हिमाचल प्रदेश के मतदाताओं के नाम लोक घोषणा पत्र-2012

भाईयों, बहनों व युवा साथियों,
हिमाचल प्रदेश में हो रहे इस विधान सभा चुनावों में विकास के संकट के मूल प्रश्न पर चर्चां ही नहीं है। हालात यह है कि हिमाचल प्रदेश के सामने विकास के निम्न संकटों को किसी भी राजनैतिक दल ने मुद्दा नहीं बनाया। इस लिए हिमालय नीति अभियान प्रदेश की जनता के सामने यह लोक घोषणा पत्र-2012 जारी कर रही है।

विकास के मूल संकट -व्यापक मुद्दे


(1) जलवायु परिवर्तनः- जलवायु परिवर्तन के कारण असामयिक बाढ़-सूखे का क्रम व गर्मी का बढ़ना हिमाचल प्रदेश झेल रहा है।

(2) ग्लेशियरों का पिघलना व जल संकट:- ग्लेशियरों के निकट मानवीय गतिविधियां बढ़ने से इन के पिघलने की गति में तीव्रता आई है। जिससे जल आपूर्ति की व्यवस्था 2035 तक चौपट हो जाने का खतरा पैदा हो गया है। ऐसे में जल विद्युत परियोजनाएं व देश की सिंचाई एवं पेयजल की व्यवस्थाएं भविष्य में चौपट हो जायेंगी।

(3) परम्परागत आजीविका के संसाधनों का विनाश:- जल, जंगल, जमीन की व्यवस्था बिगड़ने से खेती,पशु पालन, बागवानी जैसी आजीविका के मूल आधार को चलाना कठिन होता जा रहा है।

(4) विस्थापन:-हिमाचल में सैंकडों छोटी-बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं प्रस्तावित व निर्माणाधीन हैं। कहीं सीमेंट उद्योग, सेज तो कहीं स्की विलेज जैसा मेगा पर्यटन प्रोजेक्ट प्रस्तावित है। रेणुका बांध 900 परिवारों को विस्थापित करने वाला है। अन्य छोटे-छोटे जल विद्युत प्रोजेक्ट भी 10-20 परिवारों को भी प्रभावित करेंगे तो स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। भाखड़ा, पौंग के विस्थापितों का पुर्नवास 50 साल तक नहीं कर पाए हैं। इससे सरकारों को सबक सीखने की जरूरत है।

हिमाचल प्रदेश की पिछली दोनों सरकारों की भूमिका


दोनों प्रमुख दल एक दुसरे पर भ्रष्टाचार आरोप प्रतिरोप लगाने में व्यस्त हैं। हालात वास्तव में यह है कि हिमाचल प्रदेश की पिछली दोनों पार्टियों की सरकारों ने बारी-बारी से प्रदेश को लूट का रण क्षेत्र बना डाला है।

1. खेती की भूमि, वनों व सांझा संम्पदा को बिजली परियोजनाओं, सिमेंट उद्योगों, खनन, व दूसरी औद्योगिक तथा व्यावसायिक ईकाइयों को औने-पौने दामों में बेचा।
2. इन सौदों में हिमाचल प्रदेश भूमि सुधार कानून की धारा -118 व वन कानूनों की धज्जियां उड़ाई गई। 3. उद्योंगो को एकल खिड़की से मंजूरी का प्रावधान नेतृत्व के ऊपरी स्तर पर भ्रष्टाचार की व्यवस्था मात्र बन गई।
4. इस में नेताओं, सरकारी अधिकारियों, पूंजिपतियों व दलालों की मिली भगत रही है और भूमि के इन सौदों में इन लोगों ने खूब पैसा कमाया। प्रदेश में सांझा संम्पदा व जमीनें बेचने का यह एक बहुत बड़ा घोटाला हुआ है।
5. इस कारण प्रदेश में स्थानीय किसानों का बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ है, जिनका आज तक सही पुर्नवास व पुर्नस्थापना का कार्य नहीं हुआ, जब कि साठ-सत्तर के दशक में भाखड़ा और पोंग बांध के विस्थापितों के पुर्नवास व पुर्नस्थापना का कार्य अभी तक लम्बित पड़ा है।

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