हाईकोर्ट इलाहाबाद ने गंगा के अधिकतम बाढ़ क्षेत्र से 500 मीटर क्षेत्र में निर्माण कार्य पर लगाई रोक

इलाहाबाद हाईकोर्ट
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हाईकोर्ट ने गंगा प्रदूषण मामले में सुनवाई करते हुए रिट संख्या 4003/2006 के संदर्भ में पूर्व में एक निर्णय दिया था जिसमें इलाहाबाद में गंगा यमुना नदी के तट से 500 मीटर तक की दूरी पर किसी भी प्रकार का नवीनीकृत निर्माण कार्य नहीं होगा। इसी निर्णय के क्रम में आदेश का क्रियांवन भली-भांति न हो पाने पर हाईकोर्ट ने पुनः 20 ता. को सुनवाई के दौरान कोर्ट की खण्डपीठ के प्रमुख न्यायाधीश माननीय न्यायमूर्ति अरुण टंडन एवं अशोक भूषण ने गंगा प्रदूषण मामले में आदेश दिया कि गंगा के अधिकतम बाढ़ क्षेत्र से 500 मीटर तक निर्माण कार्य पर पाबंदी लगाई जाए। कोर्ट ने इलाहाबाद विकास प्राधिकरण एवं जिला प्रशासन को निर्देश दिया कि गंगा किनारे अधिकतम बाढ़ बिन्दु से 500 मीटर के क्षेत्र का 3 सप्ताह के भीतर चिह्नांकन कार्य पूरा करें और यह सुनिश्चित करें कि अधिकतम बाढ़ बिन्दु से 500 मीटर के भीतर कोई भी निर्माण न होने पाए और यदि निर्माण जारी है तो उसे सीलकर दिया जाए। न्यायालय के इस आदेश से संगम किनारे बन रहे ओमेक्स सिटी को राहत नहीं मिली है। ओमेक्स कम्पनी की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता एस.एम.एन.काजमी ने कहा कि 500 मीटर के क्षेत्र के बाहर कम्पनी को निर्माण कार्य करने दिया जाए। हाईकोर्ट के आदेश के पश्चात ए.डी.ए. ने पूरी परियोजना पर ही रोक लगा दी है। न्यायालय ने कहा कि चिह्नांकन होने के बाद ही ओमेक्स सिटी के टाउनशिप निर्माण पर विचार किया जाएगा। अधिवक्ता काजमी ने कहा कि 1 वर्ष से अधिक समय व्यतीत होने पर भी ए.डी.ए. एवं जिला प्रशासन ने चिह्नांकन नहीं किया जबकि अधिकतम बाढ़ सीमा का नक्शा दाखिल किया जा चुका है। ए.डी.ए. एवं जिला प्रशासन ने चिह्नांकन नहीं किया जबकि अधिकतम बाढ़ सीमा का नक्शा दाखिल किया जा चुका है। ए.डी.ए. ने कहा कि इस कार्य के लिए डिजिटल मैप चाहिए। न्यायालय ने ए.डी.ए. को जिला प्रशासन की मदद से फाफामऊ, झूंसी, नैनी क्षेत्र का चिह्नांकन किए जाने का आदेश दिया है। ओमेक्स सिटी के बनने पर कोर्ट की रोक से सैकड़ों आवंटियों को झटका लगा है। इसमें सैकड़ों लोगों ने आवास के लिए पैसे भी जमा कर रखें हैं।

पूर्व में दिए गए निर्णय को 1 वर्ष का समय होने को आया परन्तु जिला प्रशासन, सिंचाई विभाग, व ए.डी.ए. के अधिकारी एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालने में लगे रहे। इस बीच सैकड़ों बीघा जमीन पर पक्के निर्माण की शिकायतें कोर्ट पहुँची। कोर्ट के कार्यवाही के डर से ए.डी.ए. सक्रिय हुआ उसने दारागंज में गंगा किनारे अवैध निर्माण पर कार्यवाही कर लॉज पर बुलडोजर चलाकर ध्वस्तीकरण कर दिया और आस-पास के इलाकों में भी अवैध निर्माण कार्य रुकवा दिया है। ए.डी.ए. के सचिव प्रदीप कुमार ने कहा कि ए.डी.ए. के पास तकनीकी दक्षता नहीं थी जिस कारण सीमांकन कार्य में देरी हुई। जिला प्रशासन ने कोर्ट में 1978 की बाढ़ के क्षेत्र का जो ब्योरा पेश किया है उसी आधार पर सीमांकन कराया जाएगा। इसके लिए डिजिटल मैप की जरूरत है। इस कार्य के लिए अब इलाहाबाद के ट्रिपल आई.टी से भी मदद ली जाएगी। गंगा बेसिन मैनेजमेंट प्लान में लगी आई.आई.टी कानपुर की टीम से भी सलाह ली जाएगी। इलाहाबाद के नए जिलाधिकारी अनिल कुमार ने शनिवार को गंगा की जमीन के सीमांकन के लिए 5 सदस्य कमेटी बना दी है। इसके अध्यक्ष ए.डी.ए. के संयुक्त सचिव बैजनाथ होंगे। हाईकोर्ट के निर्देश के बाद यह कमेटी बनाई गई है। यह कमेटी बाढ़ क्षेत्र तय करने और उसके मौलिक चिह्नांकन की कार्यवाही की जिम्मेदारी निभाएगा।

गंगा यमुना तट के समीप शहर व गांव में अधिकतम बाढ़ क्षेत्र बताने वाले पिलर गाड़े जाएंगे इसकी तैयारी शुरू हो गई है। यह कार्य सबसे पहले झूंसी से शुरू होगा। बाढ़ क्षेत्र के सीमांकन कार्य में रेलवे, इंडियन ऑयल कार्पोरेशन एवं अन्य सस्थाओं की मदद ली जाएंगी।

हाईकोर्ट ने अपने पूर्व निर्देश जिसमें गंगा यमुना तटों पर शीघ्र ही 8 पक्के घाटों के निर्माण के लिए भी सर्वेक्षण व तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराने की मांग की थी उस पर दिनांक 23 अप्रैल 2012 को सुनवाई में गंगा घाटों के बनने पर रोक लगा दी है और घाटों का निर्माण बैराज बने बिना कैसे संभव है इसकी जानकारी भी सरकार को उपलब्ध कराने को कहा है। वहीं यमुना के तट पर पक्के घाट का निर्माण कार्य जारी रखने को कहा है। कोर्ट ने अगली सुनवाई पर कानपुर की चमड़े उद्योग की टेनरियों के गंदे पानी के निस्तारण के संदर्भ में सरकार से जानकारी उपलब्ध कराने को कहा है।

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