सारांश
हिमालय लाखों जीवित जीवों का जीवन दाता है और नदियाँ उसकी रीढ़ हैं। हिमालय में फ्लैश फ्लड से लगातार आपदा होती है। फ्लैश फ्लड मौसम संबंधी गड़बड़ी का परिणाम है। हिमालय के अधिकांश जिले बाढ़ की इस आपदा के शिकार हैं और इस आपदा का लंबे समय से अनुभव कर रहे हैं, लेकिन तीव्रता विविध है। सबसे खराब साल 2013 था, जिसमें उत्तराखंड के 13 में से 12 जिलों को फ्लैश फ्लड का सामना करना पड़ा था। मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन की वजह से वैसे तो देश के लगभग सभी राज्यों में मौसम के चरम तक पहुंचने की घटनाओं में वृद्धि हुई है, लेकिन हिमालयी राज्यों में इसका व्यापक असर देखने को मिल रहा है। भारी बारिश व बादल फटने की वजह से पहाड़ी राज्यों में आने वाली विपदा को भी इसका हिस्सा माना जा रहा है। उत्तराखंड प्रत्येक वर्ष बाढ़ की चपेट में आता है। यहां भारी बारिश और बादल फटने की घटनाओं से लोगों की जानें जाती हैं। इस प्रपत्र का उद्देश्य फ्लैश फ्लड के विभिन्न कारणों का विश्लेषण करना है साथ ही माडलिंग द्वारा फ्लैश फ्लड से बाढ़ के प्रभाव का आंकलन करना है। अतः इस प्रपत्र में हाइड्रो-डाइनैमिक मॉडल का उपयोग कर बादल फटने के कारण होने वाली एक घटना का अध्ययन किया गया है। मॉडल द्वारा प्राप्त रिजल्ट्स को आर्क, जीआईएस और ईआरडीएएस जैसी तकनीकों का उपयोग कर मानचित्रण किया गया है तथा इसकी सुदूर संवेदन उपग्रह से प्राप्त चित्रों से तुलना की गई है। प्राप्त रिजल्ट्स फ्लैश फ्लड से बाढ़ के प्रभाव का आंकलन करने के लिए हाइड्रो-डाइनैमिक मॉडल तकनीकी की उपयोगिता को प्रमाणित करते हैं।
Abstract
The Himalaya is the life line of millions of living organisms and rivers are its backbone. Flash floods in the Himalayas cause continuous disaster. Flash flood is the result of meteorological disturbances. Most districts of the Himalayas are victims of this flood disaster and have been experiencing this disaster for a long time, but the intensity is varied. The worst year was 2013, in which 12 out of 13 districts of Uttarakhand suffered from flash floods. Though man-made climate change has increased the incidence of weather climax in almost all the states of the country, but it its impact in Himalayan states is more visible. Calamity due to heavy rains and cloudburst in the hill states is also considered as part of it. Uttarakhand is hit by floods every year. People die here due to heavy rain and cloudburst events. The purpose of this paper is to analyze various causes of flash floods as well as to assess the effect of flooding from flash floods by modeling. Therefore, in this paper, an event due to cloudburst using a hydro-dynamic model is studied. The results obtained by the model are mapped using techniques such as Arc, GIS and ERDAS, further it has been compared to images obtained from remote sensing satellite. The obtained results demonstrate the usefulness of hydro-dynamic model technology to assess the impact of flooding due to flash floods.
परिचय
विश्व भर में बाढ़ सबसे अधिक और विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं में से एक है (नोजी और ली, 2005) और सभी प्राकृतिक आपदाओं में सबसे अधिक और लगातार होती रहती हैं। उत्तराखंड एक आपदा प्रभावित राज्य है, जिसमें भूस्खलन, बादल फटने और बाढ़ की बहुत अधिक आवृत्ति होती है। क्लाउडबस्र्ट और भूस्खलन पहाड़ों में सबसे अधिक विनाशकारी हैं और ये अप्रत्याशित हैं। क्लाउडबस्र्ट घटनाओं को अक्सर भारतीय हिमालय के दक्षिणी रिम में और उसके आसपास महसूस किया जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से क्लाउडबस्र्ट में बहुत कम समय के अंतराल पर बहुत तीव्र वर्षा की घटनाएँ होती हैं, हालांकि उन्हें उत्पन्न करने वाले तंत्र पूरी तरह से समझ में नहीं आते हैं। इन घटनाओं को 100 मिमी प्रति घंटे की न्यूनतम वर्षा दर के साथ निर्धारित किया गया है। क्लाउडबस्र्ट की व्यापक रूप से पहचान करने के लिए कोई एकल मानदंड नहीं है (दास एट अल, 2006; थय्येन एट अल, 2013)। पर्वतीय क्षेत्रों में इन घटनाओं में से कई क्यूम्यलोनिम्बस या गरजने वाले बादल से जुड़ी हैं (उपाध्याय, 1995) और इन घटनाओं में, 200 से 1000 मिमी/घंटा तक की वर्षा बहुत छोटे भाग में और बहुत कम समय में होती है (देओजा एट अल। 1991)। बादल फटने के दौरान बूंद का आकार 4 से 6 मिमी के लगभग होता है तथा यह लगभाग 10 मीटर/घंटा (सिंह और सेन 1996) की गति से गिरती हैं। उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में बादल फटने की घटनाएं अत्यधिक विनाशकारी हो सकती हैं और जान-माल का बहुत नुकसान कर सकती हैं, इन बाढ़ की घटनाओं के कारण और इस आपदा के प्रबंधन के बारे में थोड़ा बहुत ही जाना जाता है। पिछले 2-3 दशकों में उत्तराखंड में मालपा (1998), ओखीमठ (1998), फाटा (2001), गोना (2001), खेतगाँव (2002), बुधकेदार (2002), भटवारी (2002) उत्तरकाशी (2003), अंपारव (2004), लामबगड़ (2004), गोविंदघाट (2005), अगस्त्यमुनि (2005), रामोल्सारी (2005), असी गंगा (2012) और केदारनाथ (2013) में बादल फटने की घटनाओं का अनुभव हुआ है।
आज हमारे देश में बादल फटने के स्थान को पिनपॉइंट करने और उनके छोटे पैमाने पर बादल फटने की घटना के समय तथा स्थान की सही सूचना प्राप्त करने के लिए कोई संतोषजनक तकनीक नहीं है। बादल फटने की संभावना का पता लगाने के लिए रडार का एक बहुत ही बढ़िया नेटवर्क आवश्यक है। वर्तमान में उपलब्ध डेटा/सूचना के आधार पर केवल भारी वर्षा प्राप्त करने की संभावना वाले क्षेत्रों को बड़े पैमाने पर पहचाना जा सकता है। हालांकि, बाढ़ के जोखिम मानचित्र/प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के निर्माण से बादल फटने की घटना के कारण आने वाले फ्लेश फ़्लड से बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की पहचान कर जान-माल के नुकसान से बचा जा सकता है। इस अध्ययन में बादल फटने की घटना के कारण उत्पन्न हुई बाढ़ का गणतीय मॉडल बनाने और बाढ़ के नक्शे को बनाने का प्रयास किया गया है। चित्र-3 में जोशीवाड़ा, मनेरी और असि गंगा में भागीरथी नदी के 2 से 5 अगस्त 2012 के प्रति घंटे के निर्वहन को प्रस्तुत किया गया है। इस चित्र से यह दर्शित है कि दिनांक 3 और 4 अगस्त को एक असामान्य उच्च डिस्चार्ज है और जोशीवाड़ा में डिस्चार्ज 3 अगस्त 2012 को दोपहर 1:00 बजे अचानक बढ़ गया था। अगले ही घंटे में, डिस्चार्ज अपने सामान्य मात्रा पर लौट आया था। फिर से 23:00 घंटे, उसी दिन, 662 मी3/सेकंड पिछले घंटे की तुलना में निर्वहन 3390 मी3/सेकंड (लगभग 5 गुना की वृद्धि) तक बढ़ गया। हालांकि, मनेरी में डिस्चार्ज बहुत अधिक नहीं था। यह धीरे-धीरे 527 मी3/सेकंड से बढ़कर 725 मी3/सेकंड पर 11:00 बजे और 1389 मी3/सेकंड पर 3 अगस्त 2012 की रात 12:00 बजे बढ़ा।
क्लाउडबस्र्ट फ्लड मॉडलिंग
पीक फ्लड डिस्चार्ज का नदी पर जाकर मापना लगभग असंभव है और ज्यादातर समय, फ्लैश फ्लड पीक डिस्चार्ज का अनुमान अप्रत्यक्ष तरीकों से लगाया जाता है। क्लाउडबस्र्ट घटनाओं के हाइड्रोग्राफ छोटे समय में बहुत तीव्र डिस्चार्ज प्रदर्शित करते हैं क्योंकि यह माना जाता है कि छोटे क्षेत्रों और छोटी अवधि में ही बादल फटने की घटनाएं होती हैं। अतः इसे मैनिंग के समीकरण और कई क्रॉस सेक्शन के साथ स्टेप-बैकवाटर मॉडल और दो-आयामी गहराई-औसत हाइड्रोलिक मॉडल (थायेन एट अल, 2013) के आधार पर चित्रित किया जा सकता है। इसलिए, इस पेपर में, पीक डिस्चार्ज और स्टॉर्म हाइड्रोग्राफ की विशेषताओं का अप्रत्यक्ष आकलन,उपलब्ध किसी भी अन्य विश्वसनीय जानकारी के अभाव में किया गया। उपलब्ध प्रति घंटा बाढ़ हाइड्रोग्राफ का उपयोग करके क्लाउडबस्र्ट घटना के कारण बाढ़ हाइड्रोग्राफ को उत्पन्न करने के लिए प्रतिलोम, विधि से डेटा आंकलन किए गए। फ्लैश बाढ़ के कारण उत्पन्न हाइड्रोग्राफ को MIKE-11 हाइड्रोडायनामिक मॉडलिंग का उपयोग करके रूट किया गया। प्रारंभ में त्रिकोणीय बाढ़ हाइड्रोग्राफ का चयन किया गया। परीक्षणों की संख्या का उपयोग करके हाइड्रोग्राफ को अंतिम रूप दिया गया था। विस्तृत बाढ़ की गतिशीलता का अनुकरण करने के लिए हाइड्रोडायनामिक मॉडल सबसे व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले मॉडल हैं। हाइड्रोडायनामिक मॉडल गणितीय मॉडल हैं जो द्रव गति समीकरणों को हल करने का प्रयास करते हैं। ये मॉडल भौतिकी के नियमों को लागू करके तैयार किए गए समीकरणों को हल करके द्रव गति का अनुकरण करते हैं। फ्लडप्लेन प्रवाह के स्थानिक प्रतिनिधित्व के आधार पर, मॉडल को मुख्य रूप से 1-डी, 2-डी और 3-डी मॉडल में वर्गीकृत किया जा सकता है। बाढ़ जोखिम मानचित्रण, बाढ़ पूर्वानुमान और परिदृश्य विश्लेषण प्रदान करने के लिए उन्हें सीधे हाइड्रोलॉजिकल मॉडल और नदी मॉडल से जोड़ा जा सकता है। इस अध्ययन में MIKE-11 मॉडल का उपयोग बाढ़ मॉडलिंग के लिए किया गया है। MIKE -11 एक चैनल में प्रवाह का अनुकरण करने के लिए सेंट वेनेंट समीकरणों के पूर्ण सेट का उपयोग करता है। 1-डी चैनल प्रवाह के लिए निरंतरता का समीकरण इसके द्वारा दिया गया है;
q = ∂Q ध/ ∂x + ∂A / ∂t
और गति के समीकरण द्वारा
∂Q / ∂t + ∂ (α Q2/A) /∂x + gA ∂h/∂x + (g Q |Q| / (C2/AR) = 0
जंहा, Q डिस्चार्ज है, A फ्लो एरिया है, q लेटरल इनफ्लो है, h स्टेज है, C चीजी रेजिस्टेंस गुणांक है, R हाइड्रोलिक या प्रतिरोध रेडियस है और α गति डिस्ट्रिब्यूशन गुणांक है।
2.0 अध्ययन क्षेत्र
इस अध्ययन का क्षेत्र भागीरथी बेसिन में स्थित है, उत्तरकाशी को बेसिन आउटलेट (चित्र 1) के रूप में माना गया है। इस अध्ययन में भागीरथी और असी गंगा के दो हिस्सों को मॉडल डोमेन के भीतर माना गया है। असी गंगा भागीरथी की एक छोटी सहायक नदी है जिसका विस्तार 16 किमी तक है। असी गंगा उत्तरकाशी में गंगोरी के पास भागीरथी के साथ मिलती है। भागीरथी का उदगम गंगोत्री (ऊँचाई 3115 मीटर) है और इसे गंगा नदी प्रणाली के स्रोत के रूप में जाना जाता है। उत्तरकाशी 20,000 अभ्यारण्यों की आबादी के साथ अध्ययन क्षेत्र में एक धार्मिक शहर है।
3.0 पद्धति
अध्ययन क्षेत्र के लिए ALOS PALSAR DEM का उपयोग करते हुए MIKE-11 हाइड्रोडायनामिक मॉडल की स्थापना की गई। ALOS PALSAR DEM बढ़िया रिज़ॉल्यूशनका ओपन सोर्स DEM है। डीईएम को अलस्का उपग्रह सुविधा से डाउनलोड किया गया। आर्कजीआईएस में हाइड्रो प्रोसेसिंग ऑपरेशन का उपयोग करते हुए स्ट्रीम को डीईएम से निकाला गया है। इसी तरह एचईसी-आरएएस (HEC-RAS) का उपयोग कर 750 मीटर की एक समान चौड़ाई के साथ 750 मीटर के नियमित अंतराल पर नदी के साथ क्रॉस सेक्शन निकाले गए। क्रॉस सेक्शन प्रवाह पथ के साथ नदी आकृति विज्ञान का एक खाका प्रस्तुत करता है। क्रॉस सेक्शन और रिवर फ्लो पाथ डिस्चार्ज डेटा (बाउंड्री कंडीशन फाइल) और एचडी पैरामीटर्स के साथ बाढ़ परिदृश्य पेश करने के लिए पूरक हैं। बादल फटने की घटना पंडरासु धर की चौटी पर 4000 और 4500 मीटर की ऊँचाई पर हुई। मनेरी बांध और उत्तरकाशी बैराज पर 2 से 5 अगस्त 2012 के बीच डिस्चार्ज डेटा को गुप्त एट अल (2013)के अध्ययन से लिया गया है। जोशीवाड़ा के डिस्चार्ज डेटा में से मनेरी के डिस्चार्ज को घटाकर असि गंगा के लिए डिस्चार्ज डेटा प्राप्त किया गया। आगे के व्यावहारिक अनुप्रयोगों के लिए मॉडल सटीकता का पता लगाने के लिए मॉडल कैलिब्रेशन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। डप्ज्ञम्-11 मॉडल के कैलिब्रेशन के लिए बाढ़ के डेटा का उपयोग किया गया। बाढ़ सिमुलेशन और बाढ़ मानचित्रण के लिए अपनाई गई पद्धति चित्र-2 में दिखाई गई है।
4.0 परिणाम और चर्चा
दो अपस्ट्रीम स्थानों पर आंकलन द्वारा ज्ञात डिस्चार्ज का उपयोग करके बाढ़ सिमुलेशन का प्रदर्शन किया गया है। भागीरथी नदी के मनेरी और जोशीवाड़ा साइट पर डिस्चार्ज डाटा (चित्र 3) उपलब्ध था। असी गंगा के लिए डिस्चार्ज टाइम श्रृंखला जोशीवाड़ा और मनेरी में डिस्चार्ज को घटाकर प्राप्त की गई थी। मनेरी (भागीरथी) और अघोरा (असी गंगा) में दो डिस्चार्ज टाइम सीरीज़ को एचडी मॉडल में बाउंडरी कंडिशन के रूप में इस्तेमाल किया गया। उत्तरकाशी में सिमुलटेड डिस्चार्ज की तुलना जोशीवाड़ा (चित्र 4) में देखे गए डिस्चार्ज से की गई थी। परिणाम बताते हैं कि सिमुलटेड डिस्चार्ज पीक डिस्चार्ज और डिस्चार्ज भिन्नता को अच्छी प्रकार से दर्शित करने में सक्षम है। सिमुलटेड डिस्चार्ज मे पीक डिस्चार्ज 3431.43 एम 3/सेकंड था। जबकि देखा गया की मापित शिखर डिस्चार्ज 3390 m3/सेकंड था।
4.1 बाढ़ के दृश्य
फ्लड इनअनडेशन मैपिंग, फ्लड रिस्क मैनेजमेंट का एक आवश्यक घटक है क्योंकि फ्लड इनअनडेशन मैप्स न केवल बाढ़ की सीमा के बारे में सटीक भू-स्थानिक जानकारी प्रदान करते हैं, बल्कि जब एक भौगोलिक सूचना प्रणाली के साथ युग्मित किया जाता है, तो यह निर्णय लेने वालो को बाढ़ से संबंधित जोखिम का आकलन करने के लिए अन्य उपयोगी जानकारी निकालने में मदद कर सकता है, जैसे कि मानव हानि, वृत्तिय क्षति, और पर्यावरणीय गिरावट (जंग एट अल)। इस अध्ययन में हाइड्रो डायनामिक (HD) मॉडल द्वारा बाढ़ सीमा परिदृश्य गुप्ता एट अल (2013) द्वारा वर्णित बुनियादी ढांचे की क्षति की पुष्टि करता है। गंगोरी के पास सड़क खंड तथा पुल को गुप्ता एट अल (2013) द्वारा क्षतिग्रस्त दर्शाया गया था तथा यह इस अध्ययन में भी सिमुलटेड डिस्चार्ज के द्वारा बाढ़ (चित्र-5) से प्रभावित पाया गया। इसी तरह उत्तरकाशी शहर में तिलोथ पुल को भी बाढ़ से क्षतिग्रस्त देखा जा सकता है (चित्र 6, 7)। फ्लैश फ्लड के परिणामस्वरूप असि गंगा नदी के आस-पास के कृषि क्षेत्रों में उच्च मात्रा में अवसादों का जमाव हुआ और बादल फटने के बाद असि गंगा की उपग्रह इमेजरी में व्यापक बाढ़ के निशान स्पष्ट हैं।
5.0 निष्कर्ष
बादल फटने की वजह से हिमालय का क्षेत्र बाढ़ की घटनाओं की चपेट में अक्सर आ जाता है और यह अच्छी तरह से समझा नहीं जा सका है। इस अध्ययन ने हाइड्रो डायनेमिक मॉडलिंग के माध्यम से क्लाउडबस्र्ट फ़्लैश बाढ़ की सीमा की जांच की। अध्ययन से पता चलता है कि पंडरासु धार की चोटी पर बादल फटने की घटना हुई थी और गंगोरी में भागीरथी नदी को मिलाने वाली असी गंगा में बहुत अधिक मात्रा में स्त्राव हुआ था। भागीरथी नदी के जलग्रहण क्षेत्र में अगस्त 2012 की बाढ़ के कारण हुए नुकसान की पुष्टि एचडी मॉडल के माध्यम से उत्पन्न हुए बाढ़ मानचित्र से की गई है। हिमालयी क्षेत्र में बादल फटने की बाढ़ के बढ़ते रुझानों को ध्यान में रखते हुए, नदी के करीब के क्षेत्र में निर्माण को विनियमित करने के दिशा-निर्देशों को निर्धारित किया जाना चाहिए। उच्च गुणवत्ता वाले डीईएम (DEM) के साथ HD मॉडल बाढ़ के ज़ोनिंग के लिए उपयोगी दिशा-निर्देश प्रदान कर सकते हैं और नदी में पानी के स्तर तक समाज के जोखिम को कम कर सकते हैं।
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