हरित पंचाट पहुँची यमुना


.उम्मीद थी कि लोगों को जीवन जीने की कला सिखाने वाला ‘आर्ट ऑफ लिविंग’, यमुना के जीवन जीने की कला में खलल डालने से बचेगा; साथ ही वह यह भी नहीं चाहेगा कि उनके आयोजन में आकर कोई यमुना प्रेमी खलल डाले। किन्तु इस लेख के लिखे जाने तक जो क्रिया और प्रतिक्रिया हुई, उससे इस उम्मीद को झटका लगा है।

गौरतलब है कि इस आयोजन को मंजूरी दिये जाने के विरोध में ‘यमुना जिये अभियान’ संयोजक श्री मनोज मिश्र ने राष्ट्रीय हरित पंचाट में अपनी याचिका दायर कर दी है। याचिका में कहा गया है कि प्रतिबन्ध के बावजूद यमुना खादर की करीब 25 हेक्टेयर पर मलबा डम्प किया जा रहा है। उन्होंने इसे यमुना के पर्यावास के लिये घातक बताया है।

गौरतलब है कि पंचाट के ही एक पूर्व आदेशानुसार, ऐसा करने पर 50 हजार रुपए जुर्माना किया जाना चाहिए। पंचाट ने याचिका स्वीकार करते हुए आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन तथा दिल्ली विकास प्राधिकरण..दोनों को नोटिस थमा दिया है।

न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने आईआईटी, दिल्ली के प्रो. ए. के गोसांई को आदेश दिये हैं कि वह डीडीए के वकील के साथ जाकर मौके का मुआयना करें और एक सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट दें। अगली सुनवाई के लिये 17 फरवरी की तारीख तय कर दी गई है।

 

प्रतिक्रिया : जब सैंया भये कोतवाल, तो डर काहे का


इस बीच मलबा डालने की तस्वीरें जारी करने के बावजूद आर्ट ऑफ लिविंग के प्रतिनिधि श्री अनिरुद्ध शर्मा ने एक अखबार से बातचीत में मलबा डालने की खबर को गलत करार दिया है। आयोजन से यमुना क्षति का पाश्चाताप करने की बजाय, उलटे उन्होंने दावा किया है कि उनके आयोजन से यमुना को नुकसान की बजाय, फायदा होगा।

आयोजन में आ रहे लोग, एक ऐसा एंजाइम लेकर आएँगे, जिससे दिल्ली की यमुना में गिरने वाले 17 नालों में बहाया जाएगा। दिलचस्प है कि उन्होंने यह भी कहा कि यमुना की ज़मीन का चुनाव इसलिये भी किया गया है, ताकि लोगों का ध्यान यमुना की ओर आकर्षित हो।

यमुना जी को लेकर ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ की यह नजर और नजरिए को जीवन जीने की किस कला श्रेणी में रखें; पाठक बेहतर तय कर सकते हैं। मैं तो सिर्फ यहाँ यह लिखना चाहूँगा कि ठीक ही है कि जब सत्ता साथ हो, तो कोई क्यों परवाह करे? जब सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का। शायद यही है इस 21वीं सदी के दूसरे दशक में जीवन जीने की असली कला।

 

संवेदनहीन दिल्लीवासी


अनुयायियों से सवाल है कि बाँके बिहारी को पूजने वाले भला कैसे भूल सकते हैं कि कालियादेह पर नन्हें कान्हा का मंथन-नृतन कृष्ण की कृष्णा को विषमुक्त कराने की ही क्रिया थी! दिल्ली वालों को भी भूलने का हक नहीं कि तुगलकाबाद के किले से लाकर कश्मीरी गेट से अजमेरी गेट के बीच देल्ही को बसाने वाली यमुना ही थी। जिस लालकिले की प्राचीर से उगते हुए आजादी का सूरज कभी सारी दुनिया ने देखा था, उसकी पिछली दीवार से जिसने इश्क किया, वे लहरें भी इसी यमुना की थी। कोई हिन्दुस्तानी भला यह कैसे भूल सकता है!

आखिरकार दिल्लीवासी खुद कैसे भूल सकते हैं कि यमुना, दिल्ली की लाइफलाइन है? कैसे भूल सकते हैं कि वजीराबाद पुल से ओखला बैराज के बीच की 22 किलोमीटर के बीच यह दूरी, दुनिया में किसी भी नदी की तुलना में यमुना के लिये सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। इसी हिस्से में यमुना सबसे ज्यादा प्रदूषित है। इसी हिस्से में आकर यमुना सिकुड़कर डेढ़ से तीन कि.मी. चौड़ी रह जाती है। यही वह हिस्सा है, जिसने 1947 से 2010 के मध्य नौ बाढ़ देखी हैं- 1947, 1964, 1977, 1978, 1988, 1995, 1998, 2008 और 2010। देखें तो, इस हिस्से को सबसे ज्यादा धमकी सरकारी एजेंसियों ने ही दी है- यमुना में गिरने वाले 17 नाले, 100 एकड़ पर शास्त्री पार्क मेट्रो, 100 एकड़ में यमुना खादर आईटीओ मेट्रो, 100 एकड़ में खेलगाँव व उससे जुड़े दूसरे निर्माण, 61 एकड़ में इन्द्रपस्थ बस डिपो, एक निजी ट्रस्ट द्वारा 100 एकड़ में बनाया अक्षरधाम मन्दिर और अब भी यह आयोजन भी सरकारी सहमति का ही नतीजा है।

 

क्या ये धमकियाँ अनसुनी करने योग्य हैं नहीं?


पर्यावरण संरक्षण कानून- 1986 की मंशा के मुताबिक, नदियों को ‘रिवर रेगुलेशन जोन’ के रूप में अधिसूचित कर सुरक्षित किया जाना चाहिए था। 2001-2002 में की गई पहल के बावजूद, पर्यावरण मंत्रालय आज तक ऐसा करने में अक्षम साबित हुआ है। बाढ़ क्षेत्र को ’ग्राउंड वाटर सेंचुरी’ घोषित करने के केन्द्रीय भूजल आयोग के प्रस्ताव को हम कहाँ लागू कर सके?

नदी भूमि पर निर्माण की मनाही वाली कई सिफारिशें हैं। दिल्ली हाईकोर्ट ने नदी भूमि को जलनिकाय के रूप में सुरक्षित रखने कहा; हमने नहीं सुना। हम सुन तो आज भी नहीं रहे हैं। ज़मीन यमुना की है; इसलिये शायद हमें दर्द नहीं होता। हम यमुना को माँ कहते जरूर हैं, किन्तु माँ के दर्द से दुखी नहीं होते। ऐसे ही हैं हम दिल्ली वाले...संवेदना शून्य!

अधिक जानकारी के लिये वीडियो देखें।



यमुना खादर में आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा किये गए अतिक्रमण पर अधिक जानकारी के लिये यहाँ क्लिक करें।

खाली जमीन : अनुचित नजरिया

अगर वह न चेते, तो हमें चेत होगा

यमुना के लिये अनुरोध पत्र

वर्ल्ड कल्चर फेस्ट से यमुना को होगा नुकसान : एनजीटी की एक्सपर्ट कमेटी

'आर्ट ऑफ लिविंग' द्वारा यमुना खादर को हुआ है नुकसानः एनजीटी के विशेषज्ञ

जमुना जी को दरद न जाने कोय

 

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Post By: RuralWater
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