जहां राज्य में पानी गहराई पर है, वहां सिर्फ 36 प्रतिशत क्षेत्र में ही पानी की गुणवत्ता ठीक है जबकि शेष 64 प्रतिशत क्षेत्र में पानी की गुणवत्ता सामान्य या खारा है। ऐसे क्षेत्र जहां भूमिगत जल ऊपर उपलब्ध है, वहां पर अच्छी गुणवत्ता वाला पानी 48 प्रतिशत क्षेत्र में उपलब्ध है और 11 प्रतिशत क्षेत्र पूरी तरह खारा हो गया है।

पानी में खारापन राज्य के पूर्वी हिस्से में अधिक हैं जिसमें पंचकूला, यमुनानगर, अंबाला, कुरुक्षेत्र और करनाल जिले आते हैं। खारापन राज्य के केंद्रीय और पश्चिमी भाग में भी बढ़ रहा है। जींद, रोहतक, सिरसा, हिसार, भिवानी और सोनीपत का पानी भी खारा हो रहा है।

अध्ययन के मुताबिक राज्य के 44212 वर्ग किलोमीटर भूमिगत जल क्षेत्र में से 5342 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में भूमिगत जल का स्तर 20 मीटर से अधिक नीचे चला गया है जबकि 13899 वर्ग मीटर में भूमिगत जल का स्तर दस से बीस मीटर पर चला गया। 16356 किलोमीटर क्षेत्र में भूमिगत जल का स्तर पांच से दस मीटर है। 7997 वर्ग किलोमीटर भूमिगत जल का स्तर तीन से पांच मीटर पर है जबकि सिर्फ 1218 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ही ऐसा है जहां भूमिगत जल का स्तर 0 से तीन मीटर तक है। विशेषज्ञों के अनुसार भूमिगत जल का स्तर तेजी से नीचे जा रहा है और यदि फसलों के विविधिकरण की प्रक्रिया नहीं अपनाई गई तो यह ऐसे ही बढ़ता जाएगा।

हरियाणा में पानी की स्थिति पंजाब से बदतर है। उनका कहना है कि पंजाब की तुलना में हरियाणा में नहरी पानी की उपलब्धता काफी कम है। वह बताते हैं कि पानी के संकट के चलते भले ही पंजाब के किसान भी अपनी आर्थिक स्थिति से जूझ रहे हों, लेकिन हरियाणा के किसानों का दर्द पानी के मामले में तुलनात्मक दृष्टि से अधिक है।

विशेषज्ञों के मुताबिक भूमिगत जलस्तर गिरने के कई कारण है। राज्य में औसत वर्षा लगातार कम हो रही है। वर्ष 1995 से 2000 के बीच छह वर्षों के बीच सिर्फ 12356 एमएम औसत वर्षा हुई है। 1995 से 2000 तक औसत वर्षा लगातार कम हुई है। 1995 में राज्य में 16137 एमएम औसत वर्षा हुई थी। वर्ष 1996 में यह गिरकर 13628, 1997 में 12828, 1998 में 13892, 1999 में 9276 और 2000 में 8372 औसत एमएम वर्षा हुई। यानी सिर्फ 1998 में ही वर्षा का स्तर 1995 के बाद थोड़ा सा ठीक रहा जबकि बाकी चार वर्षों में लगातार कमी हुई।

वर्ष 2002 में राज्य के अलग-अलग जिलों के आंकड़े बताते हैं कि कम वर्षा से भी भूजल स्थिति प्रभावित हो रही है। भूजल वैज्ञानिक नरेंद्र कुमार खट्टर का कहना है कि किसानों द्वारा फसलों की विविधिकरण की प्रक्रिया न अपनाए जाने, धान उत्पादक जिलों में धान की दो-दो फसलें लिए जाने और गुड़गांव फरीदाबाद व सोनीपत जैसे जिलों में औद्योगिकीकरण और जनसंख्या वृद्धि के कारण पानी का संकट खड़ा हुआ है।

चंडीगढ़ स्थित क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र के निदेशक प्रो. ओ पी धनखड़ पानी की समस्या से निपटने के मुद्दे पर जल वितरण के समुचित प्रबंधन की बात कहते हैं तो लंबे अर्से से झज्जर में कृषि वैज्ञानिक के रूप में कार्य कर रहे डॉ. देवराज ओहल्याण इस जिले में ही नहीं समूचे हरियाणा में पानी की कमी की बात करते हैं। फरीदाबाद स्थित केंद्रीय भूजल प्राधिकरण के वैज्ञानिक बताते हैं कि पूरे राज्य में पानी की स्थिति बेहद खतरनाक है और यह हरियाणा के विकास की गति को न केवल प्रभावित कर रहा है बल्कि बाधित भी कर सकता है।

कुरुक्षेत्र विश्विविद्यालय के प्राणीशास्त्र विभाग के प्रो. रोहतास का कहना है कि हरियाणा की धरती धान की खेती के लिए कतई अनुकूल नहीं है और किसानों को यह देर-सवेर समझ लेना चाहिए कि यह उनके लिए ही घातक है। प्रो. रोहतास का कहना है कि सरकार को मई जून के महीने में नलकूपों के पानी पर निर्भर रहकर धान लगान पूरी तरह प्रतिबंधित कर देना चाहिए।

लंबे अरसे तक करनाल में उपायुक्त रहे और करनाल से किसानों के हितों के लिए साठी धान की फसल को खत्म करने का अभियान शुरू करने वाले आईएएस अधिकारी आरएस दून के मुताबिक करनाल जैसे जिले में जो पानी की दृष्टि से काफी सुरक्षित माने जाते हैं, पानी का टोटा पड़ गया है और किसानों ने यदि समय रहते साठ जैसे फसलों को प्रतिबंधित नहीं किया तथा पानी की प्रबंधन और रीचार्ज के बारे में नहीं सोचा तो हरियाणा भर में यह समस्या गहराएगी।

केंद्रीय मृदा लवणता, अनुसंधान संस्थान के सिंचाई एवं जल विकास निकास विभाग के अध्यक्ष रह चुके डॉ. एसके गुप्ता के मुताबिक किसानों को अपने खेतों की मेढ़ बीस सेंटीमीटर तक कर देनी चाहिए, उससे पानी का रीचार्ज बढ़ेगा।

अभी तक राज्य सरकार ने भूमिगत जल सुधार की कोई ठोस योजनाएं भी नहीं बनाई है। जिस एजेंसी ने हरियाणा राज्य लघु सिंचाई एवं नलकूप निगम द्वारा अध्ययन के बारे में 439 करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट राज्य के भूमिगत जल की स्थिति सुधारने के लिए राज्य सरकार को सौंपा गया था, राज्य सरकार ने बजाय इसके कि इस प्रोजेक्ट को मंजूरी देती, निगम को ही बंद कर डाला।

वाटरशेड मैनेजमेंट के नाम पर भी राज्य भर में अभी तक करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन इसका लाभ कहीं भी दिखाई नहीं देता यहां तक कि एक वाटरशेड के नाम कई गैर सरकारी स्वयंसेवी संगठनों ने भूमिगत जल की स्थिति सुधारने के लिए करोड़ों रुपए का अनुदान लिया है, लेकिन उनका भी इस दिशा में कोई खास काम नजर नहीं आता। यहां तक कि गुड़गांव में वाटरशेड के नाम पर भरकम अनुदान राशि लेने वाली एक संस्था के कारिंदों के खिलाफ तो विजीलेंस जांच तक हो चुकी है।

पिछले काफी लंबे अर्से से राज्य भूजल प्राधिकरण के गठन की तैयारी चल रही है। पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल के इसके गठन में अपनी इच्छा शक्ति अवश्य दिखाई थी, लेकिन बाद के समय में वह भी ढीले पड़ गए। उनके बाद आए मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चैटाला और भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने तो इस दिशा में कोई ठोस पहल तक नहीं की। इससे भी खतरनाक बात यह है कि राज्य के अफसरशाह केंद्रीय भूजल प्राधिरकरण के आदेशों को रद्दी की टोकरी के हवाले कर देते हैं।

गुड़गांव, फरीदाबाद और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र हरियाणा क्षेत्र के कई इलाकों में केंद्रीय भूजल प्राधिकरण नए नलकूप लगाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा चुका है, लेकिन इस दिशा में किसी भी उपायुक्त या राज्य सरकार के प्रभावशाली अफसर ने दृढ़ इच्छाशक्ति नहीं दिखाई और यही कारण है कि नलकूपों के लगने का सिलसिला यथावत जारी है।

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