सदियों से लोगों और खेत की जमीनों की प्यास बुझाती आई है। इसने यहाँ के लोगों को पानी ही नहीं फसल, बिजली, जंगल, फल-फूल और सब्जियों के साथ पर्यटन की असीम सम्भावनाएँ प्रदान की हैं। अकेले मध्य प्रदेश में ही इस पर आधा दर्जन से ज्यादा बड़े बाँध बनाए गए हैं, जिनसे बिजली पैदा होती है और दूर-दूर तक नहरों के जरिए सिंचाई होती है। नर्मदा कछार देश के अग्रणी फसल उत्पादकों में शामिल है। बावजूद इसके पिछले कुछ सालों से मनुष्य ने अपने लालच में आकर नर्मदा जैसी बड़ी नदी को भी प्रदूषित बना दिया है। पानी की शुद्धता के आधार पर बात करें तो गंगा नदी से ज्यादा शुद्ध पानी नर्मदा का मिलता है। इस बात का खुलासा बीते दिनों जारी हुई केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मण्डल की ताजा रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट बताती है कि गंगाजल को जहाँ 'सी' ग्रेड मिला है वही नर्मदा जल को 'बी' ग्रेड में रखा गया है।
रिपोर्ट बताती है कि मध्य प्रदेश की जीवनदायिनी कही जाने वाली नर्मदा नदी का पानी देश की अन्य बड़ी नदियों के पानी की तुलना में अधिक शुद्ध पाया गया है, वहीं धार्मिक आस्था की सबसे बड़ी केन्द्र मानी जाने वाली गंगा नदी का पानी नर्मदा के पानी से ज्यादा प्रदूषित मिला है।
नर्मदा के पानी में घुलनशील ऑक्सीजन का स्तर गंगा के पानी से काफी ज्यादा होने की वजह से नर्मदा का पानी सेहत की दृष्टि से भी सेहतमन्द है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मण्डल ने गंगा और नर्मदा नदी के अलग-अलग स्थानों से करीब सौ से ज्यादा सैम्पल लेकर इनकी जाँच विभिन्न प्रयोगशालाओं में करवाई है इसमें गंगाजल के सैम्पल उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग और हरिद्वार से लेकर उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर, रायबरेली कानपुर इलाहाबाद बक्सर और अन्य स्थानों से लिये गए हैं।
उत्तराखण्ड में जहाँ रुद्रप्रयाग और हरिद्वार में गंगा के पानी में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा 9.8 मिलीग्राम प्रति लीटर पाई गई है वहीं समुद्र में मिलने से पहले डायमंड हर्बर में यह सबसे निचले स्तर 5.4 मिलीग्राम प्रति लीटर ही दर्ज हो सकी है। सैम्पलों के आधार पर गंगा के पानी को 'सी' ग्रेड दिया गया है। इसी तरह गुजरात की महत्त्वपूर्ण मानी जाने वाली साबरमती नदी भी खासी प्रदूषित मिली है। साबरमती के पानी की जाँच में इसे सबसे प्रदूषित 'डी' ग्रेड का ही माना गया है।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक नर्मदा नदी के पानी को सबसे उच्च गुणवत्ता का माना गया है। नर्मदा जल को अधिक शुद्धता के लिये 'बी' ग्रेड दिया गया है। रिपोर्ट बताती है कि नर्मदा जल के सैम्पल मध्य प्रदेश के होशंगाबाद, ओंकारेश्वर, महेश्वर, बड़वानी और पड़ोसी राज्य गुजरात के जलेश्वर में लिये गए हैं। उनके मुताबिक होशंगाबाद में पानी में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा 8.8 मिलीग्राम प्रतिलीटर पाई गई है जबकि अपने आखिरी सिरे पर खम्बात की खाड़ी में गिरने से पहले नर्मदा के पानी में घुलनशील ऑक्सीजन 7 से 10 मिलीग्राम प्रतिलीटर पाई गई है। इसी प्रकार ओंकारेश्वर में 7.8, महेश्वर में 7.6 और बड़वानी में सर्वाधिक 9.1 मिलीग्राम प्रतिलीटर पाई गई है।
उज्जैन के वैज्ञानिक डॉ. जगदीशचन्द्र शर्मा कहते हैं, 'नदी के पानी में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा जितनी ज्यादा होती है, उतना ही ज्यादा शुद्ध जल माना जाता है। इससे नदी में जलीय जन्तुओं और जलीय वनस्पति के लिये भी पारिस्थितिकी का निर्माण होता है और इस पानी के सीधे तौर पर पीने से भी मानव शरीर पर किसी तरह का सेहत को कोई नुकसान नहीं होता। देश भर की नदियों की इस तरह लगातार पड़ताल होती रहती है। इसके लिये केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण मण्डल हर साल विभिन्न नदियों के अलग-अलग स्थानों से पानी के सैम्पल लेता है और बाकायदा उनकी रिपोर्ट भी जारी की जाती है। इसमें देश भर की बड़ी नदियाँ शामिल हैं।'
गौरतलब है कि देश के मध्य भाग में पूरब से पश्चिम तक बहने वाली नर्मदा नदी मध्य प्रदेश के सर्वाधिक हिस्से से होकर बहती है। यह भारत की पाँच बड़ी नदियों में गिनी जाती है। मध्य प्रदेश के अमरकंटक से निकलकर नर्मदा नदी गुजरात में भरूच के पास खम्भात की खाड़ी में समुद्र से जा मिलती है।
नर्मदा मध्य प्रदेश महाराष्ट्र और गुजरात से होकर बहती है लेकिन इस नदी का सबसे ज्यादा 87 प्रतिशत जल प्रवाह मध्य प्रदेश में ही होता है इसलिये इसे मध्य प्रदेश की जीवन रेखा भी माना जाता है। मध्य प्रदेश में अनूपपुर जिले के अमरकंटक से अलीराजपुर जिले के सोंडवा कस्बे तक नर्मदा का प्रवाह पथ करीब 1077 किलोमीटर का है यानी करीब साढे 82 प्रतिशत हिस्सा मध्य प्रदेश से होकर गुजरता है।
सदियों से यह यहाँ के लोगों और खेत की जमीनों की प्यास बुझाती आई है। इसने यहाँ के लोगों को पानी ही नहीं फसल, बिजली, जंगल, फल-फूल और सब्जियों के साथ पर्यटन की असीम सम्भावनाएँ प्रदान की हैं। अकेले मध्य प्रदेश में ही इस पर आधा दर्जन से ज्यादा बड़े बाँध बनाए गए हैं, जिनसे बिजली पैदा होती है और दूर-दूर तक नहरों के जरिए सिंचाई होती है। नर्मदा कछार देश के अग्रणी फसल उत्पादकों में शामिल है।
बावजूद इसके पिछले कुछ सालों से मनुष्य ने अपने लालच में आकर नर्मदा जैसी बड़ी नदी को भी प्रदूषित बना दिया है। नर्मदा के पानी का अत्यधिक दोहन किया गया है, वही इस पर कई बड़े बाँध बनाकर इसके प्राकृतिक प्रवाह को रोका गया है। इतना ही नहीं नदी किनारे बसे गाँव-कस्बों और शहरों का सीवेज पानी भी इसी नदी में आकर मिल जाता है जो नदी के पानी को प्रदूषित करता है।
नर्मदा नदी के किनारे हजारों सालों से खड़े जंगल को भी तेजी से काट डाला गया है। इस वजह से नदी का पारिस्थितिकी तंत्र पूरी तरह गड़बड़ा गया है। बाँधों की वजह से कई जगह नर्मदा के जल संग्रहण क्षमता भी प्रभावित हुई है। कई जगह उद्योगों का अपशिष्ट पदार्थ और खेतों से बहकर आने वाला कीटनाशक तथा रासायनिक खाद भी पानी की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं और उसे प्रदूषित बना देते हैं।
बीते सालों में नर्मदा में पाई जाने वाली कई जलीय प्रजातियाँ जलीय जन्तुओं की प्रजातियाँ और वनस्पति भी तेजी से कम हुई है। पानी के बहाव और जल संग्रहण भी कम होता जा रहा है। ऐसे में नर्मदा नदी को प्रदूषण से मुक्त कर साफ-सुथरा बनाने की महती जरूरत है। गुजरात और महाराष्ट्र की सरकारों ने नर्मदा नदी को बचाए रखने के लिये कई तरह के जतन किये हैं, लेकिन फिलहाल मध्य प्रदेश में ऐसी कोई बड़ी तैयारी नजर नहीं आती।
हालांकि मध्य प्रदेश की सरकार ने बीते दिनों नर्मदा को प्रदूषण से बचाने और उसके बिगड़े हुए नदी तंत्र को सुधारने की दिशा में कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय भी लिये हैं। लेकिन अभी इन पर अमल शुरू नहीं हुआ है। देखना होगा कि सरकार इन पर कितना शिद्दत से अमल करती है। नर्मदा का प्रवाह क्षेत्र प्रभावित करीब तेरह सौ किलोमीटर का है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक हर साल बड़ी तादाद में लोग इसकी परिक्रमा भी करते हैं। पैदल परिक्रमा करने का अपना महत्त्व है।
उत्तर भारत में गंगा के बाद सबसे अधिक धार्मिक और पर्यावरणीय महत्त्व नर्मदा नदी का ही है। नर्मदा नदी अब तक सदानीरा और साफ स्वच्छ पानी वाली नदी बनी हुई है। तमाम प्रदूषणों के बावजूद नर्मदा का पानी शुद्ध है और इतनी तादाद में बाँधों के बावजूद अब भी नर्मदा का पानी प्रदेश के कई शहरों की प्यास बुझा रहा है इतना ही नहीं इस पानी से हजारों एकड़ जमीन में सिंचाई भी होती है। लेकिन अब इसके लिये जागने का समय आ गया है।
समाज और सरकार को ऐसे समन्वित प्रयास करने होंगे जिससे इसका प्राकृतिक तंत्र समृद्ध हो सके और इसके परम्परागत स्वरूप में हम इसे फिर से पुनर्जीवित कर सकें। मध्य प्रदेश की सरकार अब नर्मदा को प्रदूषण से बचाने के लिये हर साल करीब 12 करोड़ रुपए खर्च करेगी। आशा की जानी चाहिए कि इस राशि का सदुपयोग नदी के पानी को बेहतर गुणवत्ता का बनाने और उसके प्राकृतिक सेहत के लिये हो सकेगा।
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Post By: RuralWater