हर रोज बहा रहे हैं करोड़ों लीटर 'पानी'

सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट पर 1254.2 करोड़ हो चुके हैं खर्च, पर ट्रीटेड पानी के इस्तेमाल की नहीं है कोई व्यवस्था


यमुना नदीयमुना नदी राजधानी में हर रोज करोड़ों लीटर ट्रीटेड पानी नालों में इसलिए बहा दिया जाता है, क्योंकि इसके इस्तेमाल की कोई पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। राजधानी में हर रोज 680 एमजीडी (3087 मिलियन लीटर) गंदा पानी निकलता है, जिसमें सीवेज व इंडस्ट्री का दूषित पानी शामिल है। इसके शोधन के लिए राजधानी में 19 स्थानों पर 28 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगे हैं, जिनकी शोधन क्षमता तो केवल 513.4 एमजीडी है, पर इनमें भी रोजाना करीब 350 एमजीडी सीवेज का ही शोधन हो पाता है। इसमें से केवल 150 एमजीडी पानी ही पॉवर प्लांट, सिंचाई व बागवानी में इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होता है, बाकी शोधित जल फिर से उन्हीं नालों में बहा दिया जाता है। ये हालत तब है जब सरकार ने केवल एसटीपी बनाने पर सन् 1994 से अब तक 1254.2 करोड़ रुपए खर्च कर दिए हैं।

खास बात यह है कि इंडस्ट्री के निकलने वाले दूषित के शोधन के बाद उसके एक भी बूंद पानी का कोई इस्तेमाल नहीं होता, जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इंडस्ट्री से निकलने वाले प्रवाह के लिए बने कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) का मकसद ही यही था कि उसके शोधित पानी का सिंचाई, बागवानी, निर्माण व झील तालाब जैसे जलाशयों को रीचार्ज में इस्तेमाल हो। राजधानी के 21 औद्योगिक इलाकों के लिए 15 सीईटीपी बनाए जाने थे, लेकिन उनमें से 11 ही बनाए जा सके, क्योंकि सन् 2003 से ही जितने सीईटीपी चालू होते गए, सीटीपी की तरह उनमें से भी किसी ने अपनी पूरी क्षमता के मुताबिक औद्योगिक प्रवाह का शोधन नहीं किया।

दिल्ली जल बोर्ड की दलील


राजधानी में बनाए गए सभी ट्रीटमेंट प्लांट का मकसद यमुना में प्रदूषण की मात्रा को कम करके उसकी गुणवत्ता में सुधार करना है। सन् 2014 से बोर्ड सुनिश्चित करेगा कि सीवर का एक भी बूंद बिना ट्रीटमेंट के यमुना में नहीं जाएगा। 2014 तक राजधानी में कई नए एसटीपी चालू हो जाएंगे, उसके बाद कुल शोधन क्षमता 690 एमजीडी हो जाएगी जो 2014 में निकलने वाले संभावित गंदे पानी के बराबर होगी। इसके अलावा जल बोर्ड की ओर से ईआईएल ने तीन कंपनियों को नजफगढ़ नाले व शाहदरा नाले पर इंटरसेप्टर लगाने का काम सौंपा है। 1964 करोड़ रुपए की लागत से बनाए जा रहे इंटरसेप्टर पर काम शुरू हो चुका है और 2014 तक काम पूरा हो जाएगा।
(सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली जल बोर्ड द्वारा इसी साल दाखिल हलफनामे के मुताबिक)

शोधित जल का इस्तेमाल सुनिश्चित हो


सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इंडस्ट्री प्रवाह के शोधित जल का इस्तेमाल हो। हमने इप्का की तरफ से सुझाव दिया था कि शोधित जल को नालों में न डाला जाए बल्कि इन्हें पुरानी झीलों और तालाबों में डाला जाए ताकि वे रीचार्ज हों। फायर स्टेशनों से जोड़ा जाए, निर्माण में इस पानी का इस्तेमाल हो, सिंचाई व बागवानी तो हो ही सकती है। राजधानी का 50 फीसदी सीवर ट्रीटमेंट नेटवर्क के दायरे में ही नहीं है।
-डॉ. भूरेलाल, चेयरमैन, एन्वायन्मेंट पॉल्यूशन (प्रीवेंशन एंड कंट्रोल) अथार्टी फॉर एनसीआर रीजन

कब क्या स्थिति


1994 में
• दिल्ली में पानी की आपूर्ति-500 एमजीडी
• दिल्ली से निकलने वाला गंदा पानी-400 एमजीडी
• उपलब्ध एसटीपी की कुल क्षमता-280 एमजीडी

2012 में
• दिल्ली में जल की आपूर्ति-850 एमजीडी
• दिल्ली से निकलने वाला गंदा पानी-680 एमजीडी
• उपलब्ध एसटीपी की कुल क्षमता-513.4 एमजीडी

कितनी साफ है राजधानी


• 680 एमजीडी गंदा पानी हर रोज राजधानी से निकलता है।
• 28 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगे हैं राजधानी में।
• 350एमजीडी सीवेज पानी का ही रोजाना हो पाता है शोधन।
• 513 एमजीडी जलशोधन करने की है सभी एसटीपी की क्षमता।

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