हमने बना दिया प्राणवायु को प्राणघातक


अब हमें यानी समाज को भी जागना होगा। हमें अपनी झूठी शान को किनारे रखना होगा। नई सोच जगानी होगी। ऐसी सोच, जिसके तहत हम अकेले जाने के लिये कार के बजाय पब्लिक ट्रांसपोर्ट से चलें। साइकिल चलाएं। पेपरलेस जिंदगी की तरफ बढ़ें और कम से कम एक पेड़ लगाएं। शहर का नाम, इतिहास और सीमा से नहीं लोगों से बनता है और शहर की मुकस्कुराती पहचान के लिये इतना बहुत ज्यादा तो नहीं है।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का नया परिचय सामने आया है। यह पहचान है प्रदूषित शहर की। यानी लखनऊ में अब मुस्कुराना तो क्या सांस लेना भी जोखिम भरा है। यह खुलासा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च की रिपोर्ट में हुआ है। एक सप्ताह पहले ही डब्लूएचओ की रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है, लेकिन अब दिल्ली चौथे पायदान पर पहुँच गई है और लखनऊ पहले स्थान पर। यूपी में न सिर्फ लखनऊ बल्कि कानपुर, वाराणसी और आगरा की हवा में भी सांस नहीं लिया जा सकता। वहीं यूपी, जहाँ के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर्यावरण इंजीनियर हैं। यूपी के ये चारों शहर देश के सबसे प्रदूषित हवा वाले शहर की लिस्ट में हैं।

लखनऊ के बाद बाद देश की सबसे जहरीली हवा कानपुर शहर की है। लखनऊ में एयर क्वालिटी इंडेक्स 471, कानपुर का 429, वाराणसी का 376 और आगरा का 359 है। दरअसल, एयर क्वालिटी इंडेक्स का मकसद है कि वायु प्रदूषण के सूचकांक को संख्या में परिवर्तित कर लोगों को बताना कि इसका मतलब क्या है। इसके जरिए हवा में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा मापी जाती है। हर गैस के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मापदंड तय किए हैं। इससे पता चलेगा कि वायु कितनी शुद्ध या खराब है या फिर बहुत ही खराब है। इससे लोगों को यह भी बताने में आसानी होगी कि वायु प्रदूषण का स्तर अगर सामान्य है तो क्या करना चाहिए, अगर खराब और बहुत खराब है तो उसका सेहत पर किस तरह का असर पड़ेगा।

यानी यह जन स्वास्थ्य के लिये लिया गया एक अहम कदम है, जिससे कई शहरों में वायु प्रदूषण पर हमेशा नजर रखना संभव हो पाता है। इस इंडेक्स का दूसरा मकसद है कि प्रदूषण की इमरजेंसी को भांपना और फौरन उपाय करना। बीजिंग, पेरिस सहित कई ऐसे शहर हैं, जहाँ प्रदूषण आपातकाल घोषित किया जाता है। प्रदूषण आपातकाल का मतलब है कि वायु प्रदूषण का स्तर बहुत ही ज्यादा बढ़ा हुआ हो। प्रदूषण आपातकाल के दौरान इन शहरों में कुछ देर के लिये उद्योगों को बंद कर दिया जाता है, सड़कों पर डीजल की गाड़ियों की संख्या भी कम कर दी जाती है। यह सबकुछ तब तक होता है, जब तक प्रदूषण का स्तर सामान्य न हो जाए। भारत में इसके बारे में जानकारी ही नहीं रहती है, इसलिए यहाँ ऐसा नहीं हो पाता है। वायु प्रदूषण के खतरे के चलते अब भारतीय संस्थान भी इसे गंभीरता से ले रहे हैं।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी ने सितंबर और अक्टूबर में लखनऊ शहर के नौ इलाकों और बाकी शहरों में इसी तरह वायु की गुणवत्ता जाँची थी। देश में सबसे ज्यादा प्रदूषित लखनऊ में एक्यूआई 471 होने की वजह से लखनऊ को रेड जोन में रखा गया है। ग्रीनपीस इंडिया और सीपीसीबी ने लोगों को चेतावनी दी है कि स्वस्थ लोग भी बिना मास्क घर से नहीं निकलें। लखनऊ के सबसे प्रदूषित होने की वजह मेट्रो समेत अन्य निर्माण कार्य बताए जा रहे हैं। इन दिनों लखनऊ में रियल एस्टेट का काम बहुत तेजी से चल रहा है, शहर के रिहायशी इलाकों में धड़ाधड़ ऊँची इमारतें बनाई जा रही हैं। इन सबके साथ अकेले लखनऊ में 23 लाख से ज्यादा वाहन रजिस्टर्ड हैं। और राजधानी होने की वजह से करीब इसके आधे पूरे महीने में यहाँ दूसरे शहरों से आ जाते हैं। ऐसे में बढ़ते ट्रैफिक जाम ने लखनऊ की हवा को जहरीला बना दिया है।

लखनऊ की हवा में सूक्ष्म कणों और हैवी मेटल्स के स्तर में पिछले साल के मुकाबले जबरदस्त वृद्धि हुई है। साथ ही सूक्ष्मकणों व हैवी मेटल्स का प्रदूषण तेजी से बढ़ा है। येल विश्वविद्यालय के अध्ययन के मुताबिक, 2.5 माइक्रॉन व्यास से छोटे कण मनुष्य के फेफड़ों और रक्त ऊतकों में आसानी से जमा हो जाते हैं। इन सूक्ष्मकण और हैवीमैटेल्स से हार्टअटैक से लेकर फेफड़ों का कैंसर तक होने का खतरा होता है। एक अमेरिकी स्वास्थ्य संगठन के अध्ययन का दावा है कि भारत में वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों की चपेट में आकर हर वर्ष 6.2 लाख लोगों की मौत हो जाती है। वर्ष 2000 के मुकाबले इस संख्या में 6 गुना इजाफा हुआ है। अध्ययन के अनुसार, उच्च रक्तचाप, तंबाकू, धूम्रपान, कुपोषण के बाद अब हत्यारों की सूची में वायु प्रदूषण का नाम लिया जाता है।

वहीं इस रिपोर्ट में देश की राजधानी की हवा में भी बीमारी तैरती दिख रही है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भी दिल्ली की हवा भी काफी जहरीली होती जा रही है। यहाँ एयर क्वालिटी इंडेक्स 382 है। वैसे हाल में ही आई एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली दुनिया के 10 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में सिर्फ शुमार ही नहीं सबसे ऊपर है और उसने चीन की राजधानी बीजिंग को पीछे छोड़ दिया है। नासा के सैटेलाइट द्वारा इकट्ठा किए गए आँकड़ों से पता चलता है कि दिल्ली में पार्टिकुलेट मैटर 2.5 माइक्रान से छोटे कण की मात्रा सबसे ज्यादा थी। वर्ष 2015 में बीजिंग में पहली बार 15 जनवरी को रात पीएम-25 की मात्रा 500 को पार कर गई थी, लेकिन दिल्ली में 8 दिन तक यह स्तर बना रहा।

अमेरिका की येल यूनीवर्सिटी के अध्ययन के मुताबिक, ताजा एनवायरन्मेंट परफॉर्मेंस इंडेक्स में 178 देशों में भारत का स्थान 32 से गिरकर 155वां हो गया है। भारत की स्थिति ब्रिक्स देशों में सबसे खस्ताहाल है। भारत की तुलना में पाकिस्तान, नेपाल, चीन और श्रीलंका की स्थिति बेहतर है। स्वास्थ्य एवं जलवायु परिवर्तन पर लैंसेट आयोग की 2015 के लिये किए गए अध्ययन में आईसीडी के एक अनुमान के मुताबिक, ओईसीजी देशों के साथ भारत और चीन में वायु प्रदूषण से हुई मौतों और लोगों के बीमार पड़ने के कारण विश्व में 3500 अरब डालर से अधिक का सालाना नुकसान हुआ है, जिसमें 1890 अरब डालर यानी 54 फीसदी भारत और चीन में हुआ है। वैसे इस बुरे हालात में भी उम्मीद का दिया अभी टिमटिमा रहा है। उम्मीद यह कि दुनिया को जलवायु परिवर्तन के खतरे से बचाने के लिये विश्व के 196 देशों के बीच पेरिस में एक ऐतिहासिक समझौता हुआ।

ऐतिहासिक इसलिए कि लंबी खींचतान के बाद इसे भारत, चीन जैसे कार्बन उत्सर्जक और विकसित देशों के अगुवा अमेरिका समेत छोटे-बड़े तमाम देश इस समझौते पर राजी हुए। इसमें धरती के तापमान में बढ़ोतरी को 2 डिग्री सेल्सियस से काफी नीचे रखने का लक्ष्य रखा गया है। यह समझौता 2020 से लागू होगा और माना जा रहा है कि अमीर व गरीब देशों के बीच दशकों से जारी गतिरोध को समाप्त करने का बड़ा कदम है। इस समझौते के तहत विकसित देशों ने विकासशील देशों की मदद करने के लिये प्रतिवर्ष 100 अरब डालर की प्रतिबद्धता जताई है।

भारत को राजी करने के लिये फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद ने परोक्ष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया। भारत की दो महत्त्वपूर्ण अवधारणाओं- जलवायु न्याय और सतत जीवनशैली के उपभोग जैसी माँग को प्रस्तावना में शामिल किया गया है। यह भारत के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। बावजूद इसके कई प्रावधानों पर भारत बीच का रास्ता निकालने की भावना के साथ राजी हुआ है। जैसे जलवायु वित्तपोषण के मुद्दों पर भ्रम हो सकता है, विकास के लिये दी जाने वाली सहायता या ऋण जलवायु वित्त के रूप में गिना जा सकता है। अगर क्षति और घाटे की बात करें तो, विकसित देशों पर कोई वास्तविक दायित्व भी नहीं होगा। विकासशील देशों को स्वच्छ ईंधन और प्रौद्योगिकी अपनाने में मदद करने के लिये समृद्ध देशों द्वारा 2020 से सालाना 100 अरब डॉलर देने पर सहमति बनी है, लेकिन इसमें तकनीकों के हस्तांतरण की बात नहीं है। फिर भी इस समझौते में सतत टिकाऊ जीवन शैली और उपभोग, साझा लेकिन विविध जिम्मेदारी के सिद्धांत को जगह दी गई है, जिसकी माँग भारत करता रहा है।

जबकि अमेरिका और दूसरे विकसित देश इस प्रावधान को कमजोर करना चाहते थे। उम्मीद यह भी है कि दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित हवा वाले चार शहरों के यूपी में पिछले दो साल में हरियाली बढ़ गई है। उत्तर प्रदेश में इस दौरान 112 वर्ग किलोमीटर जंगल बढ़े हैं और 149 वर्ग किलोमीटर में पेड़-पौधों की बढ़ोतरी हुई है। यानी प्रदेश में कुल 261 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में हरियाली का इजाफा हुआ है। हाल में ही प्रदेश का नाम एक दिन में सर्वाधिक पेड़ लगाने के लिये गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में शामिल किया गया। प्रदेश सरकार ने 7 नवंबर के दिन प्रदेश में 10 स्थानों पर 10 लाख 53 हजार 108 पौधे लगवाए थे। वहीं प्रदेश सरकार अगले साल छह करोड़ पौधे लगाने का दावा कर रही है।

अन्तरराष्ट्रीय स्तर से लेकर उत्तर प्रदेश के स्तर पर सरकारी प्रयास एक तरफ, अब हमें यानी समाज को भी जागना होगा। हमें अपनी झूठी शान को किनारे रखना होगा। नई सोच जगानी होगी। ऐसी सोच, जिसके तहत हम अकेले जाने के लिये कार के बजाय पब्लिक ट्रांसपोर्ट से चलें। साइकिल चलाएं। पेपरलेस जिंदगी की तरफ बढ़ें और कम से कम एक पेड़ लगाएं। शहर का नाम, इतिहास और सीमा से नहीं लोगों से बनता है और शहर की मुकस्कुराती पहचान के लिये इतना बहुत ज्यादा तो नहीं है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
ईमेल- mishrayogesh5@gmail.com

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