ग्लोबल वॉर्मिंग से बढ़ता खतरा

ग्लोबल वॉर्मिंग से बढ़ता खतरा
ग्लोबल वॉर्मिंग से बढ़ता खतरा

आज पूरा विश्व जलवायु परिवर्तन की समस्या से ग्रस्त है। मनुष्य प्रतिदिन पानी, वायु और वृक्षों को हानि पहुंचा रहा है। वह स्वयं के सुखों के संसाधनों को जुटाने के लिए प्रतिदिन प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहा है। वह अपने कारखानों/ घरों से गंदा पानी एंव कचरा नदियों में डाल रहा है या फिर खुले में कचरे को फेंक रहा है। मनुष्य के इस कृत्य से जल और वायु प्रदूषित हो रहे हैं। यह प्रदूषण हमारी ओजोन परत को नुकसान पहुंचा रहा है। ऐसे ही अनेक क्रियाकलापों के कारण ग्लोबल वॉर्मिंग होने के परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तन तेज हो रहा है जिसके कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ने लगा है। मनुष्य ने अपनी सुविधा के लिए अनेक संसाधन एकत्रित किए और उसकी अच्छी कीमत भी अदा की लेकिन ईश्वर ने हमारे जीवन को सुखदायी बनाने के लिए हमें अनेक वस्तुएं प्रदान की जैसे कि, हवा, पानी, वृक्ष आदि और इसके लिए हमें कुछ देना भी नहीं पड़ा। मनुष्य इन्हीं को अपनी क्रियाओं से दूषित कर रहा है। वृक्षों को काटकर उस स्थान पर अपने उद्योग लगा रहा है। इन उद्योगों से निकलने वाला धुआं और अनेक प्रकार की विषैली गैसें वातावरण को दूषित कर रहीं हैं जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव मानव जाति के साथ-साथ, वन्यजीवों, कृषि और ऋतुओं पर भी पड़ रहा है। इस वर्ष समय पर वर्षा न होने के कारण देश के लगभग 12 राज्य सूखे से प्रभावित हुए, जिसका प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था और अनेक प्रजातियों पर देखा गया। जलवायु परिवर्तन से पृथ्वी पर रहने वाली सभी प्रजातियों को लगातार परिवर्तनशील होना पड़ रहा है। ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते हो रहा जलवायु परिवर्तन आने वाले भविष्य में अनेक प्रजातियों को विलुप्त कर देगा। बढ़ता ग्लोबल वॉर्मिंग वैश्विक जलवायु परिस्थितियों में बहुत बड़ा परिवर्तन पैदा कर सकता है और मौजूदा नाजुक पारिस्थितिकी प्रणालियों एवं भविष्य में प्रजातियों को नुकसान पहुंचा सकता है। इसका अंदाजा विगत में आए उड़ीसा राज्य के विशाखापत्तनम में हुद-हुद चक्रवाती तूफान से लगाया जा सकता है। इसने अनेक छोटी-छोटी प्रजातियों को अपने कहर से बिल्कुल समाप्त कर दिया। इतना ही नहीं मानव संपत्ति को भी भारी नुकसान पहुंचाया।

जलवायु परिवर्तन का मामला सन 1988 में पहली बार सामने आया। मानव की परेशानियों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने "मानव जाति की सामूहिक चिन्ता" के रूप में एक संकल्प पारित किया।इस जोखिम द्वारा उत्पन्न खतरों का मूल्यांकन करने के लिए इंटरगवर्नमेंट पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की स्थापना की गई, और अनेक पहुलओं पर चिंतन भी किया गया लेकिन 'मनुष्य अपनी नुकसान पहुंचाने वाली क्रियाओं पर रोक नहीं लगा पा रहा है और प्रतिदिन अपने जीवन को खतरे में डाल रहा है।

जलवायु परिवर्तन से प्रकृति के संतुलन में आए इस बदलाव को देखते हुए यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भूमण्डलीय स्तर के ऐसे पर्यावरणीय बदलाव से निकट भविष्य में विकट समस्या उत्पन्न होने वाली है। जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभावों से बचने के लिए हमें जल्द ही विभिन्न उपायों को अपनाना होगा और बड़ी तैयारी करनी होगी।

स्रोत:- हिंदी पर्यावरण पत्रिका, पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय 

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Post By: Shivendra
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