गर्मियों के तीन महीने पहले हो सकती है जलाशयों में जलस्तर की भविष्यवाणी (New method can help predict reservoir levels three months in advance)

दिनेश सी. शर्मा, इंडिया साइंस वायर । 2 मई 2019

भारत में अक्सर गर्मियों के मौसम में जलाशयों के जल भंडारण स्तर को लेकर बड़ा असमंजस रहता है। भीषण गर्मी पड़ने के साथ ही सरकार और जलविद्युत उत्पादकों को जलाशयों में पानी के स्तर की चिंता सताने लगती है। लेकिन अब इस दुविधा को दूर करने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने एक नया समाधान खोज निकाला है, जिससे जलाशयों में जल स्तर की भविष्यवाणी की जा सकती है।


भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गांधीनगर के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा मॉडल तैयार किया है, जिससे गर्मियों के मौसम आने के एक से तीन महिने पहले ही भावी जलाशय भंडारण की शुरुआती संगतियों के बारे में पता चल सकता है। यदि जलाशयों में जल भंडारण की भावी संभावित कमी की अग्रिम चेतावनी दे दी जाए, तो सूखे के दौरान उन क्षेत्र विशेष के लिए जल प्रबंधन में सहायता की जा सकती है।


यह मॉडल कई मापदंडों जैसे प्रेक्षित संचित वर्षा, मानकीकृत वर्षा सूचकांक (एसपीआई), मानकीकृत वर्षा वाष्पोत्सर्जन सूचकांक (एसपीईआई), मानकीकृत धारा प्रवाह सूचकांक (एसएसआई) और प्रेक्षित भंडारण आंकड़ों के आधार पर विकसित किया गया है।


प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. विमल मिश्रा ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “लगभग 3 से 11 महीनों तक संचित हुए वर्षाजल और मासिक जलाशय भंडारण विसंगतियों के बीच एक मजबूत संबंध पाया गया है। इस तरह के आंकड़ों और अन्य परिणामों के आधार पर जलाशय भंडारण विसंगतियों के बारे में 1 से 3 महीने पहले यथोचित पूर्वानुमान लगा पाना संभव है। इसका मतलब यह है कि जनवरी और फरवरी में ही हम अनुमान लगा सकते हैं कि मई में जल भंडारण का स्तर क्या होगा।” 


शोधकर्ताओं ने देश के 91 प्रमुख जलाशयों के जलग्राही क्षेत्रों से आंकड़े एकत्रित किए साथ ही प्रेक्षित वर्षा और वायु तापमान जैसे आंकड़ों का भी विश्लेषण किया। इन सभी के आधार पर तीन माह पहले जलाशय भंडारण विसंगतियों की भविष्यवाणी कर सकने वाला एक सांख्यिकीय मॉडल विकसित किया गया। दैनिक वर्षा और अधिकतम और न्यूनतम तापमान के आंकड़े भारत मौसम विज्ञान विभाग और साप्ताहिक जलाशय भंडारण आंकड़े इंडिया-डब्ल्यूआरआईएस डेटाबेस से से लिए गए।


डॉ. मिश्रा के अनुसार मॉडल को वर्ष 2002 के बाद से जलाशय के स्तरों के आधार पर सत्यापित किया गया है। इस पूरी अवधि के दौरान के सभी वर्ष प्रायः सूखे, आर्द्र और सामान्य मानसून वाले थे। यह पाया गया कि मॉडल वास्तव में अच्छी तरह से काम करता है। 


दक्षिण एशिया बांध, नदी एवम् जन नेटवर्क के हिमांशु ठक्कर की राय में पूर्वानुमान मॉडल एक अच्छा विचार है लेकिन इसके लिए ऊपरी जल और जलाशय के पानी के उपयोग संबंधी प्रमुख मापदंडों का मालूम होना भी बेहद जरुरी है। साथ ही बड़े पैमाने पर भूजल उपभोग के कारण जहां नदियों के जल प्रवाह पर इसका प्रभाव पड़ रहा है, वहीं जलाशय के जल भंडारण पर भी इसका असर दिखता है।  क्योंकि अभी हमारे यहां जलाशय के पानी के उपयोग को लेकर कोई नीति नहीं है। पूर्वानुमान लगाने से पहले इन सभी तथ्यों की पुख्ता जानकारी की आवश्यकता है, तभी यह मॉडल सार्थक होगा। 


ठक्कर का मानना है कि “विभिन्न जलाशयों की जलग्रहण स्थितियों के बारे में भी जानकारी का अभाव है। पिछले साल जुलाई में, कावेरी बेसिन में प्रमुख जलाशय लबालब भरे हुए थे, जबकि बेसिन में बारिश सामान्य से 4 प्रतिशत कम हुई थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि जलग्रहण क्षमता बहुत तेजी से घट रही है । यही कारण है कि जलग्रहण की स्थिति वह प्रमुख मापदंड है जो यह तय करती है कि किसी जलाशय विशेष में कितना जल पहुंच पा रहा है, लेकिन विडम्बना यह है कि इससे हम अभी तक अनभिज्ञ हैं।” 
शोध में डॉ. विमल मिश्रा के साथ अमर दीप तिवारी भी शामिल थे। यह शोध जर्नल ऑफ जियोफिजिकल रिसर्च: एटमॉस्फियर में प्रकाशित हुआ है। 


[भाषांतरण- शुभ्रता मिश्रा, ट्विटर हैंडल: @dineshcsharma]

As the mercury soars and countdown begins for the monsoon, storage levels in reservoirs keep the government and hydropower generators on tenterhooks.  Now Indian scientists have found a potential solution - a new framework that can predict reservoir storage anomalies one to three months ahead for the dry season (February to May).


Reservoirs provide water for irrigation, industrial use and hydropower generation in many parts of the country and their storage levels depend on rainfall in catchment areas, among other factors. Advance warning about likely deficit in reservoir storage could help in water management during droughts. But, at present, there is no such system available. 


Researchers at the Indian Institute of Technology, Gandhinagar, have developed a statistical framework which they say “provides the first assessment of reservoir storage anomaly forecast at 1‐ to 3‐month lead for the dry season that can be valuable for decision‐making.”  The framework is based several parameters – observed accumulated rainfall, standardized precipitation index (SPI), standardized precipitation evapotranspiration index (SPEI), standardized streamflow index (SSI), and observed storage data.
“We have found that accumulated precipitation for 3 to 11 months is strongly linked with monthly reservoir storage anomalies. Based on such data and other inputs it is possible to provide a reasonable forecast for reservoir storage anomalies at 1 to 3 month lead. This means in January and February itself we can predict what will be the storage level in May,” Dr Vimal Mishra, who has developed the framework along with co-researcher Amar Deep Tiwari, told India Science Wire. The scientific details of the model have been published in Journal of Geophysical Research: Atmospheres.


At present, reservoir storage forecast is mostly based on prediction of inflows which can be estimated using hydrological models as well as weather and climate models. Reservoirs levels are also monitored using remote sensing and ground measurements based on factors like water surface area and elevation. 


For developing their model, researchers analyzed observed precipitation, air temperature, and data from catchment areas of 91 major reservoirs in the country, and developed a regression‐based statistical model to predict reservoir storage anomalies at three months lead. Daily precipitation and maximum and minimum temperature data was taken from the India Meteorological Department (IMD), while India‐WRIS database was used for getting weekly reservoir storage data for all 91 reservoirs. 


“We have validated the model for reservoir levels 2002 onwards. This period has had dry, wet and normal monsoon years, and we found that the model really works well,” said Dr Mishra.  


Reservoirs in the country have considerable variation in terms of water surface area, storage capacity, command area and installed capacity to produce hydropower. The total storage capacity of 91 major reservoirs is about 238.4 billion cubic meter. Seven big ones  - Indira Sagar, Srisilam, Nagarjuna Sagar, Gandhi Sagar, Ukai, Gobind Sagar and Pong - have storage capacity more than 6 BCM.
Experts, however, remain cautious. “Reservoir storage forecast is a good idea, but one of the key parameters needed is upstream and reservoir water use data. There is no public policy as to how reservoir water will be used. This gap needs to be recognised before forecasting can give useful outputs. Another major factor is massive groundwater use and its impact on stream flow, which, in turn, affects reservoir storage,” Himanshu Thakkar of South Asia Network on Dams, Rivers and People, said while commenting on the study.


Information is also lacking about state of catchments of various reservoirs. In July last year, major reservoirs in Cauvery basin were full even though rainfall in the basin was 4 percent below normal. “This was because the catchment is degrading very fast and almost all the rain quickly converts into stream flow ending up in the reservoir. That’s why the state of a catchment is key parameter that decides how much water ends up in a reservoir, but this is a big unknown,” Thakkar added. (India Science Wire)

Path Alias

/articles/garamaiyaon-kae-taina-mahainae-pahalae-hao-sakatai-haai-jalaasayaon-maen-jalasatara-kai

Topic
×