हिण्डन नदी का उदगम् सहारनपुर जिले के गांव पुर का टांका गांव से हुआ। हिण्डन शब्द का उद्भव हिण्ड शब्द से हुआ जिसका अर्थ है इधर-उधर घूमना फिरना या जाना होता है। इस प्रकार यह नदी टेढ़े- मेढ़े रास्ते से होती हुई आगे बढ़ती है। आज से 35-40 वर्ष पहले तक हिण्डन नदी कल-कल की आवाज़ करती हुई निर्मल जल से होकर बहती थी। कई जिलों के खेतों को सींचती हुई अपने गन्त्वय की ओर बढ़ती थी। हिंडन नदी के बारे में गरिमा ने अपनी कविता में लिखा है-
“वो करती थी कल-कल
अपनी गोद में लेकर निर्मल जल
सिंचन करती हिण्ड हिण्ड
देती थी खुशहाली हिण्डन
सुखा तन सूखा मन सूखा है जन जल
सुनो व्यथा मेरी कथा
करती हिण्ड हिण्ड कल कल
लिए थी मै निर्मल जल हिण्डन”
नदी के बारे में बुढाना क्षेत्र के हमारे बुजुर्ग जगत सिंह अपने समय की बात बताते है कि हम इस नदी को नाव से अथवा तैर कर पढ़ने के लिए जाते थे। लेकिन अब तो तैरने की बात तो दूर जल को छू लेने के लिए भी पानी नहीं बचा है अगर है थोड़े बहुत जल को छू भी लिया तो गंभीर रोगों के शिकार हो जाएंगे। उस समय को याद कर आज ग्लानि महसूस करते हैं और कहते हैं कि आने वाली पीढ़ियाँ तो शायद नदी के वास्तविक अर्थ की कल्पना, समझ को महसूस नहीं कर पाएंगी वो नालों को ही नदी समझेगी। अब यह नदी किसानों की फ़सलों की सिंचाई करने में असमर्थ है। किसान अब भूगर्भ जल से ही सिंचाई कर रहे हैं। भूगर्भ जल के अंधाधुध प्रयोग के कारण भूजल नीचे खिसकता जा रहा है। भूजल की स्थिरता के लिए नदियों की बड़ी भूमिका है। नदियां भूजल स्तर को ऊपर उठाने का काम करती हैं। इस नदी का चित्र सहायक नदियों को जोड़ते हुए एक जनहित संस्था की पुस्तक से लिया गया है।
आज यह हिण्डन प्रदूषण की मार व लोगों की लापरवाही के कारण अपना मूल रूप खो चुकी है। बपारसी गांव के निकट से गुजरते हुए इस नदी के जल से बदबू आती है। गंगा व यमुना बड़ी नदियों की तो लोग बात कर लेते हैं लेकिन हिण्डन की कोई सुध लेने वाला नही हैं। क्षेत्र के लोग नदी के प्रदूषण से तो पीड़ित है लेकिन आवाज़ उठाने वाला नही है। कई बार नदी के प्रदूषण से होने वाली बिमारियों को लेकर छोटे-छोटे धरना प्रदर्शन तो हुए लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं निकल पाया। क्षेत्र की गैर सरकारी संस्था भारत उदय एजूकेशन सोसाइटी ने बुढाना क्षेत्र के 30 स्कूलों में जैव विविधता अभियान के अंतर्गत नदी को बचाने का मुद्दा उठाया था। जिसमें नदी को बचाने के लिए बच्चों को प्रेरित किया। सहारनपुर की पावंधोई नदी से सफाई होने के कारण क्षेत्र के लोगों ने सबक लिया है। जल्दी ही संस्था दोबारा समुदाय में अभियान चलाएगी। जिससे लोग इस मृत नदी को दोबारा जीवित करने में मदद कर सके।
“वो करती थी कल-कल
अपनी गोद में लेकर निर्मल जल
सिंचन करती हिण्ड हिण्ड
देती थी खुशहाली हिण्डन
सुखा तन सूखा मन सूखा है जन जल
सुनो व्यथा मेरी कथा
करती हिण्ड हिण्ड कल कल
लिए थी मै निर्मल जल हिण्डन”
आज यह हिण्डन प्रदूषण की मार व लोगों की लापरवाही के कारण अपना मूल रूप खो चुकी है। बपारसी गांव के निकट से गुजरते हुए इस नदी के जल से बदबू आती है। गंगा व यमुना बड़ी नदियों की तो लोग बात कर लेते हैं लेकिन हिण्डन की कोई सुध लेने वाला नही हैं। क्षेत्र के लोग नदी के प्रदूषण से तो पीड़ित है लेकिन आवाज़ उठाने वाला नही है। कई बार नदी के प्रदूषण से होने वाली बिमारियों को लेकर छोटे-छोटे धरना प्रदर्शन तो हुए लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं निकल पाया।
यह नदी अपने टेढ़े-मेढ़े रास्तों से बहती हुई खेतों की सिंचाई करती हुई बहती थी। कभी यह नदी खुद भी खुशहाल थी और जन मानस को भी खुशहाल रखती थी। नदी साफ जल से लोग अपनी प्यास बुझाते थे। वर्तमान में यह नदी सहारनपुर, शामली व मुज़फ़्फरनगर जिले बुढाना कस्बे में आते-आते पूर्ण रूप से सूख चुकी है। मेरठ जिले के पिठलोकर गांव में काली पश्चिम के संगम के बाद में यह नदी आगे बागपत जिले के बरनावा कस्बे में कृष्णा के संगम से आगे बढ़ती है। अनेक गत्ता मिलों, शराब फ़ैक्टरियों, चीनी मीलों व नालों के कचरे को ढोती हुई यह यमुना नदी में मिल जाती है।नदी के बारे में बुढाना क्षेत्र के हमारे बुजुर्ग जगत सिंह अपने समय की बात बताते है कि हम इस नदी को नाव से अथवा तैर कर पढ़ने के लिए जाते थे। लेकिन अब तो तैरने की बात तो दूर जल को छू लेने के लिए भी पानी नहीं बचा है अगर है थोड़े बहुत जल को छू भी लिया तो गंभीर रोगों के शिकार हो जाएंगे। उस समय को याद कर आज ग्लानि महसूस करते हैं और कहते हैं कि आने वाली पीढ़ियाँ तो शायद नदी के वास्तविक अर्थ की कल्पना, समझ को महसूस नहीं कर पाएंगी वो नालों को ही नदी समझेगी। अब यह नदी किसानों की फ़सलों की सिंचाई करने में असमर्थ है। किसान अब भूगर्भ जल से ही सिंचाई कर रहे हैं। भूगर्भ जल के अंधाधुध प्रयोग के कारण भूजल नीचे खिसकता जा रहा है। भूजल की स्थिरता के लिए नदियों की बड़ी भूमिका है। नदियां भूजल स्तर को ऊपर उठाने का काम करती हैं। इस नदी का चित्र सहायक नदियों को जोड़ते हुए एक जनहित संस्था की पुस्तक से लिया गया है।
आज यह हिण्डन प्रदूषण की मार व लोगों की लापरवाही के कारण अपना मूल रूप खो चुकी है। बपारसी गांव के निकट से गुजरते हुए इस नदी के जल से बदबू आती है। गंगा व यमुना बड़ी नदियों की तो लोग बात कर लेते हैं लेकिन हिण्डन की कोई सुध लेने वाला नही हैं। क्षेत्र के लोग नदी के प्रदूषण से तो पीड़ित है लेकिन आवाज़ उठाने वाला नही है। कई बार नदी के प्रदूषण से होने वाली बिमारियों को लेकर छोटे-छोटे धरना प्रदर्शन तो हुए लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं निकल पाया। क्षेत्र की गैर सरकारी संस्था भारत उदय एजूकेशन सोसाइटी ने बुढाना क्षेत्र के 30 स्कूलों में जैव विविधता अभियान के अंतर्गत नदी को बचाने का मुद्दा उठाया था। जिसमें नदी को बचाने के लिए बच्चों को प्रेरित किया। सहारनपुर की पावंधोई नदी से सफाई होने के कारण क्षेत्र के लोगों ने सबक लिया है। जल्दी ही संस्था दोबारा समुदाय में अभियान चलाएगी। जिससे लोग इस मृत नदी को दोबारा जीवित करने में मदद कर सके।
Path Alias
/articles/hainadana-kai-vayathaa
Post By: Hindi