हम आसमां हैं हमको डुबानेवाले खुद ही डूब जाओगे

dam dispute
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सरदार सरोवर बाँध की ऊँचाई बढ़ाने के विरोध में लोगों का गुस्सा चरम पर है। कलीम भाई मसूरी एक शायर हैं। नर्मदा के सवाल को उन्होंने इन पंक्तियों में अभिव्यक्त किया है-

''ऐसा कभी चाहत का समंदर नहीं मिलेगा
घर छोड़कर मत जाओ कोई घर नहीं मिलेगा
सताएगी फिर आपको इस आन्दोलन की बात
जब धूप में कोई साया सिर पर घर न मिलेगा।
कद कितना जमीन से तुम उसका (सरदार सरोवर) उठाओगे,
हम आसमां हैं हमको डुबानेवाले खुद ही डूब जाओगे
ऐ हवा तख्त में तहजीब से दाखिल होना
पेड़ कोई भी सवरदार न गिरने पाए,
नर्मदा माँ मैं तुम्हें देता हूँ बाबा शंकर की कसम
तेरी घाटी से कोई व्यक्ति उजड़कर न जाने पाए।''


इन पंक्तियों में पीड़ा है नर्मदा के लोगों की। लोग एकत्र हुए हैं यहाँ अस्तित्व बचाने के लिए, जो बेदखल हो रहे हैं रोजगार और जमीन से।

बापू की समाधि स्थल परिसर में नर्मदा बचाओ आन्दोलन के अनिश्चितकालीन सत्याग्रह के पूर्व शहर के कारंजा चौराहे पर घाटी के लोग सैकड़ों की संख्या में एकत्र हुए। विजय स्तम्भ पर ढोल-ढमाकों के साथ रैली के रूप में एमजी रोड, रणजीत चौक, कचहरी रोड, कोर्ट चौहारा होते हुए यात्रा कर राजघाट पहुँचे। नर्मदा तट पर सभी ने ‘नर्मदा बचाओ-मानव बचाओ’ के नारे लगाते हुए जल संकल्प लिया।

नर्मदा के सवाल पर जीवन अधिकार सत्याग्रह आरम्भ हो गया है। नर्मदा बचाओ आन्दोलन की ओर गत 6 अगस्त से धार जिले के खलघाट से जीवन अधिकार यात्रा निकाली गयई। यात्रा बुधवार को जिला मुख्यालय पहुँची। यात्रा में नर्मदा बचाओ आंदोलन कार्यकर्ताओं के साथ-साथ सहित अन्य प्रदेशों से प्रतिनिधि व डूब प्रभावित क्षेत्र के लोग ग्रामीण शामिल हैं। यात्रा का समापन राजघाट पहुँचने पर हो गया और जीवन अधिकार सत्याग्रह में परिणत हो गया।

सरदार सरोवर बाँध की ऊँचाई 17 मीटर बढ़ाने को लेकर चिन्ता वाजिब है। सरकार चाहे केन्द्र की हो या राज्य की। चिन्ता एक ही है कि औद्योगिकरण की और कारपोरेट को संसाधन उपलब्ध कराने की। लेकिन विस्थापितों के पुनर्वास के लिए जमीन का टुकड़ा तक उपलब्ध नहीं है। तीस वर्षों के संघर्ष के अन्तराल में सरकारें आई और गई वायदे किए, लेकिन वह सरजमीन पर उतर नहीं सका।

सरकार लगातार राज्य को तरक्की की ओर ले जानेवाली परियोजनाओं को तो अमलीजामा पहनाती आई है, लेकिन विभिन्न परियोजनाओं के कारण विस्थापित लोगों के पुनर्वास के मानवीय मुद्दों का समाधान की कोई नीति नहीं है।

यात्रा में उड़ीसा से आए भूतपूर्व सांसद भक्तचरण दास ने नदियों की अविरलता और उसके जीवनदायिनी स्वरूप को रेखांकित करते हुए कहा कि सरकारों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि सरकार अब इसके पानी को बेच रही है। लोग अपनी जमीन और संस्कृति से बेदखल हो रहे हैं। विस्थापित हो रहे हैं। पुन: सरकार के फैसले ने इस क्षेत्र के लोगों के डूबोने का इन्जताम कर दिया है। इसलिए यह नर्मदाघाटी के स्वाभिमान और सम्मान की लड़ाई है इसे एकजूट होकर लड़ना है। हैरत की बात तो सरकारी अमला आन्दोलनकारियों की बात सुनने या वार्ता करने तक को तैयार नहीं है। इससे बड़ी संवेदनहीनता क्या हो सकती है?

राजघाट में महात्मा गाँधी की समाधि के समीप आयोजित जीवन अधिकार सत्याग्रह में उन्होंने कहा कि हकदारों को 10 लाख का मुआवजा नहीं दे रहे हैं। सरकार ने नर्मदा घाटी में एक भी अदालती आदेश का पालन नहीं कर रही है।

नर्मदा बचाओ आन्दोलन की नेत्री मेधा पाटकर ने कहा कि आन्दोलन का वर्तमान चरण नर्मदा घाटी के लोगों के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण परीक्षा की घड़ी है। यह न्याय और अन्याय के बीच, सच और झूठ, विकास और विनाश के बीच की लड़ाई है। जिन्दगी और मौत के बीच एक विकल्प है, संघर्ष। उस रास्ते को हमने अख्तियार किया है। नर्मदा घाटी को बचाने के लिए 30 साल से निरन्तर संघर्षरत हैं। अब समय आ गया है कि घाटी के लोगों को अपने हक के लिए बड़ी लड़ाई लड़ना है। सरकार तो निमाड़ में मौत का जाल बुनने में लगी है। सरकार विकास के नाम पर नर्मदा घाटी की उपजाऊ जमीन को डुबो रही है।

नर्मदा बचाओ आन्दोलन के वरिष्ठ कार्यकर्ता मंशाराम जाट ने घाटी के लोगों से बड़ी संख्या में इस सत्याग्रह में शामिल होने का आह्वान करते हुए इसे निर्णायक लड़ाई बनाने का आह्वान किया।

रैली व सत्याग्रह में मुल्ताई के पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम, वरिष्ठ पत्रकार चिन्मय मिश्र, महाराष्ट्र के डॉ. सतीष भिंगारे, पत्रकार सुनिति बहन, वरिष्ठ फिल्मकर्ता रमेश पिंपले, पर्यावरण सुरक्षा समिति गुजरात के लखन भाई, डॉ. सुगम बरंट, सुहात ताई, बड़वानी विधायक रमेश पटेल, जपं अध्यक्ष मनेंद्र पटेल, करण दरबार, मीरा, भागीरथ धनगर सहित देश के विभिन्न हिस्सों से आन्दोलनकारियों ने हिस्सा लिया।
 

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