हरियाणा और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय अधिनियम, 1970 (Haryana and Punjab Agricultural University Act, 1970)

(1970 का अधिनियम संख्यांक 16)


{2 अप्रैल, 1970}


पंजाब कृषि विश्वविद्यालय अधिनियम, 1961 द्वारा गठित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के स्थान पर दो स्वतंत्र कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना का और उन स्वतंत्र कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना के पारिणामिक या उससे सम्बद्ध विषयों का उपबन्ध करने के लिये अधिनियम

अतः हरियाणा और पंजाब राज्यों में कृषि के विकासार्थ यह समीचीन है कि पंजाब कृषि विश्वविद्यालय अधिनियम, 1961 द्वारागठित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के स्थान पर दो स्वतंत्र कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना का उपबन्ध किया जाये;और हरियाणा और पंजाब राज्यों के विधान-मण्डलों ने उपर्युक्त विषय के और उसके आनुषंगिक विषयों के सम्बन्ध में, जहाँ तक कि ऐसे विषय संविधान की सप्तम अनुसूची की सूची 2 में प्रगणित विषय हैं, संविधान के अनुच्छेद 252 के खण्ड (1) के अनुसार संकल्प पारित कर दिये हैं;अतः भारत गणराज्य के इक्कीसवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो:-

अध्याय 1


प्रारम्भिक


1. संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ


(1) यह अधिनियम हरियाणा और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय अधिनियम, 1970 कहा जा सकेगा।
(2) यह 1970 की फरवरी के दूसरे दिन प्रवृत्त हुआ समझा जाएगा।

2. परिभाषाएँ


इस अधिनियम में और तद्धीन बनाए गए सभी परिनियमों में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, -

(क) “विद्या परिषद्” से किसी तत्स्थानी विश्वविद्यालय के सम्बन्ध में, उस विश्वविद्यालय की विद्या परिषद अभिप्रेत है;
(ख) “कृषि” के अन्तर्गत मृदा और जल के प्रबन्ध का आधारिक और अनुप्रयुक्त विज्ञान, फसल और पशुधन का उत्पादन और प्रबन्ध, गृह विज्ञान और ग्रामीण व्यक्तियों की बेहतरी भी है;
(ग) “समुचित सरकार” से-

(i) हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सम्बन्ध में हरियाणा राज्य की सरकार अभिप्रेत है;

(ii) पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के सम्बन्ध में, पंजाब राज्य की सरकार अभिप्रेत है;

(घ) “बोर्ड” से किसी तत्स्थानी विश्वविद्यालय के सम्बन्ध में उस विश्वविद्यालय का प्रबन्ध बोर्ड अभिप्रेत है;
(ङ) “महाविद्यालय” से किसी तत्स्थानी विश्वविद्यालय का कोई घटक महाविद्यालय अभिप्रेत है;
(च) “तत्स्थानी विश्वविद्यालय” से, -

(i) उन राज्य क्षेत्रों के सम्बन्ध में जिनमें हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृत्यों का विस्तार है, वह विश्वविद्यालय अभिप्रेत है;
(ii) उन राज्य क्षेत्रों के सम्बन्ध में जिनमें पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के कृत्यों का विस्तार है, वह विश्वविद्यालय अभिप्रेत है;

(छ) “विद्यमान विश्वविद्यालय” से पंजाब कृषि विश्वविद्यालय अधिनियम, 1961 (1961 का पंजाब अधिनियम संख्या 32) की धारा 3 द्वारा गठित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय अभिप्रेत है;
(ज) “पुस्तकालय” से किसी तत्स्थानी विश्वविद्यालय द्वारा स्थापित या पोषित पुस्तकालय अभिप्रेत है;
(झ) “विहित” से किसी तत्स्थानी विश्वविद्यालय के परिनियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(ञ) “परिनियम” और “विनियम” से इस अधिनियम के अधीन किसी तत्स्थानी विश्वविद्यालय द्वारा बनाए गए क्रमशः परिनियम और विनियम अभिप्रेत हैं;
(ट) “अन्तरित राज्य क्षेत्र” से वे राज्य क्षेत्र अभिप्रेत हैं जो पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 (1966 का 31) की धारा 5 की उपधारा (1) द्वारा हिमाचल प्रदेश के संघ राज्य क्षेत्र में जोड़ दिये गए हैं;
(ठ) “कुलपति” से किसी तत्स्थानी विश्वविद्यालय का कुलपति अभिप्रेत है।

अध्याय 2


तत्स्थानी विश्वविद्यालयों की स्थापना


3. विद्यमान विश्वविद्यालय का विघटन और हरियाणा और पंजाब कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना


इस अधिनियम के प्रारम्भ से विद्यमान विश्वविद्यालय विघटित हो जाएगा और उसके स्थान पर दो स्वतंत्र कृषि विश्वविद्यालय स्थापित किये जाएँगे जो क्रमशः हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय कहलाएँगे।

4.निगमन-


(1) धारा 3 में वर्णित प्रत्येक कृषि विश्वविद्यालय शाश्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुद्रा वाला एक निगमित निकाय होगा, जिसे सम्पत्ति अर्जित करने और धारण करने और उसका व्ययन करने तथा संविदा करने की शक्ति होगी और वह अपने नाम से वाद ला सकेगा और उस पर उसके नाम से वाद लाया जा सकेगा।

(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रत्येक निगमित निकाय उस विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और कुलपति, बोर्ड के सदस्यों, विद्यापरिषद और सभी ऐसे व्यक्तियों से जो तत्पश्चात ऐसे अधिकारी या सदस्य हो जाएँ या नियुक्त किये जाएँ, जब तक वे ऐसा पद या ऐसी सदस्यता धारण किये रहें, गठित होगा।

5. राज्य क्षेत्रीय परिसीमाएँ


(1) हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हरियाणा राज्य के राज्य क्षेत्रों के भीतर कृत्य करेगा और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय अन्य ऐसे राज्य क्षेत्रों के भीतर कृत्य करेगा जिनमें विद्यमान विश्वविद्यालय के कृत्यों का विस्तार इस अधिनियम के प्रारम्भ के ठीक पूर्व था:

परन्तु हिमाचल प्रदेश के संघ राज्य क्षेत्र में विश्वविद्यालय की स्थापना होने पर पंजाब कृषि विश्वविद्यालय अन्तरित राज्य क्षेत्रों में कृत्य करना बन्द कर देगा।

(2) जब तक हिमाचल प्रदेश के संघ राज्य क्षेत्र में विश्वविद्यालय स्थापित न हो जाये, अन्तरित राज्य क्षेत्र में कृषि महाविद्यालय, पालमपुर, विद्यमान विश्वविद्यालय के विघटन होते हुए भी, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय का महाविद्यालय बना रहेगा और उन राज्य क्षेत्रों में विश्वविद्यालय की स्थापना होने पर ऐसा महाविद्यालय न रह जाएगा।

(3) हिमाचल प्रदेश के संघ राज्य क्षेत्र में विश्वविद्यालय की स्थापना होने पर पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की वे आस्तियाँ और दायित्व जो कृषि महाविद्यालय, पालमपुर, के सम्बन्ध में हैं तथा पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के उक्त संघ राज्य क्षेत्र में स्थित सभी अनुसन्धान, प्रशिक्षण और विस्तारण केन्द्र और कोई अन्य सम्पत्ति ऐसे विश्वविद्यालय को अन्तरित और उसमें निहित हो जाएगी।

6. प्रधान कार्यालय


(1) हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय का प्रधान कार्यालय हिसार में और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय का प्रधान कार्यालय लुधियाना में, या अन्य ऐसे स्थान में जो समुचित सरकार निर्दिष्ट करे, होगा।

(2) प्रत्येक तत्स्थानी विश्वविद्यालय उस स्थान पर एक कार्यालय की स्थापना करेगा जहाँ पर समुचित सरकार का प्रधान स्थान हो।

7. तत्स्थानी विश्वविद्यालय के उद्देश्य


प्रत्येक तत्स्थानी विश्वविद्यालय निम्नलिखित उद्देश्यों के लिये स्थापित और निगमित समझा जाएगा, अर्थात:-

(क) अध्ययन की विभिन्न शाखाओं की, विशिष्टतया कृषि, पशु-चिकित्सा और पशु-विज्ञान, कृषिक इंजीनियरिंग, गृह-विज्ञानों और अन्य सहबद्ध विज्ञानों की शिक्षा देने के लिये व्यवस्था करना;
(ख) ज्ञान की अभिवृत्ति और अनुसन्धान के कार्य को, विशिष्टतया कृषि और अन्य सहबद्ध विज्ञानों में, आगे बढ़ाना;
(ग) ऐसे विज्ञानों का उन राज्य क्षेत्रों के ग्रामीण व्यक्तियों में विस्तारण जिनके भीतर विश्वविद्यालय का कृत्य करना इस अधिनियम द्वाराअपेक्षित है;
(घ) अन्य ऐसे प्रयोजन जो समुचित सरकार, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, निर्दिष्ट करे।

8. तत्स्थानी विश्वविद्यालय में प्रवेश


(1) इस अधिनियम और परिनियमों के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, प्रत्येक तत्स्थानी विश्वविद्यालय सब व्यक्तियों के लिये खुला रहेगा:

परन्तु इस धारा की कोई बात किसी ऐसे विश्वविद्यालय से यह अपेक्षा न करेगी कि वह विहित संख्या से अधिक छात्र कसी पाठ्यक्रम में प्रविष्ट करे।

(2) समुचित सरकार तत्स्थानी विश्वविद्यालय को यह निदेश दे सकेगी कि वह किसी महाविद्यालय में स्त्रियों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों या शिक्षा की दृष्टि से ऐसे पिछड़े वर्गों के नागरिकों के लिये जो केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त विनिर्दिष्ट किये जाएँ, स्थान आरक्षित करे, और जहाँ ऐसा निदेश दिया गया हो वहाँ तत्स्थानी विश्वविद्यालय तद्नुसार आरक्षण करेगा;

परन्तु ऐसा कोई व्यक्ति तत्स्थानी विश्वविद्यालय में प्रविष्ट किये जाने का तब तक हकदार न होगा जब तक वह तत्स्थानी विश्वविद्यालय द्वारा अधिकथित स्तरों को पूरा न करता हो।

9. तत्स्थानी विश्वविद्यालय की शक्तियाँ


प्रत्येक तत्स्थानी विश्वविद्यालय की निम्नलिखित शक्तियाँ होंगी, अर्थात:-

(क) कृषि, पशु-चिकित्सा और पशु-विज्ञानों, कृषिक इंजीनियरिंग, गृह-विज्ञानों और अन्य सहबद्ध विज्ञानों के और ज्ञान की अन्य ऐसी शाखाओं के, जो विश्वविद्यालय ठीक समझे, स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षण के लिये व्यवस्था करना;
(ख) अनुप्रयुक्त क्षेत्रों में शिक्षण, अनुसन्धान और अनुसन्धान के निष्कर्षों और तकनीकी जानकारी को विस्तारी शिक्षा कार्यक्रम के माध्यम से फैलाने के लिये व्यवस्था करना;
(ग) उपाधियाँ, डिप्लोमा और अन्य विद्या सम्बन्धी विशिष्टताएँ संस्थित करना;
(घ) परीक्षाएँ लेना और उपाधियाँ, डिप्लोमा और अन्य विद्या सम्बन्धी विशिष्टताएँ उन व्यक्तियों को प्रदान करना जिन्होंने-

(i) विहित पाठ्यक्रम का अनुसरण किया है; या
(2) विश्वविद्यालय या विश्वविद्यालय द्वारा इस निमित्त मान्यता प्राप्त किसी संस्था में, विहित शर्तों के अधीन अनुसन्धान किया है;
(ङ) सम्मानिक उपाधियाँ और अन्य विशिष्टताएँ विहित रीति से और विहित शर्तों के अधीन प्रदान करना;
(च) क्षेत्र कर्मकारों, ग्राम नेताओं और अन्य व्यक्तियों के लिये, जो विश्वविद्यालय के नियमित छात्रों के रूप में नामावलिगत न हों, व्याख्यानों और शिक्षण की व्यवस्था करना और जब वांछनीय समझा जाये तब उन्हें प्रमाणपत्र देना;
(छ) अन्य विश्वविद्यालय और प्राधिकारियों से ऐसी रीति से और ऐसे प्रयोजनों के लिये जो विश्वविद्यालय अवधारित करे, सहयोग करना;
(ज) विश्वविद्यालय द्वारा अपेक्षित अध्यापन, अनुसन्धान और विस्तारी शिक्षा के पदों का सृजन करना और उन पदों पर व्यक्तियों की नियुक्ति करना;
(झ) प्रशासनिक, लिपिक वर्गीय और अन्य पदों का सृजन करना और उन पर नियुक्तियाँ करना;
(ञ) परिनियमों के अनुसार अध्येतावृत्तियाँ, छात्रवृतियाँ और पारितोषिक संस्थित करना और प्रदान करना;
(ट) विश्वविद्यालय के छात्रों के लिये वास-स्थान संस्थित करना और उनका अनुरक्षण करना;
(ठ) विश्वविद्यालय के छात्रों के वास-स्थान का पयर्वेक्षण और नियंत्रण करना और उनके अनुशासन को विनियमित करना और उनके स्वास्थ्य तथा कल्याण की अभिवृत्ति के लिये इन्तजाम करना;
(ड) ऐसी फीसें और अन्य प्रभार संस्थित करना और प्राप्त करना जिन्हें विहित किया जाये; तथा
(ढ) ऐसे सब कार्य और बातें करना, चाहे वे उपर्युक्त शक्तियों की आनुषंगिक हों या नहीं, जो विश्वविद्यालय के उद्देश्यों को अग्रसर करने के लिये अपेक्षित हों।

10. परिदर्शन


(1) तत्स्थानी विश्वविद्यालय का कुलाधिपति ऐसे व्यक्ति द्वारा, जिसे वह निर्दिष्ट करे, तत्स्थानी विश्वविद्यालय, उसके भवनों, प्रयोगशालाओं और उपस्करों का और उस विश्वविद्यालय द्वारा पोषित किसी संस्था का निरीक्षण करा सकेगा और उस विश्वविद्यालय के प्रशासन और वित्त से सम्बद्ध किसी विषय की बाबत जाँच करा सकेगा।

(2) तत्स्थानी विश्वविद्यालय का कुलाधिपति प्रत्येक दशा में निरीक्षण या जाँच करने के अपने आशय की सूचना उस विश्वविद्यालय को देगा, और ऐसी सूचना की प्राप्ति पर, वह विश्वविद्यालय एक प्रतिनिधि नियुक्त करने का हकदार होगा जिसे ऐसे निरीक्षण या जाँच पर उपस्थित रहने और सुनवाई का अधिकार होगा।
(3) तत्स्थानी विश्वविद्यालय का कुलाधिपति ऐसे निरीक्षण या जाँच के परिणाम के सम्बन्ध में उस विश्वविद्यालय के बोर्ड को सम्बोधित कर सकेगा और साथ में ऐसी सलाह दे सकेगा जो वह की जाने वाली कार्रवाई की बाबत दे।

(4) बोर्ड कुलाधिपति को उस कार्रवाई की संसूचना देगा जो ऐसे निरीक्षण या जाँच के परिणाम स्वरूप वह करने की प्रस्थापना करे या उसने की हो।

(5) यदि बोर्ड युक्तियुक्त समय के भीतर कुलाधिपति को समाधान प्रदान करने वाली कार्रवाई न करे तो वह, बोर्ड द्वारा दिये गए किसी स्पष्टीकरण या किये गए किसी अभ्यावेदन पर विचार करने के पश्चात ऐसे निदेश जारी कर सकेगा जो वह ठीक समझे, और बोर्ड उन निदेशों का अनुपालन करेगा।

अध्याय 3


तत्स्थानी विश्वविद्यालय का प्रबन्ध


11. तत्स्थानी विश्वविद्यालय के प्राधिकारी और अधिकारी


प्रत्येक तत्स्थानी विश्वविद्यालय के निम्नलिखित प्राधिकारी और अधिकारी होंगे, अर्थात :-

(क) तत्स्थानी विश्वविद्यालय के प्राधिकारी-

(i) बोर्ड;
(ii)विद्या परिषद्;
(iii) अध्ययन बोर्ड; तथा
(iv) अन्य ऐसे प्राधिकारी जो परिनयमों द्वारा विश्वविद्यालय के प्राधिकारी घोषित किये जाएँ;

(ख) तत्स्थानी विश्वविद्यालय के अधिकारी-

(i) कुलाधिपति;
(ii) कुलपति;
(iii) स्नातकोत्तर अध्ययनों का संकायाध्यक्ष;
(iv) महाविद्यालय के संकायाध्यक्ष;
(v) अनुसन्धान निदेशक;
(vi) कृषिक विस्तारी शिक्षा निदेशक;
(vii) छात्र-कल्याण निदेशक;
(viii) कुल सचिव;
(ix) नियंत्रक;
(x) सम्पदा अधिकारी;
(xi) पुस्तकाध्यक्ष तथा
(xii) विश्वविद्यालय की सेवा में के अन्य ऐसे व्यक्ति जो परिनियमों द्वारा विश्वविद्यालय के अधिकारी घोषित किये जाएँ।

12. कुलाधिपति


(1) हरियाणा राज्य का राज्यपाल हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय का कुलाधिपति होगा और पंजाब राज्य का राज्यपाल पंजाब कृषि विश्वविद्यालय का कुलाधिपति होगा।

(2) तत्स्थानी विश्वविद्यालय का कुलाधिपति अपने पद के आधार पर उस विश्वविद्यालय का प्रधान होगा और जब वह उपस्थित हो तो विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह का सभापतित्व करेगा।

(3) तत्स्थानी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति को अन्य ऐसी शक्तियाँ होंगी जो इस अधिनियम में विनिर्दिष्ट हैं या जो विहित की जाएँ।

13. तत्स्थानी विश्वविद्यालय के बोर्ड का गठन, शक्तियाँ और कर्तव्य


(1) समुचित सरकार, इस अधिनियम के प्रारम्भ से एक वर्ष की कालावधि के भीतर, तत्स्थानी विश्वविद्यालय के प्रबन्ध के लिये एक बोर्ड की स्थापना करेगी।
(2) हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय का बोर्ड निम्नलिखित से गठित होगा:-

(क) कुलपति;
(ख) हरियाणाराज्य सरकार का मुख्य सचिव;
(ग) हरियाणा राज्य सरकार के निम्नलिखित विभागों के सचिवः-

(i) कृषि;
(ii) वित्त; तथा
(iii) सामुदायिक विकास;

(घ) हरियाणा राज्य सरकार द्वारा निम्नलिखित प्रवर्गों के व्यक्तियों में से नियुक्त ऐसे व्यक्ति जो शासकीय न हों, अर्थात:-

(i) एक ऐसे व्यक्तियों में से जो उस सरकार की राय में कृषिक अनुसन्धान या शिक्षा की पृष्ठभूमि वाले प्रख्यात कृषिक वैज्ञानिक हों;

(ii) दो ऐसे व्यक्तियों में से जो उस सरकार की राय में वैज्ञानिक खेती या पशुधन के सुधार का अनुभव और उसमें अभिरुचि रखने वाले प्रगतिशील कृषिक या पशुधन प्रजनक हों;

(iii) एक ऐसे व्यक्तियों में से जो उस सरकार की राय में कृषि विकास से सम्बन्धित प्रतिष्ठित उद्योगपति, व्यवसायी, विनिर्माता या पशुधन प्रजनक हों; और

(iv) एक ऐसी महिलाओं में से जो उस सरकार की राय में उत्कृष्ठ समाज-कार्यकत्री हों और जो अधिमानतः ग्रामोन्नति की पृष्ठभूमि रखती हों।

(3) पंजाब कृषि विश्वविद्यालय का बोर्ड निम्नलिखित से गठित होगा:-

(क) कुलपति;
(ख) पंजाब राज्य सरकार का मुख्य सचिव;
(ग) पंजाब राज्य सरकार के निम्नलिखित विभागों के सचिव-

(i) कृषि; तथा
(ii) वित्त;
(घ) कृषि निदेशक, पंजाब;
(ङ) पशुपालन निदेशक, पंजाब;
(च) भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद का एक नाम निर्देशिती;
(छ) हिमाचल प्रदेश के संघ राज्य क्षेत्र की सरकार के दो नाम निर्देशिती;
(ज) पंजाब राज्य सरकार द्वारा निम्नलिखित प्रवर्गों के व्यक्तियों में से नियुक्त ऐसे व्यक्ति जो शासकीय न हों, अर्थात:-

(i) दो ऐसे व्यक्तियों में से जो उस सरकार की राय में कृषिक अनुसन्धान या शिक्षा की पृष्ठभूमि वाले प्रख्यात कृषिक वैज्ञानिक हों;

(ii) दो ऐसे व्यक्तियों में से जो उस सरकार की राय में वैज्ञानिक खेती या पशुधन के सुधार का अनुभव और उसमें अभिरुचि रखने वाले प्रगतिशील कृषक या पशुधन प्रजनक हों;
(iii) एक ऐसे व्यक्तियों में से जो उस सरकार की राय में कृषि विकास से सम्बन्धित प्रतिष्ठित उद्योगपति, व्यवसायी, विनिर्माता या पशुधन प्रजनक हों; तथा
(iv) एक ऐसी महिलाओं में से जो उस सरकार की राय में, उत्कृष्ट समाज-कार्यकत्री हों और जो अधिमानतः ग्रामोन्नति की पृष्ठभूमि रखती हों।

(4) हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय का बोर्ड अपने अधिवेशन में, निम्नलिखित व्यक्तियों को तकनीकी सलाहकारों के रूप में सहयुक्त करेगा, किन्तु इस प्रकार सहयुक्त व्यक्ति ऐसे किसी अधिवेशन में मत देने के हकदार न होंगे:-

(क) कृषि निदेशक, हरियाणा;
(ख) पशुपालन निदेशक, हरियाणा; तथा
(ग) उस विश्वविद्यालय के बोर्ड द्वारा उस विश्वविद्यालय के संकायाध्यक्षों या निदेशकों में से नियुक्त दो अधिकारी।

(5) शासकीय सदस्यों से भिन्न, बोर्ड के सदस्यों की पदावधि तीन वर्ष की होगी;

परन्तु प्रत्येक वर्ष के अन्त में बोर्ड के दो सदस्य, जो शासकीय सदस्य न हों, निवृत्त हो जाएँगे।

(6) शासकीय सदस्यों से भिन्न, बोर्ड के सदस्य लाट द्वारा यह अवधारित करेंगे कि प्रत्येक वर्ष के अन्त में कौन सदस्य निवृत्त होंगे।

(7) बोर्ड का कोई भी सदस्य तत्स्थानी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति को सम्बोधित लिखित सूचना द्वारा अपना पद त्याग सकेगा।

(8) यदि किसी कारण से बोर्ड के किसी सदस्य का पद रिक्त हो जाता है तो समुचित सरकार उस रिक्ति को इस धारा के उपबन्धों के अनुसार उस पर किसी अन्य व्यक्ति की नियुक्ति द्वारा, भर सकेगी।

(9) बोर्ड का कोई कार्य या कार्यवाही, केवल बोर्ड में कोई रिक्ति होने या बोर्ड के गठन में कोई त्रुटि होने के आधार पर ही अविधिमान्य न होगी।

(10) बोर्ड के अधिवेशन के लिये गणपूर्ति, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की दशा में बोर्ड के चार सदस्यों से, और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की दशा में बोर्ड के पाँच सदस्यों से होगी:परन्तु जब बोर्ड का अधिवेशन गणपूर्ति के अभाव में स्थगित हो जाये तो अगले अधिवेशन में उसी कार्य को करने के लिये किसी गणपूर्ति की आवश्यकता न होगी।

(11) कुलाधिपति बोर्ड का सम्मानिक अध्यक्ष और कुलपति उसका कार्याध्यक्ष होगा।

(12) बोर्ड के सदस्य ऐसे दैनिक और यात्रा भत्तों के सिवाय, जो विहित किये जाएँ, इस अधिनियम के अधीन के अपने कृत्यों के पालन के लिये कोई पारिश्रमिक पाने के हकदार नहीं होंगे:

परन्तु इसमें की कोई बात कुलपति की उपलब्धियों या सेवा की अन्य शर्तों पर प्रभाव न डालेगी।

(13) इस अधिनियम के प्रारम्भ पर, विद्यमान विश्वविद्यालय के प्रबन्ध बोर्ड के सदस्यों के बारे में यह समझा जाएगा कि उन्होंने इस रूप में अपने पदों को रिक्त कर दिया है।

14. बोर्ड की शक्तियाँ और कर्तव्य


बोर्ड की शक्तियाँ और कर्तव्य निम्नलिखित होंगे:-

(क) कुलपति द्वारा प्रस्तुत बजट का अनुमोदन करना;
(ख) विश्वविद्यालय की सम्पत्ति और निधियों को धारण और नियंत्रित करना तथा विश्वविद्यालय की ओर से कोई साधारण निदेश जारी करना;
(ग) विश्वविद्यालय की ओर से किसी सम्पत्ति को स्वीकार या अन्तरित करना;
(घ) विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिये विश्वविद्यालय के व्ययनाधीन की गई निधियों का प्रशासन करना;
(ङ) विश्वविद्यालय के धनों को विनिहित करना;
(च) विश्वविद्यालय के अधिकारियों, अध्यापकों और अन्य कर्मचारियों को विहित रीति से नियुक्त करना;
(छ) विश्वविद्यालय की सामान्य मुद्रा के रूप और उपयोग के विषय में निदेश देना;
(ज) ऐसी समितियाँ नियुक्त करना जिन्हें वह अपने कृत्यों के उचित सम्पादन के लिये आवश्यक समझे;
(झ) पूँजीगत अभिवृद्धियों के लिये धन उधार लेना और उसके प्रति सन्दाय के लिये उपयुक्त इन्तजाम करना;
(ञ) कुलपति को धारा 15 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए नियुक्त करना;
(ट) ऐसे समयों पर और उतनी बार जब और जितनी बार बोर्ड आवश्यक समझे, अधिवेशन करना:

परन्तु बोर्ड का नियमित अधिवेशन प्रति दो मास में कम-से-कम एक बार अवश्य होगा;

(ठ) विश्वविद्यालय से सम्बन्धित सभी विषयों को इस अधिनियम और परिनियमों के अनुसार विनियमित और अवधारित करना तथा ऐसी शक्तियों का प्रयोग करना और ऐसे कर्तव्यों का निर्वहन करना जो इस अधिनियम या परिनियमों द्वारा बोर्ड को प्रदत्त या उस पर अधिरोपित किये जाएँ।

15. कुलपति


(1) कुलपति तत्स्थानी विश्वविद्यालय का पूर्णकालिक अधिकारी होगा और विहित रीति से बोर्ड द्वारा नियुक्त किया जाएगा:

परन्तु जहाँ बोर्ड के सदस्य कुलपति के रूप में नियुक्त किये जाने के लिये प्रस्थापित व्यक्ति के प्रवरण के सम्बन्ध में एकमत न हों, वहाँ नियुक्ति सम्बद्ध तत्स्थानी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति द्वारा की जाएगी;

परन्तु यह और कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति की नियुक्ति हरियाणा राज्य की सरकार द्वारा की जाएगी:

परन्तु यह भी कि इस अधिनियम के प्रारम्भ के ठीक पूर्व, विद्यमान विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में पद धारण करने वाला व्यक्ति पंजाब कृषि विश्वविद्यालय का प्रथम कुलपति समझा जाएगा और विद्यमान विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में अपनी अनवसित पदावधि के लिये वह पद धारण करेगा।

(2) कुलपति की पदावधि चार वर्ष की होगी और वह पुनः नियुक्ति का पात्र होगा।

(3) कुलपति की उपलब्धियाँ और सेवा की अन्य शर्तें ऐसी होंगी जो विहित की जाएँ और उसकी नियुक्ति के पश्चात उनमें कोई ऐसा फेरफार नहीं किया जाएगा जो उसके लिये अहितकर हो।

(4) जब कुलपति के पद में कोई रिक्ति ऐसे पद के धारक के छुट्टी लेने के कारण या पदावधि के अवसान से भिन्न किसी कारण से हो जाये या होना सम्भाव्य हो तो कुलसचिव तत्काल बोर्ड को उस तथ्य की रिपोर्ट करेगा और ऐसी रिक्ति उपधारा (1) के उपबन्धों के अनुसार भरी जाएगी।

(5) जब तक उपधारा (4) के अधीन रिक्ति भरी नहीं जाती या जब तक बोर्ड कोई कार्यकारी कुलपति पदाभिहित नहीं कर देता तब तक, यथास्थिति, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की दशा में ज्येष्ठतम संकायाध्यक्ष, या पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की दशा में कुलसचिव, कुलपति के पद के नित्यप्रति के कर्तव्य करता रहेगा।

(6) कुलपति बोर्ड को सम्बोधित और बोर्ड के सचिव को, उस तारीख से, जब कुलपति अपने पद से मुक्त होना चाहे, मामूली तौर पर कम-से-कम दो मास पूर्व परिदत्त, लिखित त्यागपत्र द्वारा अपना पद त्याग सकेगा।

16. कुलपति की शक्तियाँ और कर्तव्य


(1) कुलपति तत्स्थानी विश्वविद्यालय का मुख्य कार्यपालक और शैक्षिक अधिकारी होगा तथा विद्या परिषद का अध्यक्ष होगा और कुलाधिपति की अनुपस्थिति में वह तत्स्थानी विश्वविद्यालय के दीक्षान्त समारोह का सभापतित्व करेगा और उन व्यक्तियों को उपाधियाँ प्रदान करेगा जो उन्हें प्राप्त करने के हकदार हों।

(2) कुलपति तत्स्थानी विश्वविद्यालय के कार्यकलाप पर नियंत्रण रखेगा और उस विश्वविद्यालय में सम्यक रूप से अनुशासन बनाए रखने के लिये उत्तरदायी होगा।

(3) कुलपति, जब तक कि वह तत्स्थानी विश्वविद्यालय के किसी अन्य अधिकारी को अस्थायी रूप से यह शक्ति प्रत्यायोजित न करे दे, विद्या परिषद के अधिवेशन संयोजित करेगा।

(4) इस अधिनियम द्वारा समुचित सरकार को प्रदत्त शक्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना यह है कि कुलपति इस अधिनियम और परिनियमों के उपबन्धों का निष्ठापूर्वक अनुपालन सुनिश्चित करेगा और वह ऐसी सभी शक्तियों का प्रयोग करेगा जो उस निमित्त आवश्यक हों।

(5) कुलपति बजट और लेखाविवरण बोर्ड को प्रस्तुत करने के लिये उत्तरदायी होगा।

(6) किसी आपात की दशा में, जिसमें कुलपति की राय में तुरन्त कार्रवाई करना अपेक्षित हो, वह ऐसी कार्रवाई करेगा जिसे वह आवश्यक समझे और की गई कार्रवाई की रिपोर्ट, शीघ्रतम अवसर पर, उस अधिकारी, प्राधिकारी या अन्य निकाय की पुष्टि के लिये देगा जो उस विषय में मामूली तौर पर कार्रवाई करना, किन्तु इस उपधारा की किसी बात से यह नहीं समझा जाएगा कि वह कुलपति को कोई ऐसा व्यय, जो प्राधिकृत नहीं है या सम्यक रूप से बजट में उपबन्धित नहीं है, उपगत करने के लिये सशक्त करती है।

(7) जहाँ कुलपति द्वारा उपधारा (6) के अधीन की गई कार्रवाई तत्स्थानी विश्वविद्यालय की सेवा में के किसी व्यक्ति पर अहितकर प्रभाव डाले, वहाँ ऐसी कार्रवाई तब तक नहीं की जाएगी जब तक सम्बद्ध व्यक्ति को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर न दे दिया गया हो और वह व्यक्ति, जिसके विरुद्ध कार्रवाई की जानी प्रस्थापित हो, उस तारीख से, जब उसके विरुद्ध किये जाने के लिये प्रस्थापित कार्रवाई उसे संसूचित की गई हो, तीस दिन के भीतर बोर्ड को अपील कर सकेगा।

(8) यथापूर्वोक्त के अधीन रहते हुए, कुलपति बोर्ड के उन आदेशों को कार्यान्वित करेगा जो तत्स्थानी विश्वविद्यालय के अधिकारियों, अध्यापकों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति, निलम्बन और पदच्युति के बारे में हों।

(9) कुलपति अध्यापन, अनुसन्धान और विस्तारी शिक्षा के घनिष्ठ समन्वय और एकीकरण के लिये उत्तरदायी होगा।

(10) कुलपति ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग करेगा जो विहित की जाएँ।

(11) तत्स्थानी विश्वविद्यालय के अधिकारियों, अध्यापकों और अन्य कर्मचारियों के वेतन और भत्ते बोर्ड के अनुमोदन से कुलपति द्वारा अवधारित किये जाएँगे।

17. कुलसचिव


(1) तत्स्थानी विश्वविद्यालय का कुलसचिव विश्वविद्यालय का पूर्णकालिक अधिकारी होगा और बोर्ड के अनुमोदन से विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा नियुक्त किया जाएगा।

(2) तत्स्थानी विश्वविद्यालय का कुलसचिव ऐसा पारिश्रमिक और अन्य उपलब्धियाँ प्राप्त करेगा जो विहित की जाएँ और विहित पारिश्रमिक और उपलब्धि से भिन्न कोई पारिश्रमिक या उपलब्धि अपनी पदावधि के दौरान स्वीकार नहीं करेगा।

(3) तत्स्थानी विश्वविद्यालय के कुलसचिव की शक्तियाँ और कर्तव्य निम्नलिखित होंगे:-

(क) विश्वविद्यालय के अभिलेखों और सामान्य मुद्रा की अभिरक्षा के लिये उत्तरदायी होना;
(ख) विद्या परिषद और बोर्ड का पदेन सचिव होना और उस परिषद तथा बोर्ड के समक्ष ऐसी सब जानकारी रखना जो, यथास्थिति, उस परिषद या बोर्ड के कार्य करने के लिये आवश्यक हों;
(ग) विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिये आवेदन प्राप्त करना;
(घ) सब पाठ्य-विवरणों, पाठ्यक्रमों, तथा उनसे सम्बद्ध जानकारी का स्थायी अभिलेख रखना;
(ङ) ऐसी परीक्षाओं के संचालन का, जो विहित की जाएँ, इन्तजाम करना और उनसे सम्बद्ध सभी प्रक्रियाओं के सम्यक निष्पादन के लिये उत्तरदायी होना;
(च) ऐसे अन्य कर्तव्यों का, जो विहित किये जाएँ या कुलपति द्वारा समय-समय पर अपेक्षित किये जाएँ, पालन करना।

18. नियंत्रक


(1) तत्स्थानी विश्वविद्यालय का नियंत्रक विश्वविद्यालय का पूर्णकालिक अधिकारी होगा और वह बोर्ड के अनुमोदन से विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा नियुक्त किया जाएगा।

(2) नियंत्रक तत्स्थानी विश्वविद्यालय की सम्पत्ति और उनके विनिधानों का प्रबन्ध करेगा और विश्वविद्यालय को उसकी वित्तीय नीति के बारे में सलाह देगा।

(3) नियंत्रक तत्स्थानी विश्वविद्यालय के लेखा रखने सम्बन्धी सभी विषयों के लिये, जिनके अन्तर्गत उसका बजट और लेखाओं के विवरण तैयार और प्रस्तुत करना भी है, कुलपति के प्रति उत्तरदायी होगा।

(4) नियंत्रक ऐसा पारिश्रमिक प्राप्त करेगा जो विहित किया जाये और, विहित पारिश्रमिक से भिन्न कोई पारिश्रमिक या अन्य उपलब्धि अपनी पदावधि के दौरान स्वीकार न करेगा।

(5) नियंत्रक-

(क) यह सुनिश्चित करेगा कि वह व्यय जो बजट में प्राधिकृत नहीं है, तत्स्थानी विश्वविद्यालय द्वारा विनिधान के तौर पर उपगत किये जाने के सिवाय उपगत न किया जाये; तथा(ख) किसी ऐसे व्यय को जो किसी परिनियम के निबन्धनों द्वारा समर्थित नहीं है या जिसके लिये परिनियम द्वारा उपबन्ध किया जाना अपेक्षित है किन्तु किया नहीं गया है, नामंजूर कर देगा।

(6) तत्स्थानी विश्वविद्यालय का सभी धन बोर्ड द्वारा अनुमोदित किसी अनुसूचित बैंक में रखा जाएगा।

19. सम्पदा अधिकारी


तत्स्थानी विश्वविद्यालय का सम्पदा अधिकारी जो बोर्ड के अनुमोदन से कुलपति द्वारा नियुक्त किया जाएगा, विश्वविद्यालय के सभी भवनों, लानों, उद्यानों और अन्य सम्पत्तियों की अभिरक्षा, उनके अनुरक्षण और प्रबन्ध के लिये उत्तरदायी होगा।

20. छात्र-कल्याण निदेशक


(1) तत्स्थानी विश्वविद्यालय का छात्र-कल्याण निदेशक उस विश्वविद्यालय का पूर्णकालिक अधिकारी होगा और बोर्ड के अनुमोदन से कुलपति द्वारा नियुक्त किया जाएगा।

(2) छात्र-कल्याण निदेशक के निम्नलिखित कर्तव्य होंगे, अर्थात:-

(क) छात्रों के आवासन का इन्तजाम करना;
(ख) छात्रों को परामर्श देने के कार्यक्रम का निदेशन करना;
(ग) कुलपति द्वारा अनुमोदित योजनाओं के अनुसार छात्रों के नियोजन का इन्तजाम करना;
(घ) छात्रों के पाठ्येतर क्रियाकलापों का पर्यवेक्षण करना;
(ङ) विश्वविद्यालय के स्नातकों को जगह दिलाने में सहायता करना;
(च) विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संगम को संगठित करना और उससे सम्पर्क बनाए रखना।

21. महाविद्यालयों के संकायाध्यक्ष


(1) प्रत्येक महाविद्यालय का एक संकायाध्यक्ष होगा जो पूर्णकालिक अधिकारी होगा और बोर्ड के अनुमोदन से कुलपति द्वारा नियुक्त किया जाएगा।

(2) संकायाध्यक्ष अपने महाविद्यालय से सम्बन्धित सभी विषयों के लिये कुलपति के प्रति उत्तरदायी होगा।

(3) संकायाध्यक्ष महाविद्यालय के विभागों के संगठन और स्थानिक शिक्षण के संचालन के लिये उत्तरदायी होगा।

22. पुस्तकाध्यक्ष


(1) तत्स्थानी विश्वविद्यालय का पुस्तकाध्यक्ष बोर्ड के अनुमोदन से कुलपति द्वारा नियुक्त किया जाएगा और पुस्तकालय का भारसाधक होगा।

(2) पुस्तकाध्यक्ष पुस्तकालय से सम्बन्धित सभी मामलों के सम्बन्ध में कुलपति के प्रति उत्तरदायी होगा।

23. विद्या परिषद


(1) विद्या परिषद विश्वविद्यालय के विद्या सम्बन्धी कार्यकलाप का भारसाधन करेगी और इस अधिनियम और परिनियमों के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, शिक्षण, शिक्षा और परीक्षाओं के स्तरों को बनाए रखने का तथा उपाधियाँ अभिप्राप्त करने से सम्बन्धित अन्य मामलों का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण करेगी और उनके लिये उत्तरदायी होगी और ऐसी अन्य शक्तियों का प्रयोग और ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करेगी, जिन्हें विहित किया जाये।

(2) पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, विद्या परिषद को यह शक्ति होगी कि वह-

(क) विद्या सम्बन्धी सब विषयों पर जिनके अन्तर्गत पुस्तकालयों का नियंत्रण और प्रबन्ध भी है, कुलपति को सलाह दे;
(ख) अपने अधिवेशनों में विभागों के ऐसे प्रधानों को जिन्हें वह आवश्यक समझे सहयोजित करे;
(ग) आचार्य पदों, सह आचार्य पदों, सहायक आचार्य पदों और अध्यापक पदों तथा अध्यापन सम्बन्धी अन्य पदों की संस्थापना के लिये और उनके कर्तव्यों और उपलब्धियों के बारे में कुलपति से सिफारिश करे;

(घ) अध्यापन, अनुसन्धान और विस्तारण विभागों के गठन और पुनर्गठन के लिये स्कीमें बनाए, उनमें उपान्तर करे या उनका पुनरीक्षण करे;

(ङ) विश्वविद्यालय में छात्रों के प्रवेश के बारे में विनियम बनाएँ;
(च) विश्वविद्यालय द्वारा संचालित परीक्षाओं के और उन शर्तों के, जिन पर छात्र ऐसी परीक्षाओं में प्रविष्ट किये जाएँगे, बारे में विनियम बनाए;
(छ) उपाधियों, डिप्लोपों और प्रमाणपत्रों के लिये पाठ्यक्रम सम्बन्धी विनियम बनाएँ;
(ज) स्नातकोत्तर अध्यापन, अनुसन्धान और विस्तारण के बारे में सिफारिशें करें;
(झ) विश्वविद्यालय में अध्यापकों के लिये विहित की जाने वाली अर्हताओं के बारे में सिफारिशें करें;
(ञ) अन्य ऐसी शक्तियों का प्रयोग तथा अन्य ऐसे कर्तव्यों का पालन करें जो इस अधिनियम के उपबन्धों द्वारा या उनके अधीन उसे प्रदान या उस पर अधिरोपित किये जाएँ।

(3) विद्या परिषद निम्नलिखित से गठित होगी:-

(क) कुलपति;
(ख) विश्वविद्यालय के महाविद्यालय के संकायाध्यक्ष;
(ग) स्नातकोत्तर अध्ययनों का संकायाध्यक्ष;
(घ) विस्तारी शिक्षा निदेशक;
(ङ) अनुसन्धान निदेशक;
(च) प्रत्येक महाविद्यालय का एक विभागाध्यक्ष जो अपने-अपने महाविद्यालय द्वारा चुना जाएगा।
(4) उपधारा (3) के खण्ड (च) में विनिर्दिष्ट सदस्यों की पदावधि दो वर्ष की होगी।

अध्याय 4


महाविद्यालय


24. महाविद्यालय


(1) निम्नलिखित महाविद्यालय हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के घटक महाविद्यालय होंगे, अर्थात:-

(क) कृषि महाविद्यालय, हिसार;
(ख) पशु-चिकित्सा महाविद्यालय, हिसार;
(ग) पशु-विज्ञान महाविद्यालय, हिसार;
(घ) आधारिक विज्ञान तथा मानविकी महाविद्यालय और ऐसे अन्य महाविद्यालय जो इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात उस विश्वविद्यालय द्वारा स्थापित किये जाएँ; तथा
(ङ) हरियाणा राज्य में कृषिक अनुसन्धान, तकनीकी और विस्तारी शिक्षा की केन्द्रीय सरकार की ऐसी संस्थाएँ जो हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के महाविद्यालयों के रूप में सम्मिलित होने की वांछा करें।

(2) निम्नलिखित महाविद्यालय पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के घटक महाविद्यालय होंगे, अर्थात:-

(क) कृषि महाविद्यालय, लुधियाना;
(ख) कृषिक इंजीनियरिंग महाविद्यालय, लुधियाना;
(ग) आधारिक विज्ञान और मानविकी महाविद्यालय, लुधियाना;
(घ) गृह-विज्ञान महाविद्यालय, लुधियाना;
(ङ) पशु-चिकित्सा महाविद्यालय, लुधियाना;
(च) जब तक हिमाचल प्रदेश के संघ राज्य क्षेत्र में विश्वविद्यालय स्थापित न हो जाये, कृषि महाविद्यालय, पालमपुर;

(छ) अन्य ऐसे महाविद्यालय जो इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात उस विश्वविद्यालय द्वारा, स्थापित किये जाएँ; तथा
(ज) पंजाब राज्य में कृषिक अनुसन्धान तथा तकनीकी और विस्तारी शिक्षा की केन्द्रीय सरकार की ऐसी संस्थाएँ जो पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के महाविद्यालय के रूप में सम्मिलित होने की वांछा करें।

(3) (क) तत्स्थानी विश्वविद्यालय के प्रत्येक महाविद्यालय के लिये एक अध्ययन बोर्ड होगा और जहाँ ज्ञान की किसी शाखा के एक से अधिक महाविद्यालय हों, वहाँ ज्ञान की उस शाखा के सभी महाविद्यालयों के लिये एक अध्ययन बोर्ड हो सकेगा।
(ख) विभिन्न महाविद्यालय के संकायाध्यक्ष अपने शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष होंगे और महाविद्यालयों के विभागाध्यक्ष उसके सदस्य होंगे।
(ग) जहाँ ज्ञान की किसी शाखा में एक से अधिक महाविद्यालयों के लिये एक अध्ययन बोर्ड हो, वहाँ संकायाध्यक्ष, ज्येष्ठता के अनुसार, चक्रानुक्रम से अध्ययन बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में इस प्रकार कार्य करेंगे कि प्रत्येक की कालावधि एक वर्ष की हो।

(घ) कुलपति उसी या अन्य महाविद्यालयों से, सम्बद्ध विषयों या विज्ञान के अन्य ऐसे अध्यापकों को अध्ययन बोर्ड के लिये नाम निर्दिष्ट कर सकेगा जिन्हें वह ठीक समझे।
(ङ) अध्ययन बोर्डों का यह कर्तव्य होगा कि वे पाठ्य विवरणों को इस प्रकार विहित करें कि एकीकृत और सन्तुलित पाठ्यक्रम सुनिश्चित हो जाएँ।

(4) प्रत्येक महाविद्यालय में ऐसे विभाग समाविष्ट होंगे जो विहित किये जाएँ और प्रत्येक विभाग को अध्ययन के ऐसे विषय दिये जाएँगे जो विद्या परिषद ठीक समझे।

(5) प्रत्येक विभाग का एक विभागाध्यक्ष होगा जो स्थानिक शिक्षण के लिये संकायाध्यक्ष के प्रति, अनुसन्धान के लिये अनुसन्धान निदेशक के प्रति, और विस्तारी शिक्षा के लिये विस्तारी शिक्षा निदेशक के प्रति उत्तरदायी होगा।

(6) प्रत्येक विभाग के अध्यक्ष का प्रवरण कुलपति द्वारा किया जाएगा और उसकी नियुक्ति बोर्ड के अनुमोदन से कुलपति द्वारा की जाएगी।

(7) विभागाध्यक्षों के कर्तव्य, शक्तियाँ और कृत्य ऐसे होंगे जो विहित किये जाएँ।

25. अनुसन्धान के लिये प्रयोग केन्द्र


(1) इस अधिनियम और परिनियमों के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, प्रत्येक तत्स्थानी विश्वविद्यालय के अधीन प्रयोग केन्द्र स्थापित किये जाएँगे जो, मूल और अनुप्रयुक्त, दोनों ही प्रकार के अनुसन्धान के लिये उत्तरदायी होंगे और अनुसन्धान क्रियाकलाप यावत्सम्भव, केन्द्रीय अनुसन्धान केन्द्रों और राज्य के विभिन्न कृषि-जलवायु जोनों में के अन्य प्रादेशिक अनुसन्धान और परीक्षण केन्द्रों में संकेन्द्रित होंगे।

(2) प्रत्येक तत्स्थानी विश्वविद्यालय में एक अनुसन्धान निदेशक होगा जो कुलपति के प्रति उत्तरदायी होगा और जो संकायाध्यक्षों से परामर्श करके और बोर्ड के अनुमोदन से कुलपति द्वारा नियुक्त किया जाएगा।

(3) अनुसन्धान निदेशक कृषि में प्रशिक्षित पूर्णकालिक अधिकारी होगा और वह तत्स्थानी विश्वविद्यालय और उसके बाहरी उपकेन्द्रों में अनुसन्धान के कार्यक्रम का प्रारम्भ, मार्गदर्शन और समन्वय करेगा।

26. कृषिक विस्तारी शिक्षा


(1) उन राज्य क्षेत्रों के सम्बन्ध में जिनमें तत्स्थानी विश्वविद्यालय के कृत्यों का विस्तार है ऐसा विश्वविद्यालय निम्नलिखित के लिये उत्तरदायी होगा:-

(क) वे कृषिक विस्तारण कृत्य जो प्राथमिकतः शैक्षिक प्रकृति के हों; तथा
(ख) राष्ट्रीय विस्तारण खण्डों के लिये आगामी विस्तारण अधिकारियों को और विस्तारण प्रशिक्षण केन्द्रों के लिये शिक्षकों को प्रशिक्षण देना।

(2) किसी विषय के सम्बन्ध में सब विस्तारण विशेषज्ञ प्रत्येक तत्स्थानी विश्वविद्यालय में अपने-अपने विषय के अनुभागों के कर्मचारीवृन्द के सदस्य होंगे और कृषि, विकास और सहकारिता विभागों के साथ घनिष्ठ समन्वय र
Path Alias

/articles/haraiyaanaa-aura-panjaaba-karsai-vaisavavaidayaalaya-adhainaiyama-1970-haryana-and-punjab

×