हिमाचल के सेब पर ग्लोबल वार्मिंग का खतरा


जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले बदलाव से सेब बागवानी प्रभावित रहेगी, साथ ही कृषि पर भी इसका असर पड़ेगा। ताजा रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हिमाचल प्रदेश और पंजाब जैसे राज्य प्राकृतिक स्रोतों पर अधिक निर्भर हैं। लिहाजा ऐसे में आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन का इन पर असर पड़ने से दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। पारम्परिक स्रोतों के सूखने से पेयजल संकट जैसी स्थिति पैदा हो सकती है। सेब बागवानी पर संकट के अलावा भूमि कटाव की घटनाएँ बढ़ने की ओर भी संकेत किया गया है।ग्लोबल वार्मिंग के कारण प्रकृति में आ रहे बदलावों से अब हर कोई वाकिफ है। मौसम की मार का असर अब सब पर पड़ने लगा है। वहीं प्रकृति के बदलावों से फल, अनाज और सब्जियों के उत्पादकता पर गहरा असर पड़ने वाला है। द एनर्जी एंड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट (टेरी) और ग्लोबल ग्रीन ग्रोथ इंस्टीट्यूट (जीजीजीआई) ने एक अध्ययन किया है। जिसकी रिपोर्ट ने आने वाले दिनों में ग्लोबल वार्मिंग के खतरों का स्पष्ट संकेत दिया है।

रिपोर्ट के अनुसार आने वाले दिनों में ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव हिमाचल प्रदेश के सेब बागानों पर पड़ेगा। अत्यधिक गर्मी के कारण सेब के पौधे तेजी से सूख जाएँगे और फलों का स्वाद मीठा से खट्टा हो सकता है। इस प्रक्रिया में हिमाचल प्रदेश को 4500 करोड़ रुपए की सेब आर्थिकी का खतरा उठाना पड़ेगा।

इस अध्ययन ने हिमाचल प्रदेश सहित देश के अन्य राज्यों की चिन्ता बढ़ा दी है जिसके चलते आने वाले समय में पर्यावरण सन्तुलन बिगड़ने से कृषि और बागवानी के साथ-साथ प्राकृतिक स्रोतों पर भी प्रतिकूल असर पड़ने की सम्भावना है। जलवायु परिवर्तन को लेकर टेरी की तरफ से नई दिल्ली में जारी की गई ताजा रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है।

केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को सौंपी गई इस रिपोर्ट में बताया गया है कि हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी का मुख्य आधार सेब पर खतरे के बादल मँडरा रहे हैं यानी 4,500 करोड़ रुपए की सेब बागवानी जो प्रदेश की आर्थिकी की रीढ़ है।

मौसम में आ रहे बदलावों के चलते प्रदेश में सेब का उत्पादन बढ़ने के बजाय वर्ष 2030 में 4 फीसदी घट जाएगा। इसके अतिरिक्त देश के सभी राज्यों में वर्ष 2030 तक 11.61 प्रतिशत भूमि कटाव होगा। प्रदेश के तापमान में वृद्धि होगी। वर्ष 2021-2050 तक 1.9 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ सकता है। इसके पहले वर्ष 1971-2000 के दौरान तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ा था।

अब आने वाले समय में तापमान में 0.8 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है। इस तरह का अध्ययन पहला व्यापक समन्वित विश्लेषण है। जिसमें क्लाईमेट मॉडलिंग, मिट्टी और पानी का आकलन, एनर्जी मॉडलिंग एवं फील्ड केस स्टडीज शामिल है।

रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले बदलाव से सेब बागवानी प्रभावित रहेगी, साथ ही कृषि पर भी इसका असर पड़ेगा। ताजा रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हिमाचल प्रदेश और पंजाब जैसे राज्य प्राकृतिक स्रोतों पर अधिक निर्भर हैं। लिहाजा ऐसे में आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन का इन पर असर पड़ने से दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।

पारम्परिक स्रोतों के सूखने से पेयजल संकट जैसी स्थिति पैदा हो सकती है। सेब बागवानी पर संकट के अलावा भूमि कटाव की घटनाएँ बढ़ने की ओर भी संकेत किया गया है यानी प्रदेश में हुए बेतरतीब ढंग से निर्माण से लोगों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं, ऐसे में असमय वर्षा एवं बर्फबारी होने और बादल फटने से प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएँ बढ़ सकती हैं।

रिपोर्ट के अनुसार यदि ऐसा हुआ तो आर्थिक सम्पन्नता की ओर बढ़ रहे हिमाचल प्रदेश के लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। इसके लिये राज्य में वनों के संरक्षण के अलावा पर्यावरण के क्षेत्र में अधिक काम करने की आवश्यकता है। राज्य में यदि 4,500 करोड़ रुपए की सेब बागवानी का उत्पादन घटना है तो यहाँ के लोगों की परेशानी बढ़ सकती है।

भूमि कटाव के कारण कृषि और बागवानी के लिये प्रयोग में लाई जाने वाली जमीन खराब हो सकती है। इसी तरह भूकम्प जैसी आपदा के आने पर बेतरतीब ढंग से हुआ निर्माण बड़ी मुश्किलें खड़ी कर सकता है। इसके लिये राज्य को सुनियोजित तरीके से शहरीकरण को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

हिमाचल प्रदेश में सेब के उत्पादन को देखा जाय तो यह पहले से ही कई तरह के संकट से जूझ रहा है। दिसम्बर और जनवरी महीने में बर्फबारी न होने के कारण सेब फसल पर संकट के बादल मँडराने लगे हैं। आपको बता दें कि जनवरी माह में पहाड़ों पर बर्फ नहीं हुई है।

फरवरी माह में कुछ बर्फबारी हुई लेकिन सेब के लिये वांछित चिलिंग ऑवर्स पूरे न होने की चिन्ता गहरा गई है। हालांकि निचली सेब बेल्ट के बागवानों की फसल तबाह होने की आशंका है। मौसम की इस बेरुखी के चलते प्रदेश में गेहूँ की फसल पर भी पीता रतुआ का प्रकोप शुरू हो गया है।

सेब की अच्छी फसल के लिये जरूरी है कि सर्दियों में पौधों के डोरमेंसी पीरियड में ही इनके चिलिंग ऑवर्स पूरे हो जाएँ। यानी 7 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान में सेब की अलग-अलग किस्मों के पेड़ों का 800 से 1800 घंटे के बीच रहना जरूरी होता है। इस पर ही फल टिकाऊ और अच्छे रंग-आकार का होता है। कीटों व रोगों का प्रकोप भी कम होता है। हिमाचल में सेब का सालाना कारोबार लगभग 3200 करोड़ का होता है। सेब शिमला, कुल्लू, किन्नौर, मंडी, चंबा, सिरमौर आदि जिलों में होता है। इस साल इस कारोबार पर अभी से संकट मँडराने लगा है।

स्टोन-फ्रूट्स तबाह करने के बाद मौसम का खतरा अब सेब पर मँडरा रहा है। प्रदेश के 5000 फीट से कम ऊँचाई वाले इलाकों में सेब लगने की सम्भावनाएँ लगभग खत्म हो गई है। अब मध्यम ऊँचाई वाले क्षेत्रों में सेब को भारी नुकसान हो रहा है। सेब की फसल शुरू होने के समय बागीचों में फूल खिलने से पहले ही नष्ट हो रहे हैं। ठंड के कारण सफेद फूल पीला पड़ने की भी खबर आती रही है। ओलावृष्टि और तेज हवाएँ चलने से फूल झड़ जाते हैं।

इन दिनों प्रदेश के 7000 फीट तक की ऊँचाई वाले इलाकों में फ्लावरिंग चल रही है, लेकिन अच्छी फ्लावरिंग के लिये मौसम का साफ होना और 14 डिग्री से 24 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान होना जरूरी है। प्रदेश में बेमौसम बारिश स्टोन-फ्रूट्स को तबाह कर चुकी है। प्रदेश में स्टोन फ्रूट्स की आर्थिकी 2400 करोड़ रुपए से अधिक की है, मगर आम, अनार, प्लम, बादाम, आड़ू, खुमानी, चैरी इत्यादि फलों को बारिश, ठंड और ओलावृष्टि पूरी तरह से नष्ट कर चुकी है। इससे राज्य के छह लाख से अधिक बागवानों को भारी झटका लगा है।

ग्लोबल वार्मिंग और फ्लावरिंग के दौरान प्रदेश का मौसम बिगड़ा जाता है, तब सेब उत्पादन में गिरावट आ जाती है। साल 2010 में मौसम अच्छा रहने पर रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन हुआ था। उस दौरान 4.45 करोड़ बॉक्स सेब हुआ था। इसके एक साल बाद 2011 में फ्लावरिंग के दौरान बारिश और ठंड के कारण उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई और उत्पादन मात्र 1.19 करोड़ बॉक्स पर सिमट गया था।
 

हिमाचल प्रदेश में सेब उत्पादन

 

साल

बॉक्स

2007

2.96 करोड़

2008

2.55 करोड़

2009

1.40 करोड़

2010

4.45 करोड़

2011

1.19 करोड़

2012

1.84 करोड़

2013

3.69 करोड़

2014

2.80 करोड़

 

 

 

 

 

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Post By: RuralWater
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