विडंबना यह है कि पानी, इस ग्रह पर सबसे प्रचुर संसाधन, सबसे अधिक मांग वाला भी है ! मानव कष्ट होने से बचाने के लिए, हमें मीठे पानी की आवश्यकता है। इसलिए, हम लगातार इसे अन्य ग्रहों पर खोजते हैं, लेकिन इसे महत्व नहीं देते हैं और विवेकपूर्ण तरीके से इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं जबकि यह अभी भी मौजूद है ! माँ प्रकृति जल चक्र के माध्यम से पानी का पुनर्चक्रण करती है। लेकिन हम न तो अपने उपयोग को कम करते हैं और न ही पानी का पुन: उपयोग या पुनर्चक्रण करते हैं।
एक ओर, जब भीषण गर्मी का कहर जारी है, नल सूख रहे हैं और पानी की कमी अपने चरम पर है, सरकार अगस्त 2019 में शुरू होने के बाद से ही जल जीवन मिशन के तहत 6.43 करोड़ से अधिक नल के पानी के कनेक्शन प्रदान करने में कामयाब रही है। देश में कुल 9.67 करोड़ घरों में अब नल के माध्यम से पानी उपलब्ध है। दूसरी ओर, एक और कड़वी सच्चाई यह है कि ग्रामीण घरों से भी बहुत अधिक पानी बहेगा। ऐसा अनुमान है कि भारत में हर दिन 31 अरब लीटर ग्रेवॉटर उत्पन्न होता है।
मीठे पानी की समस्या और ग्रेवॉटर की समस्या अन्योन्याश्रित है। मीठे पानी के विवेकपूर्ण उपयोग से उत्पादित ग्रेवॉटर की मात्रा कम हो जाती है। इसी तरह, ग्रेवॉटर के विवेकपूर्ण प्रबंधन से मीठे पानी की समस्या का निवारण होता है। ग्रेवॉटर का तात्पर्य घरेल अपशिष्ट जल से है जो बिना मल संदूषण के घरों या घरेलू गतिविधियों से उत्पन्न होता है। इसमें रसोई से निकलने वाला गंदा पानी, नहाने और कपड़े धोने से निकलने वाला गंदला पानी शामिल है लेकिन इसमें शौचालयों का गंदला पानी या मल का पानी शामिल नहीं है। यदि इसे ठीक से संभाला नहीं गया, तो यह स्वच्छता के लिए खतरा हो सकता है और मच्छरों के लिए प्रजनन स्थल बन सकता है और भूजल प्रदूषित कर सकता है। इसलिए, जल संरक्षण के लिए स्थायी व्यवहार प्रथाओं को विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है और अब कार्रवाई करने का समय है।
एक संसाधन के रूप में ग्रेवॉटर का सही संदेश देना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि विकल्पों की मौजूदगी (जमीन की उपलब्धता, लागत, मिट्टी की स्थिति और भू-वैज्ञानिक कारकों आदि जैसे आवश्यकता के अनुसार उपयोग की जाने वाली) की उपलब्धता के बारे में ज्ञान का प्रसारण भी आवश्यक है। एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि ग्रेवॉटर सभी जगहों पर एक जैसा नहीं होता है। तो, कॉपी-पेस्ट मॉडल काम नहीं करेगा। समाधान विश्लेषण पंचायती राज संस्था के सदस्यों और ग्राम पंचायत में कार्यरत लोगों की सहायता से किया जाना चाहिए। हमारे प्रयासों को सामुदायिक स्वामित्व बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, इस पर एक नरेटिव बनाकर कि यह उन्हें कैसे लाभान्वित करने वाला है। ग्राम कार्य योजना ग्रेवॉटर प्रबंधन सहित एफएचटीसी प्रदान करने की प्रक्रिया में सामुदायिक निर्णयों को एकीकृत करने के लिए सही प्रकार का मंच प्रदान करती है।
इसका अंतिम लक्ष्य यह महसूस करना है कि ग्रेवॉटर हमारी अपनी समस्या है और हमें इसका स्वयं समाधान करने की आवश्यकता है। लोग यह समझते हैं कि ग्रेवॉटर एक समस्या है, लेकिन इसके प्रबंधन की जिम्मेदारी किसी और की (पंचायत प्रधान, सरकार आदि) है, अपनी नहीं। इस प्रक्रिया में समुदाय की भागीदारी के लिए दो बातें महत्वपूर्ण हैं। सबसे पहले इसे अपने घरों में आजमाने का एक व्यावहारिक कवायद है। उदाहरण के लिए, एक अवसादन टैंक का निर्माण जिसके माध्यम से ग्रेवॉटर को रसोई के बगीचे में इस्तेमाल किया जा सकता है और खाद बनाने में उपयोग के लिए तलछट टैंक में एकत्रित गाद का उपयोग किया जा सकता है।
दूसरा, लेकिन अधिक महत्वपूर्ण यह है कि समुदाय इसमें शामिल लागतों और उन्हें व्यवस्थित करने के स्रोतों से अवगत है। स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण चरण II के साथ-साथ जल जीवन मिशन, 15वें वित्त आयोग और मनरेगा से ग्रेवॉटर प्रबंधन के लिए धन की उपलब्धता के बारेमें जानकारी सार्वजनिक डोमेन में है और अच्छी तरह से प्रसारित होनी चाहिए।
ग्राम पंचायत, पिपलांत्री (जिला राजसमंद, राजस्थान) के सरपंच पद्मश्री श्याम सुंदर पालीवाल की ऐसी ही एक सामुदायिक पहल का उत्तम उदाहरण है। सरकारी योजनाओं को सफलतापूर्वक लागू करके अपने गांव के एकीकृत विकास को सुगम बनाने के अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा कि उनके गांव में बेटी के जन्म पर 111 पेड़ लगाने की परंपरा है।
स्वजलधारा के तहत हर घर में नल के पानी के कनेक्शन दिए गए, जिससे गांव में गंदे पानी की समस्या पैदा हो गई। इसके समाधान के लिए सोख्ता गड्ढे बनाए गए, और उत्पन्न ग्रेवॉटर को सरकारी भूमि में लगाए गए पेड़ों की सिंचाई के लिए इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। लगभग 3.5 लाख पेड़ लगाए गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप 10 फीट पर भूजल की उपलब्धता हुई है जो पहले 300-500 फीट की गहराई पर उपलब्ध थी।
ग्रेवॉटर प्रबंधन में इस तरह की अंतर्दृष्टि, नवाचारों और सफल अच्छी प्रथाओं को साझा करने के लिए, भारत के 27 राज्यों के वरिष्ठ सरकारी अधिकारी, गैर-सरकारी संगठनों के कार्यकर्ताओं और चैंपियन, जिला समन्वयक, सरपंच, और एसबीएम जी के तहत काम करने वाले 15 से अधिक क्षेत्रकों/ विकास भागीदारों और एजेंसियों के साथ-साथ जेजेएम ग्रेवॉटर मैनेजमेंट (जेजेएम और एसबीएम-जी) पर 2 - दिवसीय राष्ट्रीय रैपिडएक्शन लर्निंग (आरएएल) कार्यशाला में एक साथ आए जिसका आयोजन यूनाइटेड नेशन फॉर प्रोजेक्ट सर्विसेज (यूएनओपीएस), ग्रीन स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप एंड सैनिटेशन लर्निंग हब, इंस्टीट्यूट ऑफ ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज (आईडीएस), यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स, यूनाइटेड किंगडम, नई दिल्ली के सहयोग से पेयजल एवं स्वच्छता विभाग, जल शक्ति मंत्रालय द्वारा किया गया।
रैपिड एक्शन लर्निंग वर्कशॉप, समानांतर अधिगम का आदान-प्रदान है जो प्रतिभागियों को अपने साथियों के काम को तेजी से सीखने, प्रतिबिंबित करने और विश्लेषण करने की अनुमति देते हैं, उन्हें व्यावहारिक, प्रयोग करने योग्य और प्राप्त करने योग्य कार्य योजनाओं को विकसित करने के लिए अंगीकरण करने और उसे अपनाने की अनुमति देते हैं जो वे अपने कार्य क्षेत्र में योजना तैयार करेगें या उन्हें कार्यान्वित करेंगे।
तकनीकी विशेषज्ञों को ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ग्रेवॉटर प्रबंधन के लिए उपलब्ध / उपयुक्त प्रौद्योगिकियों जैसे विषयों पर विचार-विमर्श करने की अनुमति देने के लिए क्षेत्र के विशेषज्ञों ने चार विषयगत सत्रों की सुविधा प्रदान की; जिनमें मिशन निदेशकों को ग्रेवाटर प्रबंधन पर सरकारी नीतियों और कार्यनीतियों पर बातचीत करने; वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा क्षेत्र के विचारों को साझा करने के लिए संगठनों और विकासशील भागीदारों तथा सरपंचों और समुदाय के प्रतिनिधियों की भूमिका पर चर्चा करना शामिल है।
चर्चा की गई कुछ राज्य-वार नवाचारों में लीच पिट और सामुदायिक वृक्षारोपण (महाराष्ट्र) के माध्यम से ग्राम ग्रे वाटर प्रबंधन, जीडब्ल्यूएम (मध्य प्रदेश) के लिए सुजलम 1.0 मिशन के सतत कार्यान्वयन के लिए कार्यनीति, बीरपुर डूंडा जीपी (उत्तराखंड) में समुदाय आधारित ग्रे वाटर प्रबंधन शामिल हैं। वर्टिकल टाइप सोक फिल्टर: तिरुपुर जिले (तमिलनाडु) के गणपतिपालयम गांव में एक विश्लेषणात्मक अध्ययन, ग्रामीण क्षेत्र (मेघालय) में ग्रे वाटर का निपटान, मिजोरम में किचन गार्डनिंग, व्यक्तिगत घरेलू सोख गड्ढों के साथ ग्रे वाटर का प्रबंधन (संघ राज्य क्षेत्र, लद्दाख), ग्राम स्तरीय ग्रेवॉटर प्रबंधन समाधान:अलवलपुर गांव (पंजाब) का एक मामला, पहाड़ी राज्य (हिमाचल प्रदेश) के ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रे वाटर प्रबंधन पर मैनुअल, जाहोटा गांव (राजस्थान) में मैजिक पिट्स, बिंदपुरी गांव ( उत्तर प्रदेश) में ग्रेवॉटर प्रबंधन के लिए सीएलएनओबी मानचित्रण और तालाब नवीनीकरण (पंजाब) शामिल है।
सभी भाग लेने वाले राज्यों ने अपनी राज्य-वार प्रमुख 'अधिगम और 2-3 कार्रवाई योग्य बिंदुओं को साझा किया, जिन्हें वे आगामी 6 महीनों में कार्य योजनाओं के रूप में अपने क्षेत्रों में लागू करने की मंशा रखते हैं। प्रमुख विचारों में यह अहसास शामिल था कि एसबीएम जी और जेजेएम के बीच एक डिस्कनेक्ट मौजूद है, और इसे दूर करने की आवश्यकता है। सामुदायिक प्रक्रियाओं को सुविधाजनक बनाने के लिए सामुदायिक स्तर के कार्यकर्ताओं को शामिल करना आवश्यक है और उन्हें कार्य में लगाने में निरंतरता होनी चाहिए। कार्यक्रम के कार्यान्वयन में सहायता के लिए ब्लॉक स्तर पर साधन संपन्न व्यक्ति को शामिल करने की आवश्यकता की पहचान की गई।
इसे संक्षेप में यह रेखांकित किया गया था कि वॉटर प्रबंधन के लिए उचित योजना आवश्यक है, जमीनी स्तर से ही सामुदायिक भागीदारी, प्रौद्योगिकी का सही चयन (यह जमीनी परिस्थितियों पर आधारित होना चाहिए न कि छोटे गाँव और बड़े गाँव पर होना चाहिए), तकनीकी मानकों का सख्त पालन समवर्ती निगरानी महत्वपूर्ण है, कार्यान्वयन से पहले तकनीकी प्रशिक्षण, सरल क्षेत्रीय भाषाओं में ज्ञान भंडार और अंत में वास्तविक उपयोगकर्ताओं का प्रशिक्षण / अभिविन्यास ताकि उनका रखरखाव ठीक से किया जा सके।
यूनाइटेड नेशंस ऑफिस फॉर प्रोजेक्ट सर्विसेज़ (यूनॉप्स), राष्ट्रीय प्रमुख कार्यक्रम, जल जीवन मिशन (जेजेएम) के लिए भारत सरकार को कार्यनीतिक तकनीकी सहायता प्रदान कर रहा है। जेजेएम का लक्ष्य 2024 तक भारत के सभी ग्रामीण घरों में घरेलू नल के पानी के कनेक्शन उपलब्ध कराना है।
यूनॉप्स वर्तमान में भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड, विंध्य और प्रयागराज क्षेत्रों के 11 सबसे अधिक पानी की कमी वाले जिलों के 26 गांवों में समुदाय के नेतृत्व वाले ग्रेवाटर प्रबंधन की सुविधा प्रदान कर रहा है।
स्रोत - जल-जीवन संवाद, अंक 24, जून 2022
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