गंगा है तो भारत है, भारत है तो गंगा। इस रिश्ते को विश्व ने भी माना है। गोमुख से गंगासागर तक गंगा नदी भारत को उसकी पहचान की कई अनूठी विरासतें देते बहती है। गंगा महोत्सव 2019 (21 जनवरी-23 जनवरी) के मौके पर आइए देखें गंगा के कुछ पड़ावों को पर्यावरणिद अनिल जोशी की नजर से
कर दो कन्यादान हिमालय,
बिटिया अब ससुराल चली
कल्पना कीजिए उस पल की, जब राष्ट्रकवि माखनलाल चतुर्वेदी की कलम से हिमालय के नाम की गुजारिश ने जन्म लिया होगा। उस एक पल में कितने ही किरदार उनकी आँखों के सामने घूम गए होंगे- गंगा के पिता हिमवान, पति सम्राट शांतनु, पुत्र भीष्म पितामह। गंगा को छूकर गुजरने वाली कितनी ही प्रार्थनाओं, विलापों और एहसासों से होकर गुजरा होगा उनका मन। इतने बरस, इतने बदलावों और वक्त के तमाम थपेड़ों के बावजूद आज भी 2,525 किलोमीटर लम्बी गंगा की अविरल धारा ने न सिर्फ देश के एक बड़े हिस्से को जोड़ रखा है, बल्कि यह किसी-न-किसी रूप में बुजुर्ग से लेकर युवा पीढ़ी तक हर किसी के कौतूहल का विषय भी है। एक ऐसा विषय, जिसकी थाह पाकर इन्सान जिन्दगी की थाह पा सकता है। उत्तराखण्ड में पैदा होने के कारण बहुत कम उम्र में मेरा इस नदी से जुड़ाव हो गया था। जाने कितनी उदास शामें मैंने गंगा से साझा की हैं। जाने कितना सुकून इसके किनारों पर पसरी रेत में बैठे हुए बटोरा है और जाने कितने फलसफे सीखे हैं जिन्दगी के।
आज भी जब-जब गंगा के पास जाता हूँ, यही सोचता हूँ कि इतना ढेर सारा पानी, हर सेकेंड, हर क्षण किस तरह बहता रहता है। कितनी निरन्तरता है इसमें, कितना आवेग है। सच तो यह है कि गंगा को समझने, सीखने की आवश्यकता आज भी उतनी है, जितनी पहले थी। गंगा का माहात्म्य इस बात से भी समझा जा सकता है कि भारत में इसका बेसिन करीब 8,61,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और देश के करीब 11 राज्यों से सीधे जुड़ा है। मतलब देश के करीब 26 फीसदी क्षेत्रफल में यह फैला है। देश के जल संसाधनों में 28 फीसदी योगदान गंगा का है। इससे 57 फीसदी देश की कृषि भूमि सीधे जुड़ी है और 43 फीसद लोग इसके ही पानी से जिन्दा हैं। मनुष्य ही नहीं, 143 मत्स्य प्रजातियों का भी घर गंगा ही है।
1. अलौकिक गोमुख
जब मैंने पहली बार गंगोत्री ग्लेशियर स्थित गोमुख से निकलती गंगा को देखा था, तो मेरी आँखें अचरज से फटी रह गई थीं। ये है गंगा? जिसे देखने दुनिया के हर कोने से लोग आते हैं- इतनी पतली धार आखिर इतनी विशाल नदी में कैसे तब्दील हो जाती है? गंगा के कद और उसके माहात्म्य को गोमुख के सन्दर्भ में समझना उस वक्त तकरीबन 18 साल के एक लड़के यानी मेरे लिये बहुत मुश्किल था। उस वक्त तक गोमुख जैसी जगहें सैर-सपाटे के शौकीनों की रुचि का विषय नहीं हुआ करती थीं। वहाँ जाने की वजह या तो आस्था होती थी या गंगा को जानने-समझने की आध्यात्मिक भूख। तब वहाँ पहुँचने के लिये तकरीबन 20 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था। इसके बाद भी मैं कई बार गंगोत्री आया। हर बार मैंने गंगा को एक नए रूप में अवतरित होते देखा। गोमुख से भागीरथी को निकलते देखना एक अवतार का साक्षी बनने जैसा है। यहाँ भागीरथी अपने सबसे नैसर्गिक रूप में नजर आती है।
2. देवप्रयाग के रंग
गंगा के चरित्र को समझने का अगला पड़ाव है देवप्रयाग। गोमुख से निकली भागीरथी यहाँ अलकनन्दा नदी से मिलती है। ठीक वैसे, जैसे दो सहेलियाँ मिल रही हों। खास बात यह कि देवप्रयाग में मिलने से पहले इन दोनों नदियों के रंग अलग-अलग होते हैं। जहाँ भागीरथी का रंग मटमैला है, वहीं नन्दादेवी जैसी पर्वत शृंखलाओं से निकली अलकनन्दा नदी हल्का नीलापन लिये हुए है। संगम के बाद दोनों नदियाँ एकसार हो जाती हैं। देवप्रयाग से पहले विभिन्न बिन्दुओं पर धौलीगंगा, नन्दाकिनी, पिंडर और मन्दाकिनी नदियाँ अलकनन्दा के साथ मिल चुकी होती हैं। देवप्रयाग की गंगा काफी चंचल नजर आती है। किसी किशोरी की तरह।
3. ऋषिकेश का वेश
बनारस के अलावा अगर भारत में विदेशियों का सबसे पसन्दीदा पर्यटन स्थल कोई है, तो वह है ऋषिकेश। इधर ऋषिकेश जैसी जगहों पर गंगा किनारे खेले जाने वाले एडवेंचर स्पोर्ट्स की तरफ भारत के मध्यम वर्ग का रुझान काफी बढ़ा है। इसमें कोई हर्ज भी नहीं है, बशर्ते इनमें हिस्सा लेने वाले गंगा के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझें। गंगा को एक बाजार बना कर पेश किया जाना मुझे ठीक नहीं मालूम होता।
4. प्रयाग का संगम
प्रयाग में गंगा का यमुना और सरस्वती संग संगम होता है, ये हम सभी जानते हैं। प्रयाग की गंगा इस संगम की वजह से बेहद खास है। संगम का मतलब है ज्यादा पानी उपलब्ध होना। ज्यादा खेत-खलिहानों के सिंचाई की सम्भावना। प्रयाग देश के उन शहरों में से एक है, जिसकी कल्पना बिना गंगा के की ही नहीं जा सकती वहाँ का आर्थिक मॉडल लगभग पूरी तरह गंगा पर आश्रित है।
5. बनारस की लहरें
बनारस की गंगा में भयंकर वेग है। मैं पहाड़ का आदमी हूँ, गंगा किनारे ही बड़ा हुआ हूँ। पर मेरे जैसा आदमी भी एक बार धोखा खा गया। बात 1973 की है। दरअसल मैं जोश-जोश में तैरते हुए मुख्यालय के पास आ गया था। वहाँ बहाव इतना तेज था कि मेरे डूबने की नौबत आ गई। उस दिन मैं वहाँ से बच कर आ गया इसे मैं एक करिश्मा ही मानता हूँ।
6. पटना की गंगा
गंगा से लोगों के जुड़ाव का सबसे अनूठा नजारा दिखता है पटना में छठ पूजा के दौरान। छठ वो समय होता है, जब पूरा बिहार हाथ जोड़कर गंगा नदी में उतर जाता है। अगर यहाँ के लोग गंगा की सफाई का भी दायित्व इतनी ही तत्परता के साथ निभाएँ, तो बड़ा सन्देश जाएगा। वहाँ कुछ समय पहले इस मुद्दे को लेकर बड़ी मुहिम चली थी, घाटों में सफाई के लिये गम्भीरता दिखाई गई थी।
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