ग्रामीण विकास में जल संसाधन की भूमिका

जल प्रकृति की सबसे बहुमूल्य देन में से एक है। इसके बिना जीवन एवं सभ्यता के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जल प्राप्ति के बावजूद जल की उपलब्धता समान नहीं है।

भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा देश की लगभग 72 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। ग्रामीण जनता का मुख्य पेशा कृषि है। अतः ग्रामीण विकास का आधार कृषि विकास है तथा कृषि विकास में जल संसाधनों की विशेष महत्वपूर्ण भूमिका है। जल संसाधन एवं सिंचाई प्रबंधन टैक्नोलॉजीकल तथा नई पद्धति संस्थापन है जो स्थान निर्धारित है। सन् 1950-1951 में देश में शुद्ध सिंचित क्षेत्रफल कुल शस्य क्षेत्रफल का केवल 15.8 प्रतिशत था जो अब बढ़कर 23 प्रतिशत है। शेष शस्य क्षेत्र या तो असिंचित है अथवा शुष्क (ड्राई) खेती है। परंतु कृषि उत्पादन की विकसित/उन्नत टैक्नोलॉजी केवल उन्हीं क्षेत्रों तक सीमित है जहां पर सिंचाई की समुचित सुविधा एवं भरोसेमंद है। फिर भी शुष्क खेती का स्वयं में काफी महत्व है, क्योंकि कम पूंजी, निम्न स्तर की टैक्नोलॉजी के कारण उपज भी प्रति हैक्टेयर कम प्राप्त होती है।

अतः इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कृषि पर अधिक ध्यान देने और अथक प्रयास करने की आवश्यकता है, जिससे कि शुष्क खेती की उपज में वृद्धि की जा सके तथा गरीबी को कम करेके बेरोजगारी समाप्त करके एवं क्षेत्रीय विषमताओं को कम करके ही राष्ट्रीय उद्देश्य की पूर्ति सम्भव है। इसलिए जल संसाधनों का समुचित प्रयोग ही उक्त समस्याओं का समाधान करने में सक्षम है। कृषि की उन्नति ही ग्रामीण विकास की कुंजी है जिसके लिए जल संसाधनों की विशेष भूमिका है। जल संसाधन वर्तमान एवं भविष्य की आवश्यकताओं के संदर्भ में न केवल अपर्याप्त है, अपितु दुर्लभ तथा कीमती भी है, जिनके दुरुपयोग एवं अनुचित प्रयोग से खेतीहर समुदाय की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति पर विपरीत पर्भाव पड़ता है।

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