डूब में आने से पहले धाराजी पूरे मध्य प्रदेश में भूतड़ी अमावस्या पर यहाँ भरने वाले मेले को लेकर पहचाना जाता रहा है। इस मेले में हर साल करीब तीन से पाँच लाख तक लोग शामिल होते रहे हैं। लेकिन 2004 में बरगी बाँध से अचानक मेले के दौरान पानी छोड़ दिये जाने से यहाँ नदी के किनारों पर जमा भीड़ में से कई लोग बहने लगे। इस हादसे में सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इससे पहले तक यह जगह स्वयंसिद्ध शिवलिंगों के कारण भी प्रसिद्ध रही है।
मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी पर्यटन योजना में निजी निवेश को सरकार की मंजूरी मिलने के बाद अब नर्मदा नदी के किनारे देवास जिले के धाराजी तथा कावड़िया पहाड़ सहित पूरा जंगल अब प्रदेश के पर्यटन नक्शे पर अपनी पहचान दर्ज कर सकेगा। यहाँ इससे पर्यटन की कई सम्भावनाएँ खुलेंगी और स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिल सकेगा। यहाँ पर्यटन सुविधाओं को बढ़ावा देने के लिये यूरेका सहित तीन बड़ी कम्पनियाँ पहले ही इच्छा जाहिर कर चुकी हैं। इसमें इलाके के पर्यावरण को भी सहेजा जाएगा।देवास से करीब सवा सौ किमी दूर धाराजी कभी नर्मदा के सबसे सुरम्य घाटों में से एक रहा है। लेकिन 2006 में ओंकारेश्वर बाँध परियोजना के बैकवाटर की डूब में आ जाने से यह स्थान धीरे–धीरे अपना अस्तित्व खोता जा रहा था। अब यहाँ जल पर्यटन को बढ़ावा दिया जाएगा। आसपास घने जंगलों से घिरा यह क्षेत्र अपनी प्राकृतिक वैविध्य के कारण पर्यटकों को आसानी से खींच सकेगा।
सागौन के घने जंगलों के बीच कल–कल करती नर्मदा नदी तथा धाराजी के आसपास लबालब बाँध के बैकवाटर में पर्यटन सुविधाओं को बढ़ावा देकर अब सरकार यहाँ पर्यटकों को लुभाएगी। हनुमंतिया के बाद यह दूसरा बड़ा पर्यटक स्थल होगा। यहाँ जल क्रीड़ा के संसाधन मुहैया कराए जाएँगे। इसके साथ ही चट्टानों पर रोमांचक गतिविधियों के लिये भी योजना बनाई जा रही है।
इलाके में करीब दर्जन भर अन्य धार्मिक और प्राकृतिक स्थानों को इससे जोड़कर पूरा एक पर्यटन सर्किट बनाने पर भी विचार हो रहा है। ओंकारेश्वर से धाराजी तक जलमार्ग बनाया जा रहा है। मोटरबोट या छोटे जहाज के जरिए दोनों स्थानों को जोड़ा जाएगा। समीप के पुंजापुरा स्थित ओंकारेश्वर राष्ट्रीय उद्यान को भी अब पर्यटक मिल सकेंगे। इसे चारों ओर से सड़कों के जरिए जोड़ा जाएगा। बीते साल ग्लोबल समिट के दौरान यूरेका और अन्य दो कम्पनियों ने धाराजी में निजी निवेश को लेकर इच्छा भी जताई थी।
डूब में आने से पहले धाराजी पूरे मध्य प्रदेश में भूतड़ी अमावस्या पर यहाँ भरने वाले मेले को लेकर पहचाना जाता रहा है। इस मेले में हर साल करीब तीन से पाँच लाख तक लोग शामिल होते रहे हैं। लेकिन 2004 में बरगी बाँध से अचानक मेले के दौरान पानी छोड़ दिये जाने से यहाँ नदी के किनारों पर जमा भीड़ में से कई लोग बहने लगे।
इस हादसे में सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। इससे पहले तक यह जगह स्वयंसिद्ध शिवलिंगों के कारण भी प्रसिद्ध रही है। यहाँ नदी की चट्टानों में वलयाकार गड्ढे हैं, इन गड्ढों से तैराक डूबकी लगाकर पत्थरों के स्वयंभू शिवलिंग निकाला करते थे। मान्यता था कि नर्मदा नदी से सीधे निकाले जाने पर इनकी पूजा से पहले प्राण प्रतिष्ठा नहीं करनी पड़ती। अब बाँध के पानी में डूब जाने से वह स्थान भी खत्म हो चुका है। कहा जाता है कि महाभारतकाल में बाणासुर ने यहीं तपस्या की थी। हर दिन बाणासुर कई शिवलिंग निर्मित कर उन्हें नर्मदा में प्रवाहित करता रहता था। इसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है।
इसी तरह कावड़िया पहाड़ तराशे गए (अष्टभुजी करीब 30 फुट ऊँचाई) पत्थरों का स्वनिर्मित ऐसा पहाड़ है, जहाँ हजारों की तादाद में एक ही आकार के पत्थर जमे हुए हैं। यह अपनी तरह की अनूठी भूवैज्ञानिक संरचनाएँ हैं। पूरी दुनिया में ऐसी आकृतियाँ केवल दक्षिण अफ्रीका और भारत में यहाँ ही मिलती है। दक्षिण अफ्रीका ने इन्हें पर्यटन और शोध की दृष्टि से काफी विकसित किया है। लेकिन हमारे यहाँ अब तक उपेक्षित ही रहे हैं। बताया जाता है कि किसी बड़े ज्वालामुखी के लावा शान्त होने से ऐसी आकृतियों के पत्थर बने हैं।
यहाँ सारे पत्थर एक ही आकार–प्रकार के होने के बाद भी उनकी अंदरूनी संरचना भिन्न है। सम्भवतः इसीलिये यहाँ के हर पत्थर को अन्य पत्थर या लोहे से ठोकने पर इनकी अलग–अलग ध्वनि आती है। यह ध्वनि संगीत के सात सुरों की तरह है। इसे लेकर कई पुरातत्ववेत्ताओं ने यहाँ शोध भी किया है। लेकिन अभी तक कोई बड़ी जानकारी सामने नहीं आ पाई है। इन्हें लेकर यहाँ कई तरह की स्थानीय किवदन्तियाँ भी हैं।
स्थानीय निवासी गिरधर गुप्ता बताते हैं– 'यह स्थान बहुत दुर्लभ है। वैज्ञानिक के मुताबिक ज्वालामुखी की वजह से ऐसा हुआ है तो इसके विशद शोध की दरकार है ताकि इसकी प्राचीनता का पता लगाया जा सके। लोगों में किवदन्ती है कि भीम नर्मदा नदी से शादी करना चाहता था। नर्मदा ने भीम को चुनौती दी कि मैं तो प्रारम्भ से ही कुँआरी नदी हूँ। लेकिन यदि तुम एक ही रात में मुझे बाँध सके तो मुझे तुमसे शादी का प्रस्ताव मंजूर होगा। भीम ने नर्मदा नदी को बाँधने के लिये ही इन पत्थरों को अपनी कावड़ में भरकर यहाँ लाया था। लेकिन सुबह हो जाने से ये पत्थर यहीं रखे रह गए और नर्मदा अब तक चिर कुँआरी नदी ही बनी रही। अब इस किवदन्ती में कितनी सच्ची है, नहीं कह सकते। पर इलाके में लोग यही मानते हैं। इसीलिये इसे कावड़िया पहाड़ के नाम से पहचाना जाता है।'
इसके आसपास सागौन के बड़े क्षेत्र में विस्तृत घना जंगल है। अब तक मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित रहने की वजह से इस इलाके का यथोचित विकास नहीं हो पाया है। इलाके में पर्यटन के लिये महत्त्वपूर्ण वन, नदी और पहाड़ों की शृंखला होने के बाद भी कभी इस क्षेत्र में कभी कोई पर्यटन गतिविधि नहीं रही। आसपास करीब 25 किमी इलाके में सिर्फ भील–भिलाला बाहुल्य क्षेत्र ही है।
इन आदिवासियों की मुख्य आजीविका भी इन्हीं जंगलों के सहारे चलती रही है। नर्मदा नदी होने के बाद भी इस क्षेत्र में सिंचाई सुविधाओं का भारी अभाव रहा है। लेकिन अब इस सरकारी घोषणा के बाद आस जगी है कि यह इलाका भी अब सुविधाओं से सम्पन्न हो सकेगा। इसका लाभ स्थानीय आदिवासियों को मिले तो उन्हें हर साल होने वाले पलायन की फजीहत से निजात मिल सकेगी। इसी तरह भले ही निजी निवेश हो या सरकारी खर्च पर यहाँ के पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं हो।
'जब पहली बार बागली से चुनाव लड़ा था, तब से ही बागली क्षेत्र के इन प्रसिद्ध स्थानों को पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित करने की मन में इच्छा थी। थोड़ी-सी सुविधाओं और सड़कें बन जाने से बड़ी संख्या में पर्यटक आ सकेंगे। अब मुख्यमंत्री ने पचमढ़ी कैबिनेट में इसके लिये प्रस्ताव पारित कर दिया है। यह निश्चित तौर पर बड़ी सौगात है। इससे आसपास के आदिवासियों को रोजगार के अवसर भी मिल सकेंगे'... दीपक जोशी, शिक्षा राज्य मंत्री, मध्य प्रदेश शासन
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