हरियाली बदल रही लेह की सूरत

‘ठंडे रेगिस्तान’ के नाम से मशहूर मटमैले लेह में अब हरी चादर दिखने लगी है। यह हरियाली लेह की शक्ल-सूरत बदल रही है। माना जा रहा है कि हरियाली बादल खींचने लगी है और यहां हर साल बारिश का दर बढ़ रही है। नतीजतन सदियों से लगभग नहीं के बराबर बारिश में जिंदगी गुजारने वाले लेह के लोगों का सामना अब हर साल होने वाली बरसात से हो रहा है।उधर, प्रशासन का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से यहां गर्मी बढ़ी है जिससे बादल आकर्षित हो रहे हैं और बारिश की दर बढ़ रही है। उसके मुताबिक, बारिश का बढ़ना पेड़ लगाने की वजह से नहीं है। लेह के डिप्टी कमिश्नर टी आंगचोक के मुताबिक पिछले चार साल में लेह में बारिश का आंकड़ा बीस मिलीमीटर से बढ़कर पच्चीस मिलीमीटर के आसपास हो गया है। इस बदलाव के मद्देनजर मौसम विभाग यहां इसी साल अपना एक केंद्र खोलने जा रहा है ताकि बारिश में हो रही वृद्धि की वजह का पता लगाया जा सके।

गौरतलब है कि हवा में ऑक्सीजन की कमी की भरपाई के लिए लेह प्रशासन ने लद्दाख को हरा-भरा करने का फैसला किया है। इसके लिए सिंधु, श्योक और सियाचिन नदी के पानी के श्रोतों के पास करीब 57 हजार हेक्टेयर जमीन पर पेड़ लगाए गए हैं। लेह के बुजुर्गों का मानना है कि वह सदियों सेबिना बारिश के जीने का आदी हो गए हैं और मकान बनाने से लेकर उनके खानपान की शैली भी उसी तरह की है। चोगलमसार के ताशी नोरवेल ने बताया कि यहां आम लोग समतल छत वाले मिट्टी के घरों में आराम से रहते हैं।

यह घर हल्की बारिश तो झेल लेता है लेकिन ज्यादा बारिश इसे गला देगी। गांव के लोगों के लिए सीमेंट का घर बनाना मुश्किल है। चुशोत गांव के तुंडुप दोरजे का मानना है कि पिछले साल अगस्त में बादल फटने की घटना ने चेतावनी दी है कि यहां के मौसम से छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। यहां सिर्फ तीन-चार महीने ही खेती होती है। इसके लिए जितनी बारिश की जरूरत है, कुदरत दे देती है। ज्यादा बारिश से यहां की जिंदगी बदल जाएगी।

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