गंगा संग्रहालय के बाद वाटर एम्बुलेंस

water ambulance
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पटना की गंगा में वाटर एम्बुलेंस चलेगा। पटना में ऐसी आकर्षक योजनाएँ अकसर सामने आती हैं। कुछ में काम भी होता है, कुछ अधूरी रह जाती हैं, कुछ सुनियोजित सोच नहीं होने के कारण बेकार हो जाती है। अभी रिवरफ्रंट डेवलपमेंट के तहत गंगा घाटों का विकास किया जा रहा है। कई योजनाओं पर काम चल रहा है। इसबीच, गाँधीसेतु के महाजाम में उत्तर बिहार के मरीजों का फँसकर जान गँवा देने की घटनाओं से निजात दिलाने के लिए वाटर एम्बुलेंस का विचार सामने आया है। जल परिवहन से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि छपरा और वैशाली जिले के कुछ घाटों को चिन्हित कर वाटर एम्बुलेंस चलाई जा सकती है। कोनहरा, चेचर और राघोपुर घाट उपयुक्त होंगे। पटना के गंगा घाटों पर सीढ़ियों के साथ ऐसी संरचनाएँ बनाई जा सकती हैं जिनसे वैशाली और छपरा जिलों के घाटों के लिए छोटे स्टीमरों का परिचालन हो सके।

पटना में गंगा म्यूजियम और दो इको सेंटर का निर्माण हो रहा है। रिवर फ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के डायरेक्टर संदीप कुमार ने बताया कि इको सेंटर के लिए कलेक्टेट घाट पर जमीन मिल गई है। म्यूजियम के लिए गायघाट में जमीन के लिए जिला प्रशासन से बात की जा रही है। कलेक्टेट घाट पर करीब 2100 वर्ग मीटर जमीन में इकोसेंटर का तीन मंजिला भवन बनेगा। रिसर्च सेंटर, सभा कक्ष और ऊपरी तल्ले पर कैफेटेरिया बनेगा। रिसर्चरों और पर्यटकों के लिए यहाँ गंगा पर अब तक हुए विभिन्न शोधों की पूरी जानकारी उपलब्ध होगी। गंगा म्यूजियम के लिए गाय-घाट पर बिहार ज्यूडिसियल एकेडमी के आस-पास जमीन उपलब्ध कराने की बात हो रही है। वहाँ 950 वर्ग मीटर में भवन बनाया जाएगा। नीचले तल्ले पर रिसर्च सेंटर होगा। यहाँ गंगा और डाॅल्फिन पर रिसर्च होगा। प्रथम तल्ले पर प्रदर्शनी कक्ष होंगे। दोनों काम 2016 तक पूरे होंगे। इसके लिए केन्द्र सरकार ने 254 करोड़ रूपए का फंड दिया है। निर्माण कार्य बूडको को सौंपा गया है।

वाटर एम्बुलेंस का विचार नया है, पर इसमें कुछ निजी कंपनियों ने दिलचस्पी दिखाई है। इस मामले में पिछले दिनों अंतरर्देषीय नौवहन संस्थान, गायघाट में एक उच्चस्तरीय बैठक हुई। बैठक का पूरा विवरण उपलब्ध नहीं है। पर सोनपुर से पूरब और गंडक नदी के पश्चिम कोनहारा घाट से वैशाली और छपरा जिलों के बड़े इलाके के लोग आम दिनों में भी पटना आते-जाते हैं और गाँधी सेतु का उपयोग केवल तभी करते हैं जब किन्हीं कारणों से नावों के चलने पर प्रतिबंध रहता है। वाटर एम्बुलेंस से उत्तर बिहार के दूसरे हिस्सों से आए मरीजों को भी बहुत कम समय में पीएमसीएच पहुँचाया जा सकेगा।

गाँधीसेतु बनने के पहले पहलेजाघाट और महेन्द्रु घाट के बीच स्टीमर सेवा पटना को उत्तर बिहार के जोड़ने वाला सबसे प्रचलित मार्ग था। रेलवे का आखिरी स्टेशन था पहलेजाघाट, वहाँ से उसी टीकट पर स्टीमर से गंगा पार करने की सुविधा थी। गैर सरकारी स्टीमर सेवाएँ भी थी, पर पटना के दूसरे घाटों से भी मालवाही और यात्रीवाही नौकाएं चलती थी। चेचर घाट से पटना कलेक्टेट घाट के बीच स्टीमर चलती थी। बाद में स्टीमर तो बंद हो गया, पर नावें लगातार चलती रही हैं। उत्तर बिहार के काफी लोग इन घाटों का उपयोग गाहे-बेगाहे करते हैं। चेचर घाट से होकर महनार, विदुपुर और चेचर आदि के मरीजों को पटना के अस्पतालों में पहुँचाना आसान होगा। इसीतरह राघोपुर घाट को सीधे पटना कलेक्टेट घाट से जोड़ा जा सकता है। अभी राघोपुर दियरा के लोगों को पटना जाने के लिए काफी कठिनाई झेलनी होती है। उन्हें फतुहा या बख्तियारपुर होकर पटना जाना होता है।
 

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