आज देश में 50% से ज़्यादा ग्रामीण आबादी को उनके ही घर में नल से पेयजल की आपूर्ति होने लगी है। कुल 19.21 करोड़ ग्रामीण घरों में से अब 9.75 करोड़ घरों में शुद्ध पेयजल की आपूर्ति नल कनेक्शन से होने लगी है। 15 अगस्त, 2019 को शुरू हुए जल जीवन मिशन के बाद यह नल कनेक्शनों की कवरेज में तीन गुना की वृद्धि है। ओडिशा भी नल कनेक्शन उपलब्ध कराने के अपने निरंतर प्रयासों से राष्ट्रीय औसत प्रतिशत के करीब पहुँच रहा है क्योंकि राज्य में अब तक 48% से ज़्यादा ग्रामीण घरों में नल कनेक्शन उपलब्ध कराये जा चुके हैं, जबकि इस मिशन की शुरुआत के समय ओड़ीशा में कवरेज केवल 3.51% ही था।
खुद अपने ही घर में पेयजल का नल कनेक्शन होना ज़्यादातर ग्रामीण लोगों के लिए कुछ साल पहले तक एक सपना मात्र था, खासकर दूर-दराज़ के गांवों में। विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा किए गए निरंतर प्रयासों, और अनेक गैर-सरकारी संगठनों के सहयोग से, जो उपलब्धियां हासिल हो रही हैं, उनसे पता चलता है कि दृढ़ संकल्प और निरंतर प्रयासों से वह सब भी प्राप्त किया जा सकता है जो कभी सपना लगता था । 'हर घर जल' ने पेयजल आपूर्ति के बुनियादी ढांचे के नियोजन, कार्यान्वयन, प्रचालन और प्रबंधन के लिए पंचायतों और स्थानीय समुदायों को महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान की है।
गांवों में शुद्ध पेयजल सुनिश्चित करने के लिए महिलाएं नेतृत्व प्रदान कर रही हैं, जिसके लिए प्रत्येक गाँव में 5 महिलाओं की एक समिति बनाई गई है, जो समय-समय पर एफ़टीके की मदद से जल गुणवत्ता की जांच करती रहती हैं।
ओडिशा के मयूरभंज ज़िले के घोड़ाघागुरी गाँव का अनुभव इसका जीता-जागता उदाहरण है।
गाँव की पानी समिति की अध्यक्षा, रश्मि रेखा महंत, याद करती हैं उन प्रयासों को जो गाँव के घरों में नल से जल पहुंचाने के लिए किए गए थे, “हमारे गाँव के लगभग 900 लोग 3 नलकूपों पर निर्भर थे, जिनमें पानी का स्तर ज़मीन से 200 मीटर नीचे चला गया था। हर दिन सुबह-सुबह पहला ख्याल ही पानी लाने की समस्या का आता था। और, भोर होते ही हम अपने-अपने बर्तन उठाए चल पड़ते थे पानी की कतार में खड़े होने के लिए। दिन का ज़्यादा वक्त तो पानी कि ऐसी ही कतार में खड़े होने में बीत जाता था। घर की जरूरतें पूरी करने के लिए दिन में नलकूप के अनेक चक्कर लगाने पड़ते थे - गर्मियों में तो हर रोज़ 8-10 चक्कर लगाने पड़ते थे। ये तो बात है पीने के पानी की। नहाने और कपड़े धोने के लिए मुझे 2 किलोमीटर चलना पड़ता था झगदा नदी तक जाने के लिए। मगर, क्या करते; कोई और चारा भी तो नहीं था। जब पानी की ज़रूरत होती है, तो आप दूरियाँ नहीं गिनते हैं। "
घर-घर में नल से शुद्ध पेयजल पहुंचाने के लिए 'हर घर जल' से होने वाले फ़ायदों को गिनाने और समझाने के लिए रश्मि रेखा और उसकी सहेली, जयंती महंत ने गाँव के हर घर का 5 दरवाजा खटखटाया। शुरू में तो उन्हें गाँव के लोगों से कोई खास समर्थन नहीं मिला, मगर धीरे-धीरे गाँव की महिलाओं को बात समझ में आने लगी, क्योंकि पानी की किल्लत का सबसे ज़्यादा खामियाजा महिलाओं को ही भुगतना पड़ता है। महिलाओं को आगे आते देख रश्मि और जयंती ने गाँव वालों को गाँव में पानी समिति गठित करने के लिए माना लिया। लगभग एक साल के कठिन परिश्रम के बाद ग्रामवासियों ने गाँव में पेयजल आपूर्ति व्यवस्था स्थापित करने पर सहमति प्रदान कर दी ।
गाँव में 'हर घर जल' को लागू होता देख जयंती खुशी से फूली नहीं समा रही थी, “मेरा तो जैसे सपना ही पूरा हो गया है! घर में नल कनेक्शन होने से अब मैं अपने परिवार के लिए समय पर खाना तैयार कर सकूँगी, और मेरा बेटा समय पर स्कूल जा सकेगा। वरना, , पहले तो सुबह का सारा वक्त ही पानी लाने में बीत जाता था। समय बचने से अब मैं अपनी बकरियों की भी देखभाल कर सकूँगी। मैं तो अब और ज़्यादा मवेशी रखने की सोच रही हूँ, ताकि अपने घर के लिए कुछ अतिरिक्त आय अर्जित कर सकूँ।”
पानी समिति के नेतृत्व में ग्रामीण समुदाय यह सुनिश्चित कर सकता है कि गाँव का पेयजल आपूर्ति का बुनियादी ढांचा भलीभाँति कार्य करता रहे।
ओडिशा के गंजम ज़िले के नुआसाही गाँव में कौंध आदिवासी निवास करते हैं। यहाँ जब घरों में नल कनेक्शन से शुद्ध पेयजल पहुंचाया जाने लगा तो फैसला किया गया कि हर घर से उपयोग-शुल्क (यूज़र चार्ज) वसूला जाए। इसके लिए हर घर से साल में एक बार 500 रुपये जमा किए जाने थे। लेकिन जल्द ही महसूस किया गया कि अनेक गाँव वाले इतनी राशि एकमुश्त देने की स्थिति में नहीं थे। अतः नया फैसला किया गया कि अब प्रत्येक घर से 30 रुपये प्रति माह के हिसाब से वसूले जाएँ। इस गाँव में 10 महीनों तक पेयजल की आपूर्ति के लिए झरने को जल स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, और उसका पानी ग्रेविटी द्वारा वितरित होता है। इन 10 महीनों के दौरान पेयजल की इस व्यवस्था को चलाने पर केवल 150 रुपये प्रति माह की औसत से बिजली का बिल आता है। लेकिन, ठेठ गर्मियों में पानी की आपूर्ति के लिए एक नलकूप का उपयोग किया जाता है, जिसके पानी को उठाने के लिए मोटर पंप का इस्तेमाल करना पड़ता है। इससे बिजली का खर्च काफी बढ़ कर 1,000 रुपये प्रति माह तक पहुँच जाता है। इन्हीं पहलुओं को आधार बना कर गाँव में पानी के उपयोग- शुल्क की दर तय की जाती है।
गंजम जिले के ही चासा कनमना गाँव की पानी समिति ने जल आपूर्ति व्यवस्था को निर्बाध रूप से चलाने के लिए एक मजबूत प्रबंधन तंत्र स्थापित किया है। समिति का एक दफ्तर है जहां उसका पूरा रिकॉर्ड बढ़िया ढंग से रखा जाता है। गाँव के प्रत्येक घर को एक पुस्तिका दी गई है, जिसमें उपयोग शुल्क का पूरा हिसाब-किता रखा जाता है। यह उपयोग शुल्क हर महीने संक्रांति के दिन गाँव की सामान्य निकाय की बैठक के दौरान वसूला जाता है, और उसकी मात्रा, खपत के अनुसार, 30 रुपये से 100 रुपये तक हो सकती है। गाँव ने 'विलंब शुल्क' का भी प्रावधान किया है, जिससे बचने के लिए लोग वक्त पर भुगतान करना पसंद करते हैं।
गाँव की पानी समिति जल आपूर्ति व्यवस्था उचित रखरखाव के प्रति भी पूरी तरह सजग है। गंजम ज़िले के तमाना गाँव में 10 एचपी का पंप दो बार धोखा दे गया। पहली बार उसे ठीक कराने पर समिति को 17,000 रुपये खर्च करने पड़े; मगर कुछ ही वक्त बाद वह फिर बैठ गया। ऐसे में पानी समिति ने नया पंप खरीदना ही बेहतर समझा, जिस पर 70,000 रुपये का खर्चा आया। दोनों ही मामलों में खर्च के लिए धनराशि रखरखाव खाते से निकाली गई, जिसके लिए ग्रामवासी प्रतिमास अंशदान करते हैं।
ग्रामीण घरों में नल से जल पहुँचने से घरों में अब ताजी सब्जियाँ भी आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। गांवों के घरों से निकलने वाले ग्रेवॉटर का इस्तेमाल लोग घर के पिछवाड़े में बने बागीचे को सींचने के लिए करते हैं, और उससे सब्ज़ियाँ, आदि उगाते हैं। इससे ग्रामीण परिवारों को न केवल घर बैठे-बिठाये बढ़िया, पौष्टिक और ताजी सब्ज़ियाँ सस्ते में ही उपलब्ध हो जाती हैं, बल्कि इससे भूजल का पुनर्भरण भी होता है।
इसी ज़िले के मंडापत्थर गाँव की चन्द्रकला मलिक इन ताज़ी सब्जियों के बारे में अपना व्यक्तिगत अनुभव सुनाती हैं, “अपने बागीचे में सब्जियाँ उगाना शुरू करने से पहले मुझे सब्जियाँ खरीदने के लिए 4 किलोमीटर दूर साप्ताहिक हाट में जाना पड़ता था। हाथ में दो-दो भरे थैले उठा कर इतनी दूर से पैदल आना वाकई बड़ा थका देता था। मेरे पति को मजदूरी की तलाश में घर से काफी दूर अन्य गांवों में जाना पड़ता है। ऐसे में मैंने घर के पिछवाड़े में ही सब्जियाँ उगा कर इस मद पर पहले खर्च होने वाली राशि बचा ली है। पहले मैं सब्जियों की खरीद पर हर हफ्ते लगभग 300 रुपये खर्च करती थी। घर पर ही उगाई गई इन पौष्टिक सब्जियों से हमारे स्वास्थ्य में भी निश्चित रूप से सुधार होगा।”
जल जीवन मिशन से ग्रामीण घरों में केवल नल कनेक्शन ही नहीं लग रहे हैं, बल्कि इससे अनेक अन्य फायदे भी पहुँच रहे हैं। यह वास्तव में बेहतर स्वास्थ्य, पोषण और गुणवत्तायुक्त जीवन लिए जन आंदोलन की भूमिका निभा रहा है।
अब जल जीवन मिशन जैसे-जैसे 50% से 2024 तक 100% ग्रामीण घरों को कवर करने की दिशा में अग्रसर हो रहा है, ऐसे में कुछ पहलू ऐसे हैं जिनके कार्यान्वयन को और सुदृढ़ किए जाने की ज़रूरत है। तकनीकी उपाय और प्रबंधन संबंधी व्यवस्थाएँ इस प्रकार की बनाई जाएँ कि ग्रामीण समुदाय उन्हें आसानी से हासिल कर सके और चला सके। ग्रामीण इलाकों में विकास के साथ पानी की मांग भी बढ़ती जाएगी, जिससे भूजल के दोहन पर दबाव बढ़ेगा। ऐसे में जल स्रोतों की सुदृढ़ता और निरंतरता पर जोर दिया जाना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। ग्राम पंचायतों से उम्मीद की जाती है कि वे गाँव में स्थापित जल आपूर्ति के बुनियादी ढांचे का स्वामित्व ग्रहण करने और उसे निर्बाध रूप से दीर्घ काल तक चलाने में निर्णायक भूमिका निभाएँगी, क्योंकि अंततः वे ही भविष्य में इसकी संरक्षक होंगी। ग्राम पंचायतों और उपयोगकर्ता समूहों के बीच समन्वय के लिए और मजबूत मंच तैयार किए जाने होंगे ताकि स्थानीय लोग अपनी स्थानीय सरकार के साथ सीधा संवाद कर सकें और उन्हें पेयजल की गुणवत्ता, मात्रा और सुनिश्चित आपूर्ति के लिए जवाबदेह बना सकें।
स्रोत :- जल जीवन सवांद अंक 21, जून 2022
/articles/har-ghar-jal-swasthya-poshan-or-jeevan-ki-gunavatta-men-sudhar