ग्राम पंचायतों तथा श्रमिक सहकारी संस्थाओं द्वारा किया गया काम

कोसी तटबन्ध के काम में आरम्भ में भारत सेवक समाज ने प्रोजेक्ट एक्जीक्यूशन कमेटी के नाम से एक केन्द्रीय समिति का गठन किया जिसमें संयोजक समेत 12 सदस्य थे। इस समिति में एक तकनीकी सलाहकार के साथ-साथ राज्य पंचायत परिषद, जिला पंचायत परिषद तथा भारत सेवक समाज के प्रतिनिधि सदस्य थे। यह एक नीति नियामक समिति थी जिसका कार्य कोसी प्राधिकार से विचार विमर्श कर के कार्यक्रम तथा बजट तैयार करना था।

जन-सहयोग का दूसरा तरीका था ग्राम पंचायतों और श्रमिक सहकारी संस्थाओं द्वारा की जाने वाली ठेकेदारी जिसके लिए भारत सेवक समाज का काम था कि वह उनसे सम्पर्क करके उन्हें इस काम के लिए तैयार करे और उनके काम पर निगरानी रखे। परेशानी यह थी कि इस तरह की संस्थाएं मिट्टी के काम की अभ्यस्त नहीं थीं और ठेकेदारी का तो उन्हें कोई अनुभव ही नहीं था। न तो उन्हें टेण्डर भरना आता था और न ही वह अपने जरिये किये गये मिट्टी के काम की मजदूरी तय कर सकती थीं। तब यह तय पाया गया कि परीक्षण के तौर पर मजदूरों से मिट्टी कटवा कर तटबन्ध पर डलवाई जाय और वह जितना काम कर पाते हैं उसके हिसाब से उनकी मजदूरी तय की जाय। असमंजस की परिस्थिति से निबटने का यह एक व्यावहारिक समाधान था। सहूलियत के लिए यह भी तय पाया गया कि पैसे का सारा भुगतान भारत सेवक समाज को कर दिया जाय और वही इन संस्थाओं/मजदूरों का भुगतान करे। इस बात पर भी रजामन्दी हुई कि भारत सेवक समाज को जो भी भुगतान होगा उसका 90 प्रतिशत वह मजदूरी के रूप में बांटेगा, 5 प्रतिशत मजदूर बस्तियों में सामाजिक उद्देश्यों जैसे स्कूल, आवास, सड़क और पीने के पानी आदि पर खर्च करेगा और केवल 5 प्रतिशत से अपनी व्यवस्था का खर्च चलायेगा। क्योंकि यह समितियाँ पेशेवर ठेकेदारी में नहीं थीं और उनके पास कोई पूँजी भी नहीं थी इसलिए उनके लिए कुछ अग्रिम भुगतान की व्यवस्था की गई और यह रकम धीरे-धीरे चालू बिलों से काट ली जाती थी।

शुरू में औजार तथा जुगाड़ भी कोसी योजना प्रशासन की तरफ से दल नायकों को दिये गये थे जिसकी कटौती भुगतान से की जाती थी। कोसी प्रशासन की ओर से श्रमिक कल्याण के लिए विषद व्यवस्था की गई जिसमें तटबन्ध की प्रति मील की लम्बाई पर 28 श्रमिक आवास, 10 ट्यूबवेल, 10 बोर होल शौचालय तथा प्रति दो आवासों के पीछे एक पेट्रोमेक्स की व्यवस्था भी थी। दोनों तटबन्धों पर समुचित चिकित्सा व्यवस्था भी उपलब्ध थी। प्रति दो मील की लम्बाई पर मनोरंजन केन्द्र स्थापित किये गये जिसमें रेडियो, समाचार पत्र, खेल-कूद आदि की भी व्यवस्था थी तथा बीच-बीच में सिनेमा भी दिखाया जाता था।

भारत सेवक समाज द्वारा चुने गये दल नायकों द्वारा किया गया काम-


प्रत्येक मुखिया या दल नायक के जिम्मे 1000 फीट तटबन्ध की लम्बाई का काम था। यह अनुमान किया गया था कि 160 मजदूरों की मदद से 100 दिन के अन्दर इतना काम कर लिया जायगा। इन लोगों से कार्य सम्बन्धी करार सामान्य काम की दरों पर किया गया था यद्यपि कोई जमानत या धरोहर राशि नहीं ली गई थी और इसके विपरीत प्रत्येक दल नायक को श्रमिक भुगतान के लिए अग्रिम राशि दी गई थी जिससे प्रथम बिल के भुगतान तक वे सुचारु रूप से मजदूरों को भुगतान कर सकें। दल नायकों अथवा मुखिया को दी गई अग्रिम राशि का समायोजन उनके बिलों से बाद में करने का प्रावधान था। यह अग्रिम राशि दस रुपये प्रति मजदूर की दर से तय की गई थी। काम का माप और मजदूरी का भुगतान साप्ताहिक था जो कि बाद में बढ़ा कर दूसरे वर्ष से पाक्षिक कर दिया गया था तथा उसी अनुपात में अग्रिम राशि की दर भी बढ़ा दी गई थी।

कोसी तटबन्ध के काम में आरम्भ में भारत सेवक समाज ने प्रोजेक्ट एक्जीक्यूशन कमेटी के नाम से एक केन्द्रीय समिति का गठन किया जिसमें संयोजक समेत 12 सदस्य थे। इस समिति में एक तकनीकी सलाहकार के साथ-साथ राज्य पंचायत परिषद, जिला पंचायत परिषद तथा भारत सेवक समाज के प्रतिनिधि सदस्य थे। यह एक नीति नियामक समिति थी जिसका कार्य कोसी प्राधिकार से विचार विमर्श कर के कार्यक्रम तथा बजट तैयार करना था। कार्य का क्षेत्रीय दायित्व एक सचिव पर था जिसकी सहायता के लिए दो स्थानीय प्रभावशाली व्यक्ति थे जिनमें से एक पूर्वी तटबन्ध (लहटन चौधरी) तथा दूसरा पश्चिमी तटबन्ध (ललित नारायण मिश्र) के लिए जिम्मेवार था। इनके नीचे स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं की सलाहकार समितियाँ थीं। दोनों तटबन्धों के निर्माण कार्य को तीन से पाँच/किलोमीटर के कई टुकड़ों में बाँट दिया गया था जिसका दायित्व एक पॉइंट-इन-चार्ज का था जो कि दल-नायकों के काम का नियमन करता था तथा प्रगति पर नियंत्रण रखता था।

इसी समय अक्टूबर 1954 से मार्च 1955 तक ग्राम पंचायतों के संगठन के लिए भी कोसी प्राधिकार की तरफ से एक जोरदार अभियान चलाया गया जिसका अच्छा परिणाम सामने आया। इन्हीं प्रमाणित संस्थाओं को अधिकांश काम बाँटा गया तथा कुछ जगहों पर भारत सेवक समाज ने अपनी भी इकाइयाँ स्थापित कीं।

भारत सेवक समाज की मौजूदगी से यह फायदा अवश्य हुआ कि ठेकेदारी के भाव गिरे तथा कुल काम का लगभग आधा भाग भारत सेवक समाज के जरिये सम्पन्न हुआ। फरवरी 1956 में जब कि कुल मजदूरों की संख्या लगभग 20,000 थी, 10,000 के लगभग मजदूर केवल भारत सेवक समाज के थे। इस कार्य के तात्कालिक सामयिक मूल्यांकन में इस बात पर संतोष प्रकट किया गया कि कोसी प्रोजेक्ट के माध्यम से जनता का विश्वास, स्वयं-सहायता तथा सहकार की भावना पैदा हुई है। इसके अतिरित्तफ विकास कार्यो में लोगों की भागीदारी, स्थानीय स्तर पर संगठन का विकास तथा सामाजिक कल्याण का भी विकास हुआ है।

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Post By: tridmin
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