दिनांक 11 जून, 2015
1. संदर्भ : गंगा के प्रवाह में प्रदूषित पानी की आवक औसतन 700 क्युसेक है; जबकि यदि पूरी क्षमता के साथ वर्षाजल संचयन की कोशिश की जाए, तो गंगा में सतत् प्रवाह की मात्रा को 50 हजार क्यूसेक तक बढ़ाया जाना सम्भव है। उक्त तथ्य को आधार बनाकर श्री दीपक सिंघल (प्रधान सचिव - सचिव, सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग, उ. प्र. शासन) ने पंचायत को यह बताने की कोशिश की कि नदियों में ताजे जल की मात्रा बढ़ाना, प्रदूषण का एक कारगर समाधान है। उ.प्र. शासन प्राथमिकता पर यह कार्य करना चाहता है।
निर्णय संख्या-एक : जितना जरूरी और प्रभावी नदियों में ताजे जल की मात्रा बढ़ाना है, उतना ही जरूरी और प्रभावी कदम है, प्रदूषण की रोकथाम और इलाज। अतः उत्तर प्रदेश शासन, तीनों पहलुओं को समान प्राथमिकता देने वाली प्रदेश नदी नीति निर्मित कर तद्नुसार समयबद्ध क्रियान्वयन कार्यक्रम बनाए।
नदी में प्रवाह बढ़ाने हेतु निर्णय (संख्या 02 से 06)
2. संदर्भ : किसी भी नदी के तीन क्षेत्र होते हैं: प्रथम - सामान्य दिनों में नदी का पानी जहाँ तक बहता है; द्वितीय - सामान्य बाढ़ का पानी जितना क्षेत्रफल घेरता है; तृतीय: पिछले सौ वर्षों के दौरान सर्वाधिक बाढ़ वाले वर्ष में नदी का पानी जहाँ तक पहुँचा।
पंचायत के संचालक जलपुरुष श्री राजेन्द्र सिंह ने इन्हें क्रमशः नीले, हरे और लाल क्षेत्र का नाम दिया। श्री सिंह ने पंचायत में उपस्थित उत्तर प्रदेश के लोक निर्माण विभाग एवं सिंचाई व जल संसाधन विभाग के माननीय मन्त्री (श्री शिवपाल सिंह यादव) से माँग की कि वह आधिकारिक तौर पर सुनिश्चित करें कि क्रमशः इन तीनों क्षेत्रों की पहचान तथा चिन्हीकरण कर उसे तद्नुसार अधिसूचित किया जाए। माननीय मन्त्री ने पंचायत के समक्ष यह माँग स्वीकार की।
निर्णय संख्या-दो : उत्तर प्रदेश शासन प्रतिनिधि के तौर पर माननीय मन्त्री श्री शिवपाल सिंह यादव ने पंचायत के समक्ष नदियों के नीले, हरे और लाल क्षेत्र की पहचान, चिन्हीकरण और अधिसूचना जारी करने की जो माँग स्वीकारी है, वह इसका क्रियान्वयन एक नीतिगत निर्णय तथा समयबद्ध कार्यक्रम के रूप में कराने का कष्ट करें।
उप निर्णय 2 क : नीतिगत तौर पर किसी भी स्थिति में किसी भी नदी के नीले, हरे तथा लाल क्षेत्र का भू-उपयोग तथा मालिकाना बदलने की अनुमति न हो।
उप निर्णय 2 ख : उत्तर प्रदेश शासन, नदी क्षेत्र के साथ-साथ उत्तर प्रदेश की प्रत्येक जलसंरचना का सूचीकरण करे; सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज तथा वास्तविक मौजूदा रकबे को सार्वजनिक करे। इस सम्बन्ध में अधिसूचना वर्ष तय कर नए सिरे से सभी जलसंरचनाओं का रकबा, नाम, उपयोग तथा उपयोगकर्ता अधिसूचित करे।
ऐसा किए जाने से उत्तर प्रदेश शासन के राजस्व विभाग द्वारा जल संरचनाओं से अतिक्रमण मुक्त करने की बाबत करीब एक दशक पूर्व जारी अति महत्त्वपूर्ण व सराहनीय अधिसूचना की अनुपालना करने की प्रभावी पहल सम्भव हो सकेगी।
उप निर्णय 2 ग : यह काम सबसे पहले, उत्तर प्रदेश की सबसे प्रदूषित तथा प्रवाह खो चुकी नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों में हो।
उप निर्णय 2 घ : हिण्डन, उत्तर प्रदेश राज्य की सर्वाधिक प्रदूषित नदी है। अत: इस काम का शुभारम्भ हिण्डन नदी जलग्रहण क्षेत्र से ही किया जाए।
उप निर्णय 2 ङ : उत्तर प्रदेश शासन-प्रशासन, नदी क्षेत्र तथा अन्य जल संरचनाओं की पहचान तथा चिन्हीकरण के काम को स्थानीय नदी संगठन तथा सम्बद्ध ग्राम पंचायतों द्वारा आधिकारिक तौर पर गठित की गई जल समितियों की सहमति तथा सहयोग से करें।
उप निर्णय 2 च : जिन ग्राम पंचायतों में उत्तर प्रदेश भूजल दिवस- 2015 तक जल समिति गठित नहीं हुई है, वहाँ अगले सितम्बर, 2015 से पूर्व ऐसा किया जाना सुनिश्चित करें।
3. सन्दर्भ : उत्तर प्रदेश में वर्षाजल संचयन का सर्वाधिक प्रचलित ढाँचा, तालाब ही हैं। उत्तर प्रदेश के ज्यादातर इलाकों की खेती आज भी, नहरों से ज्यादा तालाबों और नलकूपों पर टिकी है। इस महत्त्व को देखते हुए ही महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी कानून के तहत उत्तर प्रदेश में तालाब निर्माण के काम को प्राथमिकता पर लिया गया। तालाब बने भी, किन्तु इन तालाबों में क्षमता और हुई वर्षा के अनुरूप पानी रुका नहीं। कई जगह तो इन्हें नलकूप से निकाले पानी से भरा गया; जबकि सभी जानते हैं कि ऐसा करने से वर्षाजल संचयन का उनका मूल मकसद कतई पूरा नहीं होता।
जल विशेषज्ञों की राय है कि ज्यादातर मामलों में तालाबों के लिये जगह और डिज़ाइन के चुनाव में हुई गलती मात्र के कारण ऐसा हुआ है। मनरेगा के तहत बनाए तालाबों मेें चारों तरफ पाल बनाकर पानी आने-जाने के लिये पाइप लगाए जाते हैं। यह कारगर सिद्ध नहीं हुआ। नाकामी की एक वजह, सरकारी तौर पर नवनिर्मित सभी तालाबों के लिये तय यह एक समान ज्यामिति भी है। इस गलती में मामूली सुधार करते हुए वर्ष 2009 में उत्तर प्रदेश शासन ने आदेश दिया था कि तालाबों में तीन तरफ ही पाल बनाई जाए। तालाबों को पानी आने की दिशा से खोलकर रखा जाए। किन्तु वह आदेश भी ज़मीन पर नहीं उतरा।
निर्णय संख्या- तृतीय : सरकारी बजट से बनने वाली जलसंरचना के लिये जगह तथा डिज़ाइन का चयन स्थानीय जरूरत व भौगोलिक परिस्थिति के अनुसार जैसा उचित हो, तय करने का छूट हो।
उप निर्णय 3 क : जलसंरचना के लिये जगह तथा डिज़ाइन का तय करने की निर्णायक शक्ति अधिकार पूरी तरह ग्रामसभा को सौंप दी जाए। ग्राम पंचायत तथा सरकारी तकनीकी तन्त्र की भूमिका, इसमें सहयोगी मात्र की हो।
4. संदर्भ : वैश्विक तापमान में वृद्धि ने वाष्पीकरण की गति को तेज किया है। गर्म जलवायु का प्रदेश होने के कारण उत्तर प्रदेश में इसका दुष्प्रभाव ज्यादा है। पिछले डेढ़ दशक में उत्तर प्रदेश में विभिन्न सड़क परियोजनाओं के लिये हुए कटान अलावा बड़े पैमाने पर हुए अवैध कटान ने इस दुष्प्रभाव को और बढ़ाया है।
निर्णय संख्या- चार : नदी के हरे क्षेत्र तथा अन्य सभी सतही जल संरचनाओं की खासकर दक्षिण और पश्चिम दिशा में स्थानीय जैवविविधता व पानी के अनुकूल वनस्पति लगाने और उसे संरक्षित करने का काम समयबद्ध लक्ष्य प्राप्ति तथा क्रियान्वयन व्यवस्था के साथ नियोजित हो।
उप निर्णय 4 क : वाष्पीकरण रोकने के इस काम की सतत् निगरानी व वैज्ञानिक मूल्यांकन हेतु ग्राम जल समिति/मोहल्ला समिति स्तरीय आधिकारिक जवाबदेही तय की जाए।
5. सन्दर्भ : उत्तर प्रदेश में गंगा, यमुना, गोमती, आमी, सरयू, हिण्डन समेत कई नदियों के किनारे के इलाके उपलब्ध पेयजल की मात्रा और गुणवत्ता में कमी के नए शिकार के रूप में सामने आ रहे हैं। दोहन और संचयन में सन्तुलन जरूरी है। जलसंचयन के पुराने ढाँचों पर बड़े पैमाने पर अवैध कब्जा है और नए ढाँचों के लिये भूमि की उपलब्धता, एक बड़ी चुनौती है। श्री दीपक सिंघल जी (प्रधान सचिव सिंचाई एवं जलसंसाधन विभाग, उ.प्र.) ने रबर डैम केे जरिए नदी प्रवाह की मात्रा बढ़ाने के विचार को पंचायत में समक्ष रखा। श्री राजेन्द्र सिंह ने कहा कि रबर डैम के सभी पहलुओं को जाँचे बगैर वह इसके पक्ष या विपक्ष में कोई राय नहीं दे सकते।
निर्णय संख्या- पाँच : पाँच में से एक पंच - सिंचाई विभाग के मुख्य अभियन्ता श्री एस.के. शर्मा मानते हैं कि रबर डैम, चीन समेत दुनिया भर में सफल हुआ है। श्री शर्मा, उत्तर प्रदेश की नदियों में रबर डैम के प्रयोग के पक्ष में हैं। एक अन्य पंच आईआईटी के प्रो. श्री विनोद तारे का स्पष्ट मत है कि शासन, अगले कुछ वर्षों तक रबर डैम जैसे प्रयोगों पर समय व पैसा खर्च न करे। प्रो. तारे समेत शेष चार पंचों की राय यही है कि भारतीय परिस्थिति और आर्थिकी की दृष्टि से प्राकृतिक प्रवाहों, बरसाती नालों तथा पेयजल की दृष्टि से अनुपयोगी हो चुके कुँओं आदि कोे आवश्यक तौर पर वर्षाजल संचयन ढाँचों के रूप में तब्दील किया जाना बेहतर विकल्प है। शासन, रबर डैम की तुलना में इस विकल्प को अपनी प्राथमिकता बनाए।
उप निर्णय 5 क : इसके लिये वर्षाजल संचयन क्षेत्रफल में वृद्धि का वर्षवार लक्ष्य तय करके, तद्नुसार कार्यक्रम बनें।
उप निर्णय 5 ख : भूजल सम्बन्धी उत्तर प्रदेश शासनादेश सख्ती से लागू किए जाएँ।
उप निर्णय 5 ग : किसी भी बसावट का नियोजन करते वक्त अब जिस तरह कुल क्षेत्रफल में से हरित क्षेत्र’ का क्षेत्रफल प्रतिशत तय होता है, उसी तरह ‘जल क्षेत्र’ का भी प्रतिशत क्षेत्रफल तय कर इसे आवश्यक बनाया जाए।
उप निर्णय 5 घ : ’जीरो डिस्चार्ज’ का मतलब है कि शोधन पश्चात नियोजित क्षेत्र से बाहर जाने वाले शोधित प्रवाह की मात्रा शून्य होगी। इसका यह भी मतलब है कि शोधन पश्चात प्राप्त प्रवाह की 100 फीसदी मात्रा का उपयोग नियोजित क्षेत्र में कर लिया जाएगा। चारदीवारी वाली ऐसी बसावटें तथा औद्योगिक इकाइयाँ, जिन्होंने ‘जीरो डिस्चार्ज’ का लक्ष्य नहीं किया है, उनसे ताजे आपूर्ति जल की एवज् में शोधन में आने वाले खर्च से डेढ़ गुना अधिक कीमत की दर का बिल वसूला जाए। ऐसा करने से वे, उनके स्वयं के द्वारा पैदा किए कचरे का 100 फीसदी शोधन करने को बाध्य होंगे।
उप निर्णय 5 ङ : जो बसावट/उद्योग ‘जीरो डिस्चार्ज’ लक्ष्य हासिल कर लें, उसेेे आपूर्ति किये जा रहे ताजे पानी की दर तथा मात्रा... दोनों अन्य बसावटों/उद्योगों की तुलना में एक व्यावहारिक प्रतिशत तक कम कर दी जाए।
दर कम करना, उन्हें जल पुर्नोपयोग के लिये प्रोत्साहित करता रहेगा। शोधन पश्चात् प्राप्त जल के 100 फीसदी पुर्नोपयोग के कारण ताजे पानी की आवश्यकता उन्हें कम होगी। अतः उन्हें कम मात्रा में पानी देने से हुई पानी की बचत अन्ततः नदी को उसके हिस्से का पानी देने में मददगार होगी।
उप निर्णय 5 च : मलशोधन संयन्त्रों के निर्माण के लिये शासन, स्थानीय निकायों को अनुदान देने की बजाय, कर्ज दे। जिसका भुगतान सुनिश्चित करने के लिये शासन, स्थानीय निकाय के साथ करार करे कि गुणवत्ता स्तर पर खरा पाए जाने पर शासन शोधित किये गए जल को तय मूल्य पर खरीद लेगा।
6. सन्दर्भ : प्रदेश की कई नदी पुनर्जीवन
परियोजनाओं में नदियों के तल को मशीन के जरिए छील कर गहरा तथा ढलवा किया गया है। तल, समतल होने के कारण नदी, नदी नहीं रही। उसका तल प्राकृतिक न होकर, मानव निर्मित नाले की भाँति हो गया है। जिला-अमेठी की मालती नदी, इसका एक छोटा सा उदाहरण है। मालती नदी जलग्रहण क्षेत्र में इसके दुष्परिणाम कई रूप में सामने आए हैं : नदी में पानी ज्यादा दिन तक रुकता नहीं। नदी किनारे का भूजल उतर गया है। गाद के नाम पर कई जगह, नदी की रेत हटा दी गई है। इससे जल को संजोकर रखने और साँस लेने की नदी की क्षमता कम हो गई है। खुदाई प्रक्रिया के कारण, नदी के मोड़ों पर मौजूद 10 फुट तक गहरे कुण्ड खत्म हो गए हैं। कुण्डों और ऊबड़-खाबड़ तल के खत्म होने से फरवरी आते-आते नदी की सतह पर पानी नहीं रहता। लिहाजा, नदी किनारे की हरियाली लुट गई है। वन्यजीवों के बसेरे खत्म हो रहे हैं। गर्मियों में खासकर, जंगली जीवों के लिये पेयजल का संकट उत्पन्न हो गया है। परिणामस्वरूप, नीलगाय, नलकूप की टंकियों और खेतों तक आने लगे हैं तथा अन्य वन्यजीव गाँवों तक। नदी का ऊबड़-खाबड़ तल ही नदी के प्रवाह को टकराने का मौका देता है। यह टकराहट, नदी में ऑक्सीकरण की प्रक्रिया को सतत् सक्रिय रखती है। इस सक्रियता के कारण, नदी के जल में ऑक्सीजन की मात्रा अधिकतम बनाए रखने में मदद मिलती है। जब इसकी ओर प्रशासन का ध्यान खींचा गया तो मालती नदी में स्थान-स्थान पर दो-दो मीटर ऊँचे स्टॉपडैम बनाने के टेंडर कर दिये गए। यह दोहरा नुकसान और दोहरा खर्च है।
निर्णय संख्या- छह : गाद निकासी कहाँ हो, कहाँ न हो; इसकी अनुमति नदी तल की भू-संरचना पर निर्भर करती है। अतः हिण्डन-यमुना-गंगा नदी पंचायत के पाँचों पंच मानते हैं कि नदी भूतल के कटावों के वैज्ञानिक आधार के अनुरूप ही गाद निकासी की अनुमति दी जाए।
उप निर्णय 6 क : जिस नदी में गाद निकासी अनुकूल हो, वहाँ भी गाद निकासी एक समान न करके एक लहर की माफिक समान अन्तराल के बाद ऊँची-नीची हो।
उप निर्णय 6 ख : नदी प्रवाह मार्ग के मोड़ों से पहले छोटे-छोटे कुण्डों की खुदाई बहुद्देशीय महत्त्व का काम है। अत्यन्त छोटी और मौसमी हो चुकी नदियों में कुण्ड निर्माण का काम प्राथमिकता पर किया जाए। यह प्रत्येक छोटी नदी में किया जा सकता है। इसके लिये किसी अध्ययन की आवश्यकता नहीं। इसे मनरेगा के तहत प्रदेश स्तर पर बनी योजनाओं में एक विशेष योजना के रूप में जोड़ा जाए।
प्रदूषण निवारण हेतु सन्दर्भ सहित निर्णय (संख्या 07 से 11)
7. सन्दर्भ : गंगा की निर्मलता का लक्ष्य हासिल न हो पाने के पीछे प्रवाह मार्ग में बाधा, नहरी सिंचाई हेतु अधिकतम जल का वितरण, खनन, गंगा भूमि पर अतिक्रमण के अलावा एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण भी हैं। वह कारण, यह है कि गंगा कार्य योजना से लेकर ‘नमामि गंगे’ तक सारा बजट और सारा जोर, नदी में मिलने वाले प्रदूषण के शोधन पर है; प्रदूषण न्यूनतम हो, यह अभी तक सरकार की प्राथमिकता बनी ही नहीं। कचरा, कैंसर की तरह होता है। जिस तरह कैंसर का इलाज, उसके स्रोत पर किया जाता है, ठीक उसी तरह कचरे का निष्पादन भी स्रोत पर किया जाना चाहिए। ऐसा नहीं हो रहा। पाइप लाइनों के द्वारा कचरे को नदी के किनारे ढोकर ले जाने का चलन जारी है।
शहरी मल और औद्योगिक अवजल, प्रदूषण के निस्सन्देह के बड़े स्रोत हैं; किन्तु कृषि रसायन, कीटनाशक, पॉली कचरा, ई कचरा तथा धार्मिक तथा अन्य ठोस कचरों से नदी को मिल रही चुनौतियों की ओर ध्यान नहीं दिया गया। नदी प्रदूषण मुक्ति की कोई भी योजना बनाते वक्त, भविष्य में नदी विशेष के किनारे बढ़ने वाली आबादी, मल, अवजल और ठोस कचरे का आकलन किया जाना जरूरी होता है। यह नहीं किया गया। यह तब तक सम्भव भी नहीं है, जब तक कि नदी किनारे के क्षेत्रों को लेकर अगले 25-50 वर्षों का मास्टर प्लान न बना लिया जाए। प्रदूषण नियन्त्रण हेतु केन्द्रीय तथा राज्य स्तरीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्डों से अपेक्षा की जाती है। सच यह है कि ये बोर्ड महज प्रदूषण सम्बन्धी शोध, जानकारी, मार्गदर्शी निर्देश तथा ‘प्रदूषण नियन्त्रण में है’ का प्रमाणपत्र जारी करने वाला तन्त्र बनकर रह गए हैं। लोगों को पता नहीं है कि उनकी नदी को कौन प्रदूषित कर रहा है।
निर्णय संख्या- सात : सभी प्रदूषकों की सूची बनें और प्रदूषण निवारण हेतु कदम उठाए जाएँ।
उप निर्णय 7 क : नदी में प्रदूषण नियन्त्रित करने के लिये जरूरी है कि नदी से मिलने वाले नालों के पानी की गुणवत्ता नियमित रूप से जाँची और सार्वजनिक की जाए।
उप निर्णय 7 ख : सीवेज तथा उद्योग, तरल कचरे के मुख्य दो स्रोत हैं। उद्योगों तथा मल शोधन संयन्त्रों के लिये जरूरी हो कि वे संयन्त्र के बाहर एक बड़े बोर्ड पर निम्न तथ्यों की दैनिक रिपोर्ट सार्वजनिक करें: संयन्त्र द्वारा उपयोग किया गया ताजा पानी, संयन्त्र द्वारा मल/अवजल शोधन के पश्चात् अलग हुए पानी तथा ठोस कचरे की अलग-अलग मात्रा, पुर्नोपयोग किये गए शोधित जल की कुल मात्रा तथा शोधन पूर्व व पश्चात् प्राप्त जल/अवजल की जैविक तथा रासायनिक रिपोर्ट।
उप निर्णय 7 ग : इस रिपोर्ट का 15 दिन में एक बार शासकीय अथवा प्रमाणिक प्रयोगशाला से प्रमाणित होना जरूरी हो।
उप निर्णय 7 घ : नदी के समानान्तर एक इंटरसेप्टर बनाकर, सम्बन्धित शहर के सभी नालों को जोड़ने तथा तत्पश्चात् नदी किनारे किसी एक स्थान पर शोधन संयन्त्र लगाने की योजना से श्री एस.के. शर्मा सहमत हैं। किन्तु शेष चार पंच मानते हैं कि तकनीकी और आर्थिक दृष्टि से यह योजना सर्वश्रेष्ठ विकल्प नहीं है।
उप निर्णय 7 ङ : पंचों की सर्वसम्मत राय है कि कचरे को उसके स्रोत से जितना करीब निष्पादित किया जाए, उतना श्रेयस्कर है। ऐसा करने से शोधन प्रणाली पर नियन्त्रण, निगरानी तथा सफलता अधिकतम होगी तथा असफल होने पर दुष्प्रभाव सीमित। अतः पंचों की इस राय को एक सिद्धान्त की तरह अपनाया जाए।
उप निर्णय 7 च : मल/अवजल के पश्चात् प्राप्त पानी की प्राथमिकता निम्नलिखित क्रमानुसार न सिर्फ तय की जाए, बल्कि सुनिश्चित किया जाए कि व्यवहार में भी ऐसा हो:
पहली प्राथमिकता - जिस स्रोत के जिस कार्य के परिणामस्वरूप मल/अवजल उत्पन्न किया गया हो, शोधन पश्चात् उसे सर्वप्रथम उसी स्रोत द्वारा उसी कार्य में पुर्नोपयोग में लाया जाए।
दूसरी प्राथमिकता - खेती तथा बागवानी में।
तीसरी प्राथमिकता - स्थानीय तालाबों में।
चौथी प्राथमिकता - स्थानीय गैर बरसाती नालों में।
अन्तिम प्राथमिकता - स्थानीय नहर में।
उप निर्णय 7 छ : ठोस कचरा, किसी भी हालत में निर्णय संख्या दो में उल्लिखित नदी के तीनों क्षेत्रों में न डाला जाए।
उप निर्णय 7 ज : नदियाँ, ‘डम्प एरिया’ में तब्दील न हों, इसके लिये सभी नगरीय बसावटों में भराव क्षेत्रों और कचरा निष्पादन क्षेत्रों के चिन्हीकरण तथा अधिसूचित करने का काम प्राथमिकता पर हो।
उप निर्णय 7 झ : नदी में किसी भी तरह का कचरा डालने वाले पर बिना अनुमति प्रथम सूचना प्राथमिकी दर्ज करने तथा राष्ट्रीय हरित पंचाट द्वारा यमुना नदी के मामले में दिये आदेशों के आलोक में उत्तर प्रदेश की अन्य नदियों के मामले में भी आर्थिक दण्ड व कारावास का प्रावधान हो।
निर्णय 7 : शासन-प्रशासन सुनिश्चित करे कि नदी के लाल क्षेत्र के तुरन्त बाद बसाई जाने वाली बसावटें पूर्णतया नियोजित हों तथा अनियोजित बसावटों पर रोक लगे।
7 ट : पंचों की राय है कि ‘जीरो डिस्चार्ज’ सुनिश्चित करने की शर्त के साथ ही नवीन नियोजित बसावटों को मंजूरी दी जाए।
7 ठ : मूर्ति निर्माण, विसर्जन को लेकर केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड द्वारा कई मार्गदर्शी निर्देश दिये गए हैं। धार्मिक कार्यों में प्रयोग की जाने वाली सामग्री को यमुना में न फेंके जाने को लेकर राष्ट्रीय हरित पंचाट का भी एक आदेश है। इनकी पालना सुनिश्चित करने की जवाबदेही, सीधे-सीधे नदी किनारे के स्थित तीर्थ स्थानों/शवदाह गृहों के प्रबन्धन की हो। स्थानीय प्रशासन इसमें सहयोगी और निगरानीकर्ता की भूमिका निभाए।
7 ड : उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय, इलाहाबाद ने यमुना और गंगा में मूर्ति विसर्जन पर रोक लगाई है। इस न्यायिक रोक के आलोक में प्रदेश की सभी नदियों में मूर्ति विसर्जन प्रतिबन्धित हो। शासन इस बाबत् अधिसूचना जारी करे।
8. सन्दर्भ : हिण्डन, उत्तर प्रदेश की सर्वाधिक प्रदूषित और भारत की दूसरी सर्वाधिक प्रदूषित नदी है। हिण्डन, यमुना में मिलती है और यमुना, गंगा में। स्पष्ट है कि हिण्डन की निर्मलता और प्रवाह सुनिश्चित किये बगैर ‘नमामि गंगे’ की सफलता तथा गंगा की निर्मलता व प्रवाह सुनिश्चित करना असम्भव है। हिण्डन का प्रवाह और निर्मलता, इसकी सहायक काली, कृष्णी, धमोला, पाँवधोई आदि धाराओं तथा जलग्रहण क्षेत्र में मौजूद बरसाती नालों व जल संचयन संरचनाओं पर निर्भर है। पंचायत में प्रस्तुत एक रिपोर्ट के मुताबिक, सहारनपुर से नोएडा के बीच लिये गए पानी के नमूनों में मात्र एक भनेड़ा गाँव का नमूना ही मानकों पर खरा पाया गया; शेष सभी नमूने फेल हुए। इसकी प्रमाणिकता इस तथ्य से भी है कि जितनी खतरनाक और बड़ी संख्या में हिण्डन नदी तन्त्र में रहने वाला जन-जीवन जलजनित बीमारियों का शिकार हो रहा है, उत्तर प्रदेश सीमा के किसी और नदी तन्त्र में नहीं। उक्त दोनों पहलू स्पष्ट करते हैं कि हिण्डन की उपेक्षा करना, गंगा-यमुना के साथ-साथ विशेषकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के भूजल, खेती, कृषि उत्पादों की गुणवत्ता, स्वास्थ्य, रोज़गार और आर्थिकी के लिये अत्यन्त घातक सिद्ध हो रहा है। इसका असर अन्ततः पूरे उत्तर प्रदेश तथा दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सेहत और आर्थिकी पर पड़ने वाला है।
निर्णय संख्या आठ : गंगा को पानी देने वाली उत्तर प्रदेश की सभी प्रान्तीय नदियों में हिण्डन को सर्वाधिक प्राथमिकता दी जाए। इसमें मिलने वाली सभी सहायक नदियों तथा बरसाती नालों को निर्मल तथा वर्षाजल से प्रवाहमान बनाने का काम प्राथमिकता पर हो।
उप निर्णय 8 अ : हिण्डन जलग्रहण क्षेत्र की सभी नदियों का उद्गम तालाबों से हुआ है। स्पष्ट है कि हिण्डन को प्रवाहमान बनाने के लिये इसके जलग्रहण क्षेत्र की जलसंरचनाओं को संरक्षित और समृद्ध करना अत्यन्त आवश्यक है।
9. सन्दर्भ : स्वयंसेवी समाज द्वारा भारत में नदी निर्मलता प्रयास की आयु कई दशक हो चुकी है। अनुभव यह है कि एक-दूसरे के दोषारोपण मात्र से समाधान सधेगा नहीं। इसके लिये ईमानदार साझा और आपसी सहयोग जरूरी है। प्रशासन और पब्लिक के साझे से समाधान के रूप में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर नगर से गुजरने वाली पाँवधोई नदी का उदाहरण हमारे सामने है। जलबिरादरी की स्थानीय इकाई की पहल पर तत्कालीन जिलाधिकारी श्री आलोक कुमार व स्थानीय नागरिकों द्वारा पेश सफलता प्रमाण है कि यदि इच्छाशक्ति हो, तो बिना अतिरिक्त धन या परियोजना के कचरा मुक्ति सम्भव है।
गौर करें कि पाँवधोई के इस उदाहरण से प्रेरित होकर तत्कालीन उत्तर प्रदेश शासन ने एक आदेश जारी किया था, जिसमें उत्तर प्रदेश के कई जिलों का उल्लेख करते हुए यह अपेक्षा की गई थी कि सहारनपुर प्रशासन-पब्लिक के साझे की सफलता अन्य जिलों में भी दोहराई जाएगी। किन्तु यह हो न सका।
हिण्डन-यमुना-गंगा पंचायत के आयोजक ‘जल-जन जोड़ो अभियान के संचालक श्री राजेन्द्र सिंह, अन्य विशेषज्ञों, ज़मीनी हकीक़त से रुबरु प्रतिभागियों तथा सभा में उपस्थित शासन-प्रशासन प्रतिनिधियों ने संकेत दिया कि वे पाँवधोई के प्रयोग को ज्यादा विस्तार और विविधता के साथ हिण्डन नदी में दोहराने के इच्छुक हैं।
निर्णय संख्या 9 : सभा द्वारा शासन-प्रशासन-पब्लिक के साझे से हिण्डन निर्मलीकरण के लक्ष्य को अंजाम देने की दर्शाई गई इच्छा का सभी पंच स्वागत करते हैं। पंचों की राय में इसके नियोजन, संचालन, क्रियान्वयन, निगरानी तथा मूल्यांकन हेतु एक साझा-सक्रिय औपचारिक तन्त्र विकसित करना आवश्यक है।
10. सन्दर्भ : किसी भी नदी की निर्मल कथा टुकड़े-टुकड़े में लिखी तो जा सकती है, किन्तु सोची नहीं जा सकती। हिण्डन नदी निर्मलीकरण को भी समग्र सोच व समग्र प्रयासों की आवश्यकता है। इसे इस तरह अंजाम दिया जाना चाहिए ताकि यह उत्तर प्रदेश ही नहीं, देश की दूसरे प्रान्तों के लिये सीखने योग्य एक सबक बन सके।
निर्णय संख्या दस : हिण्डन निर्मलीकरण हेतु चार स्तरीय व्यवस्था ढाँचा बनाया जाए : हिण्डन जलग्रहण क्षेत्र स्तरीय, जिला स्तरीय, तहसील स्तरीय तथा तहसील के भीतर जलसंरचना स्तरीय।
हिण्डन जलग्रहण क्षेत्र स्तरीय व्यवस्था
उप निर्णय 10 क : हिण्डन नदी जलग्रहण क्षेत्र स्तरीय व्यवस्था, एक सशक्त-सक्षम-मार्गदर्शी किन्तु जवाबदेह व्यवस्था हो। यह मार्गदर्शी व्यवस्था, नीतिगत निर्णयों, मार्गदर्शी निर्देशों को तय करने, उनकी पालना तथा वित्तीय व्यवस्था के लिये सक्षम तथा जवाबदेह हो।
उप निर्णय 10 ख : निर्मल हिण्डन मार्गदर्शी व्यवस्था में शामिल किए जाने वाले प्रतिनिधि : केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मन्त्रालय का एक प्रतिनिधि, केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा पुनरोद्धार मन्त्रालय का एक प्रतिनिधि, उत्तर प्रदेश राज्य सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग के राज्य स्तरीय दो प्रतिनिधि, हिण्डन जलग्रहण क्षेत्र के सभी मण्डलायुक्त, प्रत्येक मण्डल स्तर से एक-एक तकनीकी प्रतिनिधि, हिण्डन जलग्रहण क्षेत्र के सभी सांसद, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड का एक प्रतिनिधि, प्रमुख स्थानीय औद्योगिक परिसंघ के तीन प्रतिनिधि, आईआईटी, रुड़की का एक प्रतिनिधि, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी का एक वैज्ञानिक प्रतिनिधि, सेंट्रल पेपर एण्ड पल्प रिसर्च इंस्टीट्यूट का एक वैज्ञानिक प्रतिनिधि, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय (मेरठ) का एक प्रशासनिक प्रतिनिधि, राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण से सेवानिवृत एक न्यायिक सदस्य, वित्त नियोजन एवं लेखा निगरानी समीक्षा हेतु विशेषज्ञ, एक विद्वान नगर नियोजक, इण्डिया वाटर पार्टनरशिप और हिण्डन जलबिरादरी जैसे स्थानीय समझ तथा जन-अभियान संचालन के अनुभवी दो विशेषज्ञ स्वयंसेवी संगठनों के एक-एक प्रतिनिधि, हिण्डन जलग्रहण क्षेत्र में पूरी तरह प्रभावी प्रमुख मीडिया समूह का प्रशासनिक प्रमुख, नदी-भूजल-कृषि-समाज मसलों पर पश्चिम उत्तर प्रदेश क्षेत्र विशेष में व्यावहारिक अनुभव व ज्ञान रखने वाले क्रमशः तीन-तीन विशेषज्ञ।
उप निर्णय 10 ग : उक्त मार्गदर्शी व्यवस्था के संचालन हेतु मार्गदर्शी व्यवस्था स्तर पर अगले दस वर्षों के लिये पूर्णकालिक ‘हिण्डन निर्मलीकरण मिशन’ की स्थापना की जाए। यह मिशन, मार्गदर्शी व्यवस्था के दायित्वों के क्रियान्वयन हेतु समन्वय के अलावा वित्तीय आवंटन, अंकेक्षण, कार्य की निगरानी तथा परिणाम मूल्याकंन के लिये जवाबदेह होगी।
उप निर्णय 10 घ : मिशन द्वारा वित्तीय आवंटन, सीधे तहसील तथा जल संरचना स्तरीय नोडल एजेंसी को किया जाए। उनका वित्तीय लेखा-जोखा भी सीधे इसी स्तर से लिया जाए। यदि सांसद निधि, नगरपालिका/जिला पंचायत निधि, मनरेगा आदि से वित्तीय व्यवस्था की जानी हो, तो भी वित्त आवंटन में उक्त प्रक्रिया अपनाई जाए। इससे वित्तीय आवंटन में भ्रष्टाचार तथा देरी से निजता मिलेगी।
जिला/तहसील/जलसंरचना स्तरीय व्यवस्था
निर्णय संख्या 11 : नियोजन का कार्य, जिलास्तर पर न किया जाए। जिला स्तरीय तन्त्र की जवाबदेही सम्बन्धित व्यवस्थाओं के बीच मार्गदर्शी निर्देशों के प्रचार-प्रसार, समन्वय, कार्य प्रगति, निगरानी, सामाजिक अंकेक्षण तथा परिणाम मूल्यांकन रिपोतार्ज का लेन-देन, तथा विवाद की स्थिति मे वैधानिक समाधान सुनिश्चित करने की हो।
उप निर्णय 11 क : जिला स्तरीय व्यवस्था, जिलाधिकारी की नेतृत्व में संचालित हो। जिलाधिकारी सुनिश्चित करें कि जिला स्तरीय नगर/ग्राम विकास एजेंसी, जिला उद्योग केन्द्र, जिला प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड, जिला पंचायत/नगर निगम/नगरपालिका, सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग, जल निगम, पुलिस विभाग, कृषि विभाग, बागवानी मिशन, पशु पालन विभाग, शिक्षा विभाग, स्वास्थ्य विभाग, वन विभाग, सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग तथा जिला कृषि विज्ञान केन्द्र...... तहसील व जलसंरचना स्तर पर हिण्डन निर्मलीकरण हेतु बनी योजनाओं के क्रियान्वयन मे पूरी तरह सहभागी व जवाबदेह भूमिका निभाएँ।
उप निर्णय 11 ख - हिण्डन निर्मलीकरण हेतु निर्णय संख्या 10 क में सुझाए मार्गदर्शी ढाँचे के मार्गदर्शी निर्देशों के अनुसार, क्रियान्वयन, नियोजन, निगरानी तथा मूल्यांकन हेतु ब्लॉक तथा जलसंरचना स्तर पर कार्यबलों का गठन किया जाए। इन कार्यबलों के कार्यक्षेत्र, कर्तव्य, अधिकार तथा इसके लिये प्रशिक्षण व जवाबदेही सुनिश्चित हो।
11 ग : तहसील और तहसील स्तरीय कार्यबल में शामिल किए जाने वाले सदस्य: उपजिलाधिकारी, ब्लॉक प्रमुख/महापौर, ब्लॉक विकास अधिकारी, पुलिस अधिकारी, निर्णय संख्या 10 घ में सुझाए जिला स्तरीय विभागों के तहसील स्तरीय निर्णायक अधिकारी, स्थानीय तीर्थ तथा शवदाह गृहों के प्रमुख, दो जन-अभियान विशेषज्ञ, एक विधि विशेषज्ञ, हिण्डन किनारे के न्यनूतम दो और अधिकतम पाँच प्रमुख उद्योगों के एक-एक प्रतिनिधि, दो स्थानीय ब्यूरो प्रमुख, नदी-भूजल-कृषि-समाज-सूचनाधिकार व न्यायिक प्रक्रिया मसलों पर उसी जिला विशेष में व्यावहारिक कार्यानुभव रखने वाले क्रमशः दो-दो गैर सरकारी प्रतिनिधि। तहसील स्तर पर स्कूल तथा कॉलेज स्तर पर जागृति तथा क्रियान्वयन हेतु युवा टोलियाँ तैयार करने के लिये क्रमशः दो-दो संस्थानों को नोडल स्कूल/कॉलेज बनाकर तहसील स्तरीय कार्यबल में शामिल किया जाए।
11 घ : चौथा कार्यबल, तहसील में मौजूद विशाल तालाब/झील, नाले तथा नदी के स्तर पर बने। यह कार्यबल, मार्गदर्शी निर्देशों के आलोक में जल इकाई के स्तर पर योजना, क्रियान्वयन, निगरानी तथा स्वैच्छिक मूल्यांकन हेतु उत्तरदायी हो। जलसरंचना स्तरीय कार्यबल, उपजिलाधिकारी की निगरानी में संचालित तथा गठित हों।
जलसंरचना स्तरीय कार्यबल का ढाँचा... सतत् सक्रियता, जवाबदेही तथा स्थानीय सहभागिता सुनिश्चित करने वाला हो। यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यकतानुसार कानूनगो, अन्य अधिकारी तथा ग्रामस्तरीय विविध वर्गों को जोड़ा जाए, किन्तु नेतृत्व पूरी तरह गैर सरकारी हाथों में हो। जलसंरचना स्तरीय कार्यबलों को सक्रिय बनाने में स्थानीय स्कूल/कॉलेजों के भूगोल विभाग, पर्यावरण विभाग, शिक्षा विभाग, राष्ट्रीय सेवा योजना, एन.सी.सी तथा नेहरु युवक केन्द्र के मौजूदा ढाँचे के उपयोगी आर्थिक व मानव संसाधन का उपयोग सुनिश्चित किया जाए।
11 ङ : तहसील स्तर पर जवाबदेही और सक्रियता सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है, इस स्तर पर साप्ताहिक अन्तराल स्तर पर समन्वय करने वाला समूह बनाया जाए। सुनिश्चित हो कि वह समूह, सप्ताह का एक कार्यदिवस, पूरी तरह हिण्डन निर्मलीकरण मिशन के कार्यालयी तथा नदी/समाज/जलसंरचना स्तरीय इकाई के पास जाकर करने लायक कार्यों में लगाएगा।
निर्णायक पंच समूह का समन्वय तथा इस निर्णयों का लेखन अरुण तिवारी द्वारा किया गया।
ई दस्तावेज़ होने के कारण इस पर पंचों के हस्ताक्षर की अनिवार्यता नहीं है।
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