गोमती नदी के प्रदूषित जल में शैवाल विविधता पर एक अध्ययन

गोमती नदी के प्रदूषित जल में शैवाल विविधता पर एक अध्ययन, PC-TWP
गोमती नदी के प्रदूषित जल में शैवाल विविधता पर एक अध्ययन, PC-TWP

 

सारांश- 1-

लखनऊ के आस-पास गोमती नदी के कई महत्वपूर्ण स्थलों से शैवाल विविधता का अध्ययन करने के लिए एकत्रित नमूनों का विश्लेषण करने पर कुल तेईस शवालों की प्रजातियां पाई गई। इन तेईस प्रजातियों में सोलह सुनहरे भूरे (diatoms) शैवाल के अतिरिक्ति चार हरे शैवाल (green algae) तथा तीन नीलहरित शैवाल (blue-green algae) उपस्थित थे। हरित शैवाल प्रदूषण संवेदनशील होने के कारण केवल स्थल 'क' में जहाँ पानी प्रदूषण रहित था, वहाँ पर पाये गये। जब कि सुनहरे भूरे शैवाल स्थान  'ख' एवं 'ग' पर प्रचुर मात्रा में उपस्थित थे, क्योंकि यह शैवाल प्रदूषण को सूचित करते हैं। नीलहरित आसिलेटोरिया प्रदूषण प्रतिरोधक शैवाल होने के कारण प्रदूषित एवं प्रदूषण रहित दोनों ही प्रकार के जल में पाया जाता है।

प्रस्तावना

लखनऊ शहर में गोमती नदी एक मध्यम आकार की नदी है। इसकी सीमा केवल उत्तर प्रदेश राज्य में सीमित है। यह पीलीभीत के तराई क्षेत्र से निकलकर नौ जिलों से गुजरती हुई वाराणसी जिले के गोमती मोहाना नामक स्थान पर गंगा नदी में संलग्न हो जाती है।

लखनऊ शहर में लघु उद्योग पेपर मिल, मदिरा इकाइयों, नदी के किनारे धोबी घाट शहर का वाहित मल, आदि नदी के जल को प्रदूषित करते हैं। इससे जल की वास्तविक प्रकृति जैसे भौतिक एवं रासायनिक गुणों में परिवर्तन आ जाता है। इसका प्रभाव जल जैवविविधता (biodiversity) जैसे जलीय पौधों, शैवालों, आदि पर परिलक्षित होता है। वस्तुस्थिति से अवगत होकर शैवाल विविधता का गोमती नदी के चार महत्त्वपूर्ण स्थानों से अध्ययन किया गया।

सामग्री एवं विधि

गोमती नदी लखनऊ शहर में मात्र ग्यारह किलोमीटर तक प्रवाहित होती है। इस पर छः पुल एवं दो रेलगाड़ी के पुल प्रथम तथा छटे स्टेशनों के मध्य स्थित है। शैवालों का अध्ययन करने हेतु चार प्रमुख स्थानों से नमूने लिये गये।

प्रत्येक स्थलों का विवरण इस प्रकार है (चित्र 1)

 

गोमती नदी
प्रत्येक स्थलों का विवरण इस प्रकार है (चित्र 1)

 

स्थल 'क'

गऊघाट' जो कि लखनऊ के पश्चिम में स्थित है और यहीं से गोमती नदी लखनऊ शहर में प्रवेश करती है। इस स्थान पर  नदी का जल और स्थलों की तुलना में स्वच्छ है, यहाँ कोई भी गन्दा नाला नदी में नहीं मिलता है।

स्थल 'ख'

'यह स्थान स्थल 'क' से छ: किलोमीटर दूर शहीद स्मारक के निकट है, जहाँ पुराने लखनऊ शहर से नालों द्वारा भारी मात्रा में वाहित मल, गन्दा पानी एवं मोहन मेकिन्स की मदिरा उत्पादक औद्योगिक इकाई द्वारा छोड़ा गया कचरा आकर मिलता है। जिसके कारण पानी यहाँ काले और भूरे रंग का हो जाता है।

स्थल 'ग'

यह स्थान शहीद स्मारक से तीन किलोमीटर दूर पेपर मिल के समीप स्थित है। उक्त पेपर मिल पिछले दस वर्षों से कार्यरत नहीं है। नदी का तल नीचे होने के कारण निशांत गंज तथा आस-पास के क्षेत्रों से पम्पों द्वारा वाहित गन्दा पानी एवं कचरा नालों द्वारा आकर मिलता है। इस स्थान पर भी पानी काला और प्रदूषित है, तथा पानी का बहाव स्थल 'ख' की अपेक्षा कम है।

स्थल 'घ'

यह स्थल 'ग' से दो किलोमीटर दूर पूर्व में स्थित है और यहाँ पर गोमती बराज बना हुआ है। यहीं से नदी शहर को छोड़ती है। यहाँ का पानी कुछ स्वच्छ है।

शिवालों का अध्ययन करने के लिए नवम्बर एवं दिसम्बर माह मैं नमूने एकत्रित किये गये जीवित शैवालों को संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की सहायता से विस्तृत परिशीलन करने के बाद शैवालों को 4% फार्मेलीन (formaline) में रखा गया शवालों की सही पहचान के लिए हेन्डी' तथा देशिकाचारी के शोध- सन्दर्भों का उपयोग किया गया।

परिणाम

उपरोक्त अध्ययन के आधार पर ज्ञात होता है (सारणी 1) कि प्राप्त तेईस शैवालों में चार हरित शैवाल जैसे ऊडोगोनियम ( Oedogonium ), म्यूजीसिया (Mugoetia), कलासटीरियम ( Closterium), की दो प्रजातियां तथा दो नील हरित शैवालों मेरिस्मोपीडिया (Merismopedia), मैक्रोसिस्टिस (Microcystis) केवल स्थल 'क' पर प्राप्त हुए। नील-हरित शैवाल औसिलटोरिया (Oscillatoria) सभी चारों स्थलों पर प्राप्त हुए लेकिन स्थल 'घ' पर इनकी प्रचुर मात्रा मिली। सुनहरे भूरे शैवाल जैसे एम्फोरा (Amphora ), सिम्बेला (Cymbella), निटलिया (Nitzschia), गाम्फोनीमा (Gomphonema) स्थल 'क' और 'घ' पर कम मात्रा में एवं 'ख' और 'ग' पर प्रचुर मात्रा मैं पाये गये।

व्याख्या

लखनऊ शहर में सत्ताईस नाले हैं। औद्योगिक विष अनुसंधान केन्द्र लखनऊ की वार्षिक रिपोर्ट' 1996 के अनुसार पानी की गुणवत्ता गऊघाट स्थान के बाद खराब होने लगती है तथा पानी का रंग स्थल 'ग' तक काला रहता है। जब कि स्थल 'घ' पर पानी कुछ साफ है आक्सीजन की मात्रा भी पानी में कम पायी जाती है, क्योंकि शहर का वाहित अशुद्ध जल, कचरा विभिन्न नालों द्वारा नदी में आकर मिलता रहता है।

अध्ययन से ज्ञात होता है कि हरित शैवाल प्रदूषित जल में नहीं पाये जाते हैं। श्रीवास्तव एवं साहनी के अनुसार प्रदूषित जल की पारदर्शिता एवं वनस्पतिक घनता के मध्य विरोधाभास होता है। वेंकटेश्वरलू और मॉस को नीलहरित शैवाल प्रदूषित जल में प्राप्त हुए थे। हमारे अध्ययन के अनुसार भी नील हरित शैवाल जैसे औसिलटोरिया प्रदूषित जल में ज्यादा मिले। इससे यह सिद्ध होता है कि यह शैवाल प्रदूषण प्रतिरोधक है। परीक्षण से यह भी ज्ञात होता है कि सुनहरे भूरे शैवाल जैसे निटलिया, एम्फोरा, सिन्चैला, गाम्फोनीमा, आदि (सारणी 1) प्रदूषित स्थान 'ख' एवं 'ग' पर प्रचुर मात्रा में उपस्थित होकर प्रदूषण को सूचित करते हैं। हरित शैवाल जैसे अडोगोनियम  अधिक मात्रा में, क्लास्टीरियम तथा म्युजीसिया सामान्य से बहुत सामान्य मात्रा में  केवल स्थल 'क' पर पाये जाते हैं। अतः यह हरित शैवाल प्रदूषण संवेदनशील है।

संदर्भ

1. हैन्डी एन आई. एन इन्ट्रोडक्टरी एकाउन्ट ऑफ दो स्मातर एल्मी ऑफ ब्रिटिश कोस्टल वाटर्स वाल्यूम V. बेसिलारियीफसी एच एम एस बी लन्दन, 1964

2. देशिकाचारी टि.वि. साइनोफाइटा एमोनोग्राफ  (आईसीएआर नई दिल्ली) 1959. 

3. वार्षिक प्रतिवेदन औद्योगिक विष अनुसंधान केन्द्र (सी एस आई आर), लखनऊ 1996,

4. श्रीवास्तव वी सी एवं साहनी आर इफैक्ट ऑफ वाटर पोल्युशन ऑन पीरियाडिसिटी एण्ड प्रोडक्टिवटी ऑफ चिल्कालेक जियोबायोस 36 (1976) 187-189.

5. वेंकटेश्वरलू वी. एन इकोलोजिकल स्टैडी ऑफ दाँ  एल्गी आफदा खिर मूसी, हैदराबाद (इंडिया) विद सोशल रेफरेन्स टू वाटर पोल्युशन -lll : दाँ  एल्गल पीरियाडिसिटी हाइड्रोलाजिया 34 (1969) 533-560.

 6. मोस बी, वर्टिकल हीटरोजेनिसिटी इन दाँ  वाटर कालम्स ऑफ अबोस्ट बैंड -ll :  दाँ  इन्फ्लुएंस ऑफ फिजिकल एण्ड केमीकल कंडीशन्न ऑन दाँ  स्पेशियल अण्ड टैम्पोरल डिस्ट्रिब्युशन ऑफ दाँ  फाइटोप्लांकटन कम्यूनिटी ऑफ एपीलितिक एज जर्नल ऑफ इकोलॉजी 57 (1969) 397-414,
 

संजय द्विवेदी, एम. आर. सुशीला शैवाल विभाग, राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान केन्द्र (सी एस आई आर), लखनऊ 226001

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Post By: Shivendra
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