हिंडन के संगी

make hindon pollution free walk
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हर बड़ी नदी की तरह हिंडन की देह भी अकेली नहीं है। हिंडन के उद्गम स्रोतों में बारिश के बाद कदाचित ही पानी रहता है, बावजूद इसके हिंडन बरसाती नदी कभी नहीं रही। हिंडन बारहमासी है। जाहिर है कि कई संगी-साथी मिलकर हिंडन की संपूर्ण देह को बनाते हैं: 41 किमी. की नागदेई, 78 किमी लंबी कृष्णी, 75 किमी की काली, 52 किमी की धमोला, 20 लंबी पांवधोई और 80 किमी की लंबाई धारती संधेली समेत कई प्राकृतिक बरसाती सखा यानी नाले। हिंडन समेत कुल 606 किमी लंबा प्रवाह क्षेत्र। नागदेई का औसत ढाल 1.80 मी. प्रति किमी है, नागदेई-धमोला तक 1.20 मी प्रति किमी, धमोला-काली 0.59 मी. प्रति किमी, काली- कृष्णी तक 9.29 मी प्रति किमी और कृष्णी के हिंडन से मिलने के बीच 0.20 मी प्रति किमी।

 

नागदेई


सबसे पहले पश्चिम से आकर नागदेई ही हिंडन से गलबंहिया करती है। नाग जैसी सरपट दौड़ लगाती है; अतः जल्दी से जल्दी मिलने के चक्कर में नागदेई अपना सब रस हिंडन में उड़ेल देती है। खुद सूखी रहती है। बारिश बाद इसमें कदाचित ही पानी रहता है।

 

धमोला


नागदेई के पश्चिम में एक गांव है - खुर्रमपुर। यह हिंडन की दूसरी सखी ’धमोला’ का मायका है। धमोला की ससुराल है - सरगथाल गांव। यहीं आकर वह हिंडन से मिलती है।

 

पांवधोई


धमोला की छोटी बहन पांवधोई उसे अकेले नहीं आने देती। वह भी हिंडन से मिलन को लालायित रहती है। पांवधोई भी हिंडन से मिलती है, लेकिन धमोला में विलीन होकर। पांवधोई सहारनपुर नगर के ऊपरी हिस्से से आकर नगर के बाद धमोला में मिल जाती है। पहले पावंधोई बड़ी मलीन थी। वह तो भला हो, वहां कभी नियुक्त हुए जिलाधीश आलोक कुमार का और सहारनपुर वालों का कि उन्होंने उसमें फेंका अपना मल वापस समेट लिया। 10 हजार ट्रक कचरा निकाला। तब कही ंजाकर पांवधोई कहीं उसके पांव धोकर पीने लायक हुए। जय हो!

 

कृष्णी


यूं तो हिंडन के छोटे-छोटे कई और सखा हैं, लेकिन कृष्णी और काली की बात कुछ अलग है। कहने को तो कृष्णी सखी है, लेकिन बचपनें में शाहपुर नाला और मेंगादयपुर नाला के साथ ज्यादा मटरगश्ती करने के कारण सहारनपुर वाले इसे भी नाला कहकर ही बुलाते हैं। कैरी गांव में इसे कृष्णी नाला ही कहते हैं। दरअसल यह कैरी गांव के बाद ही थोड़ी धीर-गंभीर होती है। इसका पाट चौड़ा हो जाता है। खादर का निर्माण शुरू करती है। परमार्थ में लग जाती है। फिर तो बरनावा में हिंडन से मिलने तक कृष्णी शांत व सदानीरा ही रहती है। कैरी से एलय तक 2 से 3 किमी का खादर तो एलय से बरनावा के मध्य 5 से 10 किमी का खाद बनाती है। कृष्णी बरनावा संगम के चारों ओर 12 से 15 किमी का खादर बनाकर हिंडनमय हो जाती है।

 

काली


और सभी सखा-सहेलियाँ चाहे जिस दिशा से आकर हिंडन से मिलते हों, लेकिन काली एकमात्र पूर्वी सखी है। यह धनकरपुर गांव से भागती-भागती आती है, तब कहीं जाकर पिटलोखर गांव में हिंडन से मिल पाती है। हिंडन से मिलने से पूर्व काली अपनी सब बहनों को समेटते हुए आती है। उन्हे समेटने के चक्कर में काली खुद कई धाराओं में बंट जाती है। दिलचस्प है कि मशहूर कस्बा देवबंद से लगभग 7 किमी उत्तर रुस्तमपुर और वनेरा खास के निकट काली जिन दो धाराओं में बंटती हैं, उन दोनों को ही पश्चिमी काली कहते हैं। पश्चिमी काली की एक बहन है - सिला। यह उत्तर से दक्षिण की ओर बहती है। हरियावास के निकट पश्चिमी काली धारा के पश्चिम से आकर सिला नदी अपना प्रणाम कहती है। जिसे पूर्वी काली कहते हैं, वह तो इन्दूखरक गांव के निकट की धारा है। इन सभी के संगम के बाद काली में वर्ष भर पानी रहता है। सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ और बागपत का बहुत बड़ा हिस्सा कभी इन्हीं के कारण सरसब्ज था। कहने को सरसब्ज तो आज भी है, लेकिन काली के कोप के कारण बीमार है।

जब संगी-साथी ही विष से भर जायें.... संगत ही बुरी हो जाये, तो हिंडन की देह भला सेहतमंद कैसे रह सकती है? सहारनपुर से लेकर गौतमबुद्धनगर में यमुना से मिलने तक हिंडन की देह के रूप में जल बहता है या जहर मिला मल बहता है... अभी कहना कठिन है। इसका उत्तर किसी ऋंखला की किसी अगली कड़ी में हिंडन की सेहत का मुआयना करने के बाद देना उचित होगा। यूं ऐसे में कुछ पुण्य मानव आत्मायें हिंडन के नये साथी के रूप में समाने आईं हैं। उनकी चर्चा अलग से करूंगा।

 

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