‘हैस्को’ एनजीओं के प्रमुख अनिल जोशी के भाषण का लिखित पाठ यहां प्रस्तुत है। उनका यह वक्तव्य 9 सितंबर 2011 को हिमालय दिवस के अवसर पर दिया गया था।
मैं आप सब से अनुरोध कर रहा हूं कि अगले हिमालय दिवस से पहले आप जितने भी हमारे हिमालय से सांसद हैं, जितने भी मित्र हिमालय से सरोकार रखते हैं आप अपने स्तर से, व्यक्तिगत संसाधनों से, अपने परिचय के माध्यम से निश्चित रूप से अपने सांसदों से बात करें। मुझे लगता है कि अब हिमालय को दो-तीन पहलुओं से देखे जाने की आवश्यकता है। पहला ये कि हिमालय को लेकर कई वर्षों से चिंता जताई जा रही है लेकिन इस पर और अधिक गंभीरता से चिंता होनी चाहिए। दूसरी बात ये कि इसमें राजनीतिक चिंता होना ज्यादा आवश्यक है क्योंकि अंततः निर्णय राजनीतिज्ञों ने ही करना है और तीसरी बात ये कि हिमालय सिर्फ हिमालय के लोगों का नहीं है। इसका 90 प्रतिशत लाभ या जुड़ाव गैर हिमालयी क्षेत्रों को है चाहे वो उत्तर प्रदेश हो, बंगाल हो, बिहार हो, राजस्थान की इंद्रा नहर हो और सत्य तो ये भी है कि समुद्र का अस्तित्व भी हिमालय से ही है। ऐसी स्थिति में एक चिंता बराबर बनती है कि हिमालय की जब भी चिंता हो तो हिमालय को लेकर सिर्फ हिमालय के लोगों में ही चिंता नहीं होनी चाहिए बल्कि सभी में हो, तभी हम हिमालय के लिए कुछ कर पाएंगे।
हमारी जो नई रणनीति हो उसमें ये कोशिश होनी चाहिए कि उन तमाम जगहों पर बात करने का बेड़ा उठाएं जो किसी न किसी रूप में हिमालय से जुड़े हैं। जिनका हिमालय से सरोकार है चाहे वो अप्रत्यक्ष रूप में ही क्यों न हो। वे जब तक इस बड़े आंदोलन में साथ नहीं होंगे तो यह अधूरा होगा। हमारे साथ माननीय मंत्री अगाथा जी हैं वे केन्द्र में हिमालय का भी प्रतिनिधित्व करती हैं और ग्रामीण विकास जो कि बड़ा विभाग है उसका प्रतिनिधित्व भी करती हैं। हिमालय का जो राजनैतिक पहलू है अगाथा जी इसी सरकार में हैं मैंने उनके सामने बात रखी कि आप हिमालय की तमाम शक्तियों को तो देखो लेकिन वैश्विक स्तर पर हमें देखना चाहिए कि हमारी स्थिति क्या है। बड़ी अजीब बात है कि जब बिहार की किसी बात पर चर्चा होती है तो एक साथ कई हाथ खड़े होते हैं और खुब चर्चा होती है लेकिन हिमालय के हालात और दुनिया में माउंटेन के ग्लोबली जो पॉलिटिकल रिप्रजेन्टेशन हैं वो बहुत कमजोर हैं। इसका कारण है कि हिमालय रिसर्च को लेकर बहुत ज्यादा चर्चा नहीं हो पाती।
हमने हिमालय दिवस की गोष्ठी के लिए अगाथा जी और कुछ सांसदों से जो हिमालय का प्रतिनिधित्व करते हैं अनुरोध किया था। हमने गैर हिमालयी सांसदों से भी अनुरोध किया था। मैं आप सब से अनुरोध कर रहा हूं कि अगले हिमालय दिवस से पहले आप जितने भी हमारे हिमालय से सांसद हैं, जितने भी मित्र हिमालय से सरोकार रखते हैं आप अपने स्तर से, व्यक्तिगत संसाधनों से, अपने परिचय के माध्यम से निश्चित रूप से अपने सांसदों से बात करें। उस बातचीत में मुख्य रूप से दो मुद्दें हों। मैं आपको बताऊं कि हमारे साथ दो बड़े संवेदनशील सांसद हैं, प्रदीप टम्टा जी और पी.डी.राय। ये हिमालय के मुद्दों पर हमेशा अग्रणीय रहे हैं। आप लोग सभी सांसदों से मिलकर औपचारिक रूप से बातचीत करें। हिमालय दिवस मनाने के पीछे हमारा जो मुख्य उद्देश्य है वो है कि हम हिमालय को लेकर उसके सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक पहलू पर गंभीर चिंता करें।
मेरा अनुरोध है कि आप उनसे मिलकर के दो मुद्दे एक तो ये कि हिमालय को लेकर सरकार में संवेदनशीलता बढ़ाने को लेकर बातचीत और दूसरा कि अभी इस देश में 352 जगह हिमालय दिवस मनाया जा रहा है। हिमालय के विभिन्न कोनों में जुलूस निकल रहे हैं। मुझे लगता है कि लोगों में हिमालय को लेकर संवेदनशीलता बहुत ज्यादा है, गंभीरता है। हम इस बात को बार-बार महसूस कर रहे हैं कि हिमालय को लेकर हमें बहुत कुछ सोचना होगा। अगाथा जी से मैं कहना चाहुंगा कि वे इस दिशा में पहल करेंगी, ऐसी मैं आशा करता हूं। आप के संज्ञान में मैं एक और बात लाना चाहता हूं कि एक और चर्चा हो रही है हिमालय के विभिन्न कोनों से कि दिल्ली देश का केंद्र है इसलिए यहां हिमालय कि उपस्थिति लगातार बनी रहे क्योंकि जब हम एक छोटा सा हिस्सा थे उत्तर प्रदेश का तो उत्तर प्रदेश ने हमारे संवेदनशीलता को समझते हुए एक पर्वतीय मंत्रालय बना दिया तो वह उसी बात का द्योतक था कि वहां हिमालय की बात रखी जाए।
मैं अगाथा जी से अनुरोध करता हूं कि कम से कम हमारे जितने साथी हैं जो प्रतिनिधित्व कर रहे हैं संसद में उनके साथ हिमालय के मुद्दों को लेकर चर्चा करें। हिमालय के तमाम कोनों में हिमालय दिवस मनाया जा रहा है और अधिकांश अखबारों ने तो सम्पादकीय भी इसी मुद्दे पर लिखा है। सरकार से हमारा अनुरोध है कि विधिवत रूप से हिमालय दिवस को सरकारी तौर पर भी घोषित किया जाए। एक अच्छी बात यहां पर कही गई कि हिमालय दिवस के दिन ही हम हिमालय पर चर्चा क्यों करें? इस पर निरंतर चर्चा होनी चाहिए। मैं आपको बताऊं कि ऐसा हुआ है और चर्चा निरंतर जारी है। पिछली बार हिमालय दिवस के बाद तमाम जगहों पर कई कार्यक्रम हुए। राधा बहन ने बड़ी गोष्ठी कर हिमालय नीति पर चर्चा करवाई। सुरेश भाई ने कई गोष्ठियां करवाई। इस तरह से भारत सरकार का जो कृषि मंत्रालय है उसमें हमारे कृषि और हिमालय को लेकर बात की गई।
जिसमें हमारे मंत्री हरीश रावत उपस्थित थे। अभी पानी, वन सब को लेकर बात हो रही है। ये तमाम गोष्ठियां जो हिमालय के संसाधनों को लेकर हो रही है उनको संकलित करके हम एक हिमालय रपट तैयार कर रहे हैं जो की काफी हद तक बन चुकी है। कुछ और गोष्ठियों को शामिल करके हम आपके सामने रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे। मैं समझता हूं कि इतनी वर्षा के बाद भी सभी साथियों की उपस्थिति और उत्साह इस बात को दर्शाती है कि हिमालय के प्रति हमारी संवेदनशीलता बढ़ी है। मैंने सुना है दिल्ली जाम हो जाती है लेकिन उसके बाद भी एक बात हम सब को सोच लेनी चाहिए कि हिमालय को लेकर गंभीरता इसलिए है कि हिमालय के हालात बहुत अच्छे नहीं कहे जा सकते।
पिछले कुछ समय से हिमालय पर जो लगातार हमले हो रहे हैं, बांधों के रूप में, और अन्य संसाधनों पर वो हम सबकी चिंता का विषय है। हमारे सांसद महोदय ने अपने वक्तव्य में इस ओर इशारा भी किया था। इसलिए हिमालय को बचाने की लड़ाई हिमालय में ही बसे-रचे लोगों की ही नहीं है बल्कि जो संस्कृति और संस्कार इस देश को हिमालय ने दिए हैं जो सिविलाइजेश हिमालय की नदियों में बसा है तो मैं समझता हूं इस आंदोलन की गूंज हिमालय से लेकर गंगा और गंगासागर तक, समुद्र और आखिरी कोने कन्याकुमारी तक जाना चाहिए ताकि सामुहिक रूप से हम एक अच्छे, बेहतर देश की कल्पना कर पाएं जहां पर समुद्र, पहाड़, हिमालय सुरक्षित और संवरता हुआ दिखाई दे।
मैं आप सब से अनुरोध कर रहा हूं कि अगले हिमालय दिवस से पहले आप जितने भी हमारे हिमालय से सांसद हैं, जितने भी मित्र हिमालय से सरोकार रखते हैं आप अपने स्तर से, व्यक्तिगत संसाधनों से, अपने परिचय के माध्यम से निश्चित रूप से अपने सांसदों से बात करें। मुझे लगता है कि अब हिमालय को दो-तीन पहलुओं से देखे जाने की आवश्यकता है। पहला ये कि हिमालय को लेकर कई वर्षों से चिंता जताई जा रही है लेकिन इस पर और अधिक गंभीरता से चिंता होनी चाहिए। दूसरी बात ये कि इसमें राजनीतिक चिंता होना ज्यादा आवश्यक है क्योंकि अंततः निर्णय राजनीतिज्ञों ने ही करना है और तीसरी बात ये कि हिमालय सिर्फ हिमालय के लोगों का नहीं है। इसका 90 प्रतिशत लाभ या जुड़ाव गैर हिमालयी क्षेत्रों को है चाहे वो उत्तर प्रदेश हो, बंगाल हो, बिहार हो, राजस्थान की इंद्रा नहर हो और सत्य तो ये भी है कि समुद्र का अस्तित्व भी हिमालय से ही है। ऐसी स्थिति में एक चिंता बराबर बनती है कि हिमालय की जब भी चिंता हो तो हिमालय को लेकर सिर्फ हिमालय के लोगों में ही चिंता नहीं होनी चाहिए बल्कि सभी में हो, तभी हम हिमालय के लिए कुछ कर पाएंगे।
हमारी जो नई रणनीति हो उसमें ये कोशिश होनी चाहिए कि उन तमाम जगहों पर बात करने का बेड़ा उठाएं जो किसी न किसी रूप में हिमालय से जुड़े हैं। जिनका हिमालय से सरोकार है चाहे वो अप्रत्यक्ष रूप में ही क्यों न हो। वे जब तक इस बड़े आंदोलन में साथ नहीं होंगे तो यह अधूरा होगा। हमारे साथ माननीय मंत्री अगाथा जी हैं वे केन्द्र में हिमालय का भी प्रतिनिधित्व करती हैं और ग्रामीण विकास जो कि बड़ा विभाग है उसका प्रतिनिधित्व भी करती हैं। हिमालय का जो राजनैतिक पहलू है अगाथा जी इसी सरकार में हैं मैंने उनके सामने बात रखी कि आप हिमालय की तमाम शक्तियों को तो देखो लेकिन वैश्विक स्तर पर हमें देखना चाहिए कि हमारी स्थिति क्या है। बड़ी अजीब बात है कि जब बिहार की किसी बात पर चर्चा होती है तो एक साथ कई हाथ खड़े होते हैं और खुब चर्चा होती है लेकिन हिमालय के हालात और दुनिया में माउंटेन के ग्लोबली जो पॉलिटिकल रिप्रजेन्टेशन हैं वो बहुत कमजोर हैं। इसका कारण है कि हिमालय रिसर्च को लेकर बहुत ज्यादा चर्चा नहीं हो पाती।
हमने हिमालय दिवस की गोष्ठी के लिए अगाथा जी और कुछ सांसदों से जो हिमालय का प्रतिनिधित्व करते हैं अनुरोध किया था। हमने गैर हिमालयी सांसदों से भी अनुरोध किया था। मैं आप सब से अनुरोध कर रहा हूं कि अगले हिमालय दिवस से पहले आप जितने भी हमारे हिमालय से सांसद हैं, जितने भी मित्र हिमालय से सरोकार रखते हैं आप अपने स्तर से, व्यक्तिगत संसाधनों से, अपने परिचय के माध्यम से निश्चित रूप से अपने सांसदों से बात करें। उस बातचीत में मुख्य रूप से दो मुद्दें हों। मैं आपको बताऊं कि हमारे साथ दो बड़े संवेदनशील सांसद हैं, प्रदीप टम्टा जी और पी.डी.राय। ये हिमालय के मुद्दों पर हमेशा अग्रणीय रहे हैं। आप लोग सभी सांसदों से मिलकर औपचारिक रूप से बातचीत करें। हिमालय दिवस मनाने के पीछे हमारा जो मुख्य उद्देश्य है वो है कि हम हिमालय को लेकर उसके सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक पहलू पर गंभीर चिंता करें।
मेरा अनुरोध है कि आप उनसे मिलकर के दो मुद्दे एक तो ये कि हिमालय को लेकर सरकार में संवेदनशीलता बढ़ाने को लेकर बातचीत और दूसरा कि अभी इस देश में 352 जगह हिमालय दिवस मनाया जा रहा है। हिमालय के विभिन्न कोनों में जुलूस निकल रहे हैं। मुझे लगता है कि लोगों में हिमालय को लेकर संवेदनशीलता बहुत ज्यादा है, गंभीरता है। हम इस बात को बार-बार महसूस कर रहे हैं कि हिमालय को लेकर हमें बहुत कुछ सोचना होगा। अगाथा जी से मैं कहना चाहुंगा कि वे इस दिशा में पहल करेंगी, ऐसी मैं आशा करता हूं। आप के संज्ञान में मैं एक और बात लाना चाहता हूं कि एक और चर्चा हो रही है हिमालय के विभिन्न कोनों से कि दिल्ली देश का केंद्र है इसलिए यहां हिमालय कि उपस्थिति लगातार बनी रहे क्योंकि जब हम एक छोटा सा हिस्सा थे उत्तर प्रदेश का तो उत्तर प्रदेश ने हमारे संवेदनशीलता को समझते हुए एक पर्वतीय मंत्रालय बना दिया तो वह उसी बात का द्योतक था कि वहां हिमालय की बात रखी जाए।
मैं अगाथा जी से अनुरोध करता हूं कि कम से कम हमारे जितने साथी हैं जो प्रतिनिधित्व कर रहे हैं संसद में उनके साथ हिमालय के मुद्दों को लेकर चर्चा करें। हिमालय के तमाम कोनों में हिमालय दिवस मनाया जा रहा है और अधिकांश अखबारों ने तो सम्पादकीय भी इसी मुद्दे पर लिखा है। सरकार से हमारा अनुरोध है कि विधिवत रूप से हिमालय दिवस को सरकारी तौर पर भी घोषित किया जाए। एक अच्छी बात यहां पर कही गई कि हिमालय दिवस के दिन ही हम हिमालय पर चर्चा क्यों करें? इस पर निरंतर चर्चा होनी चाहिए। मैं आपको बताऊं कि ऐसा हुआ है और चर्चा निरंतर जारी है। पिछली बार हिमालय दिवस के बाद तमाम जगहों पर कई कार्यक्रम हुए। राधा बहन ने बड़ी गोष्ठी कर हिमालय नीति पर चर्चा करवाई। सुरेश भाई ने कई गोष्ठियां करवाई। इस तरह से भारत सरकार का जो कृषि मंत्रालय है उसमें हमारे कृषि और हिमालय को लेकर बात की गई।
जिसमें हमारे मंत्री हरीश रावत उपस्थित थे। अभी पानी, वन सब को लेकर बात हो रही है। ये तमाम गोष्ठियां जो हिमालय के संसाधनों को लेकर हो रही है उनको संकलित करके हम एक हिमालय रपट तैयार कर रहे हैं जो की काफी हद तक बन चुकी है। कुछ और गोष्ठियों को शामिल करके हम आपके सामने रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे। मैं समझता हूं कि इतनी वर्षा के बाद भी सभी साथियों की उपस्थिति और उत्साह इस बात को दर्शाती है कि हिमालय के प्रति हमारी संवेदनशीलता बढ़ी है। मैंने सुना है दिल्ली जाम हो जाती है लेकिन उसके बाद भी एक बात हम सब को सोच लेनी चाहिए कि हिमालय को लेकर गंभीरता इसलिए है कि हिमालय के हालात बहुत अच्छे नहीं कहे जा सकते।
पिछले कुछ समय से हिमालय पर जो लगातार हमले हो रहे हैं, बांधों के रूप में, और अन्य संसाधनों पर वो हम सबकी चिंता का विषय है। हमारे सांसद महोदय ने अपने वक्तव्य में इस ओर इशारा भी किया था। इसलिए हिमालय को बचाने की लड़ाई हिमालय में ही बसे-रचे लोगों की ही नहीं है बल्कि जो संस्कृति और संस्कार इस देश को हिमालय ने दिए हैं जो सिविलाइजेश हिमालय की नदियों में बसा है तो मैं समझता हूं इस आंदोलन की गूंज हिमालय से लेकर गंगा और गंगासागर तक, समुद्र और आखिरी कोने कन्याकुमारी तक जाना चाहिए ताकि सामुहिक रूप से हम एक अच्छे, बेहतर देश की कल्पना कर पाएं जहां पर समुद्र, पहाड़, हिमालय सुरक्षित और संवरता हुआ दिखाई दे।
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