कुकरैल नदी, गोमती की चौथी क्रम की सहायक नदी है। यह मध्य लखनऊ शहर से गुजरते समय बड़ी मात्रा में पानी लाती है। पहले बरसात के मौसम में सभी छोटी नदियाँ पर्याप्त मात्रा में पानी के साथ बहती थीं और गर्मी के मौसम में सिकुड़कर एक संकीर्ण धारा में बदल जाती थी। लेकिन नदियों, सहायक नदियों और प्राकृतिक नालों के किनारे बांधों के निर्माण और कई विकासात्मक कार्यों ने भी कई जलधाराओं को नुकसान पहुंचाया है, जिससे जिले की कई प्राकृतिक धाराएं/नाले बंद हो गए हैं।
कई पुराने नाले और जलाशयों को शहरीकृत क्षेत्र में बदल दिया गया है। ये सभी कारक शहर में बाढ़ की समस्या को जन्म देते हैं। इसलिए,समय की मांग है कि ऐसी रणनीति तैयार की जाए जिसमें जल निकासी व्यवस्था के लिए उचित योजना, दिशानिर्देश और प्रबंधन शामिल हो। कुकरैल के रिपेरियन बफर को बांधो, नालों और अनियोजित शहरीकरण से काफी नुकसान हुआ है, इसे बिना नुकसान पहुंचाए जहाँ तक हो सके, रिस्टोर करने की जरूरत है। कुकरैल नदी बेसिन लखनऊ शहर का एक महत्वपूर्ण जल निकासी बेसिन है। कुकरैल नदी बेसिन, लगभग 192 वर्ग किलोमीटर में फैला है और वर्तमान में नदी की लंबाई लगभग 28 किमी है। इसका उद्गम अस्ती गांव में होता है, जो बाद में कुकरैल आरक्षित वन में प्रवेश करती है ट्रांस- गोमती क्षेत्र में आती है। कुकरैल नदी -बहाव क्षेत्र में बड़ी मात्रा में बाढ़ के पानी का योगदान देती है। हाल के वर्षों में, कुकरैल नदी बेसिन में तेजी से शहरीकरण और कंक्रीटीकरण देखा गया है जिसके परिणामस्वरूप स्टॉर्म वाटर और रन ऑफ बढ़ गया है। पिछले लगभग दो दशकों में, - अनियोजित शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा के पैटर्न में - बदलाव के कारण तथा बढ़ती अभेद्य कंक्रीट सतह के साथ, लखनऊ शहर- को निचले इलाकों में नियमित रूप से जलभराव और भूजल की कमी का सामना करना पड़ता है । कुकरैल नदी के डिस्चार्ज को गोमती बैराज के पास उसके निकास पर टैप किया जाता है और इसे 345 एमएलडी क्षमता के भरवारा एसटीपी में पंप करके भेजा जाता है। कुकरैल नदी में औसत - डिस्चार्ज लगभग 150 एमएलडी है और लगभग 90 एमएलडी उपचार के लिए भरवारा एसटीपी में जाता है और लगभग 60 एमएलडी ओवरफ्लो होकर गोमती नदी में गिरता है।
गोमती बेसिन के लखनऊ खंड में दाहिनी ओर मलीहाबाद परगना का कुछ भाग, बायीं ओर महोना परगना, लखनऊ तहसील का मध्य भाग और- मोहनलालगंज तहसील का उत्तर-पूर्वी भाग शामिल है। यह क्षेत्र अनेक झीलों और तालाबों से युक्त है। रेठ नदी इस क्षेत्र में निकलती है और पूर्व दिशा में बाराबंकी जिले से होकर बहने के बाद अंततः गोमती के बाएं किनारे पर मिल जाती है। गोमती नदी आमतौर पर ऊँचे किनारों के साथ एक गहरे और टेढ़े-मेढ़े तल में बहती है, जो इसके दोनों किनारों पर खड्डों या नालों (ravines or the rivulets) द्वारा जगह-जगह कट जाती है। ऊंचे किनारों के साथ जलोढ़ मैदान की मिट्टी नदी के रेतीले और कभी-कभी जलभराव वाले संकीर्ण बाढ़-मैदान की मिट्टी से बिल्कुल विपरीत होती है। जिले का ढलान उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर है, यह दिशा-गोमती और सई दोनों नदियों द्वारा ली गई है, और परिणामस्वरूप उनके बीच स्थित जल विभाजक (watershed) भी उसी क्रम का पालन करते हैं। मानसून के मौसम मैं कभी-कभी भारी बारिश से बेसिन के निचले इलाके में बाढ़ की स्थिति आ जाती है। लखनऊ के सुदूर उत्तर में महोना के पास जमीन का लेवल समुद्र तल से 450 फीट ऊपर है, केंद्र में आलमबाग में यह 394 फीट है और दक्षिण-पूर्व में नगराम में 373 फीट का स्तर है, जो 45 मील की लंबाई में 43 फीट से अधिक की ढलान नहीं दर्शाता है, अतः ढलान प्रति मील 1 फीट से कम है। शहर का दक्षिण भूभाग उत्तर से लगभग 43 फीट नीचे है, इससे जल का जमाव दक्षिण की तरफ ज्यादा होता है।
गोमती और सई अपनी विभिन्न सहायक नदियों के साथ लखनऊ की मुख्य जल निकासी / जलनिस्सारण तंत्र बनाती हैं। सई नदी दक्षिण-पश्चिमी कोने में बहती है और दक्षिणी भाग में कुछ दूरी तक लखनऊ और उन्नाव की सीमा बनाती है। लखनऊ में सई नदी की सहायक नदियाँ नगवा और बख हैं। और जिले के उत्तर मध्य भाग से सई नदी में मिलती हैं। बख नदी पुरानी जेल और चारबाग रेलवे स्टेशन के दक्षिण में झीलों की श्रृंखला से बनती थी जो मोहम्मदीनगर के गांवों से होकर, औरंगाबाद खालसा और औरंगाबाद जागीर और बिजनौर के पूर्व से आगे होते हुए उत्तर-पश्चिम से मोहनलालगंज- तहसील में प्रवेश करती थी और केवल दो गांवों को पार करने के बाद उत्तर से निगोहां में एक बारहमासी धारा के रूप में बहा करती थी। इसका एक हिस्सा आज भी ओमेक्स सिटी के अंदर देखा जा सकता है। यह मध्य भाग से होते हुए दक्षिण-पूर्व की ओर मुड़ती है और निगोहां तक जारी रहती है। जिसके बाद यह फिर से दक्षिण-पश्चिम की ओर मुड़ती है और अंत में रायबरेली सीमा पर बिरसिंहपुर के पास सई में मिल जाती है। इसके पड़ोस की मिट्टी ज्यादातर उचित गुणवत्ता वाली दोमट है, लेकिन जैसे-जैसे हम सई के करीब जाते हैं यह रेतीली हो जाती है। आशियाना बंगला बाजार और एलडीए कॉलोनी के बनने के बाद बक नदी का उद्गम और झीलों की श्रृंखला समाप्त हो गयी।
कुकरैल नदी का उद्गम
1904 में प्रकाशित लखनऊ के गजेटियर के अनुसार कुकरैल महोना में अस्ती गांव के उत्तर से निकलती है और शहर के ठीक नीचे बिबियापुर के पास बाएं किनारे पर गोमती नदी में मिल जाती है। गजेटियर के अनुसार कुकरैल का पानी, अपने शुद्धता के लिए प्रसिद्ध हुआ करता था। ("The waters of the Kukrail, small stream that joins the Gomti on its left bank near Bibiapur are noted for the purity of tint that they convey’’-(Page40)
1962 में तटबंध के निर्माण से पहले, कुकरैल नदी बैराज के नीचे की ओर (जहां वर्तमान ताज होटल और अंबेडकर पार्क स्थित है) गोमती से मिलती थी। लेकिन तटबंध के निर्माण के बाद नदी का यह हिस्सा नदी की मुख्यधारा- से कट गया। वर्तमान में यह एक आर्द्रभूमि (वेटलैंड) के रूप में काम कर रही है, और इसका नाम जुगौली झील है।
2022 में कुकरैल नदी के उद्गम के एक हिस्से का उपयोग करके एक अमृत-। तालाब बनाया गया है, जिसे दसौर बाबा तालाब के नाम से जाना जाता है। यह झील नीचे की ओर अन्य तालाबों से जुड़ी हुई है, जो एक छोटा चैनल बनाती है, जो बाद में कुकरैल धारा बन जाती है। लोककथाओं के अनुसार, ग्रामीण दसौर बाबा को अस्ती गांव के ग्राम देवता के रूप में मानते हैं, तालाब के पास एक कुआं है, जिसे कुकरैल नदी का उद्गम स्थल माना जाता है। वर्तमान में यह कुआं सूखा है और कुएँ के पास एक हैंडपंप है जो अनुष्ठानों -और अन्य जरूरतों के लिए पानी उपलब्ध कराता है।
अस्ती गांव स्थित कुकरैल नदी के ऊपरी कैचमेंट में झील और तालाबों की स्थिति सम्बंधित ग्राम के नक्शे से यह स्पष्ट है कि पानी के बहाव के आधार पर नाला निकाला गया। यदि इस चैनल को साफ कर दिया जाए और थोड़ा चौड़ा कर दिया जाए तो ऊपरी धारा से पानी का प्रवाह कुकरैल नदी में किया जा सकता है। हालांकि, किसान पथ पानी के प्रवाह को बाधित करेगा क्योंकि ऊपर से नीचे की ओर पानी को बायपास करने के लिए कोई पर्याप्त पुलिया / कल्वर्ट नहीं बनाई गई है। कुकरैल नदी के किमी. 27.00 के पास किसान पथ बना हुआ है। किमी 27.00 के अपस्ट्रीम के पानी को डाउनस्ट्रीम में निकालने हेतु राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने किसान पथ में मात्र 80-90 सेमी का एक पाइप डाला हुआ है जिससे किसान पथ के अपस्ट्रीम का पानी किसान पथ के डाउनस्ट्रीम निकलने में समस्या होगी। एक बब ड्रेन बनायी गयी है जिसके फ्लैंज का लेवल पाइप के बेड लेवल से ऊपर है। अतः कि.मी. 27-00 के अपस्ट्रीम के कैचमेंट का पानी नहीं निकल पायेगा। एनएचएआई से अनुरोध करना पड़ेगा की एक ऐसी कल्वर्ट बनायी जाये जिससे अपस्ट्रीम का पानी निकल सके। पानी 10 क्यूसेक से 50 क्यूसेक तक हो सकता है।
कुकरैल बेसिन में भूजल का गिरता स्तर फुकरेल नदी के प्रवाह में भूजल का - विशेष योगदान रहता था लेकिन वर्तमान में भूजल स्तर में भारी गिरावट के कारण बेसफ्लो में बहुत कमी आयी है जिससे नदी का नैसर्गिक प्रवाह लगभग खत्म हो चुका है। लखनऊ में जल आपूर्ति प्राइवेट और जल संस्थान के ट्यूबवेल, गोमती नदी और शारदा सहायक फीडर नहर जैसे स्रोतों पर निर्भर करती है। चूंकि लखनऊ गंगा मैदान के जलोढ़ पर स्थित है, जहां भूजल की उपलब्धता आसानी से बनी रहती है, यही कारण है कि आवासीय कॉलोनियों और बहुमंजिला इमारतों में निजी ट्यूबवेल निर्माण गतिविधि अनियंत्रित रूप से चल रही है। इसके कारण भूजल संसाधनों में भारी पंपिंग / निरंतर दोहन हुआ है, और जलभृतों में बड़े पैमाने पर कमी आई है। परिणामस्वरूप, भूजल स्तर काफी नीचे तक चला गया है, जहां से यह बहुत मुश्किल लगता है कि भूजल की घटती स्थिति में कभी सुधार हो सकेगा।
लखनऊ में गोमती और कुकरैल का डिस्चार्ज
लखनऊ में शुष्क अवधि (lean period) के दौरान गोमती नदी में उपलब्ध डिस्चार्ज लगभग 400 एमएलडी हो जाता है, जबकि मानसून अवधि में - डिस्चार्ज लगभग 55,000 एमएलडी तक पहुँच जाता है। वर्ष के अधिकांश भाग में औसतन डिस्चार्ज केवल 1500 एमएलडी के आसपास होता है। पीने योग्य पानी की आपूर्ति के लिए प्रतिदिन गोमती नदी से 450 एमएलडी कच्चा पानी निकाला जाता है, जो विशेष रूप से गर्मियों में पानी की कमी के कारण गोमती नदी की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। यह स्पष्ट है कि गोमती नदी में साल भर बहुत धीमा जल प्रवाह और कम पानी का बजट होता है, हालांकि मानसून के दौरान भारी बारिश से निचले इलाके में भयावह बाढ़ की स्थिति आ जाती है। चूंकि, गोमती नदी की चौड़ाई और चैनल अनुपात (valley width and channel ratio) में बहुत अधिक अंतर नहीं है; इसलिए भारी बारिश के समय पानी आसानी से ऊपर आ जाता है या नदी के किनारे को पार कर जाता है और विनाशकारी बाढ़ की स्थिति आ जाती है। सबसे अधिक बाढ़ 13 सितंबर, 1894 को दर्ज की गई थी, जब नदी का पानी सामान्य उच्च बाढ़ स्तर (HFL) से 1- 4 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ गया था और अधिकतम निर्वहन 234,000 क्यूबिक फीट प्रति सेकंड था।
लखनऊ में जल आपूर्ति प्राइवेट और जल संस्थान के ट्यूबवेल, गोमती नदी और शारदा सहायक फीडर नहर जैसे स्रोतों पर निर्भर करती है। चूंकि लखनऊ गंगा मैदान के जलोड़ पर स्थित है, जहां भूजल की उपलब्धता आसानी से बनी रहती है यही कारण है कि आवासीय कॉलोनियों और बहुमंजिला इमारतों में निजी ट्यूबवेल निर्माण गतिविधि अनियंत्रित रूप से चल रही है। इसके कारण भूजल संसाधनों में भारी पपिंग / निरंतर दोहन हुआ है, और जलभृतों में बड़े पैमाने पर कमी आई है परिणामस्वरूप, भूजल स्तर काफी नीचे तक चला गया है, जहां से यह बहुत मुश्किल लगता है कि भूजल की घटती स्थिति में कभी सुधार हो सकेगा।
1960 में, लखनऊ में बाढ़ का उच्चतम स्तर 113.2 मीटर दर्ज किया गया था, जिससे शहर का बड़ा हिस्सा जलमग्न हो गया था। बस्तियों की सुरक्षा के लिए, गोमती नदी के किनारे के साथ-साथ कुकरैल पर 114.4 मीटर के शीर्ष स्तर तक मिट्टी के तटबंध बनाए गए। कुकरैल नदी के दोनों तरफ वर्ष 1962 में लोक निर्माण विभाग द्वारा जमीन अधिग्रहीत की गयी थी। इस नदी के दायें और हेड से 2.5 किमी. लंबाई में तटबंध निर्माण का कार्य वर्ष 1985 के पूर्व कराया गया था एवं वर्ष 1994 में बायीं और 4.6 किमी. लंबाई में तटबंध निर्माण का कार्य सिंचाई विभाग द्वारा कराया गया था। बायें तट पर इस तटबंध की टॉप width 7.5 मीटर रखी गयी थी एवं ऊंचाई लगभग 6 मीटर रखी गयी थी। वर्ष 2019 में इस तटबंध के किमी. 0.800 से किमी. 4.600 तक (28.5 मीटर टॉप) चौड़ीकरण का कार्य तदोपरांत 6 लेन रोड एवं बैरल का निर्माण कार्य लोक निर्माण विभाग द्वारा पूर्ण कराया गया। 1962 में तटबंध के निर्माण से पहले कुकरैल नदी बैराज के नीचे की ओर (जहां वर्तमान अंबेडकर पार्क स्थित है) गोमती से मिलती थी। लेकिन तटबंध के निर्माण के बाद नदी का यह हिस्सा नदी की मुख्य धारा से कट गया। वर्तमान में यह एक आर्द्रभूमि (वेटलैंड) के रूप में काम कर रही है, और इसका नाम जुगौली झील है। भारी बारिश और बाढ़ की स्थिति में, पंपिंग स्टेशन पानी को तटबंध के पार नदी में पंप करते हैं ताकि शहर में जलजमाव को रोका जा सके। लखनऊ शहरी क्षेत्र का एक हिस्सा, गोमती नगर, गोमती नदी के बाढ़ क्षेत्र ( कुकरैल नदी की गोमती नदी से मिलती पुरानी धारा और - सल्लज फार्म का हिस्सा) पर स्थित है और बारिश के दौरान कुछ इलाकों में जलजमाव हो जाता है। असामान्य वर्षा वाले वर्षों को छोड़कर, गोमती कोई परेशानी नहीं देती है, फिर भी बाढ़ और उसके परिणामस्वरूप होने वाले प्रभावों से अक्सर क्षति होती है। मानसून के दौरान लखनऊ शहर में बाढ़ और जलभराव की समस्या मुख्य रूप से जल निकासी पर हुए व्यापक अतिक्रमण के कारण होती है। कई प्राकृतिक नालियां सूख गयीं या शहरवासियों ने उन पर अतिक्रमण कर लिया। इसलिए मानसून में बारिश का पानी नालों से ओवरफ्लो हो जाता है और आसपास के इलाकों में बाढ़ आ जाती है। वर्षा जल के प्राकृतिक एवं सुचारू प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए एकीकृत जल निकासी प्रबंधन आवश्यक है।
कुकरैल नदी से कुल न्यूनतम डिस्चार्ज 150 एमएलडी है और लगभग 90 एमएलडी उपचार के लिए भरवाड़ा एसटीपी में जाता है और लगभग 60 एमएलडी ओवरफ्लो होकर गोमती नदी में गिरता है। मानसून के दौरान कुकरैल नदी में जलस्तर -बहुत तेजी से बढ़ता है, पीक निर्वहन कभी-कभी 350 एमएलडी - पार कर जाता है। कुकरैल नदी की गंदगी गोमती में ही आकर मिलती है। जलनिगम ने कुकरैल सीवेज पम्पिंग स्टेशन बना रखा है, फिर भी लगभग 60 एमएलडी ओवरफ्लो होकर गोमती नदी में मिल जाता है। कुकरैल नदी में कुल 51 नाले गिरते हैं जिनमें 17 बड़े नाले हैं। कुकरैल नदी के दायीं तरफ महानगर, फैजुल्लागंज, त्रिवेणीनगर, जानकीपुरम, अलीगंज, विकासनगर, कल्याणपुर, कालोनियां बसी हैं। बायी तरफ इंदिरानगर सर्वोदयनगर, रहीमनगर, मानस बिहार, शक्तिनगर समेत संजय गांधीपुरम की लगभग पांच लाख आबादी की गंदगी का बोझ कुकरैल नदी सहती है। कुकरैल नदी लखनऊ शहर के कल्याणपुर, इंदिरा नगर, शक्ति नगर और निशातगंज के जलग्रहण क्षेत्र से घरेलू अपशिष्ट जल के साथ-साथ मेसर्स सीपी मिल्क एंड फूड प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड, कुर्सी रोड और मेसर्स एचएएल लिमिटेड - फैजाबाद रोड, लखनऊ से अपशिष्ट जल लाती है। 1971 में, शहर के विभिन्न हिस्सों से कुल 33 नाले निकलते थे और बाएँ और दाएँ दोनों किनारों पर गोमती नदी में मिलते थे। महानगर नाला, रहीमनगर नाला, हेवेट पाली नाला, फैजाबाद रोड नाला, रेलवे कॉलोनी नाला और पेपर मिल कॉलोनी नाला कुकरैल में मिलते थे।
कुकरैल नदी के जल में ज्यादातर ऑक्सीजन स्तर की कमी और अत्यधिक बीओडी की समस्या रहती है, और यह जलीय जीवन के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है। लखनऊ में गोमती नदी में कुल 34 नाले मिलते हैं जिनमें 16 नाले सिस साइड के और 18 नाले ट्रांस साइड के हैं। इन 34 नालों से लगभग 700 एमएलडी अपशिष्ट जल उत्पन्न होता है, जिसमें से केवल 438 एमएलडी को शोषित किया जाता है। गौरतलब है कि नदी में प्रवाह में लगभग 700 एमएलडी नालों का योगदान है। गोमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट परियोजना के अन्तर्गत गोमती नदी के ट्रांस साइड में 15 नाले एवं सिस साइड में 14 नालों को इंटरसेप्टिंग ट्रंक ड्रेन के माध्यम से टैप किया जाना प्रस्तावित था, परन्तु यह कार्य पूर्ण नहीं किया जा सका।
वर्तमान में गोमती रिवर फ्रंट डेवलपमेंट परियोजना के अंतर्गत कार्यों की जाँच चल रही है। वर्तमान में इन सभी 29 नालों का अशोधित जल गोमती में प्रवाहित हो रहा है। इंटरसेप्टिंग ड्रंक ड्रेन बनाने के बाद भी नालियों को टैप नहीं किया गया है और ये नालियां बारिश के दौरान अपशिष्ट जल का अतिरिक्त भार उठाने में असमर्थ हैं क्योंकि स्ट्रोम वाटर सीवेज के पानी में मिल जाता है। साथ ही नालों से सिल्ट और सॉलिड वेस्ट्स की मात्रा भी बहुत अधिक होती है। वर्तमान में हैदर कैनाल से गोमती तक कुल डिस्चार्ज 158 एमएलडी है, जिसमें से लगभग 87 एमएलडी भरवारा एसटीपी में उपचार के लिए भेजा जाता है और शेष लगभग 71 एमएलडी अनुपचारित सीवेज सीधे गोमती नदी में बह जाता है। यह नाला भरवारा में 345 एमएलडी एसटीपी से जुड़ा है, लेकिन यह देखा गया है कि कुल सीवेज का लगभग 55 प्रतिशत सीधे गोमती बैराज के डाउनस्ट्रीम में गोमती नदी में गिरा दिया जाता है।
शारदा सहायक नहर से कुकरैल नदी में कितना जल उपलब्ध हो पायेगा
शारदा नहर की हरदोई शाखा और खीरी शाखा अपनी डिस्ट्रीब्यूटरीज़ और माइनर के साथ पूरे गोमती नदी बेसिन से होकर गुजरती हैं। शारदा नहर की खीरी शाखा जागे चलकर खीरी शाखा और सीतापुर शाखा में विभाजित हो जाती है। गोमती नदी बेसिन के प्रमुख नहर नेटवर्क में हरदोई शाखा, खीरी शाखा, सीतापुर शाखा, संडीला शाखा, सुल्तानपुर शाखा, जौनपुर शाखा, लखनऊ शाखा और शारदा नहर की मरियाहौ शाखा शामिल हैं। ये शाखाएँ -आगे चलकर इसकी कई डिस्ट्रीब्यूटरीज़ में विभाजित हो जाती हैं। शारदा- सहायक फीडर कैनाल से निकलने वाली चिनाहट रजवाहा से रजौली रजवाहा निकलता है जिसका टेल जरारा नाले में गिरता है और जरारा नाला-रेउबा नाले में मिलता है और रेउबा नाला कुकरैल नदी में आकर मिलता है। शारदा- सहायक नहर से यह पानी 10 से 200 क्यूसेक तक प्राप्त हो सकता है। यदि इससे अतिरिक्त पानी की आवश्यकता होगी तो शारदा सहायक कमाण्ड कहीं न कहीं सिंचाई प्रभावित होगी। इसके अलावा शारदा नहर की सोनवा-माइनर व मानपुर अल्पिका की टेल का पानी कुकरैल नदी के कैचमेंट में आता है जिससे समय-समय पर 112 क्यूसेक तक पानी प्राप्त हो सकता है।
कुकरैल नदी पुनरुद्धार हेतु निम्नलिखित बिंदुओं और सुझावों पर चरणबद्ध तरीके से काम करना होगा -
- अस्ती गांव में तालाबों और झीलों की श्रृंखला को बना कर प्रवाह को कुकरैल फॉरेस्ट तक ले जाना उचित होगा, सभी झीलों को रिस्टोर कर जिला वेटलैंड अथारिटी से अधिसूचित कराना उपयुक्त होगा।
- किसान पथ बनने के बाद कुकरैल का ऊपरी हिस्सा फ्रेगमेंट हो गया है, इसके लिए एक कल्वर्ट बनाना होगा जिससे पर्याप्त मात्रा में ऊपरी कैचमेंट का जल निचले फॉरेस्ट कैचमेंट तक आ सके।
- कुकरैल वन क्षेत्र वर्ष 1950 से लगभग 5000 एकड़ क्षेत्र (2023 में हेक्टेयर) में विकसित किया गया था। कुकरैल वन क्षेत्र के अंदर कुकरैल नदी को बिना नुकसान पहुंचाए चैनल की जलवहन क्षमता को बढ़ाना उचित होगा, कुछ स्थानों पर रिटेंशन पोंड बनाये जा सकते हैं।
- चिनहट रजवाहा (शारदा सहायक फीडर कैनाल ) तथा सोनवा और मानपुर माइनर (शारदा संगठन) से कुकरैल नदी में जल छोड़ा जा सकता है।
- कुकरैल वन क्षेत्र के बाहर कुकरैल नदी के दोनों किनारों पर कई जगह अतिक्रमण को हटाना उचित होगा।
- कुकरैल नदी के दोनों किनारों पर इसके प्राकृतिक वनस्पतियों को लगा करना, साल, पाकड़ आदि) तथा कई जगहों पर योग पार्क, मंगल वाटिका, स्मृति वाटिका, अटल वाटिका, रिवर म्यूजियम, बटरफ्लाई पार्क आदि पर्यावरण एवं नदी संरक्षण के लिए उचित होगा।
- तटबंधों और कठोर तटों (solid bank) से बचना चाहिए क्योंकि इससे प्राकृतिक वनस्पतियों और भूजल पुनर्भरण की संभावनाओं को नुकसान होगा। इसके बजाय,एक प्राकृतिक हरित नदी तट (Green Riverfront) बनाया जाना चाहिए जिससे प्राकृतिक तटों और वनस्पतियों के विकास के साथ-साथ बारिश के दौरान पानी फैलने के लिए पर्याप्त जगह मिल सके।
- कुकरैल नदी का पानी ज्यादातर ऑक्सीजन स्तर की कमी और बीओडी बहुत अधिक भार की समस्या से ग्रस्त है, और यह जलीय जीवन के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है। कुकरैल नदी में मिल रहे नालों पर छोटे विकेन्द्रित या मोडुलर एसटीपी बना कर इनका शोषित-जल-पुनः कुकरैल-नदी में छोड़ा जाये जिससे इसका प्रवाह - निरंतर बना रहे तथा गोमती नदी में भी जल की उपलब्धता बनी रहे। नालों को डाइवर्ट करने से कुकरैल नदी के बेड़ और टेरेस को काफी नुकसान होगा तथा भरवारा तक अशोधित जल ले जाने पर काफी ऊर्जा और बिजली की जरूरत होगी। इंटरसेप्टिंग ड्रेन अक्सर कुछ सालों बाद चोक हो जाते हैं जिससे फ्लडिंग की समस्या होगी।
- 1962 में तटबंध की निर्माण से पहले , कुकरैल नदी बैराज के नीचे की ओर (जहां वर्तमान ताज होटल और अंबेडकर पार्क स्थित हैं)। गोमती नदी से मिलती थी। लेकिन तटबंध के निर्माण के बाद नदी का यह हिस्सा नदी की मुख्यधारा से कट गया। वर्तमान में यह एक आर्द्रभूमि (वेटलैंड) के रूप में काम कर रही है, और इसका नाम जुगौली झील है। इस झील को रिस्टोर कर अटल पार्क बनाया जा सकता है, इससे भूजल रिचार्ज के साथ-साथ एक बड़ा ग्रीन बेल्ट तैयार हो सकता है। 150 एकड़ का वेटलैंड पार्क (अटल उपवन और रिवर फ्रंट बायोडायवर्सिटी पार्क कुकरैल के पुराने कोर्स पर बनाया जा सकता है।
लेखक प्रो वेंकटेश दत्ता,नदी संरक्षण एवं पुनर्जीवन विशेषज्ञ हैं, बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर हैं।
स्रोत -लोक सम्मान अगस्त 2023
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