हिमाचल प्रदेश के नदी नालों में मछली विकास प्राकथन
भारत वर्ष में मछली पालन का इतिहास अति प्राचीन है लेकिन मछली पालन को इतना महत्त्व नहीं मिल सका है कि इसे जीविका चलाने के लिये एक व्यवसाय के रूप में अपनाया जा सके। देश के अहिन्दी भाषी प्रान्तों में मछली पालन को समाज में उचित स्थान मिला हुआ है। बिहार व उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाकों में खानदानी व पेशेवर मछुओं की जातियां पाई जाती हैं लेकिन निश्चित तकनीक से मछली पालन की स्थिति इन राज्यों में भी अन्य प्रान्तों राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा, पंजाब व हिमाचल के समान ही पिछड़ी व अविकसित रही है।
देश में मछली पालन को व्यवसाय के रूप में न अपनाये जाने के कुछ कारण रहे हैं जिनमें इस वर्ग के लोगों का अशिक्षित या अल्पशिक्षित होना मछली पालन के बारे सरल हिन्दी भाषा में साहित्य का सरलता से उपलब्ध न होना तथा लोगों की धार्मिक भावनाओं के कारण इस व्यवसाय में संतोषजनक प्रगति नहीं हो पाई है। पिछले दो दशकों से इस क्षेत्र में भारत तथा राज्य सरकारों की सहायता से ग्रामीण क्षेत्रों में आवश्यक प्रशिक्षण प्रचार – प्रसार कार्यक्रमों में विस्तार और व्यवसाय से जुड़े लोगों को कई प्रकार की वित्तीय सहायता प्रदान करने के फलस्वरूप, मत्स्य पालन का विकास कृषि और पशुपालन की भांति वैज्ञानिक तौर पर हुआ है जिससे इस व्यवसाय को मान्यता व लोकप्रियता मिलने लगी है।
मत्स्य एवं मात्स्यकी:-
मोटे तौर पर यह जान लेना ठीक रहेगा कि मत्स्य और मात्स्यकी किसे कहते हैं। जलीय वातावरण में अनेक प्रकार के जीव – जन्तु रहते हैं लेकिन इन सभी को मछली नहीं कहा जा सकता है। जल में रहने वाले रीढ़धारी व अनियतापी (ठंडे खून) प्राणी जिनमें सांस लेने के लिये गिल्स व गति के लिये शाखित पक्ष रेखाओं से युक्त एकल व युगल पक्ष होते हैं को मछली कहा जाता है। जहां तक मात्स्यकी का प्रश्न है, इसे अधिक विस्तार दिया गया है। जल में मछली के अतिरिक्त कई प्रकार के प्राणी व वनस्पतियां उपलब्ध रहती हैं जिन्हें व्यावसायिक दृष्टिकोण से प्राप्त किया जाता है। अत: जलीय माध्यम से किसी भी वस्तु चाहे वह प्राणी हो या वनस्पति (झींगा, मेंढक, मोती, स्पंज, सिंगाड़े, कमल इत्यादि) को व्यावसायिक स्तर पर आर्थिक लाभ व उपयोग के लिए उत्पादन कर प्राप्त किये जाने को मात्स्यकी कहा जाता है।
मात्स्यकी की किस्में:-
उपलब्ध जलीय क्षेत्र के आधार पर मात्स्यकी को दो वर्गों में रखा जाता है:-
1. सामुद्रिक मात्स्यकी
2. अंत: स्थलीय मात्स्यकी
सामुद्रिक मात्स्यकी:-
समुद्री सीमा में स्थित विस्तृत महासागर व खाड़ियों, लैगूनस, वैकवाटरस इत्यादि में व्यवसायिक आखेट से प्राप्त उत्पादन को इसमें सम्मिलित किया जाता है। अपनी आर्थिक, सामाजिक व ऐतिहासिक महता के कारण किसी भी राष्ट्र के विकास व उन्नति में इसका काफी महत्वपूर्ण योगदान रहता है।
अंत: स्थलीय मात्स्यकी :-
किसी भू-भाग पर समुद्री सीमाओं के भीतरी भाग में अवस्थित जलक्षेत्र से प्राप्त उत्पादन को अंत: स्थलीय मात्स्यकी कहा जाता है इसमें मुख्यत: निम्नांकित क्षेत्र सम्मिलित रहते हैं -
1. नदी मात्स्यकी
2. झीलों व जलाशय की मात्स्यकी
3. तालाबों व पोखरों की मात्स्यकी
4. लवणीय या खारे जल की मात्स्यकी
5. दलदली क्षेत्र की मात्स्यकी
6. अलवण या मीठे पानी की मात्स्यकी
7. ठंडे जल की मात्स्यकी
मात्स्यकी संसाधन, उत्पादन एवं उनका विकास:-
देश के मात्स्यकी संसाधनों में पहाड़ी ठंडे पानी की नदियों से लेकर मीठे पानी के ताल एवं दूसरे जल क्षेत्र, खारे पानी की नदियाँ, सिंचाई के जलाशय, कैनाल, धान के खेत, हमेशा बाढ़ आने वाले पानी से भरे हुए क्षेत्र लगून, समुद्री अनन्य आर्थिक क्षेत्र, खारे पानी के क्षेत्र, तालाब एवं टैंक, तटीय खारे पानी की इयूश्च्रीज, अपारम्परिक संसाधन जैसे कि अंत: स्थलीय खारा पानी अथवा जमीन के अंदर का पानी इत्यादि आते हैं।
मीठे पानी के मात्स्यकी स्त्रोत :-
देश की विभिन्न नदी प्रणालियाँ जिनकी कुल लम्बाई 29000 किलोमीटर आंकी गई है, आदि काल से कई मछुआरों एवं मत्स्य किसानों के जीवनयापन का प्रारम्भिक स्रोत है।
नदियों से अभी भी पारंपरिक तरीकों से मत्स्य प्रग्रहण हो रहा है जिसमें कोई नियंत्रण न होने के कारण जुवेनाइल मछली अधिक मात्रा पकड़ी जा रही है तथा प्राप्ति कम हो रही है। नदियों में मत्स्य प्राप्ति बढ़ाने के लिए पिंजरे तथा बाड़े में मत्स्य संवर्धन, मात्स्यकी स्रोतों का संरक्षण तथा बीज उत्पादन करके नदियों में संचय किया जाना आवश्यक है। इसी प्रकार ठंडे पानी की नदियों में ट्राउट एवं महाशीर की हैचरी की तकनीक तथा कुछ नदियों की उत्पादन क्षमता की जानकारी तो उपलब्ध है लेकिन मत्स्य पालन अभी पारम्परिक तरीकों से होने के कारण केवल निर्वाह योग्य ही उत्पादन होता है। ठंडे पानी नदियों में मात्स्यकी विकसित करने के लिये बड़ी संख्या में ट्राडट, महाशीर, व स्नोट्राउट आदि की हैचरी निर्माण पश्चात उत्पादित बीज को नदियों में संचय करना भी आवश्यक है। इसके अतिरिक्त बहते पानी/जलाशयों में बाड़े अथवा पिंजरे में मत्स्य पालन भी मत्स्य उत्पादन बढ़ाने के लिए बहुत उपयुक्त होगा। स्वतंत्रता के बाद से विभिन्न नदियों पर सिंचाई, ऊर्जा उत्पादन, बाद नियंत्रण तथा दूसरे जल संसाधन विकास की परियोजनाओं आदि के लिये ही जलाशयों का निर्माण किया गया है। एक अनुमान के अनुसार इस समय देश में कुल 975 मुख्य जलाशय हैं जिनका आकार 1000 हेक्टेयर से 24000 हेक्टेयर के बीच में तथा कुल जल क्षेत्र 19.7 लाख हेक्टेयर है। सामान्यत: भारतीय जलाशयों की उत्पादन दर बहुत कम है जोकि आज के प्रबंध के स्तर पर इनसे औसतन उत्पादन 14.5 कि०ग्रा० प्रति हेक्टेयर हो रहा है जबकि यह उत्पादन 50-100 कि०ग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से मध्यम एवं बड़े आकार के जलाशयों से प्राप्त किया जा सकता है। प्रदेश में इस समय लगभग 42000 हेक्टेयर, जलाशय क्षेत्र उपलब्ध है।
हिमाचल प्रदेश, देश के उत्तर भाग में स्थित होने के कारण जहां ही प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है वहीं इसके आंचल में बड़ी-बड़ी नदियों व खड्डों का जाल बिछा हुआ है । इन नदियों/खड्डों में कुछ बारामासी है तथा कुछ मौसमी होने के कारण इनमें मत्स्य विकास की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं। कुछ प्रमुख नदियाँ हिमाच्छादित पर्वतों से निकल कर तराई वाले इलाकों से होती हुई देश की प्रमुख नदियाँ बन जाती हैं। हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियों एवं जलवायु की विविधता के कारण इन नदी-नालों में अलग-अलग मछलियों की प्रजातियाँ उपलब्ध हैं। प्रदेश में नदियों एवं खड्डों की कुल लम्बाई 3000 किलोमीटर आंकी गई है जिसमें 600 किलोमीटर ट्राउट जल तथा 2400 किलोमीटर सामान्य जल की नदियाँ हैं।
हिमाचल प्रदेश के सभी जिलों में कोई न कोई नदी-नाले अवश्य हैं जिनमें मत्स्य विकास की अपनी-अपनी सम्भावनाएं हैं। इस प्रकार प्रदेश में उपलब्ध नदी-नालों का वर्गीकरण तीन भागों में किया जा सकता है-
बड़ी नदियाँ
मध्यम वर्गी नदियाँ
खड्डे व नाले।
बड़ी नदियाँ :-
ये नदियाँ पर्वतों के उच्च शिखरों से निकलती हैं जो मैदानी इलाकों से बहती हुई दूसरे राज्यों में चली जाती हैं। ये बारहमासी नदियाँ है तथा इन नदियों का प्रारंभिक भाग बिलकुल ठंडा व मैदानी इलाकों का भाग गर्म रहता है। राज्य की कुछ प्रमुख नदियाँ निम्नलिखित हैं:-
क्रम |
नदी का नाम |
जिले का नाम जहां से बहती है |
1. |
ब्यास नदी |
कुल्लू, मंडी, हमीरपुर, कांगडा| |
2. |
सतलुज नदी |
किन्नौर, शिमला, मंडी, बिलासपुर | |
3. |
पब्बर नदी |
शिमला |
4. |
रावी नदी |
चम्बा |
5. |
चन्द्र भागा नदी |
लाहौल एवं स्पिति व चम्बा | |
मध्यवर्गी नदियों :-
ये नदियाँ भी बारहमासी हैं तथा इन नदियों का समावेश अंततः बड़ी नदियों में हो जाता है । इनमें मुख्य है :-
क्रम |
नदी का नाम |
जिले का नाम जहां से वहती है |
1. |
पार्वती नदी |
जिला कुल्लू |
2. |
बास्पा नदी |
जिला किन्नौर |
3. |
स्पिति नदी |
लाहौल व स्पिति |
4. |
उहल नदी |
कांगडा, मंडी |
5. |
गिरी नदी |
शिमला, सिरमौर |
6. |
तीर्थन नदी |
कुल्लू |
7. |
सैंज नदी |
कुल्लू |
खड्डें व नालें:-
राज्य के प्रत्येक जिले में खड्डे व नाले विद्यमान हैं जिनमें अधिकतर मौसमी हैं तथा बरसात में ही पानी से भरे रहते हैं और बरसात की समाप्ति पर उनका पानी या तो सूख जाता है या फिर बहुत कम हो जाता है। राज्य के जिलावार खड्डे व नाले प्रमुख रूप में निम्नलिखित देखे जा सकते है। :-
जिला चम्बा |
|||
1. |
सियुल खड्ड |
7 |
डनाली नाला |
2. |
नैनी खड्ड |
8 |
मैहला नाला |
3. |
ब्राल खड्ड |
9 |
चनैड नाला |
4. |
चक्की खड्ड |
10 |
शेरपुर-खैरी खड्ड |
5. |
बुडहल स्ट्रीम |
11 |
छुवार खड्ड |
6. |
साहो नाला |
12 |
होली नाला |
जिला कांगडा |
|||
1. |
विंनवा खड्ड |
6 |
बराल खड्ड |
2. |
न्यूगल खड्ड |
7 |
बंडेर खड्ड |
3. |
बनेर खड्ड |
8 |
चक्की खड्ड |
4. |
गज खड्ड |
9 |
जोगल खड्ड |
5. |
मोल खड्ड |
10 |
आवा खड्ड |
जिला मंडी |
|||
1. |
लेहारडी स्ट्रीम |
5 |
बाखली खड्ड |
2. |
राणा स्ट्रीम |
6 |
अल्सेड खड्ड |
3. |
सुकेती खड्ड |
7 |
सीर खड्ड |
4. |
अरनोडी खड्ड |
8 |
ज्यूणी खड्ड |
जिला कुल्लू |
|||
1. |
अन्नी खड्ड |
12 |
शमसर खड्ड |
2. |
सलवाड खड्ड |
13 |
हरला खड्ड |
3. |
गड्सा नाला |
14 |
जगतसुख नाला |
4. |
हरीपुर नाला |
15 |
छाकी नाला |
5. |
बड़ाग्रां नाला |
16 |
दुगरी नाला |
6. |
कोठी नाला |
17 |
कुरपन नाला |
7. |
सोलंग नाला |
18 |
फोजल नाला |
8. |
पलाचन खड्ड |
19 |
सरवरी खड्ड |
9. |
मंगलौर नाला |
20 |
महौल नाला |
10. |
शिरढ नाला |
21 |
रौउली खड्ड |
11. |
अलेओ नाला |
|
|
जिला लाहौल व स्पिति |
|||
1. |
स्पिति स्ट्रीम |
3 |
लिंगटी स्ट्रीम |
2. |
पिन स्ट्रीम |
|
|
जिला किन्नौर |
|||
1. |
रूकती नाला |
2 |
हुरबा नाला |
जिला सिरमौर |
|||
1. |
जलाल खड्ड |
4 |
बाता स्ट्रीम |
2. |
नेडा खड्ड |
5 |
रून खड्ड |
3. |
मारकंडा खड्ड |
|
|
जिला सोलन |
|||
1. |
सिरसा खड्ड |
4 |
चिकनी खड्ड |
2. |
गम्भरोला खड्ड |
5 |
कुहनी खड्ड |
3. |
गंभर खड्ड |
6 |
वेजा खड्ड |
जिला बिलासपुर |
|||
1. |
शीर खड्ड |
4 |
सरयाली खड्ड |
2. |
अली खड्ड |
5 |
हर्नेड नाला |
3. |
शुक्र खड्ड |
6 |
बलोही नाला |
जिला हमीरपुर |
|||
1. |
मान खड्ड |
5 |
पुंग नाला |
2. |
कुणाह खड्ड |
6 |
हथली नाला |
3. |
गसोती खड्ड |
7 |
वाकर नाला |
4. |
सलासी खड्ड |
8 |
महली नाला |
जिला ऊना |
|||
1. |
स्वां स्ट्रीम |
11 |
नगरांव स्ट्रीम |
2. |
ब्रम्हपुर खड्ड |
12 |
गुभरी खड्ड |
3. |
फतेहपुर खड्ड |
13 |
रैन्सरी खड्ड |
4. |
सुन्काली खड्ड |
14 |
तियूडी खड्ड |
5. |
भुबारिकापुरखड्ड |
15 |
करलोही खड्ड |
6. |
कटौहड़ खड्ड |
16 |
पंजावर खड्ड |
7. |
जसवांला खड्ड |
17 |
पन्दोगा खड्ड |
8. |
गारनी खड्ड |
18 |
लुनाखर खड्ड |
9 |
बसाल खड्ड |
19 |
रामपुर |
10 |
लालसिंगी खड्ड |
20 |
होली खड्ड |
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