गटर के पानी से भी ज्यादा जहरीला हुआ बनारस का गंगाजल

बनारस के घाट पर अब गंगा स्नान करना महंगा पड़ सकता है। शिव की इस नगरी में पहुंचते-पहुंचते गंगा गटर के पानी से भी ज्यादा खतरनाक हो चुकी है। यह बात अब खुद प्रदेश सरकार के संबंधित अफसर और विभाग कहने लगे हैं। साल की शुरूआत यानी जनवरी में लगातार पांच दिन तक गंगा के पानी का सैंपल लेकर जब उसकी जांच कराई गई तो पता चला कि गंगा का पानी पीने लायक तो पहले ही नहीं था अब नहाने लायक भी नहीं बचा है। जो काशी में गंगा स्नान का पुण्य लेना चाहते हैं उन्हें जरूर सावधान रहना चाहिए क्योंकि यहां का गंगाजल कई बीमारियों को न्योता दे सकता है।

गंगा के पानी को खतरनाक स्तर तक प्रदूषित होने की जानकारी लखनऊ के उत्तर प्रदेश राज्य स्वास्थ्य विभाग की प्रयोगशाला ने सबसे पहले दी। विभाग के अपर निदेशक ने 25 अक्तूबर 2010 को वाराणसी के जल संस्थान को पूरी रिपोर्ट दी। इस रपट में वाराणसी में गंगा के पानी की जांच-पड़ताल कर बुरी तरह प्रदूषित बताया गया। इसके बाद जल संस्थान ने इस साल जनवरी में 14 से 20 जनवरी तक गंगा के पानी की जांच कराई जिसमें पानी काफी खराब पाया गया। यह जानकारी प्रदूषण नियंत्रण विभाग को दी गई। इस बारे में वाराणसी में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड असिस्टेंट केमिस्ट फ्रैंकलिन ने ‘जनसत्ता’ से कहा कि बनारस के घाट पर गंगा का पानी नहाने लायक नहीं है। यह बात अलग है कि गटर में बदलती गंगा के पानी को लेकर सबसे ज्यादा आपराधिक भूमिका इसी विभाग की मानी जा रही है जिसका आला अफसर न तो फोन रखता है और न ही गंगा के पानी के बढ़ते प्रदूषण पर संबंधित विभागों की सुनता है। यह जवाब विभाग के ही अधीनस्थ कर्मचारी का है।

गंगा बनारस पहुंचने से पहले ही काफी प्रदूषित हो जाती है और जो रही-सही कसर बचती है उसे काशी का कचरा पूरा कर देता है। सुनारों के मोहल्ले से चांदी साफ करने के बाद बचा तेजाब सीधे नाले में बहाया जाता है, तो जुलाहों के इलाके में धागे से निकला कचरा भी सीवर में जाता है, जो अक्सर नालों को बंद कर देता है। बूचड़खानों के कचरे के साथ अस्पतालों का कचरा भी पवित्र गंगा में जा रहा है। गंगा का यही पानी बनारस के बासिंदों को कुछ हद तक साफ कर पिलाया जाता है। अब खुद जल संस्थान गंगा के प्रदूषित पानी को लेकर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से गुहार लगा रहा है ताकि बनारस के लोगों को साफ पानी मिल सके।

इस साल जनवरी के तीसरे हफ्ते में वाराणसी के जल संस्थान ने लगातार पांच दिन तक गंगा के पानी का सैंपल लेकर उसकी प्रयोगशाला में जांच कराई। रूटीन जांच के अलावा यह जांच इसलिए कराई गई क्योंकि कई दिनों से गंगा का जल का रंग मटमैला पीला होता जा रहा था। साथ ही उसमें चमड़े की झिल्ली भी देखने को मिल रही थी जिसकी वजह से पीने का पानी के फिल्ट्रेशन व शोधन में कठिनाई होने लगी थी। गंगा के पानी की जांच फिर लखनऊ के स्वास्थ्य विभाग की प्रयोगशाला में कराई गई। लखनऊ में स्वास्थ्य विभाग के एक अफसर ने कहा कि बनारस में गंगा के पानी की जो रिपोर्ट आई है वह एक चेतावनी है। इसकी सीधी जिम्मेदारी वाराणसी के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की है जो लोगों के जीवन से खेल रहा है। ये लोग तो गंगा के बीच का सैंपल लेकर झांसा देने की कोशिश करते हैं जबकि सबको पता है कि नाले किनारे पर गिरते हैं और वहां का पानी ज्यादा प्रदूषित होता है। रिपोर्ट से साफ है कि किसी कारखाने के जरिए अनुपयोगी पदार्थ को गंगा नदी में छोड़ा जा रहा है। इसकी वजह से कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

जलकल विभाग ने गंगा के जल में प्रदूषण की मात्रा के परीक्षण के लिए 14 से 17 जनवरी के बीच जो जांच कराई उस सैंपल में टरवीडिटी (गंदगी) की मात्रा) 40 एनटीयू पाई गई थी। पानी का रंग मटमैला पीला था और उसमें एमपीएन की मात्रा 1800 थी। साथ ही 18 से 20 जनवरी के मध्य लिए गए जल के सैंपल में जल की टरवीडिटी 45, जल का रंग मटमैला पीला रंग व उसमें एमटीएन की मात्रा 1800 मिली। विशेषज्ञों के मुताबिक यह मात्रा काफी ज्यादा है। वैज्ञानिक ए.एन. सिंह ने कहा कि गंगा के पानी का इस कदर प्रदूषित होना खतरनाक है।

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