ह्नाँगहो नदी को नियंत्रित करने की चीनी विचारधारा

पानी और सिल्ट का विस्थापन एक कभी न खत्म होने वाला सिलसिला है। यह तो साफ, है कि सिल्ट का इतना अधिक जमाव तटबन्धों को ऊँचा करके या उन्हें मजबूत करके रोका नहीं जा सकता। वास्तव में तटबंध जितने ऊँचे और मजबूत होते जायेंगे सिल्ट का जमाव उतनी ही तेजी से बढ़ेगा क्योंकि सिल्ट के बाहर जाने के सारे रास्ते बन्द हो जाते हैं। इस प्रकार हम अपने ही जाल में फँसते हैं और जल-प्लावन, तटबंध टूटना, धारा परिवर्तन आदि के खतरे हमारा पीछा नहीं छोड़ते।

1955 मे चीन से प्रकाशित वहाँ के तत्कालीन उप-प्रधानमंत्री तेंग त्से ह्ने की रिपोर्ट में ह्नाँग हो नदी के बारे में काफी जानकारी दी गई है। इस रपट के कुछ अंश प्रसंगवश उद्धृत करने योग्य हैं- “परन्तु पीली नदी (ह्नाँग हो) में बाढ़ की असाधारण गम्भीरता केवल गर्मी के समय घाटी में वर्षा के कारण नहीं, ......परन्तु उससे भी अधिक नदी के निचले छोरों पर सिल्ट के बहुत ज्यादा जमाव के कारण है...। पीली नदी अपने प्रवाह के साथ दुनियाँ की किसी भी नदी के मुकाबले ज्यादा सिल्ट लाती है। यह सिल्ट इतनी होती है कि उससे भूमध्य रेखा के चारों ओर 1 मीटर ऊँचे और 1 मीटर चौडे़ बाँध के 23 फेरे लग सकते हैं। निचले क्षेत्रों में नदी का ढाल सपाट है और यह सिल्ट समुद्र में न जाकर बड़ी मात्रा में नदी तल में जमा होती है। परिणामतः धीरे-धीरे नदी तल ऊँचा होता गया और अब तटबन्धों के बीच नदी में पानी का औसत तल तटबन्धों की बाहर की जमीन से ऊँचा हो गया है जिसे हम उन्नत नदी (Eelvated River) भी कह सकते हैं। सिल्ट से भरी हुई ऐसी नदी की धारा स्थिर रह ही नहीं सकती। साथ ही सिल्ट का नदी के मुहाने पर जमाव हर साल बढ़ता ही जा रहा था जिससे न केवल नदी के इस हिस्से में हर साल धारा बदलती रहती है वरन् पूरे निचले क्षेत्र की स्थिति ही खतरनाक बन गई है और यही वजह है कि जब भी तटबन्धों के बीच में कैद नदी की समाई से ज्यादा बाढ़ आती है तब विपत्ति, जल-प्रलय, दरार पड़ना या धारा का बदलना सभी कुछ निचले क्षेत्रों में होता है। ऐतिहासिक रिकार्डों के अनुसार 1047 ई. से अब तक नदी के निचले क्षेत्रों में लगभग 1500 अवसरों से अधिक पर दरार पड़ना या जल-प्रलय जैसी घटनाएं हो चुकी हैं, 26 बार नदी का धारा परिवर्तन हुआ है जिसमें 9 बार का परिवर्तन बहुत बड़ा था। 1933 की भयंकर बाढ़ में 50 से भी अधिक जगहों पर तटबंध टूटे जिससे 11,000 वर्ग कि.मी. क्षेत्र पानी में डूबा। 36 लाख 40 हजार लोग बाढ़ से प्रभावित हुये तथा 18,000 लोग मारे गये। 2 हजार 3 सौ लाख युआन से अधिक की सम्पत्ति का नुकसान हुआ।

1938 में जापानियों ने चीन पर हमला किया। इस हमले को नाकाम करने के लिए होनान प्रान्त के चेंगचाउ के पास हुआयुवानकू में चियांग काई-शेक सरकार ने ह्नाँग हो का तटबंध कटवा दिया था जिससे नदी की धारा में भीषण परिवर्तन हुआ जिसमें 54 हजार वर्ग कि.मी. क्षेत्र में पानी भर गया। एक करोड़ पच्चीस लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुये और इसके पहले कि जापानी सेना का हमला नाकाम होता, जापानी सेना समेत खुद चीन के 8,90,000 लोग मारे गये।

रिपोर्ट आगे लिखती है कि “परन्तु क्या हम यह कह सकते है कि पीली नदी का खतरा टल गया है, नहीं। इसके विपरीत हमें हमेशा यह ध्यान में रखना चाहिये कि इसके द्वारा किया गया विनाश अब पहले से ज्यादा गंभीर हो गया है। सन् 1855 ई. के बाद के सौ वर्षों में यह तटबंध लगभग 200 बार टूटे हैं। इसका मुख्य कारण नदी के निचले क्षेत्रों में सिल्ट का जमाव है। एक क्षेत्रीय सर्वेक्षण के अनुसार निचले क्षेत्रों में नदी का तल एक से लेकर दस से.मी. तक प्रति वर्ष बढ़ रहा है। कुछ स्थानों पर नदी तल आस-पास की जमीन से 10 मीटर ऊपर हो गया है।” इस रिपोर्ट में तटबंध बना कर नदी की बाढ़ रोकने के तरीके को बाबा आदम के समय का तरीका बताया गया था। इसके अनुसार पान ची-सुन के प्रसिद्ध गुरु मंत्र “...तटबंध बना कर पानी को रोके रखो और तेज धारा में बालू को बहा दो” की एक तरह से चुटकी ली गई थी कि उनके पुरखों का ज्ञान कहाँ जा कर ठहर गया था। चीनियों ने तब सीख लिया था कि पानी और सिल्ट का विस्थापन एक कभी न खत्म होने वाला सिलसिला है। यह तो साफ, है कि सिल्ट का इतना अधिक जमाव तटबन्धों को ऊँचा करके या उन्हें मजबूत करके रोका नहीं जा सकता। वास्तव में तटबंध जितने ऊँचे और मजबूत होते जायेंगे सिल्ट का जमाव उतनी ही तेजी से बढ़ेगा क्योंकि सिल्ट के बाहर जाने के सारे रास्ते बन्द हो जाते हैं। इस प्रकार हम अपने ही जाल में फँसते हैं और जल-प्लावन, तटबंध टूटना, धारा परिवर्तन आदि के खतरे हमारा पीछा नहीं छोड़ते।

1954 के प्रारंभ में चीन ने सोवियत संघ से विशेषज्ञों के एक दल को अपने यहाँ आमंत्रित किया जिससे बड़े बाँधों की मदद से पीली नदी की समस्या के स्थाई समाधान के लिए राय माँगी गई। ए.ए. कोरोलीफ की अध्यक्षता में सात सदस्यों का एक दल जनवरी, 1954 में पीकिंग पहुँचा तथा अप्रैल, 1954 में पीली नदी योजना आयोग की स्थापना हुई। यह कदम चीनियों ने ह्नाँग हो नदी के तटबन्धों से तंग आ कर उठाया था। यह घटना कँवर सेन तथा डॅा. के. एल. राव की चीन यात्रा के पहले की है जो मई 1954 में चीन पहुँचे थे।

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Post By: tridmin
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